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विशेष लेख : क्या भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ रही इलेक्टोरल बांड योजना

जब से इलेक्टोरल बांड की व्यवस्था जारी की गई है, विपक्षी दलों ने इस पर गंभीर सवाल उठाए हैं. इन पार्टियों का आरोप है कि इससे सत्ताधारी दलों को सीधा फायदा मिलता है जबकि विपक्षी दल हतोत्साहित होते हैं. उनकी दलील है कि कम्पनियां ईबी के जरिये सत्ताधारी दलों को खुश करने के लिए चंदा देती हैं, लेकिन विपक्षी दलों को वे उतनी तवज्जो नहीं देतीं. उनके हिसाब से ईबी की प्रक्रिया को जान बूझकर सरकार ने ऐसा बनाया है कि उसे फायदा मिले. आइए पढ़ते हैं इस पर एक विश्लेषण...

electoral bond an honest system with dishonest intention etv bharat
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Published : Nov 28, 2019, 5:16 PM IST

Updated : Nov 28, 2019, 6:03 PM IST

भारत सरकार द्वारा 2 जनवरी 2018 को इलेक्टोरल बांड (ईबी) को अधिसूचित करने के तुरंत बाद, 23 जनवरी 2018 को आयकर विभाग ने किसी भी राजनीतिक दल को नकद में दो हजार रुपये से अधिक का दान लेने से रोक लगा दी. इलेक्टोरल बांड्स (ईबी) धारक के पैसे होते हैं, जो अनंतिम प्रमाणपत्र के रूप में आते हैं. कोई भी व्यक्ति या कम्पनी गुमनाम रूप से इसे एसबीआई की चुनिंदा शाखाओं से खरीद सकती है और इसे एक राजनीतिक पार्टी को दान कर सकती है.

ईबी दानकर्ताओं को पूर्ण गुमनामी प्रदान करता है. दानकर्ता को धन के स्रोत का खुलासा करने की आवश्यकता नहीं है. इसी तरह, राजनीतिक दल को यह खुलासा करने की आवश्यकता नहीं है कि उसे किससे धन मिला है. राजनैतिक दलों को ईबी के माध्यम से मिलने वाले धन का केवल कुल मूल्य ही चुनाव आयोग को बताना होता है. ईबी कॉरपोरेट द्वारा चुनाव फंडिंग की सीमा को हटा देता है. ईबी के माध्यम से, बड़े व्यापार घराने गुमनाम रूप से जितना पैसा चाहें, उतना अपनी पसंद के दलों को दे सकते हैं.

सबसे हाल के संसदीय या विधानसभा चुनावों में कम से कम एक फीसदी वोट प्राप्त करने वाले राजनीतिक दल - ये बांड प्राप्त करने के पात्र होते हैं. ईबी के जारी होने की तारीख के 15 दिनों के भीतर केवल अधिकृत बैंक के खाते के माध्यम से ईबी को भुनाया जा सकता है.

हालांकि, इससे पहले के वर्षों में कम्पनियों के मुनाफे का केवल 7.5% राजनीतिक दान पर खर्च किया जा सकता था. पहले की प्रणाली ने विभिन्न राजनीतिक दलों को बेहिसाब धनराशि दान करने के कई रास्ते खोल दिए थे.

जाहिर है, ऐसे में सवाल यही है कि क्या ईबी राजनीति निधिकरण के परिशोधन का साधन है या विपक्षी दलों के दानदाताओं को हतोत्साहित करने का एक औजार?

2 जनवरी 2018 को ईबी के अधिसूचित किए जाने के तुरंत बाद, जनवरी और फरवरी 2018 में 221 करोड़ के बांड भुनाए गए. भाजपा को कुल राशि का 210 करोड़ मिला. कांग्रेस को केवल 5 करोड़ और बाकी दलों को 6 करोड़ मिले.

मार्च 2018 और अक्टूबर 2019 की अवधि में 6,128 करोड़ के मूल्य वाले कुल 12,313 ईबी बेचे गए.

