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जानें, खाद्य सुरक्षा को लेकर कितना आश्वस्त है भारत - lockdown in india foood security

देश लॉकडाउन मोड पर है और ऐसे में देश के समक्ष सबसे बड़ी चिंता खाद्य सुरक्षा को लेकर है. हालांकि जानकारों की माने तो भारत का पास खाद्य स्टॉक पर्याप्त मात्रा में है.

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प्रतिकात्मक तस्वीर.
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Published : Apr 11, 2020, 11:47 AM IST

Updated : Apr 11, 2020, 12:50 PM IST

हैदराबाद : आज पूरा विश्व कोरोना महामारी से जूझ रहा है और ऐसे में देश की खाद्य सुरक्षा को लेकर आम जनता में तरह-तरह का ख्याल आना लाजमी है. आमतौर पर यह अनुमान लगाया जाता है कि संभावित संकट से निबटने के लिए भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) के पास 58 मिलियन टन खाद्य सामग्री स्टॉक में है, जो समय आने पर सरकार के लिए मददगार साबित होगा. हालांकि यह भी सत्य है कि भारत की विशाल आबादी जिसमें ज्यादातर गरीब हैं, उनके लिए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना चुनौतीपूर्ण विषय है.

भारत अपने उपभोक्ताओं और किसानों दोनों के हितों की रक्षा के लिए मूल्य समर्थित सार्वजनिक स्टॉकहोल्डिंग कार्यक्रम लागू करता है. इस नीति के तहत, सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर किसानों से अनाज खरीदती है, और उसके बाद इसे सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) और अन्य कल्याणकारी योजनाओं के माध्यम से समाज के कमजोर वर्गों को रियायती मूल्य पर वितरित करती है.

बता दें कि, एमएसपी की खरीद, स्टॉकहोल्डिंग और जरूरतमंद (वैसे लोग जो इसके पात्र हैं) परिवारों को वितरण भारत के खाद्य सुरक्षा ढांचे के तीन अभिन्न अंग हैं.
हालांकि यह भी सच हैं कि डब्ल्यूटीओ के नियम भारत के खाद्य भंडार के निर्माण की क्षमता को प्रतिबंधित करते हैं, क्योंकि एमएसपी में खाद्यान्न की खरीद सख्त सीमा के अधीन है.

इन सीमाओं के तहत, एमएसपी पर खाद्यान्नों की खरीद के लिए समर्थन की राशि, खरीदे गए उत्पाद के उत्पादन के मूल्य का 10 प्रतिशत से अधिक नहीं हो सकती है.

भारत ने गरीबों के लिए घरेलू खाद्य सुरक्षा जरूरतों को पूरा करने के उद्देश्य से धान की खेती करने वाले किसानों को अधिक समर्थन देने को लेकर विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के शांति उपबंध (पीस क्लॉज) का उपयोग किया है.

वह इसलिए क्योंकि 2018-19 में चावल के लिए उत्पाद-विशिष्ट समर्थन 11.46 प्रतिशत था. यह सरकार को इसलिए भी आश्वास्त करता है क्योंकि चावल के लिए एमएसपी योजना, लाखों लोगों के लिए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना, विश्व व्यापार संगठन में किसी भी कानूनी चुनौती के बिना जारी रखा जा सकता है.

कृषि का मौसम और आपूर्ति श्रृंखला
भारत में रबी फसल का मौसम अप्रैल-जून के बीच आता है. गेहूं, चावल और दालों जैसी सर्दियों की फसल को इस दौरान काटा और बेचा जाता है.सरकार इस दौरान अपने स्टॉक भी भरती है. यह फलों के लिए सबसे अच्छा सीजन होता है. इस समय किसान धान, दलहन, कपास और गन्ना फसल की बुवाई शुरू करते हैं. ऐसे में अगर देश में लॉकडाउन होता है तो बीज, कीटनाशक, कृषि उपकरण और कामगारों (श्रम) की आपूर्ति में बाधा पहुंचती है.

किसानों को ट्रैक्टर
तमिलनाडु किसानों को ट्रैक्टर देने की योजना बना रहा है, लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि वे उन्हें संचालित कर पाएंगे या नहीं. यह भी स्पष्ट नहीं है कि कुछ सार्वजनिक परिवहन को खोले बिना आपूर्ति श्रृंखलाओं को कैसे कम किया जा सकता है.

