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विशेष : छत्तीसगढ़ के इस जिले में स्थापित है गणपति की जुड़वा मूर्ति - idol of twin ganesha

छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में बारसूर की पौराणिक नगरी स्थित है. यहां गणेश भगवान की जुड़वा प्रतिमाएं स्थापित हैं. दंतेवाड़ा की बारसूर नगरी प्राचीन काल से धर्म और आस्था का केंद्र है. यह 150 मंदिर और 150 तालाबों की नगरी है. एक नजर डालें स्पेशल रिपोर्ट पर

barsoor ganesh temple
गणपति की जुड़वा मूर्ति
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Published : Aug 30, 2020, 7:12 AM IST

रायपुर : छत्तीसगढ़ के ऐतिहासिक धरोहरों में दंतेवाड़ा जिले का बारसूर इलाका भी शुमार है. यह विख्यात है गणपति की जुड़वा मूर्ति के लिए. इस वजह से बारसूर नगरी प्राचीन काल से धर्म और आस्था का केंद्र है. 150 मंदिर और 150 तालाबों की इस नगरी को राक्षस राजा बाणासुर ने अपनी राजधानी के रूप में स्थापित किया था.

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार राजा बलि के पुत्र बाण ने अपनी राजधानी दंडकारण्य में बसी बारसूर नगरी को बनाया था. बाणासुर के राक्षस पुत्र होने के कारण इस नगरी का नाम बारसूर पड़ा. कहा जाता है कि राक्षस बाणासुर परम शिव भक्त भी था. उसने अपने तपोबल से शिव को प्रसन्न कर अक्षय ध्वज भी प्राप्त किया था, उसके राज्य में जब तक भगवान शिव से प्राप्त अक्षय ध्वज लहराता रहेगा वह अजय रहेगा.

देखें रिपोर्ट.

बारसूर की पौराणिक नगरी दंतेवाड़ा से 32 किलोमीटर दूर है. जहां गणेश मंदिर में गणेश भगवान की दो प्रतिमा स्थापित है, साथ ही नाग मंदिर, राम मंदिर, प्रसिद्ध बत्तीसा मंदिर, मामा भांजा मंदिर जैसे शिव और शिव परिवार के अनेकों मंदिर आज भी विद्यमान हैं, जो बारसूर के पुराने इतिहास से परिचित करता है.

यह मूर्ति विश्व की सबसे बड़ी तीसरी प्रतिमा
बस्तर के विशेष जानकार हेमन्त कश्यप ने बताया कि पौराणिक कथाओं के अनुसार राक्षस राजा बाणासुर शिव भक्त था. यह भी एक कारण है कि शिव परिवार से जुड़े मंदिरों का उसने विस्तार भी किया और बारसूर में विशालकाय जुड़वा गणेश प्रतिमा बनवाई. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार राक्षस राजा बाणासुर की पुत्री उषा और उनके मंत्री कुभाण्ड की पुत्री चित्रलेखा के बीच काफी गहरी दोस्ती थी.

दोनों सहेलियां परम गणेश भक्त थी. पूजा करने उन्हें दूर जाना पड़ता था, जिसे देखते हुए राक्षस राजा बाणासुर ने बारसूर में ही एक गणेश मंदिर का निर्माण करवाया. गणेश भगवान की दो प्रतिमा स्थापित की गई, जिसमें एक प्रतिमा 8 फीट की है, तो दूसरी प्रतिमा 5 फीट की है. बारसूर के गणेश प्रतिमा को विश्व में तीसरी सबसे बड़ी गणेश प्रतिमा का दर्जा प्राप्त है.

पुरातात्विक मूर्तियों को संजोकर रखने में उदासीन बना विभाग

यहां श्रद्धालु बड़ी संख्या में रोजाना दूर दराज से आते हैं. कहा जाता है कि जोड़े में गणेश भगवान की प्रतिमा होने की वजह से जो भी जोड़ा यहां अपनी मनोकामना लेकर पहुंचता है, वह पूरी होती है. इस गणेश मंदिर का रखरखाव सही से नहीं हो पा रहा था.

आए दिन प्रतिमाओं से छेड़छाड़ की खबरों के बाद इस मंदिर के रखरखाव की जिम्मेदारी पुरातत्व विभाग को सौंप दी गई है. संजीव पचोरी का कहना है कि ख्याति प्राप्त गणेश मंदिर होने के बावजूद भी पुरातत्व विभाग ने इसके संरक्षण और संवर्धन के लिए किसी तरह की कोई ठोस पहल नहीं की. केंद्र और राज्य सरकार भी इन इन पुरातात्विक मूर्तियों को लेकर उदासीन बने हुए है.

