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रोजगार पैदा करना ही है मंदी से उबरने का सही उपाय

दुनियाभर में 26 देश भारत की तुलना में तेजी से मंदी से उबर रहे हैं. ऐसे में यदि केंद्र और राज्य सरकारें रोजगार पैदा करने का एजेंडा लेकर सक्रिय रूप से बुनियादी ढांचा परियोजनाओं पर खर्च करें तो कई सामान्य समस्याओं का प्रभावी समाधान हो जाएगा.

right way to overcome the recession
प्रतीकात्मक फोटो
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Published : Dec 6, 2020, 9:49 PM IST

इस साल लगातार दूसरी तिमाही में विकास दर में कमी तकनीकी रूप से इस बात की पुष्टि करता है कि देश आर्थिक मंदी का सामना कर रहा है. कोविड महामारी के कारण अप्रैल से जून 2020 की पहली तिमाही में विकास दर में 23.9 प्रतिशत कमी आई.

दूसरी तिमाही में लॉकडाउन के दौरान प्रतिबंध में छूट और त्यौहारों के दौरान खरीदारी की वजह से कुछ हद तक स्थिति में सुधार हुआ है. भारतीय रिजर्व बैंक ने अनुमान लगाया कि विकास दर में गिरावट 9.8 फीसद तक सीमित रहेगी. वास्तव में यह 7.5 फीसद पर स्थिर रह जाता है तो राहत है.

प्रभावी कार्य योजना से मिलेगा वास्तविक प्रोत्साहन
भारत ने चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में चिली, ब्रिटेन, कोलंबिया, स्पेन और मैक्सिको से बेहतर प्रदर्शन किया है. यह सिक्के का सिर्फ एक पहलू है. जब चीन, दक्षिण कोरिया, इजराइल, स्वीडन, जर्मनी और जापान समेत दुनिया भर में 26 देश भारत की तुलना में तेजी से मंदी से उबर रहे हैं तो हमारी रणनीतियों की तुरंत समीक्षा करने की जरूरत है. केंद्र की ओर से विभिन्न पैकेजों को जारी करने का कुल मिलाकर अर्थ यही है कि यदि आपूर्ति की मजबूरी खत्म हो जाए तो आत्मनिर्भरता बनी रहे. इससे निजी निवेश के साथ स्थिति में सुधार होगा.

पढ़ें- लगातार दूसरे महीने कारोबारी गतिविधियों में इजाफा, नौ महीनों में पहली बार रोजगार बढ़ा

इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि नेतृत्व क्या कहता है, यह स्पष्ट है कि दूसरी तिमाही में सरकार के खर्च की रफ्तार कम हुई है. केंद्र और राज्य सरकारों को वित्तीय विशेषज्ञों की सलाह पर ध्यान देना चाहिए कि यदि मांग में पर्याप्त बढ़ोतरी होगी तो काफी हद तक स्थिति सुधर जाएगी. कोविड संकट को देखते हुए प्रभावी कार्ययोजना से ही वास्तव में आर्थिक मंदी से उबरने में प्रोत्साहन मिलेगा.

रोजगार सृजन एजेंडा होना चाहिए
नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी ) ने पिछले साल जुलाई में अपनी रिपोर्ट में चेतावनी दी थी कि देश में मंदी के संकेत मिल रहे हैं. मानवता पर कोरोना वायरस के अचानक हुए प्रकोप से घरेलू तौर पर रोजगार के क्षेत्र पर कड़ा प्रहार हुआ है. अनगिनत प्रवासी कामगारों का जीवन गर्त में मिल गया है. करोड़ों लोग गरीबी रेखा से नीचे खिसक गए हैं.

विशाल जनसंख्या को कोविड संकट से उबारने और सामान्य स्थिति में लौटाने के लिए उनकी कमाई की क्षमता हर हाल में बढ़नी चाहिए. यदि केंद्र और राज्य सरकारें रोजगार पैदा करने का एजेंडा लेकर सक्रिय रूप से बुनियादी ढांचा परियोजनाओं पर खर्च करें तो यह कई सामान्य समस्याओं का प्रभावी समाधान होगा. इतिहास इस बात का गवाह है कि अकाल के समय राजाओं ने स्मारक, मंदिर, सिंचाई परियोजनाएं आदि निर्माण कार्यों में गरीबों को रोजगार दिए और उनकी भूख मिटाई.

रोजगार सृजन को विशेष प्राथमिकता देनी चाहिए
पूर्व केंद्रीय मंत्री गडकरी ने इस बात पर चिंता जताई कि देश में 210 राष्ट्रीय राजमार्ग परियोजनाओं की स्थिति अस्त - व्यस्त है. इस साल की शुरुआत में मोदी सरकार ने 18 राज्यों में बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के लिए 100 लाख करोड़ रुपए की योजना की घोषणा की.

इन परियोजनाओं में बिजली, ऊर्जा, शहरी विकास, सड़क और रेलवे शामिल हैं. इन परियोजनाओं के कार्यान्वयन में तत्काल तेजी लाने की जरूरत है. ग्रामीण उद्योगों विशेष रूप से सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (एमएसएमई ) व स्वयं सहायता समूहों को कम ब्याज पर उदारता के साथ कर्ज देना चाहिए और रोजगार सृजन को विशेष प्राथमिकता देनी चाहिए.

केंद्र ने हाल ही में रियल इस्टेट (अचल संप्पत्ति ) क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए राज्यों से स्टांप शुल्क कम करने का आह्वान किया है. देश भर में इसकी 7.38 लाख यूनिट जमा हो गई हैं जो अब तक नहीं बिकीं. यदि रोजगार के अवसरों में बढ़ोतरी को ध्यान में रखकर तरह-तरह के सुधारों को लागू किया जाए तो लोगों के खर्च करने की क्षमता बढ़ेगी जिससे मांग में बढ़ोतरी होगी. यह मंदी के प्रभाव से उबरने का सबसे प्रभावी उपाय है.

