नैनीताल : मध्य हिमालयी क्षेत्रों में तेजी से हो रहे जलवायु परिवर्तन का सीधा असर उच्च हिमालयी क्षेत्रों में भी पड़ने लगा है. कुमाऊं के पंचाचुली समेत आसपास के पर्वतों में लगातार ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं, जो आने वाले समय में एक बड़ा खतरा साबित हो सकते हैं. स्थानीय लोगों के अनुसार, बीते 20 साल में करीब 60 फीट ग्लेशियर सिकुड़ गये हैं.
वहीं, ग्लेशियरों के तेजी से पिघलने को लेकर कुमाऊं विश्वविद्यालय के प्रो. बीएस कोटलिया ने बताया कि उत्तराखंड और हिमाचल में कई स्थानों में ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं. साथ ही जम्मू-कश्मीर समेत उसके आसपास के क्षेत्रों में ग्लेशियर सिकुड़ रहे हैं. ऐसे में उन स्थानों पर माइक्रो क्लाइमेट पर अध्ययन किया जाना अति आवश्यक है.
धारचूला निवासी रवि दत्तताल ने बताया कि पंचाचुली क्षेत्र में 60 फीसदी से अधिक ग्लेशियर सिकुड़ गये हैं. ग्लेशियरों के पिघलने की गति बहुत तेज है. साथ ही ग्लेशियरों की तलहटी पर पेड़ों की संख्या भी बढ़ने लगी है, जिससे हिमालय क्षेत्र में बर्फबारी के दौरान बर्फ पिघलती जा रही है, जो आने वाले समय में ग्लेशियरों के लिए बड़ा खतरा है. वहीं, हिमालय क्षेत्रों में बर्फबारी के दौरान बर्फ पेड़ों की वजह से जम नहीं पा रही है, जो एक चिंता का विषय है.
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उत्तराखंड के ग्लेशियरों और हिमालय क्षेत्र में ट्रैकिंग करने वाले पर्वतारोहियों ने बताया कि लगातार बढ़ रहे वाहनों के दबाव और पर्यावरण में बदलाव की वजह से इस तरह के परिणाम देखने को मिल रहे हैं. वहीं, उच्च हिमालयी क्षेत्रों की तरफ वाहनों की आवाजाही बढ़ी है. उसके बाद से हिमालय की बर्फ काली होने लगी है और ग्लेशियर तेजी से सिकुड़ने लगे हैं. अगर इसी तरह ग्लेशियरों के पिघलने का सिलसिला जारी रहा तो बर्फ से ढकी ये सुंदर पर्वत शृंखलाएं आने वाले कुछ सालों में बर्फविहीन हो जाएंगी.
प्रो. कोटलिया ने बताया कि अध्ययन के आधार पर बीते 400 सालों में उत्तराखंड और हिमाचल के ग्लेशियरों के पिघलने में तेजी आई है. कश्मीर के ग्लेशियर तेजी से बढ़ रहे हैं, जिसके कारण तीनों प्रदेशों की जलवायु की विभिन्नता आई है. जिसका अध्ययन किया जाना बेहद आवश्यक है. अगर समय रहते इन पर माइक्रो अध्ययन नहीं किया गया तो आने वाले समय में इसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ सकती है.