मार्च 2018 से अक्टूबर 2019 तक इन बांड से किस पार्टी को सबसे ज्यादा फायदा हुआ, इसकी कोई आधिकारिक जानकारी नहीं है. लेकिन, यह व्यापक रूप से माना जाता है कि भाजपा को इस अवधि के दौरान पूरे लेनदेन में सबसे बड़ा हिस्सा मिला, जिसमें अप्रैल-मई 2019 में 17वें आम चुनाव का संचालन भी शामिल था.

टाटा समूह के स्वामित्व वाले प्रोग्रेसिव इलेक्टोरल ट्रस्ट ने 2018-19 के वित्तीय वर्ष में बीजेपी को 356.53 करोड़ और कांग्रेस को 55.62 करोड़ का योगदान दिया था.

भारती एंटरप्राइजेज के स्वामित्व वाले प्रूडेंट इलेक्टोरल ट्रस्ट ने 2018-19 के वित्तीय वर्ष में बीजेपी को 67.25 करोड़ और कांग्रेस को 39 करोड़ का दान दिया था. आंध्र प्रदेश में 2 क्षेत्रीय दल प्रूडेंट से दान लेकर तीसरे और चौथे सबसे बड़े प्राप्तकर्ता बने. वाईएसआर सीपी को 26 करोड़ और टीडीपी को प्रूडेंट से 25 करोड़ मिले.

चुनावी बांड पर वित्त मंत्रालय और भारतीय रिजर्व बैंक के बीच मतभेद
भारत सरकार ने 2017-18 के बजट में ईबी की घोषणा करने के बाद, भारतीय रिजर्व बैंक के तत्कालीन गवर्नर उर्जित पटेल ने दिनांक 14 सितम्बर 2017 को लिखे एक पत्र में तीन मुद्दे उठाए.

अपनी पहचान छिपाने के लिए असली कम्पनियां ईबी खरीदने और राजनीतिक दलों को दान देने के लिए गैर-मौजूद, मुखौटा (फ्रंट) कम्पनियों का दुरुपयोग कर सकती हैं. यह पैसे के लेनदेन में मुखौटा-कम्पनियों को कानूनी स्थान देकर मनी लॉन्ड्रिंग की सुविधा प्रदान कर सकती है. दानकर्ताओं द्वारा गुमनामी को बेहतर ढंग से हासिल किया जा सकता है,

अगर ईबी को पैसे के अनंतिम प्रमाण पत्र की बजाय डीमैट (डीमैटेरियलाइज्ड या इलेक्ट्रॉनिक) रूप में जारी किया जाता है. डीमैट फॉर्म बांडधारकों को एक यूनिक संख्या देगा, जिसे वह राजनीतिक पार्टी के साथ साझा कर सकता है. जब ईबी डीमैट फॉर्म में रहेंगे, तो आरबीआई के पास पैसे देने वाले का रिकॉर्ड होगा. राजनीतिक दल को मिलने वाले धन का रिकॉर्ड चुनाव आयोग को पता होता है. यह डीमैट फॉर्म पूरी तरह से पारदर्शी चुनावी निधिकरण का मार्ग प्रशस्त करेगा.

भारतीय रिजर्व बैंक के अधिनियम की धारा 31 केवल भारतीय रिजर्व बैंक को - शीर्ष बैंक के रूप में - बांड जारी करने के लिए अधिकार देती है. यदि आरबीआई के अधिनियम की धारा 31 में संशोधन किया जाता है और एसबीआई को ईबी जारी करने की अनुमति दी गई, तो केंद्रीय बैंक की एकाधिकार शक्ति कमजोर हो जाएगी.

जवाब में 5 अक्टूबर 2017 को वित्त मंत्रालय (तत्कालीन आर्थिक मामलों के सचिव सुभाष चंद्र गर्ग के माध्यम से) ने जवाब दिया- अगर ईबी को डीमैट प्रारूप में जारी किया जाता है, तो इससे दाता की पहचान छिपाने के वास्तविक उद्देश्य विफल हो जाएगा. इसलिए, ऐसे बांड केवल अनंतिम प्रमाणपत्र के रूप में जारी किए जाएंगे.

