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देश में औद्योगिक दुर्घटनाएं और उनसे जुड़े औद्योगिक सुरक्षा कानून - भोपाल गैस कांड

श्रम और रोजगार मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, 2014 और 2016 के बीच पूरे भारत में कारखाना दुर्घटनाओं में 3,562 श्रमिकों की मृत्यु हुई और उस अवधि में लगभग 51,000 से अधिक घायल हो गए. यह हर दिन औसतन तीन मौतें और 47 घायलों के बराबर है. पढ़ें विशेष रिपोर्ट

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विशाखापत्तनम गैस रिसाव
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Published : May 10, 2020, 3:19 PM IST

Updated : May 10, 2020, 5:33 PM IST

हैदराबाद : श्रम और रोजगार मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, 2014 और 2016 के बीच पूरे देश में कारखाना दुर्घटनाओं में 3,562 श्रमिकों की मृत्यु हुई और उस अवधि में लगभग 51,000 से अधिक घायल हो गए. इन आंकड़ों के मुताबिक औद्योगिक दुर्घटनाओं से हर दिन औसतन तीन मौतें होती हैं और 47 लोग घायल होते हैं.

ब्रिटिश सेफ्टी काउंसिल द्वारा 2017 के एक अध्ययन में बताया गया कि भारत में हर साल व्यावसायिक दुर्घटनाओं में 48,000 श्रमिकों की मृत्यु होती है, जिनमें से 24% निर्माण उद्योग से हैं.

केंद्र सरकार ने 2018 में एक बिल प्रस्तावित किया था. जिसमें इन 13 कानूनों को व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्य स्थितियों को एक श्रम कोड में विलय करने की बात कही गई.

भारत की 13 सबसे बड़ी कंपनियों के वार्षिक आंकड़ों के संकलन के अनुसार, वित्त वर्ष 2018 में 121 औद्योगिक मौतें हुई हैं.

वहीं पर्यावरण मंत्रालय ने बताया कि रासायनिक उद्योगों में दुर्घटनाओं के कारण मौतों की संख्या 2015 से 2018 तक लगभग 41 प्रतिशत कम हो गई है, लेकिन घायलों की संख्या में काफी वृद्धि हुई है.

मंत्रालय ने हाल ही में कहा कि घायलोंकी संख्या 2015-16 में 192 से बढ़कर 2017-18 में 728 हो गई है.

जबकि 2015-16 में रासायनिक रिसाव या दुर्घटनाओं के कारण होने वाली मौतों की संख्या 66 थी, 2016-17 में 90 मौतें हुई थीं और 2017-18 में, यह संख्या 39 तक आ गई.

मंत्रालय ने कहा कि 2015-16 की तुलना में 2017-18 में रासायनिक उद्योग दुर्घटनाओं की संख्या में 50 प्रतिशत से अधिक की कमी आई है. 2015-16 में दुर्घटनाओं की संख्या 64 थी, वहीं 2016-17 में 57 दुर्घटनाएं हुईं और 2017-18 में यह घटकर 31 हो गईं.

खतरनाक रसायनों का उपयोग करने वाली इकाइयों के लिए दिशानिर्देश

इकाइयों को अनिवार्य सुरक्षा ऑडिट से भी गुजरना होगा और सभी स्तरों पर रासायनिक आपदाओं को रोकने और कम करने के लिए जनशक्ति और बुनियादी ढांचे को मजबूत करना होगा.

