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अंतरराष्ट्रीय नशा निषेध दिवस : नशे की गिरफ्त से युवाओं को आजाद कराते डॉ. थवाइत - नशा मुक्ति केंद्र

26 जून को अंतरराष्ट्रीय नशा निषेध दिवस पर दुनिया भर के सभी देशों में नशीली दवाओं और ड्रग्स के खिलाफ जागरुकता अभियान चलाया जाता है. भारत में भी इसके खिलाफ सख्त कानून बने हैं. हालांकि इस पर नकेल नहीं लग पा रही. ऐसे में कोरबा (छत्तीसगढ़) के डॉ. आरके थवाइत युवाओं को नशे की गिरफ्त से आजाद करा रहे हैं.

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Published : Jun 26, 2020, 1:18 PM IST

रायपुर (छत्तीसगढ़) : भारत में नशीली दवाओं और ड्रग्स के खिलाफ सख्त कानून बने हैं. हालांकि, इस पर पूरी तरह से नकेल कसने की जरूरत है. ऐसे में नशे की गिरफ्त में कैद युवा पीढ़ी को सही रास्ता दिखाने के लिए कोबरा के डॉ. आरके थवाइत ने रिटायरमेंट के बाद भी नौकरी करने का फैसला किया. अंतरराष्ट्रीय नशा निषेध दिवस (26 जून) के मौके पर ईटीवी भारत ने डॉ. आरके थवाइत से विशेष बात की.

डॉ.आरके थवाइत से खास बातचीत.

इस समय डॉ. आरके थवाइत इंजेक्शन के माध्यम से ड्रग्स लेने वाले युवाओं को दवा देने और उनकी मॉनिटरिंग का काम कर रहे हैं, जिसके लिए वर्ष 2013 में कोई भी तैयार नहीं था. इस काम को वह पिछ्ले 7 वर्षों से करते आ रहे हैं.

कोबरा में नशा मुक्ति केन्द्र

बात 2012 की है, जब छत्तीसगढ़ सरकार के नशामुक्ति अभियान को बल देने के लिए कोरबा जिले में भी नशा मुक्ति केंद्र खोलने की पहल की गई. तब डॉ. थवाइत जिला अस्पताल के सिविल सर्जन थे. सेंटर में चिकित्सक को छोड़कर अन्य सभी स्टाफ की नियुक्ति हो गई, लेकिन इंटरव्यू करने के बाद भी नशा मुक्ति केंद्र में बतौर प्रभारी कोई भी डॉक्टर काम करने को तैयार नहीं था.

2013 में डॉ. आरके थवाइत जिला अस्पताल के सबसे सर्वोच्च पद सिविल सर्जन के दायित्वों से मुक्त हो रहे थे. उनके रिटायर होने का समय आ गया था, लेकिन नशा मुक्ति केंद्र में अभी किसी डॉक्टर की व्यवस्था नहीं हो सकती थी.

डॉक्टर आरके थवाइत नशा मुक्ति केंद्र के प्रभारी बने

दरअसल, नशा मुक्ति केंद्र में काम करने के लिए कोई भी डॉक्टर इसलिए भी तैयार नहीं होता, क्योंकि यहां काम करने वाले डॉक्टर को निजी या सरकारी चिकित्सकों की तुलना में काफी कम तनख्वाह मिलती थी. रिटायरमेंट के बाद डॉ. थवाइत ने तब यह निर्णय लिया कि वह समाजसेवा के लिए नशे की गिरफ्त में आने वाले युवाओं को सही रास्ता दिखाएंगे, तब से लेकर अब तक डॉक्टर थवाइत जिला अस्पताल के नशा मुक्ति केंद्र के प्रभारी हैं.

