नई दिल्ली : श्वेत पुलिस अधिकारी द्वारा अश्वेत अमेरिकन जॉर्ज फ्लॉयड की मौत के बाद संयुक्त राज्य अमेरिका और दुनिया के प्रमुख शहरों में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए.
दरअसल, फ्लॉयड को मिनियापोलिस की एक दुकान के बाहर 25 मई को गिरफ्तार किया गया था. इस दौरान पुलिस अधिकारी डेरेक चाउविन ने फ्लॉयड की गर्दन को लगभग नौ मिनट तक घुटने से दबाए रखा. यहां तक कि फ्लॉयड यह कहते रहे 'मैं सांस नहीं ले सकता' लेकिन फिर भी अधिकारी ने उन्हें दबोचे रखा. बाद में उन्हें अस्पताल में मृत घोषित कर दिया गया.
उल्लेखनीय है कि कोविड-19 महामारी के बीच अमेरिका में अश्वेत समुदाय ने न्याय की मांग को लेकर उग्र प्रदर्शनों और रैलियों के दौरान हंगामा किया.
नौ जून 2020, मंगलवार को फ्लॉयड का सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया गया. अंतिम संस्कार समारोह में अमेरिका में अश्वेत समुदाय के संघर्षों, सदियों से चली आ रही गुलामी के दौर और नागरिक आंदोलन के संघर्ष को भी याद किया गया.
पिछले कुछ वर्षों में #BlackLivesMatter ने तामीर राइस, माइकल ब्राउन और एरिक गार्नर की भी इसी तरह की मौतों को लेकर अमेरिकी राज्यों में लोगों ने अपना विरोध व्यक्त किया है. ताजा विरोध प्रदर्शन ऐसे समय में हुए हैं, जब न्यूयॉर्क में प्रतिबंधों को आसानी से समाप्त किया जा रहा है.
गौर हो कि यह विरोध प्रदर्शन उस समय हो रहा है, जब न्यूयॉर्क में कोविड-19 से काफी अधिक लोगों की मौत हो गई है. आपको बता दें कि 1930 के महामंदी के बाद से बेरोजगारी और आर्थिक मंदी का यह सबसे खराब दौर है.
वॉशिंगटन डीसी से वरिष्ठ पत्रकार और स्तंभकार सीमा सिरोही ने वरिष्ठ पत्रकार स्मिता शर्मा से खास बातचीत की. लगभग दो दशकों से अमेरिका में रह रहीं सिरोही को लगता है कि अमेरिका में इस बार का विरोध प्रदर्शन अलग और महत्वपूर्ण है. वह कहती हैं कि अतीत में अश्वेत समुदाय के लोगों की मौतों के मामलों में पुलिस की क्रूरता को दोषी जरुर ठहराया गया था लेकिन उनके पास स्पष्ट सबूत नहीं थे.
हालांकि, जॉर्ज फ्लॉयड के मामले में वीडियो फुटेज स्पष्ट और देखने में दर्दनाक है. उन्होंने कहा, 'इसने लोगों में रोष अधिक बढ़ा दिया है. आंदोलन के 11वें या 12वें दिन तक यह शांतिपूर्ण है. लोग वास्तविक बदलाव की मांग कर रहे हैं. पुलिस को बदनाम करने की मांग नहीं है. पुलिस में सुधार की मांग है. डेमोक्रेट्स ने इन कुछ मुद्दों के लिए अमेरिकी प्रतिनिधि सभा में एक विधेयक पेश किया है. इस समय लोग घर नहीं लौटने वाले हैं.'
सीमा सिरोही ने कहा कि यह आंदोलन महामारी के बीच हुआ है. उच्च बेरोजगारी के कारण चार करोड़ अमेरिकी बेरोजगार हैं. लोग समाज में क्या चल रहा है, इस बारे में सोचने को मजबूर हैं. वीडियो से इतना स्पष्ट है कि उस आदमी के साथ क्या हुआ.
प्रदर्शनकारियों की प्रमुख मांगों में से एक अमेरिकी विपक्षी डेमोक्रेटिक सांसदों के साथ पुलिस सुधार सुनिश्चित करना है ताकि पुलिस हिंसा और नस्लीय अन्याय को दूर करने के लिए कानून में बदलाव के लिए व्यापक सुधार किया जा सके.
सुधारों में पुलिस को संदिग्धों या नस्लीय प्रोफाइलिंग के साथ व्यवहार को लेकर अधिनियम पर प्रतिबंध लगाने जैसी योजनाएं शामिल हैं. पुलिस व्यवस्था पर बदलाव को लेकर ट्रंप ने स्पष्ट मना किया है.
