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दिल्ली में बढ़ता प्रदूषण, विदेशी राजनयिकों में बढ़ी चिंता

पर्यावरण के लिहाज से 2017 भारत के लिए राजनयिक तौर पर बहुत ही शर्मिंदगी भरा साल था. उस समय एक विदेशी राजदूत ने दिल्ली में विदेश मंत्रालय पर वायु के संकट का विरोध करते हुए इसका औपचारिक विरोध किया था. कुछ विदेशी राजनयिकों ने यहां आने से इनकार भी कर दिया था. इस बार भी प्रदूषण ने दिल्ली को बेदम कर रखा है. फिर से वैसी स्थिति ना आए, इसलिए विदेशी राजनयिकों का प्रतिनिधिमंडल भारत के अधिकारियों से बात करेगा. जानें विस्तार से आखिर क्या है उनकी प्रमुख चिंताएं.

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Published : Nov 7, 2019, 3:36 PM IST

Updated : Nov 7, 2019, 3:49 PM IST

राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में प्रदूषण

राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र कई दिनों तक काले घने धुंध में डूबा रहा. वायु प्रदूषण की गंभीर स्थिति होने के कारण स्कूल तक बंद कर देने पड़े, आज आसमान में धूप दिखी है. लेकिन दिल्ली में विदेशी राजनयिक समुदाय इस समय के आसपास हर साल हो रहे इस स्थिति से चिंतित है, क्योंकि पिछले कुछ हफ्तों से प्रदूषण की भयावहता खतरनाक रूप ले चुकी है.

डिप्लोमैटिक कोर के डीन, जो इस समय यात्रा पर हैं, उम्मीद की जा रही है कि इस सप्ताह दिल्ली लौटने के बाद वे विदेश मंत्रालय के अधिकारियों से मुलाकात करेंगे, ताकि वे अपने विचार और पर्यावरणीय समाधानों को उनके समक्ष रख सकें.

डीन फ्रैंक एचडी कैस्टेलानोस ने ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए कहा, 'मैं सिर्फ यही कह सकता हूं कि राजनयिक भी सभी दिल्लीवासियों की तरह उसी हवा में सांस लेते हैं और हम भी उतना ही चिंतित हैं जितना कि बाकी सभी. हम विदेश मंत्रालय के साथ चर्चा करेंगे कि कैसे स्थिति में सुधार किया जाए क्योंकि यह न केवल दिल्ली के निवासियों को बल्कि हमारे देशों के लोगों को भी प्रभावित कर रही है, जो व्यवसाय या पर्यटन के लिए भारत आने की योजना बनाते हैं.'

2017 को भारत के लिए एक राजनयिक शर्मिंदगी के तौर पर याद किया जाता है. उस समय राजदूत कैस्टेलानोस ने राजधानी में विदेश मंत्रालय पर वायु के संकट का विरोध करते हुए एक औपचारिक प्रतिनिधित्व किया था. उनके अनुसार राजनयिक दल के दिन-प्रतिदिन के काम पर भी राजधानी का वातावरण प्रतिकूल प्रभाव डाल रहा था. कई दूतावासों और उच्च आयोगों ने तब अपने कर्मचारियों और उनके परिवार के सदस्यों में बढ़ी सांस संबंधी समस्याओं और स्वास्थ्य संबंधी दिक्कतों के बारे में शिकायत दर्ज करायी थी.

आसियान के सदस्य देशों के दो राजनयिकों को भी समय से पहले अपनी दिल्ली में तैनाती खत्म करने पर मजबूर होना पड़ा था, जबकि कुछ अन्य ने अपनी वर्ष के अंत की छुट्टियों को और ज्यादा बढ़ा दिया था. थाइलैंड दूतावास ने 2017 में अपने विदेश मंत्रालय के मुख्यालय को भारत को 'हार्ड पोस्टिंग' यानि कठिन तैनाती घोषित करने की संभावना पर विचार करने के लिए लिखा था. वहीं श्वसन संबंधी बीमारियों के बाद कोस्टारिका की दूत मारिएला क्रूज अल्वारेज को अस्पताल में भर्ती कराया गया था. तब से दिल्ली में विदेशी दूतावास ने अपने राजनयिकों और कर्मचारियों के लिए सावधानियों का इंतजाम किया.

