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किसानों के विकास के लिए नए बीज बिल में बदलाव जरूरी - संसदीय स्टैंडिंग कमेटी

खेती देश के किसानों के लिये जीवन व्यापन का एक मात्र तरीका है. हालांकि, पिछले दिनों खेती के कारण ही किसान परेशानी की जिंदगी जीने को मजबूर है. ये आश्चर्य की ही बात है कि किसान और खेती पर निर्भर होने वाले बिचौलिये, व्यापारी आदि सभी अच्छा मुनाफा कमाते हैं पर किसान बदहाली का जीवन जीने को मजबूर है.

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Published : Nov 22, 2019, 5:44 PM IST

Updated : Nov 22, 2019, 11:40 PM IST

खेती देश के किसानों के लिये जीवन व्यापन का एक मात्र तरीका है. हालांकि, पिछले दिनों खेती के कारण ही किसान परेशानी की जिंदगी जीने को मजबूर है. यह आश्चर्य की ही बात है कि किसान और खेती पर निर्भर होने वाले बिचौलिए, व्यापारी आदि सभी अच्छा मुनाफा कमाते हैं पर किसान बदहाली का जीवन जीने को मजबूर है.

बीज खरीदने से लेकर उत्पाद को बेचने तक किसानों की मदद करने के लिये कोई ठोस कानून मौजूद नहीं है. बीज एक्ट इसका एक उद्दारण है. सरकारी बीज कंपनियों के समय बने नियम और कानून आज भी ऐसे समय में चल रहे हैं जब निजि कंपनियां इस क्षेत्र में तेजी से फैल रही हैं.

यह कानून जो किसानों की रक्षा के लिये बनाये गए थे वह आज निजि कंपनियों के लिए फायदेमंद ओर किसानों के लिए परेशानी का सबब बन गये हैं. इस सिस्टम में मौजूद खामियां किसानों को बर्बाद करने में लगी हुई हैं.

दशकों से इस मुद्दे पर राजनेताओं ने ध्यान नहीं दिया है और आज यह किसानों की परेशानी का सबसे बड़ा कारण बन गई है. अब जबकि मौजूदा सरकार एक नये विधेयक का मसौदा पेश करने की तैयारी में है, ऐसे में किसानों को कुछ उम्मीद जगी है.

new seed bill for farmers
बीज बिल से किसानों के लिए होंगे कई बदलाव

किसानों का मानना है कि दशकों से बदहाल किसानों के मुद्दों को सही करने के लिये ये एक बड़ा कदम हो सकता है.

मौजूदा बीज विधेयक के मुताबिक, किसान बीज की गुणवत्ता के बारे में शिकायत करा सकते हैं. केंद्रीय बीज समिति को इन शिकायतों की जांच करने का अधिकार भी है. हांलाकि, विधायक में मौजूद कानूनों की कमियों के कारण ज्यादातर बिचौलिये इसकी खामियों का फायदा उठाकर बच निकलते हैं.

पढ़ें- सियाचिन को पर्यटकों के लिए खोलने के फैसले पर बौखलाया पाकिस्तान, उठाया सवाल

केवल कुछ बड़े मामलों में ये विधेयक किसानो के हितो की रक्षा करने में कामयाब रहा है. कुछ मामलों में निजि लाइसेंस भी निरस्त किये गये. लेकिन इसके बावजूद कंपनियां फर्जी नामों से रीपैकिंग करके इन खराब बीजों को बाजार में बेच रही हैं. इन कंपनियों और सरकारी अधिकारियों की मिलीभगत के चलते इन फर्जी कंपनियों को दोबारा लाईसेंस मिल जाता है.

इन सभी कारणों के चलते किसान बदहाली और परेशानी का जीवन जीने को मजबूर हैं. कई नकली कंपनियां खराब गुणवत्ता के बीजों को नामी कंपनियों की पैकिंग कर बाजार में बेच रही हैं. इन सभी को तभी रोका जा सकता है जब विजिलेंस विभाग पूरी सतर्कता के साथ काम करे.

2004 की संसदीय स्टैंडिंग कमेटी ने मौजूदा बीज विधेयक के लिये कई सुझाव दिए थे. हांलाकि, इन सुझावों को मौजूदा सरकार द्वारा तैयार किये जा रहे मसौदे में जगह नहीं मिली है. सरकार इस समय देशभर से इस मसौदे पर सुझाव मांग रही है.

पढ़ें- मंदी से निपटने के लिए निवेश बढ़ाना जरूरी

बीज विधेयक 2019 के सेक्शन 21 के मुताबिक, बीज का गुणवत्ता में किसानों के साथ अगर कोई धोखाधड़ी होती है, तो किसान को ऐसा करने वाली कंपनी से उपभोक्ता कानून के तहत मुआवजा मिल सकेगा.

हालांकि, इससे किसान के पूरे नुकसान की भरपाई नहीं हो सकेगी, क्योंकि कंपनी किसान को केवल बीज की कीमत और उस पर ब्याज देने के लिये बाध्य होगी.

वहीं, किसान खराब बीज इस्तेमाल करने के कारण न केवल उत्पाद में मार झेलता है, बल्कि ऐसे बीजों के इस्तेमाल के कारण उसकी मेहनत और समय भी बर्बाद होती है. इसके बाद अदालतों के चक्कर काटने में किसानों का और समय और पैसा बर्बाद होता है. इसलिए यह जरूरी है कि उपभोक्ता अदालतें ऐसे मामलो में फैसला सुनाने से पहले इन सभी बिंदुओ पर सोच विचार करें.