बता दें कि विरोध प्रदर्शन अमेरिका के सभी 50 राज्यों के दूर दराज ग्रामीण समुदायों में भी आयोजित किए गया है. साथ ही यह बहु नस्लीय रहा है. राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को उनकी विवादास्पद टिप्पणियों और स्थिति को संभालने को लेकर तीखी आलोचना का सामना करना पड़ा है.
वहीं जेम्स मैटिस सहित सेना के पूर्व प्रमुखों और पूर्व रक्षा सचिवों ने उनके नेतृत्व पर सवाल उठाए हैं और विरोध प्रदर्शनों को शांत करने के लिए सेना के उपयोग की आलोचना की. हालांकि, प्रदर्शन के दौरान कुछ अराजकता और चोरी की आपराधिक घटनाओं के अलावा विरोध शांतिपूर्ण ही रहा है.
सीमा सिरोही का मानना है कि डोनाल्ड ट्रंप अभी भी नवंबर में आगामी राष्ट्रपति चुनावों में स्थिति को बदल सकते हैं. ऐसा करने के लिए ट्रंप ने पूर्व राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन की नोटबुक से एक पत्ता उठाया- लॉ एंड ऑर्डर कार्ड का उपयोग करना.
डोनाल्ड ट्रंप ने इस पूरी स्थिति को जिस प्रकार से निभाया है, वह शायद उन्हें लाभ दे सकता है, क्योंकि वह अब लॉ एंड ऑर्डर प्रेसिडेंट बनने के लिए खुद को पेश कर रहे हैं. यही 1967 में रिचर्ड निक्सन ने किया था.
रिचर्ड निक्सन ने जीत इसलिए हासिल की थी क्योंकि अमेरिका में बहुत से लोग जिनमें कई अश्वेत भी शामिल थे, वह पुलिस व्यवस्था पर अंकुश चाहते थे. वह वास्तव में पुलिस से बेहतर सुविधा की उम्मीद कर रहे थे.
सिरोही ने कहा, 'आपके पास पुलिस कैसे नहीं हो सकती? एक-दूसरे को मारने वाले अपराधी हैं, चोरी करने वाले चोर हैं. इसलिए आपको पुलिस चाहिए. तो यह लगभग एक बेतुकी मांग है. क्या जरूरत है पुलिस सुधारों की.'
अमेरिका, ब्रिटेन से लेकर फ्रांस तक आज दुनिया के प्रमुख राजधानी शहरों में हुए विरोध प्रदर्शनों की छवियों ने त्वचा के रंग के आधार पर समुदायों की दासता और भेदभाव से जुड़ी औपनिवेशिक अतीत की सुर्खियों को बदल दिया है. 17वीं सदी के अंग्रेजी गुलाम व्यापारी एडवर्ड कॉलस्टन की प्रतिमा को रविवार को ब्रिटेन में ब्रिस्टल बंदरगाह में नस्लवाद विरोधी प्रदर्शनकारियों द्वारा गिराया गया था.
भारत में धार्मिक या विश्वास आधारित भेदभाव के खिलाफ विरोध प्रदर्शन की बात पर भारत-अमेरिकी समुदाय पर यह विरोध प्रर्दशन क्या प्रभाव डालेगा, इस पर सीमा सिरोही ने यह उत्तर दिया कि इंडो-अमेरिकन समुदाय-अमेरिकी राजनीतिक गलियारों में सक्रिय समूह है. हालांकि, यह कई भारतीयों के साथ कथित दोहरे मानकों से दो-चार हुए हैं.
उन्होंने कहा कि प्रियंका चोपड़ा जैसी हस्तियां #BlackLivesMatter को लेकर मुखर रही हैं. लेकिन भारतीय उदारवादियों द्वारा कथित रूप से नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के विरोध के बाद पिछले कुछ महीनों से भारत में अल्पसंख्यकों और छात्रों को लक्षित करने के लिए पुलिस की क्रूरता पर मूक-बधिर की तरह चुप रहे हैं.
सिरोही ने कहा प्रियंका चोपड़ा आज #BlackLivesMatter के बारे में बात कर रही हैं. लेकिन वह भारत में विरोध के बारे में चुप रही. वह आम तौर पर भाजपा सरकार की तरफ रही हैं. भारतीय अमेरिकियों की युवा पीढ़ी बहुत मुखर है, बहुत डेमोक्रेट है और बहुत वामपंथ की ओर है. जब वह अपने असल स्वरूप में आते हैं, तो मुझे लगता है कि भारत सरकार पर दबाव होगा. अगर नवंबर में डेमोक्रेट्स जीतते हैं, तो यह कहानी बहुत अलग होगी.