ईटीवी भारत के संवाददाता से बात करते हुए दिल्ली में फ्रांसीसी दूतावास के प्रवक्ता रेमी तिरुतोउवरयाने ने कहा, 'फ्रांस के दूतावास ने 2016 से अपने परिसर में एयर प्यूरीफायर से लैस करने जैसे और कई उपाय अपनाये हैं. स्थिति यह भी दर्शाती है कि धरती को बचाने के लिए भारत और फ्रांस के बीच साझेदारी जरूरी है. हमारे पर्यावरण मंत्री आईएसए (अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन) महासभा के लिए पिछले सप्ताह दिल्ली में थे और उन्होंने पर्यावरण के क्षेत्र में हमारे सहयोग को बढ़ाने और जलवायु परिवर्तन के शमन के तरीके पर चर्चा करने के लिए मंत्री जावड़ेकर से मुलाकात की.'

पिछले कुछ वर्षों की तरह चीनी दूतावास ने अपने कर्मचारियों के लिए दूतावास परिसर के हर अपार्टमेंट में दो एयर प्यूरिफाइंग मशीनों के साथ चेहरे पर मास्क का वितरण सुनिश्चित किया है. मीडिया से बात करते हुए जर्मन राजदूत वाल्टर लिंडर ने कहा कि सभी लोग एयर प्यूरीफायर नहीं खरीद सकते जैसे कि रिक्शा खींचने वाले, जिन्हें अपनी रोजी कमाने के लिए बाहर सड़कों पर रहना पड़ता है.

इसे भी पढ़ें- दिल्ली को घेरता 'मौत का धुआं'

दिल्ली सरकार की 'ऑड-इवन' योजना का समर्थन करते हुए उन्होंने कहा कि विदेशी राजनयिक होने के बवजूद वे खुद भी इसका पालन करना चाहते हैं. उन्होंने तर्क दिया कि हर कदम जो हवा की गुणवत्ता में सुधार कर सकता है, भले ही वह परीक्षण से जोड़ा जाए, उसे उठाना चाहिए. साथ ही उन्होंने कहा कि इस विधि को दूसरे देशों ने भी आजमाया है और इस तरह के विचारों के साथ प्रयोग करना सार्थक है.

दिल्ली में विदेशी दूतावासों में तैनात कई अन्य दूतों और राजनयिकों की तरह लिंडनर को भी प्रदूषित हवा के कारण कुछ बैठकों और व्यस्तताओं को रद्द करने या पुनर्निर्धारित करने के लिए मजबूर होना पड़ा.

'यह स्थिति हमारी स्वास्थ्य पर बुरा असर डाल रही है, जो हर शख्स के लिए सबसे जरूरी है. मैंने शनिवार को पूरे दिन घर पर बिताया, रविवार को कुछ सहकर्मियों से मिलने के लिए सिर्फ दो घंटों के लिए बाहर निकला.'

इससे हमारे काम पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है. संवाददाता से बात करते हुए ट्यूनीशियाई राजदूत नेज्मेदीन लाखाल ने कहा कि दिल्ली में प्रदूषण की गंभीर समस्या के चलते अपने दफ्तर की खिड़की या कार चलाते हुए अपने कार की खिड़की नहीं खोल सकते. मुझे विशेष रूप से दिल्ली में रहने वाले बच्चों और वृद्ध लोगों के लिए वाकई बुरा लग रहा है, 'राजदूत लाखाल ने कहा.
नागरिकों ने भी जहरीले हवा की स्थिति पर अपना विरोध दर्ज कराया.

इस बीच दिल्ली और अन्य शहरों से आए नागरिकों ने अराजनैतिक मंच 'लेट मी ब्रीथ' के साथ आकर मंगलवार शाम को इंडिया गेट पर विरोध प्रदर्शन किया और राज्यों और केंद्र की सरकारों से इस समस्या का हल निकालने के लिए एक ठोस मूल योजना की मांग की. बच्चों ने सीने में दर्द, आंखों और गले में जलन, साँस फूलने और गंभीर वायु प्रदूषण के कारण सांस लेने में तकलीफ की शिकायत की.