11वीं शताब्दी में छिन्दक नागवंशी राजाओं ने मंदिर का कराया निर्माण
विशेष जानकार संजीव पचोरी बताते हैं कि इस मंदिर के पीछे एक और भी कहानी प्रचलित है. उन्होंने बताया कि 11वीं शताब्दी में छिन्दक नागवंशी के राजाओं ने बारसूर मंदिर को बनाया था. यहां 8 फीट और 5 फीट की जुड़वा विशालकाय गणेश प्रतिमा स्थापित की गई क्योंकि छिन्दक नागवंशी राजा भगवान शिव के परम भक्त थे. इस वजह से बस्तर के अधिकतर इलाकों में शिव पार्वती और भगवान गणेश की ही प्रतिमा देखने को मिलती है.

इस विशालकाय प्रतिमा की खोज तब हुई. जब यहां के स्थानीय ग्रामीणों ने प्रतिमा को देखा और इसकी जानकारी प्रशासन को दी, जिसके बाद पुरातत्व विभाग की टीम ने यहां पहुंचकर इस प्राचीन प्रतिमाओं को नुकसान से बचाने के लिए यहां कुछ निर्माण कराया.

विशालकाय गणेश प्रतिमा को देखने पहुंचते हैं लोग

पुरातत्व विभाग के अधिकारी एएल पैकरा ने बताया कि यह प्राचीन प्रतिमा पुरातात्विक रूप से काफी महत्वपूर्ण है. इसके संरक्षण और संवर्धन का जिम्मा केंद्र सरकार के पुरातत्व विभाग को है. उनके द्वारा समय-समय पर जिला पुरातत्व विभाग को निर्देशित किया जाता है, जिसके आधार पर इस मंदिर के संवर्धन और संरक्षण के लिए समय-समय पर कुछ सुधार जरूर किए जाते हैं.

इतिहासकारों का मानना है कि यह बस्तर की प्राचीन धरोहरों में से एक है. यहां हर साल सैकड़ों की संख्या में सैलानी बस्तर के प्राकृतिक सौंदर्य और बारसूर मंदिर के विशालकाय गणेश प्रतिमा को देखने पहुंचते हैं. ऐसे में यहां पर पर्यटन और धर्म नगरी के दृष्टिकोण से काफी विकास किया जाना है, जो कि नहीं हो पाया है.

रख रखाव के अभाव में मंदिर पर पड़ा असर

गौरतलब है कि हजारों की संख्या में हर साल पर्यटक इस पौराणिक नगरी में दूर दराज से गणपति दर्शन के लिए पहुंचते हैं, लेकिन प्रशासन की उपेक्षाओं का दंश आज भी इस नगर में बसे प्राचीन मंदिरों पर दिखता है. रखरखाव के अभाव में मंदिर टूटते जा रहे हैं. सुरक्षा व्यवस्था को लेकर कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए हैं.

रायपुर : छत्तीसगढ़ के ऐतिहासिक धरोहरों में दंतेवाड़ा जिले का बारसूर इलाका भी शुमार है. यह विख्यात है गणपति की जुड़वा मूर्ति के लिए. इस वजह से बारसूर नगरी प्राचीन काल से धर्म और आस्था का केंद्र है. 150 मंदिर और 150 तालाबों की इस नगरी को राक्षस राजा बाणासुर ने अपनी राजधानी के रूप में स्थापित किया था.

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार राजा बलि के पुत्र बाण ने अपनी राजधानी दंडकारण्य में बसी बारसूर नगरी को बनाया था. बाणासुर के राक्षस पुत्र होने के कारण इस नगरी का नाम बारसूर पड़ा. कहा जाता है कि राक्षस बाणासुर परम शिव भक्त भी था. उसने अपने तपोबल से शिव को प्रसन्न कर अक्षय ध्वज भी प्राप्त किया था, उसके राज्य में जब तक भगवान शिव से प्राप्त अक्षय ध्वज लहराता रहेगा वह अजय रहेगा.

देखें रिपोर्ट.

बारसूर की पौराणिक नगरी दंतेवाड़ा से 32 किलोमीटर दूर है. जहां गणेश मंदिर में गणेश भगवान की दो प्रतिमा स्थापित है, साथ ही नाग मंदिर, राम मंदिर, प्रसिद्ध बत्तीसा मंदिर, मामा भांजा मंदिर जैसे शिव और शिव परिवार के अनेकों मंदिर आज भी विद्यमान हैं, जो बारसूर के पुराने इतिहास से परिचित करता है.

यह मूर्ति विश्व की सबसे बड़ी तीसरी प्रतिमा
बस्तर के विशेष जानकार हेमन्त कश्यप ने बताया कि पौराणिक कथाओं के अनुसार राक्षस राजा बाणासुर शिव भक्त था. यह भी एक कारण है कि शिव परिवार से जुड़े मंदिरों का उसने विस्तार भी किया और बारसूर में विशालकाय जुड़वा गणेश प्रतिमा बनवाई. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार राक्षस राजा बाणासुर की पुत्री उषा और उनके मंत्री कुभाण्ड की पुत्री चित्रलेखा के बीच काफी गहरी दोस्ती थी.

