ETV Bharat / bharat

मोदी सरकार की 'एक देश-एक बाजार' नीति के विरोध में किसान संगठन

केंद्र सरकार द्वारा कृषि क्षेत्र में सुधार के लिए लाए गए तीन अध्यादेशों का विरोध शुरू हो गया है. आरएसएस की किसान इकाई भारतीय किसान संघ सहित देशभर के प्रमुख किसान संगठनों का कहना है कि इन कानूनों से ज्यादा फायदा प्राइवेट कंपनियों को होगा. वहीं सरकार का कहना है कि इन तीनों अध्यादेशों से किसान लाभान्वित होंगे. पढ़ें पूरी खबर...

Farmers Unions
भारतीय किसान संघ
author img

By

Published : Jun 14, 2020, 10:31 PM IST

नई दिल्ली : मोदी सरकार ने हाल में कृषि क्षेत्र में सुधार के लिए तीन अध्यादेश पारित किए हैं. केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के अनुसार ये अध्यादेश किसानों के हितों को ध्यान में रखते हुए लाए गए और इसका सबसे ज्यादा फायदा किसानों को होगा. मगर हैरानी की बात ये है कि ज्यादातर किसान नए कानून से या तो अनिभिज्ञ हैं या फिर इनके समर्थन में नहीं हैं.

देशभर के प्रमुख किसान संगठन 'एक देश-एक बाजार' की नीति को अपनाने के सरकार के प्रस्ताव के समर्थन में नहीं हैं. केंद्र सरकार के निर्णय का विरोध कई राज्यों में देखा गया और अब किसान संगठनों ने इस पर चर्चा भी शुरू कर दी है. ज्यादातर किसान नेताओं और विशेषज्ञों का मानना है कि इन नए कानूनों का लाभ सिर्फ प्राइवेट कंपनियों या बड़े कॉर्पोरेट घरानों को होगा. आरएसएस की किसान इकाई भारतीय किसान संघ ने भी कृषि सुधार का समर्थन नहीं किया है.

शनिवार को अखिल भारतीय किसान महासंघ (AIFA) ने 'एक देश एक बाजार' और कृषि क्षेत्र में सुधार के नाम पर लाए गए अध्यादेशों पर एक ऑनलाइन चर्चा का आयोजन किया जिसमें कई किसान संगठन के प्रमुख नेता शामिल हुए. अखिल भारतीय किसान महासंघ के राष्ट्रीय संयोजक डॉ. राजाराम त्रिपाठी ने कहा कि कृषि सुधार कानून के आने से किसानों के बीच भय और असमंजस की स्थिति है. ये कानून किसानों के हित में नहीं हैं और आखिरकार इन कानूनों से कृषि क्षेत्र और अनाज मंडियों पर निजी क्षेत्र का कब्जा हो जाएगा और कॉरपोरेट को इसका फायदा मिलेगा.

राजाराम त्रिपाठी का यह भी कहना है कि इन अध्यादेशों को कोरोना काल में संकट के बीच जल्दबाजी में लाया गया और किसान संगठनों से सरकार ने कोई चर्चा नहीं की. ऐसे में सरकार की मंशा पर किसानों को संदेह पैदा होगा. जब व्यापार क्षेत्र से जुड़े सुधार से पहले सरकार CII और FICCI जैसे संस्थाओं से संपर्क कर सकती है तो कृषि क्षेत्र से जुड़े सुधारों के लिए किसान संगठनों से क्यों नहीं?

अंतरराष्ट्रीय कृषि एवं खाद्य परिषद (ICFA) के अध्यक्ष एमजे खान ने ईटीवी भारत से बातचीत में कहा कि सरकार कृषि सुधार के लिए लाए गए कानूनों को ऐतिहासिक बता रही है, लेकिन किसानों में इस विषय पर संदेह की स्थिति है. ऐसा इसलिए, क्योंकि सरकार और किसानों के बीच संवादहीनता है. सरकार को किसानों के बीच विश्वास पैदा करने के लिए उनसे सीधा संवाद करना चाहिए. विशेषकर बड़े सुधार के लिए कानून बनाने से पहले किसान संगठनों से इस पर चर्चा होनी चाहिए थी न कि उद्योग और व्यापार जगत से संबंधित लोगों या संस्थाओं से.