किसान आने वाले नए बिल मे इस तरह के बदलावओं की उम्मीद कर रहे हैं. किसान संगठनों का ये भी मानना है कि ऐसी समितियों में किसानों को भी जगह मिलनी चाहिये ताकि किसानों के मामले मे एक मानवीय पक्ष भी रखा जा सके.

नए मसौदे में कंपनियों द्वारा खुद अपने बीजों के सर्टिफिकेशन पर भी रोक लगाने का प्रवधान रखा गया है, इस कदम को किसानों की तरफ से व्यापक समर्थन मिला है.

हालांकि, नये मसौदे में व्यवसायिक फसलों के बीजों के दाम नियंत्रण पर समिति का अधिकार काफी सीमित रखा गया है. इससे किसानों को ज्यादा मदद मिलने की उम्मीद नही है. इसलिए ये जरूरी है कि राज्य सरकारें बीजों के दाम पर नियंत्रण रखने की जिम्मेदारी लें.

पढ़ें- जब कुपोषण के खिलाफ ढीला है रवैया, तो कैसे बनें स्वस्थ नागरिक

इस बिल के सेक्शन 40 के मुताबिक, विदेशी बीजों के निर्यात पर्यावरण प्रोटेक्शन एक्ट के तहत किया जायेगा. इसके तहत विदेश से मंगाये गये बीजों को देश में आने के 21 दिन तक अलग रख कर उन पर शोध किया जायेगा, जिससे ये पता चल सकेगा कि ये बीज स्थानीय मौसम, मिट्टी आदी के लिये कितने उपयुक्त हैं. इसके बाद ही इन बीजों को बाजारों में बिक्री की इजाजत मिलेगी. इस तरह के नियमों की मांग किसान संगठन लंबे समय से कर रहे हैं.

आमतौर पर, बीजों की उर्वरक क्षमता 100 फीसदी, और फसल की गुणवत्ता 80 फीसदी मानी जाती है. इस मानक से नीचे कुछ भी खराब गुणवत्ता मानी जाती है. इस मानक को भी बिल में नियम की तरह जगह देने की मांग हो रही है.

सेक्शन 23 के मुताबिक, बीज बेचने के लाईसेंस और इजाजत केवल कृषि क्षेत्र में स्नातक लोगों को ही दिया जायेगा. जीन शुद्धता, किसानों को घटिया क्वालिटी के बीज बेचना, समय पर बीज न उपल्ब्ध कराने आदि पर एक साल तक की सजा या/और 5000 से 5 लाख तक के जुर्माने का प्रवधान भी है. इससे पहले 2004 के एक्ट में भी 50,000 से 5 लाख तक के जुर्माने का जिक्र है.

संसदीय स्टैंडिंग समीति ने भी अधिक्तम 1 साल तक की सजा या/और 2 लाख से 10 लाख के जुर्माने तक की सिफारिश की है. हांलाकि, 2019 के मसौदे में सजा के प्रावधान को हल्का किया गया है. संसदीय समिति ने इन पर दोबारा विचार करने की सिफारिश की है.

इसके अलावा ये भी सुझाव दिया गया है कि जो कंपनियां इस तरह के गैरकानूनी कामों में लिप्त पाई जाती हैं उनके लाइसेंस हमेशा के लिये रद्द कर देने चाहिए.

आशा कर्मचारियों, रायथू स्वराज्य वेदिका और अखिल भारत रायथू संघ ने केंद्रीय कृषि मंत्रालय को कई सुझाव दिये हैं. अगर नए मसौदे को कानून की शक्ल देने से पहले इन सुझावों पर गौर किय़ा गया तो किसानों को काफी मदद हो सकेगी.

किसानों को हक

गौरतलब है कि मौजूदा बीज विधेयक 1966 में लागू हुआ था और यह आज भी लागू है. इसके नतीजतन अधिक्तर बीज निर्माता कंपनियां बीज बनाने के पीछे शोध को लेकर पूरी पार्दर्शिता नहीं बरतती हैं.

इसी तरह यह कंपनियां कृषि मंत्रालय से भी बीज उत्पाद को लेकर भी जानकारियां साझा नहीं करती हैं, जिसके चलते कृषि विभाग के पास खुले बाजार में मौजूद बीजों को लेकर सारी जानकारियां नही होती हैं. ऐसी कंपनियां उन बिचौलियों को भी बढ़ावा देती हैं, जो किसानों को खराब बीज बाजार से खरीदने के लिये उकसाते हैं.

नतीजतन मुआवजा देने के समय बीज कंपनियां यह कहकर अपना पल्ला झाड़ लेती हैं कि किसानों ने ये बीज कंपनी से सीधे नहीं खरीदे हैं. और इसके कारण किसानों को भारी दिक्कतों का सामन करना पड़ता है. किसान संगठनों का मानना है कि कृषि विभाग को ऐसे हालातों में किसानों के साथ खड़े होने की जरूरत है.

जेनिटक्ली मॉडिफाइड बीजों के उत्पाद के मामले भी कंपनियां सरकार से एक तरह के बीजों के उत्पादन का लाइसेंस लेकर कई तरह के गैरकानूनी बीजों का निर्माण करती हैं. इस तरह के गैर कानूनी बीजों का प्रयोग किसानों पर होता है, जो ज्यादातर किसानों को भारी नुकसान देकर जाती हैं.

हांलाकि, इस तरह के कामों को रोकने के लिए कई तरह के कानून मौजूद हैं, लेकिन सिस्टम की खामियों के चलते यह कंपनियां बच निकलती हैं. हर बीज का सरकार के पास रिकॉर्ड और पंजीकरण होना जरूरी है. इसके बाद ही किसान को बढ़िया बीज मुहैया कराये जा सकते हैं. इसके बाद अगर कोई किसान अपने दम पर बीज की कोई उन्नत प्रजाति बनाते है तो वो उसे बाकी किसानों को बेच सकता है.