दोनों सहेलियां परम गणेश भक्त थी. पूजा करने उन्हें दूर जाना पड़ता था, जिसे देखते हुए राक्षस राजा बाणासुर ने बारसूर में ही एक गणेश मंदिर का निर्माण करवाया. गणेश भगवान की दो प्रतिमा स्थापित की गई, जिसमें एक प्रतिमा 8 फीट की है, तो दूसरी प्रतिमा 5 फीट की है. बारसूर के गणेश प्रतिमा को विश्व में तीसरी सबसे बड़ी गणेश प्रतिमा का दर्जा प्राप्त है.

पुरातात्विक मूर्तियों को संजोकर रखने में उदासीन बना विभाग

यहां श्रद्धालु बड़ी संख्या में रोजाना दूर दराज से आते हैं. कहा जाता है कि जोड़े में गणेश भगवान की प्रतिमा होने की वजह से जो भी जोड़ा यहां अपनी मनोकामना लेकर पहुंचता है, वह पूरी होती है. इस गणेश मंदिर का रखरखाव सही से नहीं हो पा रहा था.

आए दिन प्रतिमाओं से छेड़छाड़ की खबरों के बाद इस मंदिर के रखरखाव की जिम्मेदारी पुरातत्व विभाग को सौंप दी गई है. संजीव पचोरी का कहना है कि ख्याति प्राप्त गणेश मंदिर होने के बावजूद भी पुरातत्व विभाग ने इसके संरक्षण और संवर्धन के लिए किसी तरह की कोई ठोस पहल नहीं की. केंद्र और राज्य सरकार भी इन इन पुरातात्विक मूर्तियों को लेकर उदासीन बने हुए है.

11वीं शताब्दी में छिन्दक नागवंशी राजाओं ने मंदिर का कराया निर्माण
विशेष जानकार संजीव पचोरी बताते हैं कि इस मंदिर के पीछे एक और भी कहानी प्रचलित है. उन्होंने बताया कि 11वीं शताब्दी में छिन्दक नागवंशी के राजाओं ने बारसूर मंदिर को बनाया था. यहां 8 फीट और 5 फीट की जुड़वा विशालकाय गणेश प्रतिमा स्थापित की गई क्योंकि छिन्दक नागवंशी राजा भगवान शिव के परम भक्त थे. इस वजह से बस्तर के अधिकतर इलाकों में शिव पार्वती और भगवान गणेश की ही प्रतिमा देखने को मिलती है.

इस विशालकाय प्रतिमा की खोज तब हुई. जब यहां के स्थानीय ग्रामीणों ने प्रतिमा को देखा और इसकी जानकारी प्रशासन को दी, जिसके बाद पुरातत्व विभाग की टीम ने यहां पहुंचकर इस प्राचीन प्रतिमाओं को नुकसान से बचाने के लिए यहां कुछ निर्माण कराया.

विशालकाय गणेश प्रतिमा को देखने पहुंचते हैं लोग

पुरातत्व विभाग के अधिकारी एएल पैकरा ने बताया कि यह प्राचीन प्रतिमा पुरातात्विक रूप से काफी महत्वपूर्ण है. इसके संरक्षण और संवर्धन का जिम्मा केंद्र सरकार के पुरातत्व विभाग को है. उनके द्वारा समय-समय पर जिला पुरातत्व विभाग को निर्देशित किया जाता है, जिसके आधार पर इस मंदिर के संवर्धन और संरक्षण के लिए समय-समय पर कुछ सुधार जरूर किए जाते हैं.

इतिहासकारों का मानना है कि यह बस्तर की प्राचीन धरोहरों में से एक है. यहां हर साल सैकड़ों की संख्या में सैलानी बस्तर के प्राकृतिक सौंदर्य और बारसूर मंदिर के विशालकाय गणेश प्रतिमा को देखने पहुंचते हैं. ऐसे में यहां पर पर्यटन और धर्म नगरी के दृष्टिकोण से काफी विकास किया जाना है, जो कि नहीं हो पाया है.

रख रखाव के अभाव में मंदिर पर पड़ा असर

गौरतलब है कि हजारों की संख्या में हर साल पर्यटक इस पौराणिक नगरी में दूर दराज से गणपति दर्शन के लिए पहुंचते हैं, लेकिन प्रशासन की उपेक्षाओं का दंश आज भी इस नगर में बसे प्राचीन मंदिरों पर दिखता है. रखरखाव के अभाव में मंदिर टूटते जा रहे हैं. सुरक्षा व्यवस्था को लेकर कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए हैं.

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