पोखरण परमाणु परीक्षण को देखते हुए भारत पर बेतुके प्रतिबंध लगे थे. अब भारत जल्द ही सभी शीर्ष देशों के साथ रणनीतिक साझेदारी समझौतों के साथ धीरे-धीरे आगे बढ़ेगा. इसके लिए अटल बिहारी वाजपेयी की परिपक्व राजनीतिक कूटनीति को धन्यवाद दिया जाना चाहिए. उनकी यह टिप्पणी कि एक देश के करीब होने का मतलब दूसरे से दूर जाना नहीं है, गुटनिरपेक्षता की सच्ची भावना को दर्शाता है. नई सहस्राब्दी के दो दशकों के भीतर भू-राजनीतिक माहौल में बहुत बदलाव आया है. वर्ष 2004 में हिंद महासागर में आई सुनामी के पीड़ितों की मदद करने में सफल रहे देशों में उस सहयोग को एक व्यवस्थित रूप देने की भावना विकसित हुई है.
जापान के तत्कालीन प्रधानमंत्री शिंजो आबे की आकांक्षा थी कि वर्ष 2006 में दिल्ली और टोक्यो के संयुक्त बयान में जिसका उल्लेख किया गया था, उस स्वतंत्रता और समृद्धि की दृष्टि वाले हिंदू और प्रशांत महासागर के तटीय देशों को एक टीम तैयार करनी चाहिए.
हालांकि, 2007 में जब इस संदर्भ में विचार-विमर्श शुरू हुआ था, तो उसके शुरुआती चरण में ही बीजिंग ने सवालों और आपत्तियों के जरिए इस प्रयास को नाकाम कर दिया था.
इतने वर्षों के बाद अब न केवल अमेरिका, जापान, भारत और ऑस्ट्रेलिया के चतुर्भुज सुरक्षा संवाद ( क्यूएसडी, जिसे क्वैड के रूप में भी जाना जाता है ) का गठन किया गया है, बल्कि इन चार देशों के बीच पंद्रह दिन में मालाबार नौसैनिक युद्धाभ्यास के लिए मंच भी तैयार हो गया है.
ट्रंप प्रशासन ने अपने 2017 के राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति दस्तावेज में चीनी आक्रामक रवैये पर कड़ी कार्रवाई की है. ट्रंप प्रशासन एशिया-प्रशांत क्षेत्र को हिंद-प्रशांत क्षेत्र मानता है. बीजिंग ने जहां 'एशियाई नाटो' गठबंधन बनाने की तैयारी के लिए वॉशिंगटन की आलोचना की है.
वहीं चीन के कठोर व्यवहार ने भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच सहयोग की एक नई सक्रियता के लिए प्रेरित किया है. 'क्वैड' के सदस्य देशों के सबसे बड़े व्यापारिक साझेदार चीन ने शीतयुद्ध की विचारधारा के साथ नई भू-राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता शुरू कर दी है. अमेरिका को उम्मीद है कि बीजिंग की आक्रामकता का मुकाबला करने के लिए एक चतुष्कोणीय गठबंधन बनेगा. भारत को इस रणनीति के जाल में बलि का बकरा नहीं बनना चाहिए.
भारत इस क्वैड का एकमात्र ऐसा सदस्य है, जिसकी चीन के साथ विस्तृत भौगोलिक सीमा लगी हुई है. चीनी प्रधानमंत्री वेन जियाबाओ ने कहा था कि भारत-चीन के संबंध पिछले 2200 वर्षों से सौहार्दपूर्ण हैं लेकिन चीन कुछ महीने से सीमा पर अतिक्रमण करने में जुटा है और युद्ध जैसी स्थितियां पैदा कर रहा है.
भारत ने 1959 में चीन की ओर से प्रस्तावित सीमा को पूरी तरह से अस्वीकार कर दिया था इसके बावजूद चीन जोर दे रहा है कि भारत उसके प्रस्ताव का पालन करने के लिए बाध्य है. इसके साथ ही वह शांति प्रक्रिया के सभी प्रयासों का विरोध कर रहा है. ऐतिहासिक रूप से बीजिंग का दक्षिण चीन सागर पर एकाधिकार था. वह वहां सैन्य ठिकानों का विस्तार करने के लिए कृत्रिम द्वीप बना रहा है. उसे वर्ष 2016 में अंतरराष्ट्रीय न्यायाधिकरण में एक कड़वा अनुभव मिला.