अपने बीजों को बेचते समय कंपनियां बीजों की उत्पाद क्षमता को लेकर कई बड़े दावे करती हैं. लेकिन ज्यादातर इन दावों और जमीनी हकीकत में, जमीन आसमान का फर्क होता है. ऐसे हालातों में जरूरत है कि सरकार किसानों के साथ खड़ी रहे और ऐसी कंपनियों पर सख्त एक्शन ले. ऐसे मामले में सरकार के पास शक्ति होगी तभी किसानों का भला हो सकेगा.

जब भी कोई अंतर्राष्ट्रीय कंपनी भारतीय बाजार में उतरती है, तो यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि ऐसी कंपनियों के उत्पाद से किसानों का भला हो न कि उन कंपनियों का. कंपनियों को सब्सिडी का फायदा लेकर मुनाफा कमाने की इजाजत नही मिलनी चाहिए.

वहीं, इन कंपनियों के भारत में आने के पीछे किसान समुदाय का विकास होना चाहिए. सभी किसान संगठनों का मानना है कि इस बात को नए मसौदे में जगह देकर कानून का रूप देने की जरूरत है.

इसके साथ साथ सभी निजी कंपनियों द्वारा बीज निर्माण को लेकर दामों को भी काबू में रखने की जरूरत है. ऐसी कोई भी कंपनी जो खराब बीज बेचकर किसानों को ठगने का काम करे, उन्हें कानून के दायरे में लाकर सख्त सजा देने की जरूरत है. ऐसी कंपनियों के लाइसेंस रद्द कर यह सुनिश्चित किया जाना चाहिये कि यह कंपनियां किसी और नाम से बाजार में अपने उत्पाद न बेच सके.

स्थानीय बीज प्राधिकरण हो या कोई और निजि कंपनी, बीज उत्पाद का काम सख्त कानूनी दायरे में रहकर होना चाहिए.

नकली बीजों पर रोक की कमी

किसान आमतौर पर फसलों की कटाई के बाद बचे बीजों को साफ करके अगली बार इस्तेमाल करते हैं. हांलाकि, यह सिर्फ सीधी फसलों और रिपीट फसलों पर लागू होता है, हाईब्रिड फसलों पर नही. हाईब्रिड किस्म की फसलों को बुवाई से ठीक पहले विकसित किया जाता है. इसलिए नई फसलों की बुवाई के लिये बीजों की उपल्ब्धता के लिए किसान निजि कंपनियों पर निर्भर रहते हैं.

भारत बीज निर्माण के मामले में विश्व में आगे नहीं है पर बीज इस्तेमाल के मामले में भारत विश्व में काफी आगे है. इसलिए, देशी और विदेशी कंपनियां सरकारी अधिकारियों से मनचाहे नियमों को लागू करवाने के लिये लगातार लॉबी करते रहते हैं, ताकी देश के सबसे बड़े तबके, किसानों को अपने बीज बेचे जा सके.

साल 2002 में तत्कालीन यूपीए सरकार ने एक सीड एक्ट लाकर किसानों के हितों की रक्षा करने की कोशिश की थी. इसके बाद 2004 में भी आंक्षिक तौर पर एक मसौदा लाया गया था. लेकिन इतने सालों से राजनीतिक इच्छा शक्ति की कमी के कारण यह मसौदा संसद के गलियारों में अपने लिए जगह नही बना सका है.

2010 में दोबारा, संसदीय समिति की सिफारिशों पर इस मुद्दे पर सभी राज्य सरकारों को सुझाव देने के लिए कहा गया था. अब ये ड्राफ्ट बिल करीब करीब तैयार है और इसमें सुझावों को भी जगह मिलेगी.

हांलाकि, कई किसान संघठनों ने इस मसौदे को यह कहते हुए खारिज कर दिया है कि इसे निजि बीज कंपनियों के हितों को ध्यान में रखकर बनाया गया है. अंदेशा है कि निजि कंपनियों द्वारा की गई लॉबीईंग के नतीजतन ऐसा हुआ है.

अब यह देखना है कि क्या मौजूदा मोदी सरकार किसानों की उम्मीदों पर खरा उतरते हुए, किसान हितों कि रक्षा करने वाले बीज एक्ट 2019 ला सकेगी? अगर ऐसा होता है तो देश के करोड़ों किसानों के जीवन में सुधार का एक रास्ता खुल सकेगा.

खेती देश के किसानों के लिये जीवन व्यापन का एक मात्र तरीका है. हालांकि, पिछले दिनों खेती के कारण ही किसान परेशानी की जिंदगी जीने को मजबूर है. यह आश्चर्य की ही बात है कि किसान और खेती पर निर्भर होने वाले बिचौलिए, व्यापारी आदि सभी अच्छा मुनाफा कमाते हैं पर किसान बदहाली का जीवन जीने को मजबूर है.

बीज खरीदने से लेकर उत्पाद को बेचने तक किसानों की मदद करने के लिये कोई ठोस कानून मौजूद नहीं है. बीज एक्ट इसका एक उद्दारण है. सरकारी बीज कंपनियों के समय बने नियम और कानून आज भी ऐसे समय में चल रहे हैं जब निजि कंपनियां इस क्षेत्र में तेजी से फैल रही हैं.

यह कानून जो किसानों की रक्षा के लिये बनाये गए थे वह आज निजि कंपनियों के लिए फायदेमंद ओर किसानों के लिए परेशानी का सबब बन गये हैं. इस सिस्टम में मौजूद खामियां किसानों को बर्बाद करने में लगी हुई हैं.