इस साल लगातार दूसरी तिमाही में विकास दर में कमी तकनीकी रूप से इस बात की पुष्टि करता है कि देश आर्थिक मंदी का सामना कर रहा है. कोविड महामारी के कारण अप्रैल से जून 2020 की पहली तिमाही में विकास दर में 23.9 प्रतिशत कमी आई.

दूसरी तिमाही में लॉकडाउन के दौरान प्रतिबंध में छूट और त्यौहारों के दौरान खरीदारी की वजह से कुछ हद तक स्थिति में सुधार हुआ है. भारतीय रिजर्व बैंक ने अनुमान लगाया कि विकास दर में गिरावट 9.8 फीसद तक सीमित रहेगी. वास्तव में यह 7.5 फीसद पर स्थिर रह जाता है तो राहत है.

प्रभावी कार्य योजना से मिलेगा वास्तविक प्रोत्साहन
भारत ने चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में चिली, ब्रिटेन, कोलंबिया, स्पेन और मैक्सिको से बेहतर प्रदर्शन किया है. यह सिक्के का सिर्फ एक पहलू है. जब चीन, दक्षिण कोरिया, इजराइल, स्वीडन, जर्मनी और जापान समेत दुनिया भर में 26 देश भारत की तुलना में तेजी से मंदी से उबर रहे हैं तो हमारी रणनीतियों की तुरंत समीक्षा करने की जरूरत है. केंद्र की ओर से विभिन्न पैकेजों को जारी करने का कुल मिलाकर अर्थ यही है कि यदि आपूर्ति की मजबूरी खत्म हो जाए तो आत्मनिर्भरता बनी रहे. इससे निजी निवेश के साथ स्थिति में सुधार होगा.

पढ़ें- लगातार दूसरे महीने कारोबारी गतिविधियों में इजाफा, नौ महीनों में पहली बार रोजगार बढ़ा

इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि नेतृत्व क्या कहता है, यह स्पष्ट है कि दूसरी तिमाही में सरकार के खर्च की रफ्तार कम हुई है. केंद्र और राज्य सरकारों को वित्तीय विशेषज्ञों की सलाह पर ध्यान देना चाहिए कि यदि मांग में पर्याप्त बढ़ोतरी होगी तो काफी हद तक स्थिति सुधर जाएगी. कोविड संकट को देखते हुए प्रभावी कार्ययोजना से ही वास्तव में आर्थिक मंदी से उबरने में प्रोत्साहन मिलेगा.

रोजगार सृजन एजेंडा होना चाहिए
नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी ) ने पिछले साल जुलाई में अपनी रिपोर्ट में चेतावनी दी थी कि देश में मंदी के संकेत मिल रहे हैं. मानवता पर कोरोना वायरस के अचानक हुए प्रकोप से घरेलू तौर पर रोजगार के क्षेत्र पर कड़ा प्रहार हुआ है. अनगिनत प्रवासी कामगारों का जीवन गर्त में मिल गया है. करोड़ों लोग गरीबी रेखा से नीचे खिसक गए हैं.

विशाल जनसंख्या को कोविड संकट से उबारने और सामान्य स्थिति में लौटाने के लिए उनकी कमाई की क्षमता हर हाल में बढ़नी चाहिए. यदि केंद्र और राज्य सरकारें रोजगार पैदा करने का एजेंडा लेकर सक्रिय रूप से बुनियादी ढांचा परियोजनाओं पर खर्च करें तो यह कई सामान्य समस्याओं का प्रभावी समाधान होगा. इतिहास इस बात का गवाह है कि अकाल के समय राजाओं ने स्मारक, मंदिर, सिंचाई परियोजनाएं आदि निर्माण कार्यों में गरीबों को रोजगार दिए और उनकी भूख मिटाई.

रोजगार सृजन को विशेष प्राथमिकता देनी चाहिए
पूर्व केंद्रीय मंत्री गडकरी ने इस बात पर चिंता जताई कि देश में 210 राष्ट्रीय राजमार्ग परियोजनाओं की स्थिति अस्त - व्यस्त है. इस साल की शुरुआत में मोदी सरकार ने 18 राज्यों में बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के लिए 100 लाख करोड़ रुपए की योजना की घोषणा की.

इन परियोजनाओं में बिजली, ऊर्जा, शहरी विकास, सड़क और रेलवे शामिल हैं. इन परियोजनाओं के कार्यान्वयन में तत्काल तेजी लाने की जरूरत है. ग्रामीण उद्योगों विशेष रूप से सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (एमएसएमई ) व स्वयं सहायता समूहों को कम ब्याज पर उदारता के साथ कर्ज देना चाहिए और रोजगार सृजन को विशेष प्राथमिकता देनी चाहिए.

केंद्र ने हाल ही में रियल इस्टेट (अचल संप्पत्ति ) क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए राज्यों से स्टांप शुल्क कम करने का आह्वान किया है. देश भर में इसकी 7.38 लाख यूनिट जमा हो गई हैं जो अब तक नहीं बिकीं. यदि रोजगार के अवसरों में बढ़ोतरी को ध्यान में रखकर तरह-तरह के सुधारों को लागू किया जाए तो लोगों के खर्च करने की क्षमता बढ़ेगी जिससे मांग में बढ़ोतरी होगी. यह मंदी के प्रभाव से उबरने का सबसे प्रभावी उपाय है.

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