उन्होंने आगे कहा कि अब ये अध्यादेश कानून बन चुके हैं, ऐसे में सरकार को देखना होगा कि किस तरह से वो किसानों को इसके प्रति जागरूक करती है और उन्हें मनाने में सफल होती है कि इन कानूनों से किसानों का भी फायदा होगा. प्राथमिक तौर पर तो यही लग रहा है कि इन कानूनों से ज्यादा फायदा प्राइवेट कंपनियों को होगा.

वहीं, भारतीय कृषक समाज के अध्यक्ष कृष्णबीर चौधरी ने सरकार के द्वारा लाए गए अध्यादेशों का स्वागत किया है. साथ ही उन्होंने कहा कि किसी भी स्थिति में कॉरपोरेट का एकाधिकार न हो, सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा. चौधरी ने कहा कि सरकार ने किसानों के लिए बाजार खोलने का काम किया है, आज तक सरकारें बहुत आईं और गईं, लेकिन किसी ने ऐसा नहीं किया था और यह अच्छी शुरुआत है लेकिन इस पर कुछ नियंत्रण भी रखना होगा. अब सरकार को किसानों के लिए दाम भी सुनिश्चित करना होगा.

उन्होंने आगे कहा कि कानून में सुधार करते हुए इसके लिए निश्चित खरीदी मूल्य (CRP) तय करना होगा और उसके साथ ही तय कीमत पर खरीद न करने की स्थिति में दंड और जुर्माने का प्रावधान करना होगा. कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग से जुड़े विवादों के निपटारे के लिए जिला, प्रदेश और राष्ट्रीय स्तर पर अथॉरिटी बनानी होगी जिसमें कम से कम चार किसान प्रतिनिधि भी शामिल हों. किसी भी तरह के विवाद की स्थिति में किसान को डीएम और एसडीएम के कार्यालय के चक्कर न लगाने पड़े.

भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत भी मानते हैं कि सरकार ने अध्यादेश लाने से पहले किसानों से कोई चर्चा नहीं की. उन्होंने कहा कि ज्यादातर किसानों को इस बात की जानकारी ही नहीं है कि क्या सुधार लाए गए हैं और कौन से कानून बनाए गए हैं. राज्यों में किस तरह से ये कानून लागू होंगे और अलग-अलग श्रेणी के किसानों को किस तरह से इसका लाभ मिलेगा. ये स्पष्टता नहीं है. सरकार को किसान संगठनों के साथ इस पर चर्चा करनी चाहिए थी.

अखिल भारतीय किसान सभा (AIKS) ने पहले ही सरकार के द्वारा किए गए सुधारों पर कड़ा विरोध जताते हुए इसके खिलाफ देशव्यापी आंदोलन की घोषणा भी की है.

बता दें कि केंद्रीय कैबिनेट ने 3 जून को तीन अध्यादेशों को हरी झंडी दी थी. इन अध्यादेशों को 5 जून को राष्ट्रपति की मंजूरी मिल गई थी. सरकार ने अब तक तीनों अध्यादेशों पर अधिसूचना जारी करते हुए उन्हें लागू भी कर दिया है. कृषि क्षेत्र के तीन अध्यादेश हैं - सशक्तिकरण और संरक्षण कानून- 2020 जो कि मूल्य आश्वासन और कृषि सेवाओं के करारों से संबंधित है. दूसरा अध्यादेश कृषि उत्पाद और व्यापार वाणिज्य कानून (संवर्धन और सुविधा)-2020 और तीसरा आवश्यक वस्तु अधिनियम-2020 में बदलाव है.