परिवहन आपदाओं के लिए, एनडीएमए राजमार्ग आपदा प्रबंधन योजनाओं और एक पाइपलाइन प्रबंधन प्रणाली के विकास द्वारा परिवहन आपातकालीन प्रबंधन को बढ़ावा देने की सिफारिश करता है.
राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) द्वारा तैयार किए गए राष्ट्रीय रासायनिक आपदा प्रबंधन दिशानिर्देशों के अनुसार, प्रक्रियाओं, उत्पादों और अपशिष्टों के रूप में खतरनाक रसायनों का उपयोग करने वाली औद्योगिक इकाइयां जिनका उत्पाद या कचरा ज्वलनशील, विस्फोटक, संक्षारक, विषाक्त और विषाक्त गुणों वाला होता है उनके पास जगह-जगह आपातकालीन ऑनसाईट और ऑफसाइट आपातकालीन योजनाएं होनी चाहिए जिसका नियमित मॉक ड्रिल आयोजित करके उन्हें परीक्षण करते रहना चाहिए.

पढ़ें-सिक्किम : भारत-चीन सीमा पर दोनों देशों के सैनिकों की बीच झड़प

सभी देशों में भोपाल गैस आपदा के बाद विभिन्न अधिनियम और नियम पारित किए गए थे. सुरक्षा को सुनिश्चित करने और आपदाओं को नियंत्रित करने के लिए भोपाल आपदा के बाद भारत में जो प्रमुख नियम पारित किए गए थे:

  • भोपाल गैस रिसाव आपदा अधिनियम (1985),
  • पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम (1986),
  • पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, (1986) के आपराधिक दायित्व प्रावधान,
  • कारखाना अधिनियम (1987)
  • राष्ट्रीय पर्यावरण अपीलीय प्राधिकरण अधिनियम (1987)
  • खतरनाक अपशिष्ट नियम (1989),
  • खतरनाक रसायन (MSIHC) नियम (1989) का निर्माण, भंडारण और आयात
  • सार्वजनिक देयता बीमा अधिनियम (1991),
  • राष्ट्रीय पर्यावरण न्यायाधिकरण अधिनियम (1995),
  • रासायनिक दुर्घटना नियम (1996),
  • रासायनिक दुर्घटनाओं के नियमों (1996) और राष्ट्रीय हरित अधिकरण अधिनियम (2010) में प्रावधान.

ग्रामीण क्षेत्रों में समस्या

ग्रामीण वातावरण और स्वास्थ्य समस्याओं में विषाक्त पदार्थों के उपयोग के बीच कारण और प्रभाव संबंधों को स्थापित करना मुश्किल है. इसके अनेक कारण हैं, जैसे:

  • विषाक्त गैस के संपर्क में आने से होने वाली घटनाओ के बारे में अपर्याप्त जानकारी और अपर्याप्त विष विज्ञान डेटा .
  • पर्यावरणीय महामारी विज्ञान के अध्ययन से जुड़ी अनिश्चितता.
  • लोगों और नौकरियों का निरंतर परिवर्तन, जिससे ग्रामीण कार्य वातावरण को चिह्नित करना और उसका आकलन करना मुश्किल हो जाता है.
  • विषाक्त गैस के संपर्क में आने के बाद और कैंसर जैसे स्वास्थ्य प्रभावों की उपस्थिति के बीच की अव्यक्त अवधि.
  • कीटनाशकों का उपयोग या निर्माण करने वाले श्रमिकों द्वारा अपर्याप्त सुरक्षा सावधानियां.
  • कर्मचारियों के लिए अपर्याप्त स्वास्थ्य जांच.
  • रासायनिक उत्पादों की अपर्याप्त लेबलिंग.
  • भोजन का रासायनिक संदूषण .
  • घर में रसायनों का असुरक्षित भंडारण, विशेष रूप से मिट्टी का तेल.
  • कचरे के अनियंत्रित निपटान के कारण अक्सर उद्योग से पर्यावरण प्रदूषण है.

क्या किये जाने की आवश्यकता है

ग्रामीण परिवेश में, रसायनों को आम तौर पर केंद्रित रूप में प्राप्त किया जाता है, फिर मिश्रित और विभिन्न कंटेनरों में स्थानांतरित किया जाता है. इन कंटेनरों को स्थानीय भाषा में सामान्य रासायनिक नाम, प्रतीकों या चेतावनियों और कंटेनर की स्थिति (भरा हुआ या खाली) जैसे चिन्ह ठीक से चिपकए जाने चाहिए. लेबल अत्यधिक स्पष्ट होने चाहिए.

