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हिमालय क्षेत्रों में तेजी से पिघल रहे ग्लेशियर, भविष्य में बड़े खतरे का संकेत

हिमालय क्षेत्रों में तेजी से पिघल रहे ग्लेशियर भविष्य में बड़े खतरे का संकेत दे रहे हैं. स्थानीय लोगों के अनुसार, पंचाचुली क्षेत्र में 60 फीसदी से अधिक ग्लेशियर सिकुड़ गए हैं. जो एक चिंता का विषय है. पढ़ें ईटीवी भारत की एक खास रिपोर्ट...

ग्लेशियर
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Published : Oct 9, 2019, 11:27 PM IST

नैनीताल : मध्य हिमालयी क्षेत्रों में तेजी से हो रहे जलवायु परिवर्तन का सीधा असर उच्च हिमालयी क्षेत्रों में भी पड़ने लगा है. कुमाऊं के पंचाचुली समेत आसपास के पर्वतों में लगातार ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं, जो आने वाले समय में एक बड़ा खतरा साबित हो सकते हैं. स्थानीय लोगों के अनुसार, बीते 20 साल में करीब 60 फीट ग्लेशियर सिकुड़ गये हैं.

वहीं, ग्लेशियरों के तेजी से पिघलने को लेकर कुमाऊं विश्वविद्यालय के प्रो. बीएस कोटलिया ने बताया कि उत्तराखंड और हिमाचल में कई स्थानों में ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं. साथ ही जम्मू-कश्मीर समेत उसके आसपास के क्षेत्रों में ग्लेशियर सिकुड़ रहे हैं. ऐसे में उन स्थानों पर माइक्रो क्लाइमेट पर अध्ययन किया जाना अति आवश्यक है.

पर्यावरण पर ईटीवी भारत की खास रिपोर्ट

धारचूला निवासी रवि दत्तताल ने बताया कि पंचाचुली क्षेत्र में 60 फीसदी से अधिक ग्लेशियर सिकुड़ गये हैं. ग्लेशियरों के पिघलने की गति बहुत तेज है. साथ ही ग्लेशियरों की तलहटी पर पेड़ों की संख्या भी बढ़ने लगी है, जिससे हिमालय क्षेत्र में बर्फबारी के दौरान बर्फ पिघलती जा रही है, जो आने वाले समय में ग्लेशियरों के लिए बड़ा खतरा है. वहीं, हिमालय क्षेत्रों में बर्फबारी के दौरान बर्फ पेड़ों की वजह से जम नहीं पा रही है, जो एक चिंता का विषय है.

पढ़ें: भारत और कजाखस्तान सेना ने शुरू किया वार्षिक मिलिट्री प्रशिक्षण

उत्तराखंड के ग्लेशियरों और हिमालय क्षेत्र में ट्रैकिंग करने वाले पर्वतारोहियों ने बताया कि लगातार बढ़ रहे वाहनों के दबाव और पर्यावरण में बदलाव की वजह से इस तरह के परिणाम देखने को मिल रहे हैं. वहीं, उच्च हिमालयी क्षेत्रों की तरफ वाहनों की आवाजाही बढ़ी है. उसके बाद से हिमालय की बर्फ काली होने लगी है और ग्लेशियर तेजी से सिकुड़ने लगे हैं. अगर इसी तरह ग्लेशियरों के पिघलने का सिलसिला जारी रहा तो बर्फ से ढकी ये सुंदर पर्वत शृंखलाएं आने वाले कुछ सालों में बर्फविहीन हो जाएंगी.

प्रो. कोटलिया ने बताया कि अध्ययन के आधार पर बीते 400 सालों में उत्तराखंड और हिमाचल के ग्लेशियरों के पिघलने में तेजी आई है. कश्मीर के ग्लेशियर तेजी से बढ़ रहे हैं, जिसके कारण तीनों प्रदेशों की जलवायु की विभिन्नता आई है. जिसका अध्ययन किया जाना बेहद आवश्यक है. अगर समय रहते इन पर माइक्रो अध्ययन नहीं किया गया तो आने वाले समय में इसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ सकती है.

नैनीताल : मध्य हिमालयी क्षेत्रों में तेजी से हो रहे जलवायु परिवर्तन का सीधा असर उच्च हिमालयी क्षेत्रों में भी पड़ने लगा है. कुमाऊं के पंचाचुली समेत आसपास के पर्वतों में लगातार ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं, जो आने वाले समय में एक बड़ा खतरा साबित हो सकते हैं. स्थानीय लोगों के अनुसार, बीते 20 साल में करीब 60 फीट ग्लेशियर सिकुड़ गये हैं.

वहीं, ग्लेशियरों के तेजी से पिघलने को लेकर कुमाऊं विश्वविद्यालय के प्रो. बीएस कोटलिया ने बताया कि उत्तराखंड और हिमाचल में कई स्थानों में ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं. साथ ही जम्मू-कश्मीर समेत उसके आसपास के क्षेत्रों में ग्लेशियर सिकुड़ रहे हैं. ऐसे में उन स्थानों पर माइक्रो क्लाइमेट पर अध्ययन किया जाना अति आवश्यक है.

पर्यावरण पर ईटीवी भारत की खास रिपोर्ट

धारचूला निवासी रवि दत्तताल ने बताया कि पंचाचुली क्षेत्र में 60 फीसदी से अधिक ग्लेशियर सिकुड़ गये हैं. ग्लेशियरों के पिघलने की गति बहुत तेज है. साथ ही ग्लेशियरों की तलहटी पर पेड़ों की संख्या भी बढ़ने लगी है, जिससे हिमालय क्षेत्र में बर्फबारी के दौरान बर्फ पिघलती जा रही है, जो आने वाले समय में ग्लेशियरों के लिए बड़ा खतरा है. वहीं, हिमालय क्षेत्रों में बर्फबारी के दौरान बर्फ पेड़ों की वजह से जम नहीं पा रही है, जो एक चिंता का विषय है.