12वीं कक्षा की छात्रा खुशी ने चल रहे राजनीतिक दोषारोपण के खेल को समय की बर्बादी कहा. जबकि 11वीं कक्षा की छात्रा ईशा ने सवाल उठाया कि देश भर में जलवायु आपातकाल घोषित होने की स्थिति के बावजूद इससे निपटने के लिए पर्यावरण मंत्रालय का बजट इतना कम क्यों है. अन्य लोगों ने तर्क दिया कि यदि ऑड-ईवन योजना प्रभावी है, तो इसे पूरे साल लागू क्यों नहीं किया जाता है और हर साल दिवाली के आसपास हवा की गुणवत्ता में तेजी से गिरावट आने पर ही केवल कदम क्यों उठाए जाते हैं.

(लेखक- स्मिता शर्मा)

राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र कई दिनों तक काले घने धुंध में डूबा रहा. वायु प्रदूषण की गंभीर स्थिति होने के कारण स्कूल तक बंद कर देने पड़े, आज आसमान में धूप दिखी है. लेकिन दिल्ली में विदेशी राजनयिक समुदाय इस समय के आसपास हर साल हो रहे इस स्थिति से चिंतित है, क्योंकि पिछले कुछ हफ्तों से प्रदूषण की भयावहता खतरनाक रूप ले चुकी है.

डिप्लोमैटिक कोर के डीन, जो इस समय यात्रा पर हैं, उम्मीद की जा रही है कि इस सप्ताह दिल्ली लौटने के बाद वे विदेश मंत्रालय के अधिकारियों से मुलाकात करेंगे, ताकि वे अपने विचार और पर्यावरणीय समाधानों को उनके समक्ष रख सकें.

डीन फ्रैंक एचडी कैस्टेलानोस ने ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए कहा, 'मैं सिर्फ यही कह सकता हूं कि राजनयिक भी सभी दिल्लीवासियों की तरह उसी हवा में सांस लेते हैं और हम भी उतना ही चिंतित हैं जितना कि बाकी सभी. हम विदेश मंत्रालय के साथ चर्चा करेंगे कि कैसे स्थिति में सुधार किया जाए क्योंकि यह न केवल दिल्ली के निवासियों को बल्कि हमारे देशों के लोगों को भी प्रभावित कर रही है, जो व्यवसाय या पर्यटन के लिए भारत आने की योजना बनाते हैं.'

2017 को भारत के लिए एक राजनयिक शर्मिंदगी के तौर पर याद किया जाता है. उस समय राजदूत कैस्टेलानोस ने राजधानी में विदेश मंत्रालय पर वायु के संकट का विरोध करते हुए एक औपचारिक प्रतिनिधित्व किया था. उनके अनुसार राजनयिक दल के दिन-प्रतिदिन के काम पर भी राजधानी का वातावरण प्रतिकूल प्रभाव डाल रहा था. कई दूतावासों और उच्च आयोगों ने तब अपने कर्मचारियों और उनके परिवार के सदस्यों में बढ़ी सांस संबंधी समस्याओं और स्वास्थ्य संबंधी दिक्कतों के बारे में शिकायत दर्ज करायी थी.

आसियान के सदस्य देशों के दो राजनयिकों को भी समय से पहले अपनी दिल्ली में तैनाती खत्म करने पर मजबूर होना पड़ा था, जबकि कुछ अन्य ने अपनी वर्ष के अंत की छुट्टियों को और ज्यादा बढ़ा दिया था. थाइलैंड दूतावास ने 2017 में अपने विदेश मंत्रालय के मुख्यालय को भारत को 'हार्ड पोस्टिंग' यानि कठिन तैनाती घोषित करने की संभावना पर विचार करने के लिए लिखा था. वहीं श्वसन संबंधी बीमारियों के बाद कोस्टारिका की दूत मारिएला क्रूज अल्वारेज को अस्पताल में भर्ती कराया गया था. तब से दिल्ली में विदेशी दूतावास ने अपने राजनयिकों और कर्मचारियों के लिए सावधानियों का इंतजाम किया.