रासयनों का सुरक्षित जगह पर भंडारण किया जाना चाहिए औऱ इसे रिहायशी इलाकों से दूर बनाना चाहिए.

भंडारण क्षेत्रों को भी ठंडा और सूखा होना चाहिए, और रसायनों को ऐसे संग्रहित किया जाना चाहिए कि रासायनिक प्रतिक्रिया, ज्वलनशीलता या संक्षारण के कारण कोई खतरा न हो. निर्माताओं और आपूर्तिकर्ताओं से रसीद पर पारगमन में क्षतिग्रस्त हुए कंटेनरों की पहचान करने और उन्हें अलग किया जाना चाहिए.

श्रमिकों और परिवारों को उन रसायनों से जुड़े जोखिमों के बारे में जानकारी दी जानी चाहिए कि किस माध्यम से वे इन रसायनों के संपर्क में आ सकते हैं, लेबलिंग और भंडारण, रसायनों और खाली कंटेनरों से निपटने में प्रशिक्षण, आपातकालीन प्रतिक्रिया, और व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण का उपयोग का प्रशिक्षण अनिवार्य और आवधिक होना चाहिए.

एक चिकित्सा निगरानी कार्यक्रम के तहत विषाक्त पदार्थों के संपर्क में आने वली जगहों के दस्तावेज बनाने चाहिए साथ ही उनकी नियमित रूप से जानकारी भी रखनी भी चाहिए. ताकि उनकी पहचान की जा सके और रोकथाम के प्रयासों और जागरूकता अभियानों को लक्षित किया जाए.

पढ़ें-LPG के टैंकर में गैस रिसाव, समय रहते किया गया ठीक, बड़ा हादसा टला

श्रमिकों को कंटेनर हैंडलिंग और विस्थापित करने में विशिष्ट ऑन-द-जॉब प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए क्योंकि गलत हैंडलिंग और विस्थापन के परिणामस्वरूप श्रमिकों को जान का जोखिम, उनके परिवारों में आकस्मिक विषाक्तता और मिट्टी और पानी का प्रदूषण हो सकता है.

हैदराबाद : श्रम और रोजगार मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, 2014 और 2016 के बीच पूरे देश में कारखाना दुर्घटनाओं में 3,562 श्रमिकों की मृत्यु हुई और उस अवधि में लगभग 51,000 से अधिक घायल हो गए. इन आंकड़ों के मुताबिक औद्योगिक दुर्घटनाओं से हर दिन औसतन तीन मौतें होती हैं और 47 लोग घायल होते हैं.

ब्रिटिश सेफ्टी काउंसिल द्वारा 2017 के एक अध्ययन में बताया गया कि भारत में हर साल व्यावसायिक दुर्घटनाओं में 48,000 श्रमिकों की मृत्यु होती है, जिनमें से 24% निर्माण उद्योग से हैं.

केंद्र सरकार ने 2018 में एक बिल प्रस्तावित किया था. जिसमें इन 13 कानूनों को व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्य स्थितियों को एक श्रम कोड में विलय करने की बात कही गई.

भारत की 13 सबसे बड़ी कंपनियों के वार्षिक आंकड़ों के संकलन के अनुसार, वित्त वर्ष 2018 में 121 औद्योगिक मौतें हुई हैं.

वहीं पर्यावरण मंत्रालय ने बताया कि रासायनिक उद्योगों में दुर्घटनाओं के कारण मौतों की संख्या 2015 से 2018 तक लगभग 41 प्रतिशत कम हो गई है, लेकिन घायलों की संख्या में काफी वृद्धि हुई है.

मंत्रालय ने हाल ही में कहा कि घायलोंकी संख्या 2015-16 में 192 से बढ़कर 2017-18 में 728 हो गई है.