सरकार के मुताबिक, इन तीनों अध्यादेशों को लाने से किसान लाभान्वित होंगे, उन्हें अपने फसल को कहीं भी और किसी से भी बेचने की आजादी होगी. निजी निवेश कृषि क्षेत्र में आएगा और किसानों को उचित दाम मिलेगा.

नई दिल्ली : मोदी सरकार ने हाल में कृषि क्षेत्र में सुधार के लिए तीन अध्यादेश पारित किए हैं. केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के अनुसार ये अध्यादेश किसानों के हितों को ध्यान में रखते हुए लाए गए और इसका सबसे ज्यादा फायदा किसानों को होगा. मगर हैरानी की बात ये है कि ज्यादातर किसान नए कानून से या तो अनिभिज्ञ हैं या फिर इनके समर्थन में नहीं हैं.

देशभर के प्रमुख किसान संगठन 'एक देश-एक बाजार' की नीति को अपनाने के सरकार के प्रस्ताव के समर्थन में नहीं हैं. केंद्र सरकार के निर्णय का विरोध कई राज्यों में देखा गया और अब किसान संगठनों ने इस पर चर्चा भी शुरू कर दी है. ज्यादातर किसान नेताओं और विशेषज्ञों का मानना है कि इन नए कानूनों का लाभ सिर्फ प्राइवेट कंपनियों या बड़े कॉर्पोरेट घरानों को होगा. आरएसएस की किसान इकाई भारतीय किसान संघ ने भी कृषि सुधार का समर्थन नहीं किया है.

शनिवार को अखिल भारतीय किसान महासंघ (AIFA) ने 'एक देश एक बाजार' और कृषि क्षेत्र में सुधार के नाम पर लाए गए अध्यादेशों पर एक ऑनलाइन चर्चा का आयोजन किया जिसमें कई किसान संगठन के प्रमुख नेता शामिल हुए. अखिल भारतीय किसान महासंघ के राष्ट्रीय संयोजक डॉ. राजाराम त्रिपाठी ने कहा कि कृषि सुधार कानून के आने से किसानों के बीच भय और असमंजस की स्थिति है. ये कानून किसानों के हित में नहीं हैं और आखिरकार इन कानूनों से कृषि क्षेत्र और अनाज मंडियों पर निजी क्षेत्र का कब्जा हो जाएगा और कॉरपोरेट को इसका फायदा मिलेगा.

राजाराम त्रिपाठी का यह भी कहना है कि इन अध्यादेशों को कोरोना काल में संकट के बीच जल्दबाजी में लाया गया और किसान संगठनों से सरकार ने कोई चर्चा नहीं की. ऐसे में सरकार की मंशा पर किसानों को संदेह पैदा होगा. जब व्यापार क्षेत्र से जुड़े सुधार से पहले सरकार CII और FICCI जैसे संस्थाओं से संपर्क कर सकती है तो कृषि क्षेत्र से जुड़े सुधारों के लिए किसान संगठनों से क्यों नहीं?

अंतरराष्ट्रीय कृषि एवं खाद्य परिषद (ICFA) के अध्यक्ष एमजे खान ने ईटीवी भारत से बातचीत में कहा कि सरकार कृषि सुधार के लिए लाए गए कानूनों को ऐतिहासिक बता रही है, लेकिन किसानों में इस विषय पर संदेह की स्थिति है. ऐसा इसलिए, क्योंकि सरकार और किसानों के बीच संवादहीनता है. सरकार को किसानों के बीच विश्वास पैदा करने के लिए उनसे सीधा संवाद करना चाहिए. विशेषकर बड़े सुधार के लिए कानून बनाने से पहले किसान संगठनों से इस पर चर्चा होनी चाहिए थी न कि उद्योग और व्यापार जगत से संबंधित लोगों या संस्थाओं से.