ईटीवी भारत के संवाददाता से बात करते हुए दिल्ली में फ्रांसीसी दूतावास के प्रवक्ता रेमी तिरुतोउवरयाने ने कहा, 'फ्रांस के दूतावास ने 2016 से अपने परिसर में एयर प्यूरीफायर से लैस करने जैसे और कई उपाय अपनाये हैं. स्थिति यह भी दर्शाती है कि धरती को बचाने के लिए भारत और फ्रांस के बीच साझेदारी जरूरी है. हमारे पर्यावरण मंत्री आईएसए (अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन) महासभा के लिए पिछले सप्ताह दिल्ली में थे और उन्होंने पर्यावरण के क्षेत्र में हमारे सहयोग को बढ़ाने और जलवायु परिवर्तन के शमन के तरीके पर चर्चा करने के लिए मंत्री जावड़ेकर से मुलाकात की.'

पिछले कुछ वर्षों की तरह चीनी दूतावास ने अपने कर्मचारियों के लिए दूतावास परिसर के हर अपार्टमेंट में दो एयर प्यूरिफाइंग मशीनों के साथ चेहरे पर मास्क का वितरण सुनिश्चित किया है. मीडिया से बात करते हुए जर्मन राजदूत वाल्टर लिंडर ने कहा कि सभी लोग एयर प्यूरीफायर नहीं खरीद सकते जैसे कि रिक्शा खींचने वाले, जिन्हें अपनी रोजी कमाने के लिए बाहर सड़कों पर रहना पड़ता है.

इसे भी पढ़ें- दिल्ली को घेरता 'मौत का धुआं'

दिल्ली सरकार की 'ऑड-इवन' योजना का समर्थन करते हुए उन्होंने कहा कि विदेशी राजनयिक होने के बवजूद वे खुद भी इसका पालन करना चाहते हैं. उन्होंने तर्क दिया कि हर कदम जो हवा की गुणवत्ता में सुधार कर सकता है, भले ही वह परीक्षण से जोड़ा जाए, उसे उठाना चाहिए. साथ ही उन्होंने कहा कि इस विधि को दूसरे देशों ने भी आजमाया है और इस तरह के विचारों के साथ प्रयोग करना सार्थक है.

दिल्ली में विदेशी दूतावासों में तैनात कई अन्य दूतों और राजनयिकों की तरह लिंडनर को भी प्रदूषित हवा के कारण कुछ बैठकों और व्यस्तताओं को रद्द करने या पुनर्निर्धारित करने के लिए मजबूर होना पड़ा.

'यह स्थिति हमारी स्वास्थ्य पर बुरा असर डाल रही है, जो हर शख्स के लिए सबसे जरूरी है. मैंने शनिवार को पूरे दिन घर पर बिताया, रविवार को कुछ सहकर्मियों से मिलने के लिए सिर्फ दो घंटों के लिए बाहर निकला.'

इससे हमारे काम पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है. संवाददाता से बात करते हुए ट्यूनीशियाई राजदूत नेज्मेदीन लाखाल ने कहा कि दिल्ली में प्रदूषण की गंभीर समस्या के चलते अपने दफ्तर की खिड़की या कार चलाते हुए अपने कार की खिड़की नहीं खोल सकते. मुझे विशेष रूप से दिल्ली में रहने वाले बच्चों और वृद्ध लोगों के लिए वाकई बुरा लग रहा है, 'राजदूत लाखाल ने कहा.
नागरिकों ने भी जहरीले हवा की स्थिति पर अपना विरोध दर्ज कराया.

इस बीच दिल्ली और अन्य शहरों से आए नागरिकों ने अराजनैतिक मंच 'लेट मी ब्रीथ' के साथ आकर मंगलवार शाम को इंडिया गेट पर विरोध प्रदर्शन किया और राज्यों और केंद्र की सरकारों से इस समस्या का हल निकालने के लिए एक ठोस मूल योजना की मांग की. बच्चों ने सीने में दर्द, आंखों और गले में जलन, साँस फूलने और गंभीर वायु प्रदूषण के कारण सांस लेने में तकलीफ की शिकायत की.

12वीं कक्षा की छात्रा खुशी ने चल रहे राजनीतिक दोषारोपण के खेल को समय की बर्बादी कहा. जबकि 11वीं कक्षा की छात्रा ईशा ने सवाल उठाया कि देश भर में जलवायु आपातकाल घोषित होने की स्थिति के बावजूद इससे निपटने के लिए पर्यावरण मंत्रालय का बजट इतना कम क्यों है. अन्य लोगों ने तर्क दिया कि यदि ऑड-ईवन योजना प्रभावी है, तो इसे पूरे साल लागू क्यों नहीं किया जाता है और हर साल दिवाली के आसपास हवा की गुणवत्ता में तेजी से गिरावट आने पर ही केवल कदम क्यों उठाए जाते हैं.