दशकों से इस मुद्दे पर राजनेताओं ने ध्यान नहीं दिया है और आज यह किसानों की परेशानी का सबसे बड़ा कारण बन गई है. अब जबकि मौजूदा सरकार एक नये विधेयक का मसौदा पेश करने की तैयारी में है, ऐसे में किसानों को कुछ उम्मीद जगी है.

new seed bill for farmers
बीज बिल से किसानों के लिए होंगे कई बदलाव

किसानों का मानना है कि दशकों से बदहाल किसानों के मुद्दों को सही करने के लिये ये एक बड़ा कदम हो सकता है.

मौजूदा बीज विधेयक के मुताबिक, किसान बीज की गुणवत्ता के बारे में शिकायत करा सकते हैं. केंद्रीय बीज समिति को इन शिकायतों की जांच करने का अधिकार भी है. हांलाकि, विधायक में मौजूद कानूनों की कमियों के कारण ज्यादातर बिचौलिये इसकी खामियों का फायदा उठाकर बच निकलते हैं.

पढ़ें- सियाचिन को पर्यटकों के लिए खोलने के फैसले पर बौखलाया पाकिस्तान, उठाया सवाल

केवल कुछ बड़े मामलों में ये विधेयक किसानो के हितो की रक्षा करने में कामयाब रहा है. कुछ मामलों में निजि लाइसेंस भी निरस्त किये गये. लेकिन इसके बावजूद कंपनियां फर्जी नामों से रीपैकिंग करके इन खराब बीजों को बाजार में बेच रही हैं. इन कंपनियों और सरकारी अधिकारियों की मिलीभगत के चलते इन फर्जी कंपनियों को दोबारा लाईसेंस मिल जाता है.

इन सभी कारणों के चलते किसान बदहाली और परेशानी का जीवन जीने को मजबूर हैं. कई नकली कंपनियां खराब गुणवत्ता के बीजों को नामी कंपनियों की पैकिंग कर बाजार में बेच रही हैं. इन सभी को तभी रोका जा सकता है जब विजिलेंस विभाग पूरी सतर्कता के साथ काम करे.

2004 की संसदीय स्टैंडिंग कमेटी ने मौजूदा बीज विधेयक के लिये कई सुझाव दिए थे. हांलाकि, इन सुझावों को मौजूदा सरकार द्वारा तैयार किये जा रहे मसौदे में जगह नहीं मिली है. सरकार इस समय देशभर से इस मसौदे पर सुझाव मांग रही है.

पढ़ें- मंदी से निपटने के लिए निवेश बढ़ाना जरूरी

बीज विधेयक 2019 के सेक्शन 21 के मुताबिक, बीज का गुणवत्ता में किसानों के साथ अगर कोई धोखाधड़ी होती है, तो किसान को ऐसा करने वाली कंपनी से उपभोक्ता कानून के तहत मुआवजा मिल सकेगा.

हालांकि, इससे किसान के पूरे नुकसान की भरपाई नहीं हो सकेगी, क्योंकि कंपनी किसान को केवल बीज की कीमत और उस पर ब्याज देने के लिये बाध्य होगी.

वहीं, किसान खराब बीज इस्तेमाल करने के कारण न केवल उत्पाद में मार झेलता है, बल्कि ऐसे बीजों के इस्तेमाल के कारण उसकी मेहनत और समय भी बर्बाद होती है. इसके बाद अदालतों के चक्कर काटने में किसानों का और समय और पैसा बर्बाद होता है. इसलिए यह जरूरी है कि उपभोक्ता अदालतें ऐसे मामलो में फैसला सुनाने से पहले इन सभी बिंदुओ पर सोच विचार करें.

किसान आने वाले नए बिल मे इस तरह के बदलावओं की उम्मीद कर रहे हैं. किसान संगठनों का ये भी मानना है कि ऐसी समितियों में किसानों को भी जगह मिलनी चाहिये ताकि किसानों के मामले मे एक मानवीय पक्ष भी रखा जा सके.

नए मसौदे में कंपनियों द्वारा खुद अपने बीजों के सर्टिफिकेशन पर भी रोक लगाने का प्रवधान रखा गया है, इस कदम को किसानों की तरफ से व्यापक समर्थन मिला है.

हालांकि, नये मसौदे में व्यवसायिक फसलों के बीजों के दाम नियंत्रण पर समिति का अधिकार काफी सीमित रखा गया है. इससे किसानों को ज्यादा मदद मिलने की उम्मीद नही है. इसलिए ये जरूरी है कि राज्य सरकारें बीजों के दाम पर नियंत्रण रखने की जिम्मेदारी लें.

पढ़ें- जब कुपोषण के खिलाफ ढीला है रवैया, तो कैसे बनें स्वस्थ नागरिक

इस बिल के सेक्शन 40 के मुताबिक, विदेशी बीजों के निर्यात पर्यावरण प्रोटेक्शन एक्ट के तहत किया जायेगा. इसके तहत विदेश से मंगाये गये बीजों को देश में आने के 21 दिन तक अलग रख कर उन पर शोध किया जायेगा, जिससे ये पता चल सकेगा कि ये बीज स्थानीय मौसम, मिट्टी आदी के लिये कितने उपयुक्त हैं. इसके बाद ही इन बीजों को बाजारों में बिक्री की इजाजत मिलेगी. इस तरह के नियमों की मांग किसान संगठन लंबे समय से कर रहे हैं.

आमतौर पर, बीजों की उर्वरक क्षमता 100 फीसदी, और फसल की गुणवत्ता 80 फीसदी मानी जाती है. इस मानक से नीचे कुछ भी खराब गुणवत्ता मानी जाती है. इस मानक को भी बिल में नियम की तरह जगह देने की मांग हो रही है.