ये भी पढ़ें : विशेष लेखः आर्थिक उदासीनता के साए में राज्य

11 अक्टूबर 2017 को भारतीय रिजर्व बैंक के तत्कालीन गवर्नर उर्जित पटेल ने तर्क दिया - अगर सरकार ईबी को धन के अनंतिम प्रमाण पत्र के रूप में जारी करने का निर्णय लेती है, तो आरबीआई (और न कि एसबीआई) को ईबी जारी करना चाहिए.

इस पर सरकार ने तर्क दिया कि भारतीय रिजर्व बैंक एक अनुसूचित बैंक की श्रेणी में नहीं आता है (जहां लोग आसानी से लेन-देन कर सकते हैं). इसके बाद, वित्त विधेयक -2017 के माध्यम से भारतीय रिजर्व बैंक के अधिनियम की धारा 31 में संशोधन किया गया और ईबी योजना को एसबीआई द्वारा पूरी तरह से लागू करने की सूचना दी गई.

दिलचस्प यह है कि इस योजना में एसबीआई को शामिल करने की सरकार की उत्सुकता इतनी तीव्र थी कि उसने एसबीआई की सभी मांगों को आसानी से स्वीकार कर लिया, जिसमें बांड पर स्टांप ड्यूटी लगाने की मांग भी शामिल थी (जिससे सीधे एसबीआई को तत्काल राजस्व प्राप्त होगा).

इसलिए ऐसा लगता है केंद्र द्वारा ईबी को लागू करने की तत्परता के बावजूद भारतीय रिजर्व बैंक कभी भी उससे आश्वस्त नहीं था.

ऐसे अन्य उदाहरण हैं, जब ईबी के बारे में वित्त मंत्रालय की कार्रवाई संदिग्ध नजर आती है. 2 जनवरी 2018 को ईबी को अधिसूचित करते हुए, भारत सरकार ने एसबीआई को बांड को दानकर्ताओं को बेचने के लिए प्रत्येक वर्ष में चार 10-दिवसीय खिड़कियां निर्दिष्ट कीं- जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्टूबर.

लेकिन 2 अलग-अलग मौकों पर वित्त मंत्रालय ने ईबी की अनिर्धारित बिक्री की अनुमति दी. यह महज संयोग नहीं हो सकता कि दोनों मौके विधानसभा चुनाव से ठीक पहले के हों.

मई 2018 में कर्नाटक चुनावों से पहले, एक विशेष अतिरिक्त 10-दिवसीय खिड़की खोली गई थी. कांग्रेस का आरोप है कि उसी साल विधानसभा चुनाव के बाद विपक्षी दलों के विधायकों को मिलने वाले धन का इस्तेमाल ईबी से किया गया ताकि वे अपनी पार्टी छोड़ भाजपा में शामिल हो जाएं.

एक और विशेष खिड़की नवंबर 2018 में यानी तेलंगाना, मध्यप्रदेश, मिजोरम, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले खोली गई थी.

कांग्रेस नेता मनीष तिवारी ने जेपीसी जांच की मांग की. उन्होंने कहा, 'भारत सरकार का ईबी जारी करने वाले एसबीआई पर सीधा नियंत्रण है. सरकार हमेशा एसबीआई के माध्यम से ईबी में वित्तीय लेनदेन का उपयोग कर सकती है. दूसरे शब्दों में, सत्ता पक्ष हमेशा उस कम्पनी को ट्रैक कर सकता है, जिसने विपक्षी दलों को ईबी का दान दिया था. सत्ताधारी दलों द्वारा नजर रखे जाने के डर से, कई दानदाता भाजपा विरोधी दलों को दान देने से कतरा रहे हैं. इस प्रकार ईबी अवैध धन को सफेद करने का एक कानूनी तरीका बन गया है.'

