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सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश बोले, सरकार कुचल रही बोलने की आजादी

उच्चतम न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश मदन बी लोकुर ने 'बोलने की आजादी और न्यायपालिका' विषय पर एक वेबिनार को संबोधित करते हुए कहा कि बोलने की आजादी को कुचलने के लिए सरकार लोगों पर फर्जी खबरें फैलाने के आरोप लगाने का तरीका अपना रही है.

madan lokur
उच्चतम न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश मदन बी लोकुर
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Published : Sep 14, 2020, 4:29 PM IST

Updated : Sep 14, 2020, 5:27 PM IST

नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश मदन बी लोकुर ने सोमवार को कहा कि जनता की राय पर प्रतिक्रिया के रूप में सरकार बोलने की आजादी पर अंकुश लगाने के लिए राजद्रोह कानून का सहारा ले रही है. न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) लोकुर ने 'बोलने की आजादी और न्यायपालिका' विषय पर एक वेबिनार को संबोधित करते हुए कहा कि बोलने की आजादी को कुचलने के लिए सरकार लोगों पर फर्जी खबरें फैलाने के आरोप लगाने का तरीका भी अपना रही है.

राजद्रोह कानून का सहारा ले रही सरकार : मदन बी लोकुर
मदन बी लोकुर ने कहा कि कोरोना वायरस के मामले और इससे संबंधित वेंटिलेटर की कमी जैसे मुद्दों की रिपोर्टिंग करने वाले पत्रकारों पर फर्जी खबर के प्रावधानों के तहत आरोप लगाए जा रहे हैं. न्यायमूर्ति लोकुर ने कहा कि सरकार बोलने की आजादी पर अंकुश लगाने के लिए राजद्रोह कानून का सहारा ले रही है. अचानक ही ऐसे मामलों की संख्या बढ़ गई है, जिसमें लोगों पर राजद्रोह के आरोप लगाए गए हैं. कुछ भी बोलने वाले एक आम नागरिक पर राजद्रोह का आरोप लगाया जा रहा है. इस साल अब तक राजद्रोह के 70 मामले देखे जा चुके हैं. इस वेबिनार का आयोजन कैंपेन फॉर ज्यूडिशियल एकाउन्टेबिलिटी एंड रिफार्म्स और स्वराज अभियान ने किया था.

अधिवक्ता प्रशांत भूषण व डाॅ. कफील खान का दिया उदाहरण

अधिवक्ता प्रशांत भूषण के खिलाफ न्यायालय की अवमानना के मामले पर मदन बी लोकुर ने कहा कि उनके बयानों को गलत पढ़ा गया. उन्होंने डाॅ. कफील खान के मामले का भी उदाहरण दिया और कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत आरोप लगाते समय उनके भाषण और नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ उनके बयानों को गलत पढ़ा गया. वरिष्ठ पत्रकार एन राम ने कहा कि प्रशांत भूषण के मामले में दी गई सजा बेतुकी है और उच्चतम न्यायालय के निष्कर्षों का कोई ठोस आधार नहीं है. राम ने कहा कि मेरे मन में न्यायपालिका के प्रति बहुत सम्मान है. यह न्यायपालिका ही है, जिसने संविधान में प्रेस की आजादी को पढ़ा.

जुर्माना अदा करने के लिए मिले दान से ट्रूथ फंड बनाएंगे प्रशांत भूषण

सामाजिक कार्यकर्ता अरुणा राय ने कहा कि भूषण की स्थिति काफी व्यापक होने की वजह से लोगों का सशक्तीकरण हुआ है और इस मामले ने लोगों को प्रेरित किया है. इस बीच प्रशांत भूषण ने न्यायपालिका के प्रति अपमानजनक दो ट्वीट को लेकर अवमानना का दोषी ठहराए जाने के बाद सजा के रूप में एक रुपये का जुर्माना उच्चतम न्यायालय की रजिस्ट्री में जमा कराया है. जुर्माना भरने के बाद मीडिया से बात करते हुए भूषण ने कहा कि उन्हें जुर्माना अदा करने के लिए देश के सभी हिस्सों से योगदान मिला है और इस योगदान से 'ट्रूथ फंड' बनाया जाएगा. इस फंड से असहमति व्यक्त करने की वजह से कानूनी कार्यवाही का सामना करने वालों को कानूनी मदद प्रदान की जाएगी.

