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चीन को मात देने के लिए भारत का 'चीनी और चावल' प्लान

प्राकृतिक आपदाओं और कोरोना वायरस महामारी से प्रभावित लोगों की मदद के लिए भारत लगातार कोशिश कर रहा है. अफ्रीका के प्रभावित पिछड़े देशों की मदद के लिए भारत की तरफ से मिशन सागर चलाया जा रहा है. भारत के लिए यह मिशन हिंद महासागर क्षेत्र में सर्वोपरि नौसैनिक शक्ति के रूप में खुद को स्थापित करने का लक्ष्य रखने वाले चीन का मुकाबला करने में काफी सहायक होगा. वरिष्ठ पत्रकार संजीब कुमार बरुआ की रिपोर्ट.

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Published : Nov 12, 2020, 10:27 PM IST

नई दिल्ली : हिंद महासागर और उसके पड़ोसी देश तेजी से वैश्विक नौसेना शक्तियों के लिए अपने संबंधित क्षेत्रों को मजबूत और विस्तार करने में लगे हुए हैं. ऐसे में पूर्वी अफ्रीकी देश जिबूती, भारत और चीन सहित वैश्विक शक्तियों के लिए केंद्र बिंदु बन गया है.

बुधवार को भारतीय नौसेना आईएनएस ऐरावत द्वारा सुरक्षा और क्षेत्र में सभी के लिए विकास (SAGAR) योजना के तहत 50 टन खाद्य-गेहूं, चावल और चीनी जिबूती के अधिकारियों को दान दिए गए, जो प्राकृतिक आपदाओं और कोविड-19 महामारी को दूर करने के लिए मित्र देशों की मदद का एक प्रयास था.

जिबूती पर बढ़ता ध्यान भारत के भू-राजनीतिक और सैन्य हितों द्वारा निर्देशित है. लगभग 10 लाख आबादी वाला जिबूती एक छोटा देश हो सकता है, लेकिन स्वेज नहर के प्रवेश द्वार पर बाब अल-मंडेब स्ट्रेट पर स्थित है और यह दुनिया के सबसे व्यस्त शिपिंग लेन पर नजर रखने के लिए एक काफी अहम जगह है.

यही कारण है कि यह अमेरिका, फ्रांस, जापान, सऊदी अरब और चीन के प्रमुख सैन्य ठिकानों और नौसैनिक स्टेशनों का घर है, जबकि जर्मन और इटालियंस सहित कई अन्य देश युद्ध की आड़ में यहां मौजूदगी दर्ज करवाते रहते हैं.

भारत की अमेरिका, फ्रांस और जापान के साथ प्रमुख पारस्परिक रसद सेवा संधि है, जो दुनिया भर में एक-दूसरे की सैन्य सुविधाओं, तार्किक समर्थन, आपूर्ति और सेवाओं तक पहुंच की अनुमति देता है. इसमें सैन्य संपत्ति और प्लेटफार्मों के लिए ईंधन भरने, पुर्जे फिट करना आदि शामिल है.

2016 में अमेरिका ने भारत लॉजिस्टिक एक्सचेंज मेमोरेंडम ऑफ एग्रीमेंट (LEMOA) को शामिल किया था, 2018 में भारत और फ्रांस के बीच लॉजिस्टिक सपोर्ट पैक्ट पर हस्ताक्षर किए गए थे, जबकि 2020 में जापानियों के साथ अधिग्रहण और क्रॉस-सर्विसिंग एग्रीमेंट (ACSA) पर हस्ताक्षर हुए थे.

वास्तव में भारतीय के साथ अमेरिका, फ्रांस और जापान के मौजूदा समझौते के चलते जिबूती भारत को स्वतंत्र रूप से संचालित करने की अनुमति देगा, जिससे भारतीय नेवी पहुंच को बहुत सक्षम बनाया जा सकेगा.

यह हिंद महासागर क्षेत्र में सर्वोपरि नौसैनिक शक्ति के रूप में खुद को स्थापित करने का लक्ष्य रखने वाले चीन का मुकाबला करने में काफी सहायक होगा.

रणनीतिक रूप से जिबूती में मजबूत भारतीय प्रभाव भारत को स्ट्रिंग ऑफ पर्ल थ्योरी को दरकिनार करने की अनुमति देगा, जिससे भारत चीनी सेना के नेटवर्क के साथ चीन के वाणिज्यिक ठिकानों की घेराबंदी कर सकेगा, जबकि 2001 में अमेरिका द्वारा स्थापिक कैंप लेमनियर में 4,000 से अधिक अमेरिकी सैनिक तैनात हैं. यह अफ्रीका में सबसे बड़ा अमेरिकी बेस है. इसके अलावा जिबूती में जापानी बेस 2011 में स्थापित किया गया था.