भाजपा ने हालांकि आरोप को खारिज करते हुए कहा, 'गुमनामी का मतलब यह नहीं है कि कोई भी - अपना नाम या पहचान बताए बिना - बैंक में ट्रक भरकर नोट ला सकता है. और धारक बांड खरीद सकता है. गुमनामी केवल इस हद तक दी जाती है कि दानदाताओं के संगठनों को यह किसी को बताने की जरूरत नहीं है कि वह किस राजनीतिक दल को दान दे रहें हैं.'

भाजपा के अनुसार, ईबी गुमनामी प्रदान करता है, लेकिन किसी भी कानून को तोड़ने से प्रतिरक्षा नहीं करता है. दानदाता को एसबीआई शाखाओं से संपर्क करना होगा और अपनी खरीद के लिए भुगतान करना होगा. राजनीतिक दल को इन्हें अपने बैंक खाते में जमा करना होगा और औपचारिक नकदी प्राप्त करनी होगी.

ईबीएस का बचाव करते हुए केंद्रीय वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल कहते हैं, 'इससे पहले, राजनीतिक दलों को नकद दान देने की व्यवस्था थी. अब, चुनावी बांड बैंक खातों से जुड़े हुए हैं. सभी खाते केवाईसी मानदंडों से जुड़े हैं. प्रणाली पूरी तरह से पारदर्शी है. यदि ईबी की शुरुआत नहीं की गयी होती, तो बेहिसाब नकदी राजनीतिक दलों को मिलती रहती. हालांकि ईबीएस ने एक ही झटके में बेईमान भारतीयों को ईमानदार नहीं बना दिया है, मगर निश्चित रूप से बेईमानी को एक कठिन काम जरूर बना दिया है.'

इस आरोप को खारिज करते हुए कि आरबीआई को पूरी तरह से भरोसे में नहीं लिया गया था, गोयल का कहना है कि भारत सरकार आरबीआई के साथ लगातार चर्चा कर रही थी. 'शीर्ष बैंक के पास इस मुद्दे पर विचार करने के लिए पर्याप्त समय था क्योंकि सरकार ने वित्त वर्ष 2017 की शुरुआत के बाद योजना को अधिसूचित करने में लगभग एक वर्ष का समय लिया था.'

मंत्री और अन्य भाजपा नेता हालांकि इस सवाल से बचते नजर आ रहे हैं कि सरकार ने 2 अलग-अलग मौकों पर कानूनों को क्यों ताक पर रख कर विधानसभा चुनावों में ईबी की अनिर्धारित बिक्री की अनुमति दी.

(लेखक- राजीव राजन)

भारत सरकार द्वारा 2 जनवरी 2018 को इलेक्टोरल बांड (ईबी) को अधिसूचित करने के तुरंत बाद, 23 जनवरी 2018 को आयकर विभाग ने किसी भी राजनीतिक दल को नकद में दो हजार रुपये से अधिक का दान लेने से रोक लगा दी. इलेक्टोरल बांड्स (ईबी) धारक के पैसे होते हैं, जो अनंतिम प्रमाणपत्र के रूप में आते हैं. कोई भी व्यक्ति या कम्पनी गुमनाम रूप से इसे एसबीआई की चुनिंदा शाखाओं से खरीद सकती है और इसे एक राजनीतिक पार्टी को दान कर सकती है.

ईबी दानकर्ताओं को पूर्ण गुमनामी प्रदान करता है. दानकर्ता को धन के स्रोत का खुलासा करने की आवश्यकता नहीं है. इसी तरह, राजनीतिक दल को यह खुलासा करने की आवश्यकता नहीं है कि उसे किससे धन मिला है. राजनैतिक दलों को ईबी के माध्यम से मिलने वाले धन का केवल कुल मूल्य ही चुनाव आयोग को बताना होता है. ईबी कॉरपोरेट द्वारा चुनाव फंडिंग की सीमा को हटा देता है. ईबी के माध्यम से, बड़े व्यापार घराने गुमनाम रूप से जितना पैसा चाहें, उतना अपनी पसंद के दलों को दे सकते हैं.