जबकि 2015-16 में रासायनिक रिसाव या दुर्घटनाओं के कारण होने वाली मौतों की संख्या 66 थी, 2016-17 में 90 मौतें हुई थीं और 2017-18 में, यह संख्या 39 तक आ गई.

मंत्रालय ने कहा कि 2015-16 की तुलना में 2017-18 में रासायनिक उद्योग दुर्घटनाओं की संख्या में 50 प्रतिशत से अधिक की कमी आई है. 2015-16 में दुर्घटनाओं की संख्या 64 थी, वहीं 2016-17 में 57 दुर्घटनाएं हुईं और 2017-18 में यह घटकर 31 हो गईं.

खतरनाक रसायनों का उपयोग करने वाली इकाइयों के लिए दिशानिर्देश

इकाइयों को अनिवार्य सुरक्षा ऑडिट से भी गुजरना होगा और सभी स्तरों पर रासायनिक आपदाओं को रोकने और कम करने के लिए जनशक्ति और बुनियादी ढांचे को मजबूत करना होगा.

परिवहन आपदाओं के लिए, एनडीएमए राजमार्ग आपदा प्रबंधन योजनाओं और एक पाइपलाइन प्रबंधन प्रणाली के विकास द्वारा परिवहन आपातकालीन प्रबंधन को बढ़ावा देने की सिफारिश करता है.
राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) द्वारा तैयार किए गए राष्ट्रीय रासायनिक आपदा प्रबंधन दिशानिर्देशों के अनुसार, प्रक्रियाओं, उत्पादों और अपशिष्टों के रूप में खतरनाक रसायनों का उपयोग करने वाली औद्योगिक इकाइयां जिनका उत्पाद या कचरा ज्वलनशील, विस्फोटक, संक्षारक, विषाक्त और विषाक्त गुणों वाला होता है उनके पास जगह-जगह आपातकालीन ऑनसाईट और ऑफसाइट आपातकालीन योजनाएं होनी चाहिए जिसका नियमित मॉक ड्रिल आयोजित करके उन्हें परीक्षण करते रहना चाहिए.

पढ़ें-सिक्किम : भारत-चीन सीमा पर दोनों देशों के सैनिकों की बीच झड़प

सभी देशों में भोपाल गैस आपदा के बाद विभिन्न अधिनियम और नियम पारित किए गए थे. सुरक्षा को सुनिश्चित करने और आपदाओं को नियंत्रित करने के लिए भोपाल आपदा के बाद भारत में जो प्रमुख नियम पारित किए गए थे:

  • भोपाल गैस रिसाव आपदा अधिनियम (1985),
  • पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम (1986),
  • पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, (1986) के आपराधिक दायित्व प्रावधान,
  • कारखाना अधिनियम (1987)
  • राष्ट्रीय पर्यावरण अपीलीय प्राधिकरण अधिनियम (1987)
  • खतरनाक अपशिष्ट नियम (1989),
  • खतरनाक रसायन (MSIHC) नियम (1989) का निर्माण, भंडारण और आयात
  • सार्वजनिक देयता बीमा अधिनियम (1991),
  • राष्ट्रीय पर्यावरण न्यायाधिकरण अधिनियम (1995),
  • रासायनिक दुर्घटना नियम (1996),
  • रासायनिक दुर्घटनाओं के नियमों (1996) और राष्ट्रीय हरित अधिकरण अधिनियम (2010) में प्रावधान.