दूसरी ओर 2017 डोरलेह बंदरगाह पर शुरू किया गया चीनी बेस, बड़ी चीनी सैन्य उपस्थिति के अलावा बहुत तेज गति से विकास कर रहा है. दिलचस्प बात यह है कि अमेरिका और चीनी बेस के बीच की दूरी मात्र सात किमी है.

जिबूती में चीनी प्रभाव भी मुख्य रूप से चीन के ऋण-जाल कूटनीति के कारण तेज गति से फैल रहा है, जिसने लगभग 1.2 बिलियन अमेरिकी डालर का ऋण जिबूती को दिया है. यह ऋण कोरोना के कारण चल रहे आर्थिक संकंट में विकासशील एशियाई देशों के लिए बहुत अधिक है.

पढ़ें - पूर्वी लद्दाख में टेंशन कम करने के '3 चरण प्लान' को मानता है भारत तो होगी हार!

आईएमएफ के अनुसार जिबूती का सार्वजनिक ऋण 2016 में उसकी जीडीपी का 50 प्रतिशत था, जो बढ़कर 2018 के अंत तक 104 प्रतिशत हो गया है. यह डेटा चीनी उधार पर आधारित है.

पाइलिंग ऋण पर यूएस कांग्रेसनल रिसर्च सर्विस (सीआरएस) ने कहा है कि ऋण को लेकर अमेरिकी अधिकारियों ने चिंता जताई है कि जिबूति चीनी प्रभाव से तेजी से कमजोर हो सकता है. इसके अलावा कुछ जिबूती अधिकारियों ने भी चीनी ऋण को लेकर चिंता जताई है.

सदियों पुराने व्यापारिक संबंध के अलावा, भारत और जिबूती ने पारंपरिक संबंधों को साझा किया है.

जिबूती यमन से भारत के फंसे हुए नागरिकों को निकालने के लिए भारतीय बचाव कार्यों का एक केंद्र बना हुआ है. यह अब भारतीय एंबेसी में यमन की मेजबानी कर रहा है, जो 2015 से बंद है.

इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि पूर्वी अफ्रीकी राष्ट्र ने 2017 में नवनियुक्त राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को पहली बार यात्रा पर बुलाया. दिलचस्प बात यह है कि 2019 में जिबूती के राष्ट्रपति इस्माइल उमर गुएलेह को भारत का दूसरा सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था.

नई दिल्ली : हिंद महासागर और उसके पड़ोसी देश तेजी से वैश्विक नौसेना शक्तियों के लिए अपने संबंधित क्षेत्रों को मजबूत और विस्तार करने में लगे हुए हैं. ऐसे में पूर्वी अफ्रीकी देश जिबूती, भारत और चीन सहित वैश्विक शक्तियों के लिए केंद्र बिंदु बन गया है.

बुधवार को भारतीय नौसेना आईएनएस ऐरावत द्वारा सुरक्षा और क्षेत्र में सभी के लिए विकास (SAGAR) योजना के तहत 50 टन खाद्य-गेहूं, चावल और चीनी जिबूती के अधिकारियों को दान दिए गए, जो प्राकृतिक आपदाओं और कोविड-19 महामारी को दूर करने के लिए मित्र देशों की मदद का एक प्रयास था.

जिबूती पर बढ़ता ध्यान भारत के भू-राजनीतिक और सैन्य हितों द्वारा निर्देशित है. लगभग 10 लाख आबादी वाला जिबूती एक छोटा देश हो सकता है, लेकिन स्वेज नहर के प्रवेश द्वार पर बाब अल-मंडेब स्ट्रेट पर स्थित है और यह दुनिया के सबसे व्यस्त शिपिंग लेन पर नजर रखने के लिए एक काफी अहम जगह है.

यही कारण है कि यह अमेरिका, फ्रांस, जापान, सऊदी अरब और चीन के प्रमुख सैन्य ठिकानों और नौसैनिक स्टेशनों का घर है, जबकि जर्मन और इटालियंस सहित कई अन्य देश युद्ध की आड़ में यहां मौजूदगी दर्ज करवाते रहते हैं.