सबसे हाल के संसदीय या विधानसभा चुनावों में कम से कम एक फीसदी वोट प्राप्त करने वाले राजनीतिक दल - ये बांड प्राप्त करने के पात्र होते हैं. ईबी के जारी होने की तारीख के 15 दिनों के भीतर केवल अधिकृत बैंक के खाते के माध्यम से ईबी को भुनाया जा सकता है.

हालांकि, इससे पहले के वर्षों में कम्पनियों के मुनाफे का केवल 7.5% राजनीतिक दान पर खर्च किया जा सकता था. पहले की प्रणाली ने विभिन्न राजनीतिक दलों को बेहिसाब धनराशि दान करने के कई रास्ते खोल दिए थे.

जाहिर है, ऐसे में सवाल यही है कि क्या ईबी राजनीति निधिकरण के परिशोधन का साधन है या विपक्षी दलों के दानदाताओं को हतोत्साहित करने का एक औजार?

2 जनवरी 2018 को ईबी के अधिसूचित किए जाने के तुरंत बाद, जनवरी और फरवरी 2018 में 221 करोड़ के बांड भुनाए गए. भाजपा को कुल राशि का 210 करोड़ मिला. कांग्रेस को केवल 5 करोड़ और बाकी दलों को 6 करोड़ मिले.

मार्च 2018 और अक्टूबर 2019 की अवधि में 6,128 करोड़ के मूल्य वाले कुल 12,313 ईबी बेचे गए.

मार्च 2018 से अक्टूबर 2019 तक इन बांड से किस पार्टी को सबसे ज्यादा फायदा हुआ, इसकी कोई आधिकारिक जानकारी नहीं है. लेकिन, यह व्यापक रूप से माना जाता है कि भाजपा को इस अवधि के दौरान पूरे लेनदेन में सबसे बड़ा हिस्सा मिला, जिसमें अप्रैल-मई 2019 में 17वें आम चुनाव का संचालन भी शामिल था.

टाटा समूह के स्वामित्व वाले प्रोग्रेसिव इलेक्टोरल ट्रस्ट ने 2018-19 के वित्तीय वर्ष में बीजेपी को 356.53 करोड़ और कांग्रेस को 55.62 करोड़ का योगदान दिया था.

भारती एंटरप्राइजेज के स्वामित्व वाले प्रूडेंट इलेक्टोरल ट्रस्ट ने 2018-19 के वित्तीय वर्ष में बीजेपी को 67.25 करोड़ और कांग्रेस को 39 करोड़ का दान दिया था. आंध्र प्रदेश में 2 क्षेत्रीय दल प्रूडेंट से दान लेकर तीसरे और चौथे सबसे बड़े प्राप्तकर्ता बने. वाईएसआर सीपी को 26 करोड़ और टीडीपी को प्रूडेंट से 25 करोड़ मिले.

चुनावी बांड पर वित्त मंत्रालय और भारतीय रिजर्व बैंक के बीच मतभेद
भारत सरकार ने 2017-18 के बजट में ईबी की घोषणा करने के बाद, भारतीय रिजर्व बैंक के तत्कालीन गवर्नर उर्जित पटेल ने दिनांक 14 सितम्बर 2017 को लिखे एक पत्र में तीन मुद्दे उठाए.

अपनी पहचान छिपाने के लिए असली कम्पनियां ईबी खरीदने और राजनीतिक दलों को दान देने के लिए गैर-मौजूद, मुखौटा (फ्रंट) कम्पनियों का दुरुपयोग कर सकती हैं. यह पैसे के लेनदेन में मुखौटा-कम्पनियों को कानूनी स्थान देकर मनी लॉन्ड्रिंग की सुविधा प्रदान कर सकती है. दानकर्ताओं द्वारा गुमनामी को बेहतर ढंग से हासिल किया जा सकता है,

