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सबरीमाला मंदिर : अदालत में कब पहुंचा मामला, जानें आस्था और विवाद से जुड़ी पूरी कहानी

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Published : Nov 13, 2019, 9:43 PM IST

Updated : Nov 14, 2019, 1:33 PM IST

सबरीमाला भारत के एक प्रमुख मंदिरों में एक है. इस मंदिर का महत्व भारत में ही नहीं बल्कि विश्व में भी है. इस मंदिर में भगवान अयप्पा की पूजा की जाती है. मंदिर में 10 से 50 वर्ष तक की महिलाओं का प्रवेश वर्जित था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में अपना फैसला सुनाते हुए सभी उम्र की महिलाओं को मंदिर में प्रवेश की अनुमति दी थी. सबरीमाला के इतिहास के बारे में जानने के लिए पढ़ें विस्तार से

सबरीमाला मंदिर

नई दिल्ली : भारत को विश्व की देवभूमि कहा जाता है. यहां कई मंदिर हैं, जिनकी अपनी परम्पराएं और रीति-रिवाज हैं. भारत के इन्हीं प्रमुख मंदिरों में एक है सबरीमाला मंदिर. सबरीमाला मंदिर का महत्व भारत में ही नहीं बल्कि विश्व में भी जाना जाता है. यहां दुनियाभर से लाखों श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं.

sabarimala case
अदालत के दरवाजे पर सबरीमाला केस का घटनाक्रम

मंदिर से जुड़े कुछ ऐतिहासिक तथ्य :

18 पवित्र सीढ़ियों को चढ़ने की प्रक्रिया
आपको बता दें, मंदिर में प्रवेश के लिए तीर्थयात्रियों को 18 पवित्र सीढ़ियां चढ़नी होती हैं. इन 18 सीढ़ियों को चढ़ने की प्रक्रिया ये है कि कोई भी तीर्थयात्री 41 दिनों का व्रत रखे बिना इन सीढ़ियों को नहीं चढ़ सकता.

चंदन का लेप लगाते हैं तीर्थयात्री
इसके साथ ही श्रद्धालु को सबरीमाला मंदिर में प्रवेश करने से पहले कुछ अन्य रस्में भी निभानी पड़ती हैं. इस मंदिर में प्रवेश करने के लिए तीर्थयात्री खासतौर पर काले या नीले रंग के कपड़े पहनते हैं.
यात्रा के दौरान माथे पर चंदन का लेप लगाए तीर्थयात्रियों को शेव करने या बाल काटने की भी इजाजत नहीं होती.

कहां है सबरीमाला मंदिर
भारत के दक्षिण राज्य केरल की राजधानी तिरुवनंतपुरम से 175 किमी की दूरी पर पंपा स्थित है. इससे चार-पांच किमी की दूरी पर पश्चिम घाट से सह्यपर्वत शृंखलाओं के घने वनों के बीच, समुद्रतल से लगभग एक हजार मीटर की ऊंचाई पर सबरीमाला मंदिर है.

सबरीमाला का अर्थ है 'पर्वत'
सबरीमाला मलयालम भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ 'पर्वत' होता है. ये मंदिर सह्याद्रि पर्वतमाला के घने जंगलों से घिरा हुआ है, जहां करीब पांच किलोमीटर तक पैदल यात्रा करना पड़ती है.

1991 से 2019 : सबरीमाला मंदिर मामला

साल में तीन बार कर सकते हैं दर्शन
आपको बता दें, श्रद्धालु साल में तीन बार सबरीमाला के दर्शन के लिए जा सकते हैं. 41 दिनों के कठिन व्रत के बाद 42वें दिन को मण्डलम कहते हैं.

क्या कहते हैं वेद-पुराण
वेद-पुराणों की मानें तो असुर कांड में जिस शिशु शास्ता का जिक्र किया गया है, सबरीमाला के भगवान अयप्पा को उसी शास्ता का अवतार माना जाता है. लोगों की ऐसी भी मान्यता है कि परशुराम ने अयप्पन पूजा के लिए सबरीमाला में मूर्ति स्थापित की थी. वहीं कुछ लोग इसे रामभक्त शबरी के नाम से भी जोड़कर देखते हैं.

सद्भाव का प्रतीक है सबरीमाला
अहम बात ये है कि ये मंदिर समन्वय और सद्भाव का प्रतीक माना जाता है और यहां किसी भी जाति और धर्म के लोग आ सकते हैं.

मंदिर में इनकी भी मूर्तियां स्थापित हैं
इस मंदिर में अयप्पन के अलावा मालिकापुरत्त अम्मा, गणेश और नागराजा जैसे उप देवताओं की भी मूर्तियां हैं.

मंदिर में बांटा जाता है खास प्रसाद
अयप्पन का घी से अभिषेक करने के बाद मंदिर में खास तरह का प्रसाद भी बांटा जाता है. इसे चावल, गुड और घी से बनाया जाता है.

सबरीमाला पर सरकार के रुख में कोई बदलाव नहीं: मुख्यमंत्री

क्या है विवाद
दरअसल, सबरीमाला मंदिर को लेकर करीब 30 वर्षों से विवाद छिड़ा हुआ है. यहां के लोगों का कहना है कि क्योंकि भगवान अयप्पा नैष्ठिक ब्रह्मचारी थे, इसलिए मंदिर में रजस्वला महिलाओं (जिनका मासिक धर्म लग जाता है) को प्रवेश की अनुमति नहीं देनी चाहिए.