आपूर्ति श्रृंखला पहले से ही लॉकडाउन के कारण फंसी हुई है. वह इसलिए क्योंकि राज्यों ने कोरोना वायरस से बचने के लिए अपनी बाहरी और आंतरिक सीमाओं को सील (बंद) कर दिया है. कोरोनोवायरस का कोई प्रसार सुनिश्चित नहीं करते हुए आपूर्ति श्रृंखला की एक तेज गति सुनिश्चित करने के लिए यह एक मुख्य कार्य होगा.कोरोना वायरस के प्रसार को कम करते हुए आपूर्ति श्रृंखला को कायम रखना ही मौजूदा हालात में बड़ी बात है.

कृषि देश की जीडीपी में 16 प्रतिशत का योगदान देती है. वहीं भारत को किसानों का देश भी कहा जाता है, जहां की अधिक आबादी कृषि पर ही निर्भर है.रबी सीजन में जहां प्रमुख फसलों की कटाई शुरू हो जाती है वहीं किसानों के लिए लॉकडाउन किसी कठोर सजा से कम नहीं है. लॉकडाउन में किसान अपनी फसलों को बाजार तक पहुंचाने में असमर्थ हैं.

किसान
यह किसानों को बुरी तरह प्रभावित कर रही है.बता दें कि कम फसल की कीमतों ने सरकार को स्थिर एमएसपी सुनिश्चित करने के लिए पिछले साल और उससे पहले वर्ष के लिए सख्त उपाय किए थे. यह कई कारणों से काम करने में विफल रहा क्योंकि किसानों की आत्महत्या को गरीबी, कर्ज और अन्य फसल संबंधित कारणों से जोड़ा गया.

गरीबी
सरकार ने गरीबों को खाद्य सुरक्षा और नकद हस्तांतरण प्रदान करने के लिए 23 बिलियन डॉलर की राहत पैकेज की घोषणा की है.लॉकडाउन के दौरान विभिन्न स्थानों पर फंसे प्रवासी कामगार सबसे अधिक प्रभावित हुए हैं. वे भोजन की आपूर्ति करने वाले गैर सरकारी संगठनों पर ही निर्भर हैं.

प्रवासी मजदूर
लॉकडाउन में संघर्षरत श्रमिक अपने राशन के कोटा का उपयोग नहीं कर पाएंगे, क्योंकि वे अपने मूल राज्य में नहीं हैं.कई राज्य सरकारें लॉकडाउन से पहले राष्ट्रव्यापी राशन कार्ड बनाने की बात कही तो थी लेकिन फिलहाल स्थिति वैसी बनती नहीं दिख रही है जिससे प्रवासी श्रमिकों को राहत मिल सके.

लॉकडाउन में डरने की कोई बात नहीं है क्योंकि भारत के पास एक मजबूत खाद्य भंडार है. देश के पास इस वक्त लगभग 60 मिलियन टन खाद्यान्न स्टॉक में हैं. साथ ही भारत दुनिया का सबसे बड़ा राज्य-संचालित खाद्य वितरण कार्यक्रम को चलाने वाला देश है. ऐसे में भारत में लॉडाउन के वक्त भोजन की कमी होने की संभावना नहीं है.

भारत में पूरे देश में फैले 5 लाख 33 हजार 897 उचित मूल्य की दुकानों का एक विस्तृत नेटवर्क है. केंद्र सरकार ने 23.8 मिलियन अंत्योदय अन्न योजना (एएवाई) परिवारों को 35 किलो गेहूं और चावल (2 रुपये और 3 रुपये प्रति किलो) आवंटित किए. लगभग 710 मिलियन व्यक्तियों, (प्राथमिकता वाले घरों के रूप में वर्गीकृत) को 5 किलोग्राम गेहूं और / या चावल प्रदान किया जाता है. केंद्र सरकार के पास गेहूं और चावल का अत्यधिक भंडार है और रबी खरीद के लिए भंडारण स्थान की कमी है, जो तीन सप्ताह में चरम पर पहुंच जाएगी.