भारत की अमेरिका, फ्रांस और जापान के साथ प्रमुख पारस्परिक रसद सेवा संधि है, जो दुनिया भर में एक-दूसरे की सैन्य सुविधाओं, तार्किक समर्थन, आपूर्ति और सेवाओं तक पहुंच की अनुमति देता है. इसमें सैन्य संपत्ति और प्लेटफार्मों के लिए ईंधन भरने, पुर्जे फिट करना आदि शामिल है.

2016 में अमेरिका ने भारत लॉजिस्टिक एक्सचेंज मेमोरेंडम ऑफ एग्रीमेंट (LEMOA) को शामिल किया था, 2018 में भारत और फ्रांस के बीच लॉजिस्टिक सपोर्ट पैक्ट पर हस्ताक्षर किए गए थे, जबकि 2020 में जापानियों के साथ अधिग्रहण और क्रॉस-सर्विसिंग एग्रीमेंट (ACSA) पर हस्ताक्षर हुए थे.

वास्तव में भारतीय के साथ अमेरिका, फ्रांस और जापान के मौजूदा समझौते के चलते जिबूती भारत को स्वतंत्र रूप से संचालित करने की अनुमति देगा, जिससे भारतीय नेवी पहुंच को बहुत सक्षम बनाया जा सकेगा.

यह हिंद महासागर क्षेत्र में सर्वोपरि नौसैनिक शक्ति के रूप में खुद को स्थापित करने का लक्ष्य रखने वाले चीन का मुकाबला करने में काफी सहायक होगा.

रणनीतिक रूप से जिबूती में मजबूत भारतीय प्रभाव भारत को स्ट्रिंग ऑफ पर्ल थ्योरी को दरकिनार करने की अनुमति देगा, जिससे भारत चीनी सेना के नेटवर्क के साथ चीन के वाणिज्यिक ठिकानों की घेराबंदी कर सकेगा, जबकि 2001 में अमेरिका द्वारा स्थापिक कैंप लेमनियर में 4,000 से अधिक अमेरिकी सैनिक तैनात हैं. यह अफ्रीका में सबसे बड़ा अमेरिकी बेस है. इसके अलावा जिबूती में जापानी बेस 2011 में स्थापित किया गया था.

दूसरी ओर 2017 डोरलेह बंदरगाह पर शुरू किया गया चीनी बेस, बड़ी चीनी सैन्य उपस्थिति के अलावा बहुत तेज गति से विकास कर रहा है. दिलचस्प बात यह है कि अमेरिका और चीनी बेस के बीच की दूरी मात्र सात किमी है.

जिबूती में चीनी प्रभाव भी मुख्य रूप से चीन के ऋण-जाल कूटनीति के कारण तेज गति से फैल रहा है, जिसने लगभग 1.2 बिलियन अमेरिकी डालर का ऋण जिबूती को दिया है. यह ऋण कोरोना के कारण चल रहे आर्थिक संकंट में विकासशील एशियाई देशों के लिए बहुत अधिक है.

पढ़ें - पूर्वी लद्दाख में टेंशन कम करने के '3 चरण प्लान' को मानता है भारत तो होगी हार!

आईएमएफ के अनुसार जिबूती का सार्वजनिक ऋण 2016 में उसकी जीडीपी का 50 प्रतिशत था, जो बढ़कर 2018 के अंत तक 104 प्रतिशत हो गया है. यह डेटा चीनी उधार पर आधारित है.

पाइलिंग ऋण पर यूएस कांग्रेसनल रिसर्च सर्विस (सीआरएस) ने कहा है कि ऋण को लेकर अमेरिकी अधिकारियों ने चिंता जताई है कि जिबूति चीनी प्रभाव से तेजी से कमजोर हो सकता है. इसके अलावा कुछ जिबूती अधिकारियों ने भी चीनी ऋण को लेकर चिंता जताई है.

सदियों पुराने व्यापारिक संबंध के अलावा, भारत और जिबूती ने पारंपरिक संबंधों को साझा किया है.

जिबूती यमन से भारत के फंसे हुए नागरिकों को निकालने के लिए भारतीय बचाव कार्यों का एक केंद्र बना हुआ है. यह अब भारतीय एंबेसी में यमन की मेजबानी कर रहा है, जो 2015 से बंद है.

इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि पूर्वी अफ्रीकी राष्ट्र ने 2017 में नवनियुक्त राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को पहली बार यात्रा पर बुलाया. दिलचस्प बात यह है कि 2019 में जिबूती के राष्ट्रपति इस्माइल उमर गुएलेह को भारत का दूसरा सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था.

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