हालांकि, इस विवाद को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में अपना फैसला सुनाते हुए सभी महिलाओं को मंदिर में प्रवेश की इजाजत दी थी. लेकिन अदालत के इस फैसले को चुनौती दे दी गई. इसके बाद अब पांच जजों की संविधान पीठ इस मामले पर दोबारा अपना फैसला सुनाने जा रही है.

नई दिल्ली : भारत को विश्व की देवभूमि कहा जाता है. यहां कई मंदिर हैं, जिनकी अपनी परम्पराएं और रीति-रिवाज हैं. भारत के इन्हीं प्रमुख मंदिरों में एक है सबरीमाला मंदिर. सबरीमाला मंदिर का महत्व भारत में ही नहीं बल्कि विश्व में भी जाना जाता है. यहां दुनियाभर से लाखों श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं.

sabarimala case
अदालत के दरवाजे पर सबरीमाला केस का घटनाक्रम

मंदिर से जुड़े कुछ ऐतिहासिक तथ्य :

18 पवित्र सीढ़ियों को चढ़ने की प्रक्रिया
आपको बता दें, मंदिर में प्रवेश के लिए तीर्थयात्रियों को 18 पवित्र सीढ़ियां चढ़नी होती हैं. इन 18 सीढ़ियों को चढ़ने की प्रक्रिया ये है कि कोई भी तीर्थयात्री 41 दिनों का व्रत रखे बिना इन सीढ़ियों को नहीं चढ़ सकता.

चंदन का लेप लगाते हैं तीर्थयात्री
इसके साथ ही श्रद्धालु को सबरीमाला मंदिर में प्रवेश करने से पहले कुछ अन्य रस्में भी निभानी पड़ती हैं. इस मंदिर में प्रवेश करने के लिए तीर्थयात्री खासतौर पर काले या नीले रंग के कपड़े पहनते हैं.
यात्रा के दौरान माथे पर चंदन का लेप लगाए तीर्थयात्रियों को शेव करने या बाल काटने की भी इजाजत नहीं होती.

कहां है सबरीमाला मंदिर
भारत के दक्षिण राज्य केरल की राजधानी तिरुवनंतपुरम से 175 किमी की दूरी पर पंपा स्थित है. इससे चार-पांच किमी की दूरी पर पश्चिम घाट से सह्यपर्वत शृंखलाओं के घने वनों के बीच, समुद्रतल से लगभग एक हजार मीटर की ऊंचाई पर सबरीमाला मंदिर है.

सबरीमाला का अर्थ है 'पर्वत'
सबरीमाला मलयालम भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ 'पर्वत' होता है. ये मंदिर सह्याद्रि पर्वतमाला के घने जंगलों से घिरा हुआ है, जहां करीब पांच किलोमीटर तक पैदल यात्रा करना पड़ती है.

1991 से 2019 : सबरीमाला मंदिर मामला

साल में तीन बार कर सकते हैं दर्शन
आपको बता दें, श्रद्धालु साल में तीन बार सबरीमाला के दर्शन के लिए जा सकते हैं. 41 दिनों के कठिन व्रत के बाद 42वें दिन को मण्डलम कहते हैं.

क्या कहते हैं वेद-पुराण
वेद-पुराणों की मानें तो असुर कांड में जिस शिशु शास्ता का जिक्र किया गया है, सबरीमाला के भगवान अयप्पा को उसी शास्ता का अवतार माना जाता है. लोगों की ऐसी भी मान्यता है कि परशुराम ने अयप्पन पूजा के लिए सबरीमाला में मूर्ति स्थापित की थी. वहीं कुछ लोग इसे रामभक्त शबरी के नाम से भी जोड़कर देखते हैं.

सद्भाव का प्रतीक है सबरीमाला
अहम बात ये है कि ये मंदिर समन्वय और सद्भाव का प्रतीक माना जाता है और यहां किसी भी जाति और धर्म के लोग आ सकते हैं.

मंदिर में इनकी भी मूर्तियां स्थापित हैं
इस मंदिर में अयप्पन के अलावा मालिकापुरत्त अम्मा, गणेश और नागराजा जैसे उप देवताओं की भी मूर्तियां हैं.

मंदिर में बांटा जाता है खास प्रसाद
अयप्पन का घी से अभिषेक करने के बाद मंदिर में खास तरह का प्रसाद भी बांटा जाता है. इसे चावल, गुड और घी से बनाया जाता है.

सबरीमाला पर सरकार के रुख में कोई बदलाव नहीं: मुख्यमंत्री

क्या है विवाद
दरअसल, सबरीमाला मंदिर को लेकर करीब 30 वर्षों से विवाद छिड़ा हुआ है. यहां के लोगों का कहना है कि क्योंकि भगवान अयप्पा नैष्ठिक ब्रह्मचारी थे, इसलिए मंदिर में रजस्वला महिलाओं (जिनका मासिक धर्म लग जाता है) को प्रवेश की अनुमति नहीं देनी चाहिए.

हालांकि, इस विवाद को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में अपना फैसला सुनाते हुए सभी महिलाओं को मंदिर में प्रवेश की इजाजत दी थी. लेकिन अदालत के इस फैसले को चुनौती दे दी गई. इसके बाद अब पांच जजों की संविधान पीठ इस मामले पर दोबारा अपना फैसला सुनाने जा रही है.

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Last Updated : Nov 14, 2019, 1:33 PM IST
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