शहरी क्षेत्रों में दूध की डेयरी-आपूर्ति अमूल या राज्य डेयरी फेडरेशन या निजी डेयरियों द्वारा देखरेख कीजाती है. लॉकडाउन में कोई कमी भी हो सकती है इसकी कोई संभावना नहीं है, क्योंकि डेयरी किसान से लेकर अंतिम उपभोक्ता तक आपूर्ति श्रृंखला अच्छी तरह से बनी हुई है.

हैदराबाद : आज पूरा विश्व कोरोना महामारी से जूझ रहा है और ऐसे में देश की खाद्य सुरक्षा को लेकर आम जनता में तरह-तरह का ख्याल आना लाजमी है. आमतौर पर यह अनुमान लगाया जाता है कि संभावित संकट से निबटने के लिए भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) के पास 58 मिलियन टन खाद्य सामग्री स्टॉक में है, जो समय आने पर सरकार के लिए मददगार साबित होगा. हालांकि यह भी सत्य है कि भारत की विशाल आबादी जिसमें ज्यादातर गरीब हैं, उनके लिए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना चुनौतीपूर्ण विषय है.

भारत अपने उपभोक्ताओं और किसानों दोनों के हितों की रक्षा के लिए मूल्य समर्थित सार्वजनिक स्टॉकहोल्डिंग कार्यक्रम लागू करता है. इस नीति के तहत, सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर किसानों से अनाज खरीदती है, और उसके बाद इसे सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) और अन्य कल्याणकारी योजनाओं के माध्यम से समाज के कमजोर वर्गों को रियायती मूल्य पर वितरित करती है.

बता दें कि, एमएसपी की खरीद, स्टॉकहोल्डिंग और जरूरतमंद (वैसे लोग जो इसके पात्र हैं) परिवारों को वितरण भारत के खाद्य सुरक्षा ढांचे के तीन अभिन्न अंग हैं.
हालांकि यह भी सच हैं कि डब्ल्यूटीओ के नियम भारत के खाद्य भंडार के निर्माण की क्षमता को प्रतिबंधित करते हैं, क्योंकि एमएसपी में खाद्यान्न की खरीद सख्त सीमा के अधीन है.

इन सीमाओं के तहत, एमएसपी पर खाद्यान्नों की खरीद के लिए समर्थन की राशि, खरीदे गए उत्पाद के उत्पादन के मूल्य का 10 प्रतिशत से अधिक नहीं हो सकती है.

भारत ने गरीबों के लिए घरेलू खाद्य सुरक्षा जरूरतों को पूरा करने के उद्देश्य से धान की खेती करने वाले किसानों को अधिक समर्थन देने को लेकर विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के शांति उपबंध (पीस क्लॉज) का उपयोग किया है.

वह इसलिए क्योंकि 2018-19 में चावल के लिए उत्पाद-विशिष्ट समर्थन 11.46 प्रतिशत था. यह सरकार को इसलिए भी आश्वास्त करता है क्योंकि चावल के लिए एमएसपी योजना, लाखों लोगों के लिए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना, विश्व व्यापार संगठन में किसी भी कानूनी चुनौती के बिना जारी रखा जा सकता है.

कृषि का मौसम और आपूर्ति श्रृंखला
भारत में रबी फसल का मौसम अप्रैल-जून के बीच आता है. गेहूं, चावल और दालों जैसी सर्दियों की फसल को इस दौरान काटा और बेचा जाता है.सरकार इस दौरान अपने स्टॉक भी भरती है. यह फलों के लिए सबसे अच्छा सीजन होता है. इस समय किसान धान, दलहन, कपास और गन्ना फसल की बुवाई शुरू करते हैं. ऐसे में अगर देश में लॉकडाउन होता है तो बीज, कीटनाशक, कृषि उपकरण और कामगारों (श्रम) की आपूर्ति में बाधा पहुंचती है.

किसानों को ट्रैक्टर
तमिलनाडु किसानों को ट्रैक्टर देने की योजना बना रहा है, लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि वे उन्हें संचालित कर पाएंगे या नहीं. यह भी स्पष्ट नहीं है कि कुछ सार्वजनिक परिवहन को खोले बिना आपूर्ति श्रृंखलाओं को कैसे कम किया जा सकता है.

