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ब्रह्मोस मिसाइल से हुई कमाई को अनुसंधान-विकास में खर्च करेंगे भारत और रूस

भारत और रूस ने इस बात पर सहमति व्यक्त की है कि ब्रह्मोस मिसाइल के निर्यात से होने वाली कमाई का 100 प्रतिशत हिस्सा मिसाइल से जुड़े विकास में खर्च किया जाएगा. यह फैसला इसलिए किया गया है ताकि क्रूज के प्रोजेक्टाइल को तकनीकी रूप से उन्नत रखा जा सके. भारत-रूस के बीच हुई सहमति पर संजीब कुमार बरुआ की विशेष रिपोर्ट...

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Published : Jun 12, 2020, 6:20 PM IST

Updated : Jun 13, 2020, 2:04 PM IST

india russia will use all revenues earned from brahmos missile export only for research and development
ब्रह्मोस

हैदराबाद : भारत और रूस द्वारा संयुक्त रूप से विकसित ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल की बिक्री से मिले राजस्व को अनुसंधान और विकास (आर एंड डी) से जुड़ी गतिविधियों में इस्तेमाल किया जाएगा. दरअसल इस मामले से जुड़े एक सूत्र ने ईटीवी भारत को उक्त जानकारी दी.

सूत्र ने बताया कि भारत और रूस ने इस बात पर सहमति व्यक्त की है कि ब्रह्मोस मिसाइल के निर्यात से होने वाली कमाई का 100 प्रतिशत हिस्सा मिसाइल से जुड़े विकास में खर्च किया जाएगा. यह फैसला इसलिए किया गया है ताकि क्रूज के प्रोजेक्टाइल को तकनीकी रूप से उन्नत रखा जा सके.

आपको बता दें कि एशिया और लैटिन अमेरिका के कम से कम चार देशों से ब्रह्मोस मिसाइल के जमीनी और जलीय संस्करण खरीदने के लिए बातचीत जारी है. इसे दुनिया की सबसे तेज क्रूज मिसाइल माना जाता है. वियतनाम, फिलीपींस, इंडोनेशिया, मलेशिया, ब्राजील, चिली और वेनेजुएला जैसे कई देशों के नाम संभावित खरीदारों के रूप में सामने आए हैं.

महत्वपूर्ण बात यह है कि अन्य देशों को यह मिसाइल निर्यात करने से भारत के कूटनीतिक और सामरिक संबंधों को एक नया आयाम मिलेगा.

ब्रह्मोस मिसाइल योजना का ध्येय वाक्य है, 'ब्रह्मोस के निर्यात के माध्यम से संयुक्त उद्यम भागीदारों के अनुकूल देशों के साथ रणनीतिक गठबंधन करना है.'

देशों का नाम बताते हुए, सूत्र ने बताया कि जमीन और जल पर क्रूज मिसाइल के संस्करणों के निर्यात का सौदा इस साल के अंत तक या अगले साल की शुरुआत में हो सकता है.

उनके मुताबिक, 'कोविड-19 महामारी ने हमारी निर्यात योजनाओं को बर्बाद कर दिया और इन सौदों के प्रगति में देरी हुई है. अब तक ब्रह्मोस का हवाई संस्करण निर्यात के लिए सामने नहीं आया है.'

लगभग 3-टन वाली इस मिसाइल की मारक क्षमता 450 किमी तक है. यह दो चरण में फायर और फॉरगेट के सिद्धांत पर काम करता है. यह मिसाइल 2.8 मैक (3,347 किमी प्रति घंटा) की रफ्तार के साथ यह 300 किलोग्राम का वॉरहेड (हमले में इस्तेमाल होने वाला हथियार) ले जाने में सक्षम है.

इस घातक मिसाइल की विशेषता है कि अपनी गतिज ऊर्जा (kinetic energy) के कारण यह उड़ान के दौरान रडार मेंं नहीं आता है. यह सटीकता के साथ लक्ष्य पर सीधा हमला करने में सक्षम है. बता दें भारत वर्टिकल डीप-डाइव क्षमता के साथ ब्रह्मोस के एक संस्करण को तैयार करने के लिए उत्सुक है, जो हिमालय जैसे उच्च पर्वतीय क्षेत्रों में युद्ध के दौरान मददगार साबित होगा.

इस संस्करण में मिसाइल को लगभग ऊर्ध्वाधर कोण पर दागा जाता है. तब लक्ष्य के लिए एक गोता लेने से पहले लगभग 14 किमी तक चढ़ जाती है.

मिसाइल के इस संस्करण की मदद से दुश्मन पर वर्टिकल एंगल में हमला किया जाता है. दुश्मन पर हमले से पहले मिसाइल करीब 14 किमी तक ऊंचाई पर जाती है.

मामूली चूक से खुला अग्नि मिसाइल के गुप्त ठिकाने का राज

उल्लेखनीय है कि सभी ब्रह्मोस मिसाइलों का निर्माण भारत सरकार के रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) और रूसी राज्य के स्वामित्व वाली एनपीओ मशीनोसट्रोयेनिया (NPO Mashinostroyenia) के बीच 1998 में स्थापित एक संयुक्त उद्यम ब्रह्मोस एयरोस्पेस (Brahmos Aerospace) द्वारा किया गया था. यह दोनों संबंधित सरकारों के बीच एक समझौते के माध्यम से हुआ है. भारत के पास 50.5 प्रतिशत हिस्सा है, जबकि रूस के पास 49.5 प्रतिशत हिस्सा है. 'ब्रह्मोस' का नाम ब्रह्मपुत्र नदी और मोस्कवा नदी को मिलाकर बनाया गया है.