पढ़ें-जानें उन तीन कृषि अध्यादेशों के बारे में, जिनके विरोध में उतरे किसान

नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश मदन बी लोकुर ने सोमवार को कहा कि जनता की राय पर प्रतिक्रिया के रूप में सरकार बोलने की आजादी पर अंकुश लगाने के लिए राजद्रोह कानून का सहारा ले रही है. न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) लोकुर ने 'बोलने की आजादी और न्यायपालिका' विषय पर एक वेबिनार को संबोधित करते हुए कहा कि बोलने की आजादी को कुचलने के लिए सरकार लोगों पर फर्जी खबरें फैलाने के आरोप लगाने का तरीका भी अपना रही है.

राजद्रोह कानून का सहारा ले रही सरकार : मदन बी लोकुर
मदन बी लोकुर ने कहा कि कोरोना वायरस के मामले और इससे संबंधित वेंटिलेटर की कमी जैसे मुद्दों की रिपोर्टिंग करने वाले पत्रकारों पर फर्जी खबर के प्रावधानों के तहत आरोप लगाए जा रहे हैं. न्यायमूर्ति लोकुर ने कहा कि सरकार बोलने की आजादी पर अंकुश लगाने के लिए राजद्रोह कानून का सहारा ले रही है. अचानक ही ऐसे मामलों की संख्या बढ़ गई है, जिसमें लोगों पर राजद्रोह के आरोप लगाए गए हैं. कुछ भी बोलने वाले एक आम नागरिक पर राजद्रोह का आरोप लगाया जा रहा है. इस साल अब तक राजद्रोह के 70 मामले देखे जा चुके हैं. इस वेबिनार का आयोजन कैंपेन फॉर ज्यूडिशियल एकाउन्टेबिलिटी एंड रिफार्म्स और स्वराज अभियान ने किया था.

अधिवक्ता प्रशांत भूषण व डाॅ. कफील खान का दिया उदाहरण

अधिवक्ता प्रशांत भूषण के खिलाफ न्यायालय की अवमानना के मामले पर मदन बी लोकुर ने कहा कि उनके बयानों को गलत पढ़ा गया. उन्होंने डाॅ. कफील खान के मामले का भी उदाहरण दिया और कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत आरोप लगाते समय उनके भाषण और नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ उनके बयानों को गलत पढ़ा गया. वरिष्ठ पत्रकार एन राम ने कहा कि प्रशांत भूषण के मामले में दी गई सजा बेतुकी है और उच्चतम न्यायालय के निष्कर्षों का कोई ठोस आधार नहीं है. राम ने कहा कि मेरे मन में न्यायपालिका के प्रति बहुत सम्मान है. यह न्यायपालिका ही है, जिसने संविधान में प्रेस की आजादी को पढ़ा.

जुर्माना अदा करने के लिए मिले दान से ट्रूथ फंड बनाएंगे प्रशांत भूषण

सामाजिक कार्यकर्ता अरुणा राय ने कहा कि भूषण की स्थिति काफी व्यापक होने की वजह से लोगों का सशक्तीकरण हुआ है और इस मामले ने लोगों को प्रेरित किया है. इस बीच प्रशांत भूषण ने न्यायपालिका के प्रति अपमानजनक दो ट्वीट को लेकर अवमानना का दोषी ठहराए जाने के बाद सजा के रूप में एक रुपये का जुर्माना उच्चतम न्यायालय की रजिस्ट्री में जमा कराया है. जुर्माना भरने के बाद मीडिया से बात करते हुए भूषण ने कहा कि उन्हें जुर्माना अदा करने के लिए देश के सभी हिस्सों से योगदान मिला है और इस योगदान से 'ट्रूथ फंड' बनाया जाएगा. इस फंड से असहमति व्यक्त करने की वजह से कानूनी कार्यवाही का सामना करने वालों को कानूनी मदद प्रदान की जाएगी.

पढ़ें-जानें उन तीन कृषि अध्यादेशों के बारे में, जिनके विरोध में उतरे किसान

Last Updated : Sep 14, 2020, 5:27 PM IST
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