ड्रग एडिक्ट्स की लगातार बढ़ रही संख्या

पिछले 7 वर्षों में इंजेक्शन के जरिए ड्रग्स लेने वाले 650 युवा सेंटर में रजिस्टर्ड हैं और सभी ऐसे युवा हैं, जिन्हें एनजीओ के माध्यम से यहां लाया गया है. हालांकि इनमें से सभी दवा नहीं लेते, जो चिंता का विषय है. 310 नियमित अंतराल पर दवा लेते हैं, जबकि 70 युवा ऐसे हैं, जो रोज नशामुक्ति के लिए दवा लेने पहुंचते हैं. चिंता यह भी है कि जिले में ड्रग्स लेने वाले युवाओं की संख्या लगातार बढ़ रही है. नशा मुक्ति केंद्र में ऐसे युवाओं के डेटा ही उपलब्ध हैं, जिन तक एनजीओ पहुंच पाईं. ऐसे युवाओं का आंकड़ा अभी मौजूद नहीं है, जो एनजीओ से दूर हैं.

फल-फूल रहा है एम्पुल का कारोबार

ड्रग्स की ज्यादातर आपत्तिजनक दवा मॉर्फिन से तैयार होती है, जिसका कारोबार जिले में बंद नहीं हो पा रहा है. ड्रग्स के आदी रहे एक युवा ने बताया कि एक एम्पुल की कीमत ढाई सौ से 300 रुपये है, जिसके लिए पूरी चेन काम करती है. नशा मुक्ति केंद्र में नशे के आदी युवाओं को सही राह पर लाने के लिए दवा और उनकी काउंसिलिंग की जाती है, लेकिन इस तरह के अवैध कारोबार जिले में बदस्तूर जारी हैं.

बढ़ता है क्राइम रेट

ड्रग्स लेने वाले युवा इसके नहीं मिलने पर किसी भी हद तक जा सकते हैं. ड्रग्स के आदी हो चुके युवाओं को हर कीमत पर ड्रग्स की जरूरत पड़ती है. जब इसे खरीदने के लिए पैसे नहीं होते तब वह चोरी करते हैं. वे और भी कई तरह की आपराधिक घटनाओं को अंजाम देते हैं, जिससे जिले में क्राइम रेट भी बढ़ता है.

नशे के अलावा नहीं था कोई काम

ड्रग्स लेने वाले एक युवा ने कहा कि मैं 2008 से हर तरह का नशा करने लगा था. इंजेक्शन से भी नशा लेना शुरू कर दिया, नहीं लेने पर कई तरह की दिक्कतें होती थीं. उसने बताया कि वो तड़पने लगता था, मदहोश हो जाता था. 2015 में नशा मुक्ति केंद्र की जानकारी मिली. इसके बाद उसने यहां आना शुरू किया. अब वो ड्रग्स के नशे से पूरी तरह से आजाद है. उसने बताया कि अब वो ऑटो मैकेनिक का काम करने लगा है, जिससे घरवाले भी काफी खुश हैं.

पढ़ें- सभी नियमित ट्रेन सेवाएं 12 अगस्त तक रद्द रहेंगी: रेलवे

नशा करने वाले युवाओं को बचाने की पहल
इसी तरह एक अन्य युवा ने बताया कि अब वह नशा मुक्ति अभियान के लिए काम करने वाले एनजीओ में बतौर पियर एजुकेटर काम कर रहा है. वह नशा करने वाले युवाओं को बताता है कि पहले वो भी नशा करता था, लेकिन अब सही रास्ते पर है. इसलिए आप भी ऐसा मत करिए और सही रास्ते पर आइए.

बच्चे-बड़े सभी को नशे से छुटकारा दिलाना

बहरहाल, अंतरराष्ट्रीय नशा निषेध दिवस का मकसद छोटे से लेकर बड़ों को नशे से छुटकारा दिलाना है. साथ ही नशा तस्करी पर भी लगाम लगाना है, ताकि बच्चों का भविष्य अंधकारमय होने से बच सके. साथ ही सामाजिक सशक्तिकरण और समाज को नशा मुक्त करने के लिए और भी सख्त कदम उठाने की जरूरत है.