ग्रामीण क्षेत्रों में समस्या

ग्रामीण वातावरण और स्वास्थ्य समस्याओं में विषाक्त पदार्थों के उपयोग के बीच कारण और प्रभाव संबंधों को स्थापित करना मुश्किल है. इसके अनेक कारण हैं, जैसे:

  • विषाक्त गैस के संपर्क में आने से होने वाली घटनाओ के बारे में अपर्याप्त जानकारी और अपर्याप्त विष विज्ञान डेटा .
  • पर्यावरणीय महामारी विज्ञान के अध्ययन से जुड़ी अनिश्चितता.
  • लोगों और नौकरियों का निरंतर परिवर्तन, जिससे ग्रामीण कार्य वातावरण को चिह्नित करना और उसका आकलन करना मुश्किल हो जाता है.
  • विषाक्त गैस के संपर्क में आने के बाद और कैंसर जैसे स्वास्थ्य प्रभावों की उपस्थिति के बीच की अव्यक्त अवधि.
  • कीटनाशकों का उपयोग या निर्माण करने वाले श्रमिकों द्वारा अपर्याप्त सुरक्षा सावधानियां.
  • कर्मचारियों के लिए अपर्याप्त स्वास्थ्य जांच.
  • रासायनिक उत्पादों की अपर्याप्त लेबलिंग.
  • भोजन का रासायनिक संदूषण .
  • घर में रसायनों का असुरक्षित भंडारण, विशेष रूप से मिट्टी का तेल.
  • कचरे के अनियंत्रित निपटान के कारण अक्सर उद्योग से पर्यावरण प्रदूषण है.

क्या किये जाने की आवश्यकता है

ग्रामीण परिवेश में, रसायनों को आम तौर पर केंद्रित रूप में प्राप्त किया जाता है, फिर मिश्रित और विभिन्न कंटेनरों में स्थानांतरित किया जाता है. इन कंटेनरों को स्थानीय भाषा में सामान्य रासायनिक नाम, प्रतीकों या चेतावनियों और कंटेनर की स्थिति (भरा हुआ या खाली) जैसे चिन्ह ठीक से चिपकए जाने चाहिए. लेबल अत्यधिक स्पष्ट होने चाहिए.

रासयनों का सुरक्षित जगह पर भंडारण किया जाना चाहिए औऱ इसे रिहायशी इलाकों से दूर बनाना चाहिए.

भंडारण क्षेत्रों को भी ठंडा और सूखा होना चाहिए, और रसायनों को ऐसे संग्रहित किया जाना चाहिए कि रासायनिक प्रतिक्रिया, ज्वलनशीलता या संक्षारण के कारण कोई खतरा न हो. निर्माताओं और आपूर्तिकर्ताओं से रसीद पर पारगमन में क्षतिग्रस्त हुए कंटेनरों की पहचान करने और उन्हें अलग किया जाना चाहिए.

श्रमिकों और परिवारों को उन रसायनों से जुड़े जोखिमों के बारे में जानकारी दी जानी चाहिए कि किस माध्यम से वे इन रसायनों के संपर्क में आ सकते हैं, लेबलिंग और भंडारण, रसायनों और खाली कंटेनरों से निपटने में प्रशिक्षण, आपातकालीन प्रतिक्रिया, और व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण का उपयोग का प्रशिक्षण अनिवार्य और आवधिक होना चाहिए.

एक चिकित्सा निगरानी कार्यक्रम के तहत विषाक्त पदार्थों के संपर्क में आने वली जगहों के दस्तावेज बनाने चाहिए साथ ही उनकी नियमित रूप से जानकारी भी रखनी भी चाहिए. ताकि उनकी पहचान की जा सके और रोकथाम के प्रयासों और जागरूकता अभियानों को लक्षित किया जाए.

पढ़ें-LPG के टैंकर में गैस रिसाव, समय रहते किया गया ठीक, बड़ा हादसा टला

श्रमिकों को कंटेनर हैंडलिंग और विस्थापित करने में विशिष्ट ऑन-द-जॉब प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए क्योंकि गलत हैंडलिंग और विस्थापन के परिणामस्वरूप श्रमिकों को जान का जोखिम, उनके परिवारों में आकस्मिक विषाक्तता और मिट्टी और पानी का प्रदूषण हो सकता है.

Last Updated : May 10, 2020, 5:33 PM IST
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