(लेखक- स्मिता शर्मा)

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विदेशी राजनयिक विदेश मंत्रालय से प्रदूषण के मुद्दे पर पर चर्चा करेंगे



राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र कई दिनों तक काले घने धुंध में डूबा रहा, वायु प्रदूषण की गंभीर स्थिति के कारण स्कूल तक बंद कर देने पड़े, यहाँ आज आसमान में धूप दिखी है। लेकिन दिल्ली में विदेशी राजनयिक समुदाय इस समय के आसपास हर साल खुद को दोहराते हुई इस स्थिति से चिंतित है, क्योंकि पिछले कुछ हफ्तों से प्रदूषण की भयावहता खतरनाक दम्भी रूप ले चुकी है।  डिप्लोमैटिक कोर के डीन, जो इस समय यात्रा कर रहे हैं, उम्मीद की जा रही है कि इस सप्ताह दिल्ली लौटने के बाद वे विदेश मंत्रालय के अधिकारियों से मुलाकात करेंगे, ताकि अपने विचार और पर्यावरणीय समाधानों को उनके समक्ष रख सकें। “मैं सिर्फ यही कह सकता हूँ कि राजनयिक भी सभी दिल्ली वासियों की तरह उसी हवा में साँस लेते हैं और हम भी उतना ही चिंतित हैं जितना कि बाकी सब। हम विदेश मंत्रालय के साथ चर्चा करेंगे कि कैसे स्थिति में सुधार किया जाए क्योंकि यह न केवल दिल्ली के निवासियों को बल्कि हमारे देशों के लोगों को भी प्रभावित कर रही है जो व्यवसाय या पर्यटन के लिए भारत आने की योजना बनाते हैं,” डीन फ्रैंक एचडी कैस्टेलानोस ने ईटीवी भारत से कहा।   



2017 में भारत के लिए एक राजनयिक शर्मिंदगी के तौर पर, राजदूत कैस्टेलानोस ने राजधानी में विदेश मंत्रालय पर वायु के संकट का विरोध करते हुए एक औपचारिक प्रतिनिधित्व किया था, जो राजनयिक दल के दिन-प्रतिदिन के काम पर भी प्रतिकूल प्रभाव डाल रहा था। कई दूतावासों और उच्च आयोगों ने तब अपने कर्मचारियों और उनके परिवार के सदस्यों में बढ़ी साँस संबंधी समस्याओं और स्वास्थ्य संबंधी दिक्कतों के बारे में शिकायत दर्ज करायी थी। आसियान के सदस्य देशों के दो राजनयिकों को भी समय से पहले अपनी दिल्ली में तैनाती ख़त्म करने पर मजबूर होना पड़ा था, जबकि कुछ अन्य ने अपनी वर्ष के अंत की छुट्टियों को और ज्यादा बढ़ा दिया था। थाइलैंड दूतावास ने 2017 में अपने विदेश मंत्रालय के मुख्यालय को भारत को 'हार्ड पोस्टिंग' यानि कठिन तैनाती घोषित करने की संभावना पर विचार करने के लिए लिखा था, जबकि श्वसन संबंधी बीमारियों के बाद कोस्टा रिका की दूत मारिएला क्रूज़ अल्वारेज़ को अस्पताल में भर्ती कराया गया था। तब से दिल्ली में विदेशी दूतावास ने अपने राजनयिकों और कर्मचारियों के लिए आंतरिक सावधानियों का सहारा लिया है।



ईटीवी भारत के संवाददाता से बात करते हुए, दिल्ली में फ्रांसीसी दूतावास के प्रवक्ता रेमी तिरुतोउवरयाने ने कहा, “फ्रांस के दूतावास ने 2016 से अपने परिसर में एयर प्यूरीफायर से लैस करने जैसे और कई उपाय अपनाये हैं। स्थिति यह भी दर्शाती है कि ग्रह को बचने के लिए भारत और फ्रांस के बीच साझेदारी ज़रूरी है। हमारे पर्यावरण मंत्री आईएसए (अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन) महासभा के लिए पिछले सप्ताह दिल्ली में थे और उन्होंने पर्यावरण के क्षेत्र में हमारे सहयोग को बढ़ाने और जलवायु परिवर्तन के शमन के तरीके पर चर्चा करने के लिए मंत्री जावड़ेकर से मुलाकात की है।