सेक्शन 23 के मुताबिक, बीज बेचने के लाईसेंस और इजाजत केवल कृषि क्षेत्र में स्नातक लोगों को ही दिया जायेगा. जीन शुद्धता, किसानों को घटिया क्वालिटी के बीज बेचना, समय पर बीज न उपल्ब्ध कराने आदि पर एक साल तक की सजा या/और 5000 से 5 लाख तक के जुर्माने का प्रवधान भी है. इससे पहले 2004 के एक्ट में भी 50,000 से 5 लाख तक के जुर्माने का जिक्र है.

संसदीय स्टैंडिंग समीति ने भी अधिक्तम 1 साल तक की सजा या/और 2 लाख से 10 लाख के जुर्माने तक की सिफारिश की है. हांलाकि, 2019 के मसौदे में सजा के प्रावधान को हल्का किया गया है. संसदीय समिति ने इन पर दोबारा विचार करने की सिफारिश की है.

इसके अलावा ये भी सुझाव दिया गया है कि जो कंपनियां इस तरह के गैरकानूनी कामों में लिप्त पाई जाती हैं उनके लाइसेंस हमेशा के लिये रद्द कर देने चाहिए.

आशा कर्मचारियों, रायथू स्वराज्य वेदिका और अखिल भारत रायथू संघ ने केंद्रीय कृषि मंत्रालय को कई सुझाव दिये हैं. अगर नए मसौदे को कानून की शक्ल देने से पहले इन सुझावों पर गौर किय़ा गया तो किसानों को काफी मदद हो सकेगी.

किसानों को हक

गौरतलब है कि मौजूदा बीज विधेयक 1966 में लागू हुआ था और यह आज भी लागू है. इसके नतीजतन अधिक्तर बीज निर्माता कंपनियां बीज बनाने के पीछे शोध को लेकर पूरी पार्दर्शिता नहीं बरतती हैं.

इसी तरह यह कंपनियां कृषि मंत्रालय से भी बीज उत्पाद को लेकर भी जानकारियां साझा नहीं करती हैं, जिसके चलते कृषि विभाग के पास खुले बाजार में मौजूद बीजों को लेकर सारी जानकारियां नही होती हैं. ऐसी कंपनियां उन बिचौलियों को भी बढ़ावा देती हैं, जो किसानों को खराब बीज बाजार से खरीदने के लिये उकसाते हैं.

नतीजतन मुआवजा देने के समय बीज कंपनियां यह कहकर अपना पल्ला झाड़ लेती हैं कि किसानों ने ये बीज कंपनी से सीधे नहीं खरीदे हैं. और इसके कारण किसानों को भारी दिक्कतों का सामन करना पड़ता है. किसान संगठनों का मानना है कि कृषि विभाग को ऐसे हालातों में किसानों के साथ खड़े होने की जरूरत है.

जेनिटक्ली मॉडिफाइड बीजों के उत्पाद के मामले भी कंपनियां सरकार से एक तरह के बीजों के उत्पादन का लाइसेंस लेकर कई तरह के गैरकानूनी बीजों का निर्माण करती हैं. इस तरह के गैर कानूनी बीजों का प्रयोग किसानों पर होता है, जो ज्यादातर किसानों को भारी नुकसान देकर जाती हैं.

हांलाकि, इस तरह के कामों को रोकने के लिए कई तरह के कानून मौजूद हैं, लेकिन सिस्टम की खामियों के चलते यह कंपनियां बच निकलती हैं. हर बीज का सरकार के पास रिकॉर्ड और पंजीकरण होना जरूरी है. इसके बाद ही किसान को बढ़िया बीज मुहैया कराये जा सकते हैं. इसके बाद अगर कोई किसान अपने दम पर बीज की कोई उन्नत प्रजाति बनाते है तो वो उसे बाकी किसानों को बेच सकता है.

अपने बीजों को बेचते समय कंपनियां बीजों की उत्पाद क्षमता को लेकर कई बड़े दावे करती हैं. लेकिन ज्यादातर इन दावों और जमीनी हकीकत में, जमीन आसमान का फर्क होता है. ऐसे हालातों में जरूरत है कि सरकार किसानों के साथ खड़ी रहे और ऐसी कंपनियों पर सख्त एक्शन ले. ऐसे मामले में सरकार के पास शक्ति होगी तभी किसानों का भला हो सकेगा.

जब भी कोई अंतर्राष्ट्रीय कंपनी भारतीय बाजार में उतरती है, तो यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि ऐसी कंपनियों के उत्पाद से किसानों का भला हो न कि उन कंपनियों का. कंपनियों को सब्सिडी का फायदा लेकर मुनाफा कमाने की इजाजत नही मिलनी चाहिए.

वहीं, इन कंपनियों के भारत में आने के पीछे किसान समुदाय का विकास होना चाहिए. सभी किसान संगठनों का मानना है कि इस बात को नए मसौदे में जगह देकर कानून का रूप देने की जरूरत है.

इसके साथ साथ सभी निजी कंपनियों द्वारा बीज निर्माण को लेकर दामों को भी काबू में रखने की जरूरत है. ऐसी कोई भी कंपनी जो खराब बीज बेचकर किसानों को ठगने का काम करे, उन्हें कानून के दायरे में लाकर सख्त सजा देने की जरूरत है. ऐसी कंपनियों के लाइसेंस रद्द कर यह सुनिश्चित किया जाना चाहिये कि यह कंपनियां किसी और नाम से बाजार में अपने उत्पाद न बेच सके.

स्थानीय बीज प्राधिकरण हो या कोई और निजि कंपनी, बीज उत्पाद का काम सख्त कानूनी दायरे में रहकर होना चाहिए.