बता दें की 26 जून को हर साल अंतरराष्ट्रीय नशा निषेध दिवस मनाया जाता है. इसे पहली बार 1987 में मनाया गया था. इसका मुख्य उद्देश्य लोगों को नशे और इससे होने वाले कुप्रभावों के प्रति जागरूक करना है. इस दिन दुनियाभर के सभी देशों में नशीली दवाओं और ड्रग्स के खिलाफ जागरूकता अभियान चलाया जाता है.

रायपुर (छत्तीसगढ़) : भारत में नशीली दवाओं और ड्रग्स के खिलाफ सख्त कानून बने हैं. हालांकि, इस पर पूरी तरह से नकेल कसने की जरूरत है. ऐसे में नशे की गिरफ्त में कैद युवा पीढ़ी को सही रास्ता दिखाने के लिए कोबरा के डॉ. आरके थवाइत ने रिटायरमेंट के बाद भी नौकरी करने का फैसला किया. अंतरराष्ट्रीय नशा निषेध दिवस (26 जून) के मौके पर ईटीवी भारत ने डॉ. आरके थवाइत से विशेष बात की.

डॉ.आरके थवाइत से खास बातचीत.

इस समय डॉ. आरके थवाइत इंजेक्शन के माध्यम से ड्रग्स लेने वाले युवाओं को दवा देने और उनकी मॉनिटरिंग का काम कर रहे हैं, जिसके लिए वर्ष 2013 में कोई भी तैयार नहीं था. इस काम को वह पिछ्ले 7 वर्षों से करते आ रहे हैं.

कोबरा में नशा मुक्ति केन्द्र

बात 2012 की है, जब छत्तीसगढ़ सरकार के नशामुक्ति अभियान को बल देने के लिए कोरबा जिले में भी नशा मुक्ति केंद्र खोलने की पहल की गई. तब डॉ. थवाइत जिला अस्पताल के सिविल सर्जन थे. सेंटर में चिकित्सक को छोड़कर अन्य सभी स्टाफ की नियुक्ति हो गई, लेकिन इंटरव्यू करने के बाद भी नशा मुक्ति केंद्र में बतौर प्रभारी कोई भी डॉक्टर काम करने को तैयार नहीं था.

2013 में डॉ. आरके थवाइत जिला अस्पताल के सबसे सर्वोच्च पद सिविल सर्जन के दायित्वों से मुक्त हो रहे थे. उनके रिटायर होने का समय आ गया था, लेकिन नशा मुक्ति केंद्र में अभी किसी डॉक्टर की व्यवस्था नहीं हो सकती थी.

डॉक्टर आरके थवाइत नशा मुक्ति केंद्र के प्रभारी बने

दरअसल, नशा मुक्ति केंद्र में काम करने के लिए कोई भी डॉक्टर इसलिए भी तैयार नहीं होता, क्योंकि यहां काम करने वाले डॉक्टर को निजी या सरकारी चिकित्सकों की तुलना में काफी कम तनख्वाह मिलती थी. रिटायरमेंट के बाद डॉ. थवाइत ने तब यह निर्णय लिया कि वह समाजसेवा के लिए नशे की गिरफ्त में आने वाले युवाओं को सही रास्ता दिखाएंगे, तब से लेकर अब तक डॉक्टर थवाइत जिला अस्पताल के नशा मुक्ति केंद्र के प्रभारी हैं.

ड्रग एडिक्ट्स की लगातार बढ़ रही संख्या

पिछले 7 वर्षों में इंजेक्शन के जरिए ड्रग्स लेने वाले 650 युवा सेंटर में रजिस्टर्ड हैं और सभी ऐसे युवा हैं, जिन्हें एनजीओ के माध्यम से यहां लाया गया है. हालांकि इनमें से सभी दवा नहीं लेते, जो चिंता का विषय है. 310 नियमित अंतराल पर दवा लेते हैं, जबकि 70 युवा ऐसे हैं, जो रोज नशामुक्ति के लिए दवा लेने पहुंचते हैं. चिंता यह भी है कि जिले में ड्रग्स लेने वाले युवाओं की संख्या लगातार बढ़ रही है. नशा मुक्ति केंद्र में ऐसे युवाओं के डेटा ही उपलब्ध हैं, जिन तक एनजीओ पहुंच पाईं. ऐसे युवाओं का आंकड़ा अभी मौजूद नहीं है, जो एनजीओ से दूर हैं.