पिछले कुछ वर्षों की तरह, चीनी दूतावास अपने कर्मचारियों को दूतावास परिसर में हर अपार्टमेंट में दो एयर प्यूरिफाइंग मशीनों के साथ चेहरे पर मास्क का वितरण सुनिश्चित कराया है। मीडिया से बात करते हुए जर्मन राजदूत वाल्टर लिंडर ने कहा कि सभी लोग एयर प्यूरीफायर नहीं खरीद सकते जैसे कि रिक्शा खींचने वाले, जिन्हें अपनी रोज़ी कमाने के लिए बाहर सड़कों पर रहना पड़ता है। दिल्ली सरकार की ‘ऑड-इवन’ योजना का समर्थन करते हुए उन्होंने कहा कि विदेशी राजनयिक होने के बवजूद वे खुद भी इसका पालन करना चाहते हैं। उन्होंने तर्क दिया कि हर कदम जो हवा की गुणवत्ता में सुधार कर सकता है, भले ही वह परीक्षण त्रुटि विधि से जोड़ा जाए, उसे उठाना चाहिए, साथ ही उन्होंने कहा कि इस विधि को  दूसरे देशों ने भी आजमाया है और इस तरह के विचारों के साथ प्रयोग करना सार्थक है। दिल्ली में विदेशी दूतावासों में तैनात कई अन्य दूतों और राजनयिकों की तरह, लिंडनर को भी प्रदूषित हवा के कारण कुछ बैठकों और व्यस्तताओं को रद्द करने या पुनर्निर्धारित करने के लिए मजबूर होना पड़ा।



“यह स्थिति हमारी स्वास्थ्य पर बुरा असर डाल रही है, जो हर शख्स के लिए सबे ज्यादा ज़रूरी है। मैंने शनिवार को पूरे दिन घर पर बिताया, रविवार को कुछ सहकर्मियों से मिलने के लिए सिर्फ़ दो घंटों के लिए बाहर निकला। इससे हमारे काम पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।,” संवाददाता से बात करते हुए ट्यूनीशियाई राजदूत नेज्मेदीन लाखाल ने कहा। “ दिल्ली में प्रदूषण की गंभीर समस्या के चलते आप अपने दफ्तर की खिड़की या कार चलाते हुए अपने कार की खिड़की नहीं खोल सकते हैं। मुझे विशेष रूप से दिल्ली में रहने वाले बच्चों और वृद्ध लोगों के लिए वाकई बुरा लगता है,” राजदूत लाखाल ने कहा।



नागरिकों ने भी इस वायु की आपातकाल स्थति पर अपना विरोध दर्ज किया



इस बीच दिल्ली और अन्य शहरों से आए नागरिकों ने अराजनैतिक मंच लेट मी ब्रीथ के साथ आकर मंगलवार शाम को इंडिया गेट पर विरोध प्रदर्शन किया और राज्यों और केंद्र की सरकारों से इस समस्या का हल निकालने के लिए एक ठोस मूल योजना की मांग की। बच्चों ने सीने में दर्द, आंखों और गले में जलन, साँस फूलने और गंभीर वायु प्रदूषण के कारण सांस लेने में तकलीफ की शिकायत की। 12वीं कक्षा की छात्रा ख़ुशी ने चल रहे राजनीतिक दोषारोपण के खेल को समय की बर्बादी कहा। जबकि 11वीं कक्षा की छात्रा ईशा ने सवाल उठाया कि देश भर में जलवायु आपातकाल घोषित होने की स्थिति के बावजूद इससे निपटने के लिए पर्यावरण मंत्रालय का बजट इतना कम क्यों है। अन्य लोगों ने तर्क दिया कि यदि ऑड-ईवन योजना प्रभावी है, तो इसे पूरे साल लागू क्यों नहीं किया जाता है और हर साल दिवाली के आसपास हवा की गुणवत्ता में तेजी से गिरावट आने पर केवल निवारक कदम क्यों उठाए जाते हैं।



 


Conclusion:
Last Updated : Nov 7, 2019, 3:49 PM IST
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