नकली बीजों पर रोक की कमी

किसान आमतौर पर फसलों की कटाई के बाद बचे बीजों को साफ करके अगली बार इस्तेमाल करते हैं. हांलाकि, यह सिर्फ सीधी फसलों और रिपीट फसलों पर लागू होता है, हाईब्रिड फसलों पर नही. हाईब्रिड किस्म की फसलों को बुवाई से ठीक पहले विकसित किया जाता है. इसलिए नई फसलों की बुवाई के लिये बीजों की उपल्ब्धता के लिए किसान निजि कंपनियों पर निर्भर रहते हैं.

भारत बीज निर्माण के मामले में विश्व में आगे नहीं है पर बीज इस्तेमाल के मामले में भारत विश्व में काफी आगे है. इसलिए, देशी और विदेशी कंपनियां सरकारी अधिकारियों से मनचाहे नियमों को लागू करवाने के लिये लगातार लॉबी करते रहते हैं, ताकी देश के सबसे बड़े तबके, किसानों को अपने बीज बेचे जा सके.

साल 2002 में तत्कालीन यूपीए सरकार ने एक सीड एक्ट लाकर किसानों के हितों की रक्षा करने की कोशिश की थी. इसके बाद 2004 में भी आंक्षिक तौर पर एक मसौदा लाया गया था. लेकिन इतने सालों से राजनीतिक इच्छा शक्ति की कमी के कारण यह मसौदा संसद के गलियारों में अपने लिए जगह नही बना सका है.

2010 में दोबारा, संसदीय समिति की सिफारिशों पर इस मुद्दे पर सभी राज्य सरकारों को सुझाव देने के लिए कहा गया था. अब ये ड्राफ्ट बिल करीब करीब तैयार है और इसमें सुझावों को भी जगह मिलेगी.

हांलाकि, कई किसान संघठनों ने इस मसौदे को यह कहते हुए खारिज कर दिया है कि इसे निजि बीज कंपनियों के हितों को ध्यान में रखकर बनाया गया है. अंदेशा है कि निजि कंपनियों द्वारा की गई लॉबीईंग के नतीजतन ऐसा हुआ है.

अब यह देखना है कि क्या मौजूदा मोदी सरकार किसानों की उम्मीदों पर खरा उतरते हुए, किसान हितों कि रक्षा करने वाले बीज एक्ट 2019 ला सकेगी? अगर ऐसा होता है तो देश के करोड़ों किसानों के जीवन में सुधार का एक रास्ता खुल सकेगा.

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किसानों की मांग है नये बीज बिल की



खेती देश के किसानों के लिये जीवन व्यापन का एक मात्र तरीका है. हांलाकि पिछले दिनों खेती के कारण ही किसान परेशानी की जिंदगी जीने को मजबूर है.ये आश्चर्य की ही बात है कि किसान और खेती पर निर्भर होने वाले बिचौलिये, व्यापारी आदि सभी अच्छा मुनाफा कमाते हैं पर किसान बदहाली का जीवन जीने को मजबूर है. बीज खरीदने से लेकर उत्पाद को बेचने तक किसानों की मदद करने के लिये कोई ठोस कानून मौजूद नही है. बीज एक्ट इसका एक उद्दारण है. सरकारी बीज कंपनियों के समय बने नियम और कानून आज भी ऐसे समय में चल रहे हैं जब निजि कंपनियां इस क्षेत्र में तेजी से फैल रही हैं. ये कानून जो किसानों की रक्षा के लिये बनाये गये थे वो आज निजि कंपनियों के लिये फायदेमंद ओर किसानों के लिये परेशानी का सबब बन गये हैं. इस सिस्टम में मौजूद खामियां किसानों को बर्बाद करने में लगी हुई हैं. दशकों से इस मुद्दे पर राजनेताओँ ने ध्यान नही दिया है औऱ आज ये किसानों की परेशानी का सबसे बड़ा कारण बन गई है. अब जबकि मौजूदा सरकार एक नये विधेयक का मसौदा पेश करने की तैयारी मे है, किसानों को कुछ उम्मीद जगी है. किसानों का मानना है कि दशकों से बदहाल किसानों के मुद्दों को सही करने के लिये ये एक बड़ा कदम हो सकता है.



मौजूदा बीज विधेयक के मुताबिक, किसान बीज की क्वालिटी के के बारे में शिकायत करा सकते हैं. केंद्रीय बीज समिति को इन शिकायतों की जांच करने का अधिकार भी है. हांलाकि विधायक में मौजूद कानूनों की कमजोरी के कारण ज्यादातर बिचौलिये इसकी खामियों का फायदा उठाकर बच निकलते हैं. केवल कुछ बड़े मामलों में ये विधेयक किसानो के हितो की रक्षा करने में कामयाब रहा है. कुछ मामलों में निजि लाइसेंस भी कैंसिल किये गये. लेकिन इसके बावजूद कंपनिय़ां फर्जी नामों से रीपैकिंग करके इन खराब बीजों को बाजार में बेच रही हैं. इन कंपनियों औऱ सरकारी अधिकारियों की मिलीभगत के चलते इन फर्जी कंपनियों को दोबारा लाईसेंस मिल जाता है.



ये सभी कारणों के चलते रोजाना किसान बदहाली और परेशानी का जीवन जीने को मजबूर हैं. कई नकली कंपनियां खराब क्वालिटी के बीजों को नामी कंपनियों की पैकिंग कर बाजार में बेच रही हैं.



इन सभी को तभी रोका जा सकता है जब विजिलेंस विभाग पूरी सतर्कता के साथ काम करे.