अगर ईबी को पैसे के अनंतिम प्रमाण पत्र की बजाय डीमैट (डीमैटेरियलाइज्ड या इलेक्ट्रॉनिक) रूप में जारी किया जाता है. डीमैट फॉर्म बांडधारकों को एक यूनिक संख्या देगा, जिसे वह राजनीतिक पार्टी के साथ साझा कर सकता है. जब ईबी डीमैट फॉर्म में रहेंगे, तो आरबीआई के पास पैसे देने वाले का रिकॉर्ड होगा. राजनीतिक दल को मिलने वाले धन का रिकॉर्ड चुनाव आयोग को पता होता है. यह डीमैट फॉर्म पूरी तरह से पारदर्शी चुनावी निधिकरण का मार्ग प्रशस्त करेगा.

भारतीय रिजर्व बैंक के अधिनियम की धारा 31 केवल भारतीय रिजर्व बैंक को - शीर्ष बैंक के रूप में - बांड जारी करने के लिए अधिकार देती है. यदि आरबीआई के अधिनियम की धारा 31 में संशोधन किया जाता है और एसबीआई को ईबी जारी करने की अनुमति दी गई, तो केंद्रीय बैंक की एकाधिकार शक्ति कमजोर हो जाएगी.

जवाब में 5 अक्टूबर 2017 को वित्त मंत्रालय (तत्कालीन आर्थिक मामलों के सचिव सुभाष चंद्र गर्ग के माध्यम से) ने जवाब दिया- अगर ईबी को डीमैट प्रारूप में जारी किया जाता है, तो इससे दाता की पहचान छिपाने के वास्तविक उद्देश्य विफल हो जाएगा. इसलिए, ऐसे बांड केवल अनंतिम प्रमाणपत्र के रूप में जारी किए जाएंगे.

ये भी पढ़ें : विशेष लेखः आर्थिक उदासीनता के साए में राज्य

11 अक्टूबर 2017 को भारतीय रिजर्व बैंक के तत्कालीन गवर्नर उर्जित पटेल ने तर्क दिया - अगर सरकार ईबी को धन के अनंतिम प्रमाण पत्र के रूप में जारी करने का निर्णय लेती है, तो आरबीआई (और न कि एसबीआई) को ईबी जारी करना चाहिए.

इस पर सरकार ने तर्क दिया कि भारतीय रिजर्व बैंक एक अनुसूचित बैंक की श्रेणी में नहीं आता है (जहां लोग आसानी से लेन-देन कर सकते हैं). इसके बाद, वित्त विधेयक -2017 के माध्यम से भारतीय रिजर्व बैंक के अधिनियम की धारा 31 में संशोधन किया गया और ईबी योजना को एसबीआई द्वारा पूरी तरह से लागू करने की सूचना दी गई.

दिलचस्प यह है कि इस योजना में एसबीआई को शामिल करने की सरकार की उत्सुकता इतनी तीव्र थी कि उसने एसबीआई की सभी मांगों को आसानी से स्वीकार कर लिया, जिसमें बांड पर स्टांप ड्यूटी लगाने की मांग भी शामिल थी (जिससे सीधे एसबीआई को तत्काल राजस्व प्राप्त होगा).

इसलिए ऐसा लगता है केंद्र द्वारा ईबी को लागू करने की तत्परता के बावजूद भारतीय रिजर्व बैंक कभी भी उससे आश्वस्त नहीं था.

ऐसे अन्य उदाहरण हैं, जब ईबी के बारे में वित्त मंत्रालय की कार्रवाई संदिग्ध नजर आती है. 2 जनवरी 2018 को ईबी को अधिसूचित करते हुए, भारत सरकार ने एसबीआई को बांड को दानकर्ताओं को बेचने के लिए प्रत्येक वर्ष में चार 10-दिवसीय खिड़कियां निर्दिष्ट कीं- जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्टूबर.

लेकिन 2 अलग-अलग मौकों पर वित्त मंत्रालय ने ईबी की अनिर्धारित बिक्री की अनुमति दी. यह महज संयोग नहीं हो सकता कि दोनों मौके विधानसभा चुनाव से ठीक पहले के हों.