आपूर्ति श्रृंखला पहले से ही लॉकडाउन के कारण फंसी हुई है. वह इसलिए क्योंकि राज्यों ने कोरोना वायरस से बचने के लिए अपनी बाहरी और आंतरिक सीमाओं को सील (बंद) कर दिया है. कोरोनोवायरस का कोई प्रसार सुनिश्चित नहीं करते हुए आपूर्ति श्रृंखला की एक तेज गति सुनिश्चित करने के लिए यह एक मुख्य कार्य होगा.कोरोना वायरस के प्रसार को कम करते हुए आपूर्ति श्रृंखला को कायम रखना ही मौजूदा हालात में बड़ी बात है.

कृषि देश की जीडीपी में 16 प्रतिशत का योगदान देती है. वहीं भारत को किसानों का देश भी कहा जाता है, जहां की अधिक आबादी कृषि पर ही निर्भर है.रबी सीजन में जहां प्रमुख फसलों की कटाई शुरू हो जाती है वहीं किसानों के लिए लॉकडाउन किसी कठोर सजा से कम नहीं है. लॉकडाउन में किसान अपनी फसलों को बाजार तक पहुंचाने में असमर्थ हैं.

किसान
यह किसानों को बुरी तरह प्रभावित कर रही है.बता दें कि कम फसल की कीमतों ने सरकार को स्थिर एमएसपी सुनिश्चित करने के लिए पिछले साल और उससे पहले वर्ष के लिए सख्त उपाय किए थे. यह कई कारणों से काम करने में विफल रहा क्योंकि किसानों की आत्महत्या को गरीबी, कर्ज और अन्य फसल संबंधित कारणों से जोड़ा गया.

गरीबी
सरकार ने गरीबों को खाद्य सुरक्षा और नकद हस्तांतरण प्रदान करने के लिए 23 बिलियन डॉलर की राहत पैकेज की घोषणा की है.लॉकडाउन के दौरान विभिन्न स्थानों पर फंसे प्रवासी कामगार सबसे अधिक प्रभावित हुए हैं. वे भोजन की आपूर्ति करने वाले गैर सरकारी संगठनों पर ही निर्भर हैं.

प्रवासी मजदूर
लॉकडाउन में संघर्षरत श्रमिक अपने राशन के कोटा का उपयोग नहीं कर पाएंगे, क्योंकि वे अपने मूल राज्य में नहीं हैं.कई राज्य सरकारें लॉकडाउन से पहले राष्ट्रव्यापी राशन कार्ड बनाने की बात कही तो थी लेकिन फिलहाल स्थिति वैसी बनती नहीं दिख रही है जिससे प्रवासी श्रमिकों को राहत मिल सके.

लॉकडाउन में डरने की कोई बात नहीं है क्योंकि भारत के पास एक मजबूत खाद्य भंडार है. देश के पास इस वक्त लगभग 60 मिलियन टन खाद्यान्न स्टॉक में हैं. साथ ही भारत दुनिया का सबसे बड़ा राज्य-संचालित खाद्य वितरण कार्यक्रम को चलाने वाला देश है. ऐसे में भारत में लॉडाउन के वक्त भोजन की कमी होने की संभावना नहीं है.

भारत में पूरे देश में फैले 5 लाख 33 हजार 897 उचित मूल्य की दुकानों का एक विस्तृत नेटवर्क है. केंद्र सरकार ने 23.8 मिलियन अंत्योदय अन्न योजना (एएवाई) परिवारों को 35 किलो गेहूं और चावल (2 रुपये और 3 रुपये प्रति किलो) आवंटित किए. लगभग 710 मिलियन व्यक्तियों, (प्राथमिकता वाले घरों के रूप में वर्गीकृत) को 5 किलोग्राम गेहूं और / या चावल प्रदान किया जाता है. केंद्र सरकार के पास गेहूं और चावल का अत्यधिक भंडार है और रबी खरीद के लिए भंडारण स्थान की कमी है, जो तीन सप्ताह में चरम पर पहुंच जाएगी.

शहरी क्षेत्रों में दूध की डेयरी-आपूर्ति अमूल या राज्य डेयरी फेडरेशन या निजी डेयरियों द्वारा देखरेख कीजाती है. लॉकडाउन में कोई कमी भी हो सकती है इसकी कोई संभावना नहीं है, क्योंकि डेयरी किसान से लेकर अंतिम उपभोक्ता तक आपूर्ति श्रृंखला अच्छी तरह से बनी हुई है.

Last Updated : Apr 11, 2020, 12:50 PM IST
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