हैदराबाद : भारत और रूस द्वारा संयुक्त रूप से विकसित ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल की बिक्री से मिले राजस्व को अनुसंधान और विकास (आर एंड डी) से जुड़ी गतिविधियों में इस्तेमाल किया जाएगा. दरअसल इस मामले से जुड़े एक सूत्र ने ईटीवी भारत को उक्त जानकारी दी.

सूत्र ने बताया कि भारत और रूस ने इस बात पर सहमति व्यक्त की है कि ब्रह्मोस मिसाइल के निर्यात से होने वाली कमाई का 100 प्रतिशत हिस्सा मिसाइल से जुड़े विकास में खर्च किया जाएगा. यह फैसला इसलिए किया गया है ताकि क्रूज के प्रोजेक्टाइल को तकनीकी रूप से उन्नत रखा जा सके.

आपको बता दें कि एशिया और लैटिन अमेरिका के कम से कम चार देशों से ब्रह्मोस मिसाइल के जमीनी और जलीय संस्करण खरीदने के लिए बातचीत जारी है. इसे दुनिया की सबसे तेज क्रूज मिसाइल माना जाता है. वियतनाम, फिलीपींस, इंडोनेशिया, मलेशिया, ब्राजील, चिली और वेनेजुएला जैसे कई देशों के नाम संभावित खरीदारों के रूप में सामने आए हैं.

महत्वपूर्ण बात यह है कि अन्य देशों को यह मिसाइल निर्यात करने से भारत के कूटनीतिक और सामरिक संबंधों को एक नया आयाम मिलेगा.

ब्रह्मोस मिसाइल योजना का ध्येय वाक्य है, 'ब्रह्मोस के निर्यात के माध्यम से संयुक्त उद्यम भागीदारों के अनुकूल देशों के साथ रणनीतिक गठबंधन करना है.'

देशों का नाम बताते हुए, सूत्र ने बताया कि जमीन और जल पर क्रूज मिसाइल के संस्करणों के निर्यात का सौदा इस साल के अंत तक या अगले साल की शुरुआत में हो सकता है.

उनके मुताबिक, 'कोविड-19 महामारी ने हमारी निर्यात योजनाओं को बर्बाद कर दिया और इन सौदों के प्रगति में देरी हुई है. अब तक ब्रह्मोस का हवाई संस्करण निर्यात के लिए सामने नहीं आया है.'

लगभग 3-टन वाली इस मिसाइल की मारक क्षमता 450 किमी तक है. यह दो चरण में फायर और फॉरगेट के सिद्धांत पर काम करता है. यह मिसाइल 2.8 मैक (3,347 किमी प्रति घंटा) की रफ्तार के साथ यह 300 किलोग्राम का वॉरहेड (हमले में इस्तेमाल होने वाला हथियार) ले जाने में सक्षम है.

इस घातक मिसाइल की विशेषता है कि अपनी गतिज ऊर्जा (kinetic energy) के कारण यह उड़ान के दौरान रडार मेंं नहीं आता है. यह सटीकता के साथ लक्ष्य पर सीधा हमला करने में सक्षम है. बता दें भारत वर्टिकल डीप-डाइव क्षमता के साथ ब्रह्मोस के एक संस्करण को तैयार करने के लिए उत्सुक है, जो हिमालय जैसे उच्च पर्वतीय क्षेत्रों में युद्ध के दौरान मददगार साबित होगा.

इस संस्करण में मिसाइल को लगभग ऊर्ध्वाधर कोण पर दागा जाता है. तब लक्ष्य के लिए एक गोता लेने से पहले लगभग 14 किमी तक चढ़ जाती है.

मिसाइल के इस संस्करण की मदद से दुश्मन पर वर्टिकल एंगल में हमला किया जाता है. दुश्मन पर हमले से पहले मिसाइल करीब 14 किमी तक ऊंचाई पर जाती है.

मामूली चूक से खुला अग्नि मिसाइल के गुप्त ठिकाने का राज

उल्लेखनीय है कि सभी ब्रह्मोस मिसाइलों का निर्माण भारत सरकार के रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) और रूसी राज्य के स्वामित्व वाली एनपीओ मशीनोसट्रोयेनिया (NPO Mashinostroyenia) के बीच 1998 में स्थापित एक संयुक्त उद्यम ब्रह्मोस एयरोस्पेस (Brahmos Aerospace) द्वारा किया गया था. यह दोनों संबंधित सरकारों के बीच एक समझौते के माध्यम से हुआ है. भारत के पास 50.5 प्रतिशत हिस्सा है, जबकि रूस के पास 49.5 प्रतिशत हिस्सा है. 'ब्रह्मोस' का नाम ब्रह्मपुत्र नदी और मोस्कवा नदी को मिलाकर बनाया गया है.

Last Updated : Jun 13, 2020, 2:04 PM IST
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