2004 की संसदीय स्टैंडिंग कमेटी ने मौजूदा बीज विधेयक के लिये कई सुझाव दिये थे. हांलाकि इन सुझावों को मौजूदा सरकार द्वारा तैयार किये जा रहे मसौदे में जगह नही मिली है. सरकार इस समय देशभर से इस मसौदे पर सुझाव मांग रही है. बीज विधेयक 2019 के सेक्शन 21 के मुताबिक, बीज क्वालिटी में किसानों के साथ अगर कोई धोखाधड़ी होती है तो किसान को ऐसा करने वाली कंपनी से उपभोक्ता कानून के तहत मुआवजा मिल सकेगा. हालांकि इससे किसान के पूरे नुकसान की भरपाई नही हो सकेगी, क्योंकि कंपनी किसान को केवल बीज की कीमत और उसपर ब्याज देने के लिये बाध्य होगी. वहीं किसान खराब बीज इस्तेमाल करने के कारण न केवल उत्पाद मे मार झेलता है, बल्कि ऐसे बीजों के इस्तेमाल के कारण उसकी मेहनत और समय भी बर्बाद होती है. इसके बाद अदालतों के चक्कर काटने में किसानों का और समय और पैसा बर्बाद होता है. इसलिये ये जरूरी है कि उपभोक्ता अदालतें ऐसे मामलो में फैसला सुनाने से पहले इन सभी बिंदुओ पर सोच विचार करे. किसान आने वाले नये बिल मे इस तरह के बदलावओं की उम्मीद कर रहे हैं. किसान संगठनों का ये भी मानना है कि ऐसी समितियों में किसानों को भी जगह मिलनी चाहिये ताकि किसानों के मामले मे एक मानवीय पक्ष भी रखा जा सके.



नये मसौदे में कंपनियों द्वारा खुद अपने बीजों के सर्टिफिकेशन पर भी रोक लगाने का प्रवधान रखा गया है, इस कदम को किसानों की तरफ से व्यापक समर्थन मिला है.



हालांकि नये मसौदे में व्यवसायिक फसलों के बीजों के दाम नियंत्रण पर समिति का अधिकार काफी सीमित रखा गया है. इससे किसानों को ज्यादा मदद मिलने की उम्मीद नही है. इसलिये ये जरूरी है कि राज्य सरकारें बीजों के दाम पर नियंत्रण रखने की जिम्मेदारी ले. इस बिल के सेक्शन 40 के मुताबिक, विदेशी बीजों के निर्यात पर्यावरण प्रोटेक्शन एक्ट के तहत किया जायेगा. इसके तहत विदेश से मंगाये गये बीजों को देश में आने के 21 दिन तक अलग रख कर उन पर शोध किया जायेगा, जिससे ये पता चल सकेगा कि ये बीज स्थानीय मौसम, मिट्टी आदी के लिये कितने उपयुक्त हैं. इसके बाद ही इन बीजों को बाजारों में बिक्री की इजाजत मिलेगी. इस तरह के नियमों की मांग किसान संगठन लंबे समय से कर रहे हैं.



आमतौर पर, बीजों की उर्वरक क्षमता 100 फीसदी, और फसल की क्वालिटी 80 फीसदी मानी जाती है. इस मानक से नीचे कुछ भी खराब क्वालिटी मानी जाती है. इस मानक को भी बिल में नियम की तरह जगह देने की मांग हो रही है. सेक्शन 23 के मुताबिक, बीज बेचने के लाईसेंस और इजाजत केवल कृषि क्षेत्र में स्नातक लोगों को ही दिया जायेगा. जीन शुद्धता, किसानों को घटिया क्वालिटी के बीज बेचना, समय पर बीज न उपल्ब्ध कराने आदि पर एक साल तक की सजा या/और 5000 से 5 लाख तक के जुर्माने का प्रवधान भी है. इससे पहले 2004 के एक्ट में भी 50,000 से 5 लाख तक के जुर्माने का जिक्र है. संसदीय  स्टैंडिंग समीति ने भी अधिक्तम 1 साल तक की सजा या/और 2 लाख से 10 लाख के जुर्माने तक की सिफारिश की है. हांलाकि 2019 के मसौदे में सजा के प्रावधान को हल्का किया गया है. संसदीय समिति ने इन पर दोबारा विचार करने की सिफारिश की है. इसके अलावा ये भी सुझाव दिया गया है कि जो कंपनियां इस तरह के गैरकानूनी कामों में लिप्त पाई जाती हैं उनके लाइसेंस हमेशा के लिये रद्द कर देने चाहिये.



आशा कर्मचारियों, रायथू स्वराज्य वेदिका और अखिल भारत रायथू संघ ने केंद्रीय कृषि मंत्रालय को कई सुझाव दिये हैं. अगर नये मसौदे को कानून की शक्ल देने से पहले इन सुझावों पर गौर किय़ा गया तो किसानों को काफी मदद हो सकेगी.



किसानों को हक



गौरतलब है कि मौजूदा बीज विधेयक 1966 में लागू हुआ था और ये आज भी लागू है. इसके नतीजतन अधिक्तर बीज निर्माता कंपनियां बीज बनाने के पीछे शोध को लेकर पूरी पार्दर्शिता नहीं बरतती हैं. इसी तरह ये कंपनियां कृषि मंत्रालय से भी बीज उत्पाद को लेकर भी जानकारियां साझा नहीं करती हैं. जिसके चलते कृषि विभाग के पास खुले बाजार में मौजूद बीजों को लेकर सारी जानकारियां नही होती हैं. ऐसी कंमपनियां उन बिचौलियों को भी बढ़ावा देती हैं जो किसानों को खराब बीज बाजार से खरीदने के लिये उकसाते हैं. नतीजतन मुआवजा देने के समय बीज कंपनियां ये कहकर अपना पल्ला झाड़ लेती हैं कि किसानों ने ये बीज कंपनी से सीधे नही खरीदे हैं. और इसके कारण किसानों को भारी दिक्कतों का सामन करना पड़ता है. किसान संगठनों का मानना है कि कृषि विभाग को ऐसे हालातों में किसानों के साथ खड़े होने की जरूरत है.



