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आईएलओ की चेतावनी- दुनियाभर में होगी प्रवासियों के संकट में वृद्धि

अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) ने चेतावनी जारी कर कहा है कि दुनियाभर में फैली कोरोना महामारी में सबसे ज्यादा प्रभावित वर्ग प्रवासी मजदूर हैं और यह आने वाले दिनों में सभी देशों के लिए बड़ा संकट बन सकता है. इनके पास रोजगार नहीं हैं और कुछ दूसरे देशों में फंसे हुए हैं. वहीं लाखों लोग घर लौट गए हैं और दीर्घकालिक बेरोजगारी व गरीबी को देख रहे हैं. पढ़ें पूरी खबर...

migrant worker
प्रतीकात्मक तस्वीर
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Published : Jun 27, 2020, 7:17 PM IST

हैदराबाद : दुनियाभर में फैली कोरोना महामारी के प्रसार को रोकने के लिए लॉकडाउन लागू किया गया. इस वजह से दुनियाभर में कंपनियां बंद हो गई हैं, जिससे लाखों लोग बेरोजगार हो गए हैं. इस महामारी से सबसे ज्यादा प्रभावित प्रवासी श्रमिक हुए हैं. लॉकडाउन में काम-धंधे बंद होने और रोजगार खोने के बाद लाखों लोग अपने गृह राज्य लौट गए हैं. वहीं कई लाख लोग घर वापसी की उम्मीद में बैठे हुए हैं. ये लोग लंबे समय के लिए बेरोजगारी और गरीबी देख रहे हैं.

इस बीच प्रवासी श्रमिकों का एक अन्य समूह बिना सामाजिक सुरक्षा के विदेशों में फंसा हुआ है, जिसके पास रहने और खाने के लिए बहुत कम पैसे बचे हैं. यहां तक कि रोजगार बचाने के लिए लोग पूरा काम करने के बाद भी कम मजदूरी ले रहे हैं और वह कार्यस्थल पर ही रह रहे हैं, जहां पर सोशल डिस्टेंसिंग को बनाए रखना मुश्किल है.

अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) के कार्य और समानता विभाग की शर्तों की निदेशक मैनुएला टोमई (Manuela Tomei) ने कहा, 'यह महामारी के दौरान एक संभावित संकट है. हम जानते हैं कई लाख प्रवासी मजदूर, जो विदेशों में काम कर रहे थे, अपने काम खो चुके हैं. अब उन्हें वापस अपने देश आने की उम्मीद है. वहीं उनका देश भी पहले से ही कमजोर अर्थव्यवस्था और और बढ़ती बेरोजगारी से जूझ रहा है. दुनियाभर के लिए सहयोग और योजना ही इस संकट को रोकने में महत्वपूर्ण साबित होगा.'

संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था की इंजन कहे जाने वाले छोटे और मध्यम आकार के उद्यम पर गहरा प्रभाव पड़ा है. कुछ ऐसे भी हैं, जो अब पहले की तरह नहीं चल सकते.

अनौपचारिक अर्थव्यवस्था में काम करने वाले लगभग दो अरब लोग ऐसे हैं, जिनकी कमाई में काम और सामाजिक संरक्षण के अधिकारों के बगैर संकट के पहले ही महीने में 60 फीसदी की कमी आई है.

आईएलओ के अनुसार दुनिया भर में 16.4 करोड़ प्रवासी कामगार हैं, जिनमें से लगभग आधी महिलाएं हैं. यह संख्या वैश्विक श्रम शक्ति की 4.7 फीसदी है. हालांकि ये सभी प्रवासी अपने घर वापस नहीं आएंगे.

आईएलओ के अनौपचारिक शोध के मुताबिक 20 से अधिक देशों में किसी अन्य वजह से लोगों ने अपने रोजगार खोए हैं.

पढ़ें : भारत में मृत व्यक्तियों के लिए संवैधानिक अधिकार

आईएलओ ने एक पैकेज जारी किया है, जिसे महामारी के दौरान प्रभावित हुए प्रवासियों, शरणार्थियों या जबरन विस्थापित व्यक्तियों को ध्यान में रखकर बनाया गया है, जिसमें इनके लिए कई नीतियां भी शामिल हैं. यह पैकेज सामाजिक और आर्थिक स्थिति को ध्यान में रखकर बनाया गया. इसमें कहा गया है कि यदि प्रवासियों की वापसी कम समय में होती है, तो उनकी सामाजिक सुरक्षा और राष्ट्रीय श्रम बाजार में पुनः स्थापित करने में मदद करेगी.

शोध से यह भी पता चलता है कि कैसे लौटने वाले प्रवासी श्रमिक प्रतिभा और कौशल के साथ आते हैं, जो महामारी के बाद अपने घर की अर्थव्यवस्था को बेहतर बनाने में मदद कर सकते हैं.