उन्होंने आगे कहा कि अब ये अध्यादेश कानून बन चुके हैं, ऐसे में सरकार को देखना होगा कि किस तरह से वो किसानों को इसके प्रति जागरूक करती है और उन्हें मनाने में सफल होती है कि इन कानूनों से किसानों का भी फायदा होगा. प्राथमिक तौर पर तो यही लग रहा है कि इन कानूनों से ज्यादा फायदा प्राइवेट कंपनियों को होगा.

वहीं, भारतीय कृषक समाज के अध्यक्ष कृष्णबीर चौधरी ने सरकार के द्वारा लाए गए अध्यादेशों का स्वागत किया है. साथ ही उन्होंने कहा कि किसी भी स्थिति में कॉरपोरेट का एकाधिकार न हो, सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा. चौधरी ने कहा कि सरकार ने किसानों के लिए बाजार खोलने का काम किया है, आज तक सरकारें बहुत आईं और गईं, लेकिन किसी ने ऐसा नहीं किया था और यह अच्छी शुरुआत है लेकिन इस पर कुछ नियंत्रण भी रखना होगा. अब सरकार को किसानों के लिए दाम भी सुनिश्चित करना होगा.

उन्होंने आगे कहा कि कानून में सुधार करते हुए इसके लिए निश्चित खरीदी मूल्य (CRP) तय करना होगा और उसके साथ ही तय कीमत पर खरीद न करने की स्थिति में दंड और जुर्माने का प्रावधान करना होगा. कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग से जुड़े विवादों के निपटारे के लिए जिला, प्रदेश और राष्ट्रीय स्तर पर अथॉरिटी बनानी होगी जिसमें कम से कम चार किसान प्रतिनिधि भी शामिल हों. किसी भी तरह के विवाद की स्थिति में किसान को डीएम और एसडीएम के कार्यालय के चक्कर न लगाने पड़े.

भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत भी मानते हैं कि सरकार ने अध्यादेश लाने से पहले किसानों से कोई चर्चा नहीं की. उन्होंने कहा कि ज्यादातर किसानों को इस बात की जानकारी ही नहीं है कि क्या सुधार लाए गए हैं और कौन से कानून बनाए गए हैं. राज्यों में किस तरह से ये कानून लागू होंगे और अलग-अलग श्रेणी के किसानों को किस तरह से इसका लाभ मिलेगा. ये स्पष्टता नहीं है. सरकार को किसान संगठनों के साथ इस पर चर्चा करनी चाहिए थी.

अखिल भारतीय किसान सभा (AIKS) ने पहले ही सरकार के द्वारा किए गए सुधारों पर कड़ा विरोध जताते हुए इसके खिलाफ देशव्यापी आंदोलन की घोषणा भी की है.

बता दें कि केंद्रीय कैबिनेट ने 3 जून को तीन अध्यादेशों को हरी झंडी दी थी. इन अध्यादेशों को 5 जून को राष्ट्रपति की मंजूरी मिल गई थी. सरकार ने अब तक तीनों अध्यादेशों पर अधिसूचना जारी करते हुए उन्हें लागू भी कर दिया है. कृषि क्षेत्र के तीन अध्यादेश हैं - सशक्तिकरण और संरक्षण कानून- 2020 जो कि मूल्य आश्वासन और कृषि सेवाओं के करारों से संबंधित है. दूसरा अध्यादेश कृषि उत्पाद और व्यापार वाणिज्य कानून (संवर्धन और सुविधा)-2020 और तीसरा आवश्यक वस्तु अधिनियम-2020 में बदलाव है.

सरकार के मुताबिक, इन तीनों अध्यादेशों को लाने से किसान लाभान्वित होंगे, उन्हें अपने फसल को कहीं भी और किसी से भी बेचने की आजादी होगी. निजी निवेश कृषि क्षेत्र में आएगा और किसानों को उचित दाम मिलेगा.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.