जेनिटक्ली मॉडिफाइड बीजों के उत्पाद के मामले भी कंपनियां सरकार से एक तरह के बीजों के उत्पादन का लाइसेंस लेकर कई तरह के गैरकानूनी बीजों का निर्माण करती हैं. इस तरह के गैर कानूनी बीजों का प्रयोग किसानों पर होता है जो ज्यादातर किसानों को भारी नुकसान देकर जाती हैं.  हांलाकि इस तरह के कामों को रोकने के लिये कई तरह के कानून मौजूद हैं, लेकिन सिस्टम की खामियों के चलते ये कंपनियां बच निकलती हैं. हर बीज का सरकार के बास रिकॉर्ड और पंजीकरण होना जरूरी है. इसके बाद ही किसान को बढ़िया बीज मुहैया कराये जा सकते हैं. इसके बाद अगर कोई किसान अपने दम पर बीज की कोई उन्नत प्रजाति बनाते है तो वो उसे बाकी किसानों को बेच सकता है.



अपने बीजों को बेचते समय कंपनियां बीजों की उत्पाद क्षमता को लेकर कई बड़े दावे करती हैं. लेकिन ज्यादातर इन दावों और जमीनी हकीकत में जमीन आसमान का फर्क होता है. एसे हालातों में जरूरत है कि सरकार किसानों के साथ खड़ी रहे और ऐसी कंपनियां पर सख्त एक्शन ले. ऐसे मामले में सरकार के पास शक्ति होगी तभी किसानों का भला हो सकेगा. 



जब भी कोई अंतर्राष्ट्रीय कंपनी भारतीय बाजार में उतरती है तो ये सुनिश्चित करना जरूरी है कि ऐसी कंपनियों के उत्पाद से किसानों का भला हो न कि उन कंपनियों का. कंपनियों को सब्सिडी का फायदा लेकर मुनाफा कमाने की इजाजत नही मिलनी चाहिये. वहीं इन कंपनियों के भारत में आने के पीछे किसान समुदाय का विकास होना चाहिये. सभी किसान संगठनों का मानना है कि इस बात को नये मसौदे में जगह देकर कानून का रूप देने की जरूरत है.



इसके साथ साथ सभी निजी कंपनियों द्वारा बीज निर्माण को लेकर दामों को भी काबू में रखने की जरूरत है. ऐसी कोई भी कंपनी जो खराब बीज बेचकर किसानों को ठगने का काम करें उन्हें कानून के दायरे में लाकर सख्त सजा देने की जरूरत है. ऐसी कंपनियों के लाइसेंस रद्द कर ये सुनिश्चित किया जाना चाहिये कि ये कंपनियां किसी और नाम से बाजार में अपने उत्पाद न बेच सके.



स्थानीय बीज प्राधिकरण हो या कोई और निजि कंपनी, बीज उत्पाद का काम सख्त कानूनी दायरे में रहकर होना चाहिये.



नकली बीजों पर रोक की कमी



किसान आमतौर पर फसलों की कटाई के बाद बचे बीजों को साफ करके अगली बार इस्तेमाल करते हैं. हांलाकि ये सिर्फ सीधी फसलों और रिपीट फसलों पर लागू होता है, हाईब्रिड फसलों पर नही. हाईब्रिड किस्म की फसलों को बुवाई से ठीक पहले विकसित किया जाता है. इसलिये नई फसलों की बुवाई के लिये बीजों की उपल्ब्धता के लिये किसान निजि कंपनियों पर निर्भर रहते हैं.



भारत बीज निर्माण के मामले में विश्व में आगे नही है पर बीज इस्तेमाल के मामले में भारत विश्व में काफी आगे है. इसलिये देशी और विदेशी कंपनियां सरकारी अधिकारियों से मनचाहे नियमों को लागू करवाने के लिये लगातार लॉबी करते रहते हैं, ताकी देश के सबसे बड़े तबके, किसानों को अपने बीज बेचे जा सके.



साल 2002 में तत्कालीन यूपीए सरकार ने एक सीड एक्ट लाकर किसानों के हितों की रक्षा करने की कोशिश की थी. इसके बाद 2004 में भी आंक्षिक तौर पर एक मसौदा लाया गया था. लेकिन इतने सालों से राजनीतिक इच्छा शक्ति की कमी के कारण ये मसौदा संसद के गलियारों में अपने लिये जगह नही बना सका है.



2010 में दोबारा, संसदीय समिति की सिफारिशों पर इस मुद्दे पर सभी राज्य सरकारों को सुझाव देने के लिये कहा गया था. अब ये ड्राफ्ट बिल करीब करीब तैयार है और इसमें सुझावों को भी जगह मिलेगी.



हांलाकि, कई किसान संघठनों ने इस मसौदे को ये कहते हुए खारिज कर दिया है कि इसे निजि बीज कंपनियों के हितो को ध्यान में रखकर बनाया गया है. अंदेशा है कि निजि कंपनियों द्वारा की गई लॉबीईंग के नतीजतन ऐसा हुआ है.



अब ये देखना है कि क्या मौजूदा मोदी सरकार किसानों की उम्मीदों पर खरा उतरते हुए, किसान हितों कि रक्षा करने वाला बीज   एक्ट 2019 ला सकेगी? अगर ऐसा होता है तो देश के करोड़ों किसानों के जीवन में सुधार का एक रास्ता खुल सकेगा.

 


Conclusion:
Last Updated : Nov 22, 2019, 11:40 PM IST
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