श्रमिकों की आधारित व व्यवस्थित रूप से वापसी और पुनः विभाजन पद्धति, सामाजिक सुरक्षा और उचित कौशल को स्थापित करने के लिए संभावित अधिकारों के प्रमुख बिंदु हैं.

हैदराबाद : दुनियाभर में फैली कोरोना महामारी के प्रसार को रोकने के लिए लॉकडाउन लागू किया गया. इस वजह से दुनियाभर में कंपनियां बंद हो गई हैं, जिससे लाखों लोग बेरोजगार हो गए हैं. इस महामारी से सबसे ज्यादा प्रभावित प्रवासी श्रमिक हुए हैं. लॉकडाउन में काम-धंधे बंद होने और रोजगार खोने के बाद लाखों लोग अपने गृह राज्य लौट गए हैं. वहीं कई लाख लोग घर वापसी की उम्मीद में बैठे हुए हैं. ये लोग लंबे समय के लिए बेरोजगारी और गरीबी देख रहे हैं.

इस बीच प्रवासी श्रमिकों का एक अन्य समूह बिना सामाजिक सुरक्षा के विदेशों में फंसा हुआ है, जिसके पास रहने और खाने के लिए बहुत कम पैसे बचे हैं. यहां तक कि रोजगार बचाने के लिए लोग पूरा काम करने के बाद भी कम मजदूरी ले रहे हैं और वह कार्यस्थल पर ही रह रहे हैं, जहां पर सोशल डिस्टेंसिंग को बनाए रखना मुश्किल है.

अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) के कार्य और समानता विभाग की शर्तों की निदेशक मैनुएला टोमई (Manuela Tomei) ने कहा, 'यह महामारी के दौरान एक संभावित संकट है. हम जानते हैं कई लाख प्रवासी मजदूर, जो विदेशों में काम कर रहे थे, अपने काम खो चुके हैं. अब उन्हें वापस अपने देश आने की उम्मीद है. वहीं उनका देश भी पहले से ही कमजोर अर्थव्यवस्था और और बढ़ती बेरोजगारी से जूझ रहा है. दुनियाभर के लिए सहयोग और योजना ही इस संकट को रोकने में महत्वपूर्ण साबित होगा.'

संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था की इंजन कहे जाने वाले छोटे और मध्यम आकार के उद्यम पर गहरा प्रभाव पड़ा है. कुछ ऐसे भी हैं, जो अब पहले की तरह नहीं चल सकते.

अनौपचारिक अर्थव्यवस्था में काम करने वाले लगभग दो अरब लोग ऐसे हैं, जिनकी कमाई में काम और सामाजिक संरक्षण के अधिकारों के बगैर संकट के पहले ही महीने में 60 फीसदी की कमी आई है.

आईएलओ के अनुसार दुनिया भर में 16.4 करोड़ प्रवासी कामगार हैं, जिनमें से लगभग आधी महिलाएं हैं. यह संख्या वैश्विक श्रम शक्ति की 4.7 फीसदी है. हालांकि ये सभी प्रवासी अपने घर वापस नहीं आएंगे.

आईएलओ के अनौपचारिक शोध के मुताबिक 20 से अधिक देशों में किसी अन्य वजह से लोगों ने अपने रोजगार खोए हैं.

पढ़ें : भारत में मृत व्यक्तियों के लिए संवैधानिक अधिकार

आईएलओ ने एक पैकेज जारी किया है, जिसे महामारी के दौरान प्रभावित हुए प्रवासियों, शरणार्थियों या जबरन विस्थापित व्यक्तियों को ध्यान में रखकर बनाया गया है, जिसमें इनके लिए कई नीतियां भी शामिल हैं. यह पैकेज सामाजिक और आर्थिक स्थिति को ध्यान में रखकर बनाया गया. इसमें कहा गया है कि यदि प्रवासियों की वापसी कम समय में होती है, तो उनकी सामाजिक सुरक्षा और राष्ट्रीय श्रम बाजार में पुनः स्थापित करने में मदद करेगी.

शोध से यह भी पता चलता है कि कैसे लौटने वाले प्रवासी श्रमिक प्रतिभा और कौशल के साथ आते हैं, जो महामारी के बाद अपने घर की अर्थव्यवस्था को बेहतर बनाने में मदद कर सकते हैं.

श्रमिकों की आधारित व व्यवस्थित रूप से वापसी और पुनः विभाजन पद्धति, सामाजिक सुरक्षा और उचित कौशल को स्थापित करने के लिए संभावित अधिकारों के प्रमुख बिंदु हैं.

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