फल-फूल रहा है एम्पुल का कारोबार

ड्रग्स की ज्यादातर आपत्तिजनक दवा मॉर्फिन से तैयार होती है, जिसका कारोबार जिले में बंद नहीं हो पा रहा है. ड्रग्स के आदी रहे एक युवा ने बताया कि एक एम्पुल की कीमत ढाई सौ से 300 रुपये है, जिसके लिए पूरी चेन काम करती है. नशा मुक्ति केंद्र में नशे के आदी युवाओं को सही राह पर लाने के लिए दवा और उनकी काउंसिलिंग की जाती है, लेकिन इस तरह के अवैध कारोबार जिले में बदस्तूर जारी हैं.

बढ़ता है क्राइम रेट

ड्रग्स लेने वाले युवा इसके नहीं मिलने पर किसी भी हद तक जा सकते हैं. ड्रग्स के आदी हो चुके युवाओं को हर कीमत पर ड्रग्स की जरूरत पड़ती है. जब इसे खरीदने के लिए पैसे नहीं होते तब वह चोरी करते हैं. वे और भी कई तरह की आपराधिक घटनाओं को अंजाम देते हैं, जिससे जिले में क्राइम रेट भी बढ़ता है.

नशे के अलावा नहीं था कोई काम

ड्रग्स लेने वाले एक युवा ने कहा कि मैं 2008 से हर तरह का नशा करने लगा था. इंजेक्शन से भी नशा लेना शुरू कर दिया, नहीं लेने पर कई तरह की दिक्कतें होती थीं. उसने बताया कि वो तड़पने लगता था, मदहोश हो जाता था. 2015 में नशा मुक्ति केंद्र की जानकारी मिली. इसके बाद उसने यहां आना शुरू किया. अब वो ड्रग्स के नशे से पूरी तरह से आजाद है. उसने बताया कि अब वो ऑटो मैकेनिक का काम करने लगा है, जिससे घरवाले भी काफी खुश हैं.

पढ़ें- सभी नियमित ट्रेन सेवाएं 12 अगस्त तक रद्द रहेंगी: रेलवे

नशा करने वाले युवाओं को बचाने की पहल
इसी तरह एक अन्य युवा ने बताया कि अब वह नशा मुक्ति अभियान के लिए काम करने वाले एनजीओ में बतौर पियर एजुकेटर काम कर रहा है. वह नशा करने वाले युवाओं को बताता है कि पहले वो भी नशा करता था, लेकिन अब सही रास्ते पर है. इसलिए आप भी ऐसा मत करिए और सही रास्ते पर आइए.

बच्चे-बड़े सभी को नशे से छुटकारा दिलाना

बहरहाल, अंतरराष्ट्रीय नशा निषेध दिवस का मकसद छोटे से लेकर बड़ों को नशे से छुटकारा दिलाना है. साथ ही नशा तस्करी पर भी लगाम लगाना है, ताकि बच्चों का भविष्य अंधकारमय होने से बच सके. साथ ही सामाजिक सशक्तिकरण और समाज को नशा मुक्त करने के लिए और भी सख्त कदम उठाने की जरूरत है.

बता दें की 26 जून को हर साल अंतरराष्ट्रीय नशा निषेध दिवस मनाया जाता है. इसे पहली बार 1987 में मनाया गया था. इसका मुख्य उद्देश्य लोगों को नशे और इससे होने वाले कुप्रभावों के प्रति जागरूक करना है. इस दिन दुनियाभर के सभी देशों में नशीली दवाओं और ड्रग्स के खिलाफ जागरूकता अभियान चलाया जाता है.

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