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उत्तराखंड के ग्लेशियरों और हिमालय क्षेत्र में ट्रैकिंग करने वाले पर्वतारोहियों ने बताया कि लगातार बढ़ रहे वाहनों के दबाव और पर्यावरण में बदलाव की वजह से इस तरह के परिणाम देखने को मिल रहे हैं. वहीं, उच्च हिमालयी क्षेत्रों की तरफ वाहनों की आवाजाही बढ़ी है. उसके बाद से हिमालय की बर्फ काली होने लगी है और ग्लेशियर तेजी से सिकुड़ने लगे हैं. अगर इसी तरह ग्लेशियरों के पिघलने का सिलसिला जारी रहा तो बर्फ से ढकी ये सुंदर पर्वत शृंखलाएं आने वाले कुछ सालों में बर्फविहीन हो जाएंगी.

प्रो. कोटलिया ने बताया कि अध्ययन के आधार पर बीते 400 सालों में उत्तराखंड और हिमाचल के ग्लेशियरों के पिघलने में तेजी आई है. कश्मीर के ग्लेशियर तेजी से बढ़ रहे हैं, जिसके कारण तीनों प्रदेशों की जलवायु की विभिन्नता आई है. जिसका अध्ययन किया जाना बेहद आवश्यक है. अगर समय रहते इन पर माइक्रो अध्ययन नहीं किया गया तो आने वाले समय में इसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ सकती है.

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उत्तराखंड में तेजी से पिघल रहे हैं ग्लेशियर आने वाले समय में होगा बड़ा खतरा।

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ग्लेशियरों के तेजी से पिघलने को लेकर कुमाऊं विश्वविद्यालय के प्रोफेसर बी एस कौशल्या बताते हैं कि उत्तराखंड और हिमाचल में कई स्थानों में ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं तो वहीं जम्मू-कश्मीर समेत उसके आसपास के क्षेत्रों में ग्लेशियर तेजी के साथ बढ़ रहे हैं और जिन स्थानों में ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं उन स्थानों पर माइक्रो क्लाइमेट पर अध्ययन किया जाना अति आवश्यक है।


Body:मध्य हिमालई क्षेत्रों में तेजी से हो रहे जलवायु परिवर्तन का सीधा असर हिमालय क्षेत्रों में भी पड़ने लगा है, क्योंकि कुमाऊ के पंचाचुली समेत आसपास के पर्वतों में लगातार ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं जो आने वाले समय के लिए एक बड़ा खतरा हो सकते हैं, स्थानीय लोग बताते हैं कि बीते 20 साल में करीब 60 फीट ग्लेशियर सिकुड़ गए हैं,
धारचूला निवासी रवि दत्तताल बताते हैं पंचाचुली क्षेत्र में ग्लेशियर 60 फ़ीसदी से अधिक सिकुड़ गए हैं और ग्लेशियरों के पिघलने की गति बहुत तेज है, साथ ही ग्लेशियरों की तलहटी पर पेड़ों की संख्या भी बढ़ने लगी है जिससे हिमालय क्षेत्र में बर्फबारी के दौरान बर्फ पिघल जा रही है, जो आने वाले समय में ग्लेशियरों के लिए बड़ा खतरा है क्योंकि हिमालय क्षेत्रों में बर्फबारी के दौरान बर्फ पेड़ों की वजह से जम (टिक) नही रही है, जो एक बड़ा और चिंता का विषय है।
वही भूगर्भ शास्त्र बीएफ कौटिल्य बताते हैं कि किसी एक क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन की वजह से इस तरह के परिणाम देखने को मिल रहे हैं जो एक बड़ी समस्या है जिसका अध्ययन किया जाना बेहद आवश्यक है।

बाईट- बी एस कोटलिया,


Conclusion:उत्तराखंड के ग्लेशियरों और हिमालय क्षेत्र में ट्रैकिंग करने वाले पर्वतारोही बताते हैं कि लगातार बड़े रहे गाड़ियों के दबाव और पर्यावरण में बदलाव की वजह से इस तरह के परिणाम देखने को मिल रहे हैं, वहीं जब से उच्च हिमालई क्षेत्रों की तरफ वाहनों की आवाजाही बढ़ी है उसके बाद से हिमालय की बर्फ काली होने लगी है और ग्लेशियर तेजी से सिकुड़ने लगे हैं।
अगर इसी तरह ग्लेशियरों का पिघलना का सिलसिला जारी रहा तो बर्फ से ढकी यह सुंदर पर्वत श्रृंखलाएं आने वाले कुछ सालों में बर्फ विहीन हो जाएंगी, और जिस तरह से हिमालय की बर्फ काली होने लगी है उसका सीधा असर मानव स्वास्थ्य पर पड़ेगा।

मैं जब ईटीवी भारत ने इस पूरे मामले पर कुमाऊं विश्वविद्यालय के प्रोफेसर बीएस कौटिल्य से बात की तो उन्होंने बताया कि अध्ययन के आधार पर बीते 400 सालों में उत्तराखंड और हिमाचल के ग्लेशियरों के पिघलने की संख्या तेजी से बढ़ी है, जबकि कश्मीर के ग्लेशियर तेजी से बढ़े हैं जिसका कारण तीनों प्रदेशों की जलवायु की विभिन्नता है जिसका अध्ययन किया जाना बेहद आवश्यक है अगर समय रहते इन पर माइक्रो अध्ययन नहीं किया गया तो आने वाले समय में इसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ सकती है।

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