मई 2018 में कर्नाटक चुनावों से पहले, एक विशेष अतिरिक्त 10-दिवसीय खिड़की खोली गई थी. कांग्रेस का आरोप है कि उसी साल विधानसभा चुनाव के बाद विपक्षी दलों के विधायकों को मिलने वाले धन का इस्तेमाल ईबी से किया गया ताकि वे अपनी पार्टी छोड़ भाजपा में शामिल हो जाएं.

एक और विशेष खिड़की नवंबर 2018 में यानी तेलंगाना, मध्यप्रदेश, मिजोरम, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले खोली गई थी.

कांग्रेस नेता मनीष तिवारी ने जेपीसी जांच की मांग की. उन्होंने कहा, 'भारत सरकार का ईबी जारी करने वाले एसबीआई पर सीधा नियंत्रण है. सरकार हमेशा एसबीआई के माध्यम से ईबी में वित्तीय लेनदेन का उपयोग कर सकती है. दूसरे शब्दों में, सत्ता पक्ष हमेशा उस कम्पनी को ट्रैक कर सकता है, जिसने विपक्षी दलों को ईबी का दान दिया था. सत्ताधारी दलों द्वारा नजर रखे जाने के डर से, कई दानदाता भाजपा विरोधी दलों को दान देने से कतरा रहे हैं. इस प्रकार ईबी अवैध धन को सफेद करने का एक कानूनी तरीका बन गया है.'

भाजपा ने हालांकि आरोप को खारिज करते हुए कहा, 'गुमनामी का मतलब यह नहीं है कि कोई भी - अपना नाम या पहचान बताए बिना - बैंक में ट्रक भरकर नोट ला सकता है. और धारक बांड खरीद सकता है. गुमनामी केवल इस हद तक दी जाती है कि दानदाताओं के संगठनों को यह किसी को बताने की जरूरत नहीं है कि वह किस राजनीतिक दल को दान दे रहें हैं.'

भाजपा के अनुसार, ईबी गुमनामी प्रदान करता है, लेकिन किसी भी कानून को तोड़ने से प्रतिरक्षा नहीं करता है. दानदाता को एसबीआई शाखाओं से संपर्क करना होगा और अपनी खरीद के लिए भुगतान करना होगा. राजनीतिक दल को इन्हें अपने बैंक खाते में जमा करना होगा और औपचारिक नकदी प्राप्त करनी होगी.

ईबीएस का बचाव करते हुए केंद्रीय वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल कहते हैं, 'इससे पहले, राजनीतिक दलों को नकद दान देने की व्यवस्था थी. अब, चुनावी बांड बैंक खातों से जुड़े हुए हैं. सभी खाते केवाईसी मानदंडों से जुड़े हैं. प्रणाली पूरी तरह से पारदर्शी है. यदि ईबी की शुरुआत नहीं की गयी होती, तो बेहिसाब नकदी राजनीतिक दलों को मिलती रहती. हालांकि ईबीएस ने एक ही झटके में बेईमान भारतीयों को ईमानदार नहीं बना दिया है, मगर निश्चित रूप से बेईमानी को एक कठिन काम जरूर बना दिया है.'

इस आरोप को खारिज करते हुए कि आरबीआई को पूरी तरह से भरोसे में नहीं लिया गया था, गोयल का कहना है कि भारत सरकार आरबीआई के साथ लगातार चर्चा कर रही थी. 'शीर्ष बैंक के पास इस मुद्दे पर विचार करने के लिए पर्याप्त समय था क्योंकि सरकार ने वित्त वर्ष 2017 की शुरुआत के बाद योजना को अधिसूचित करने में लगभग एक वर्ष का समय लिया था.'

मंत्री और अन्य भाजपा नेता हालांकि इस सवाल से बचते नजर आ रहे हैं कि सरकार ने 2 अलग-अलग मौकों पर कानूनों को क्यों ताक पर रख कर विधानसभा चुनावों में ईबी की अनिर्धारित बिक्री की अनुमति दी.

(लेखक- राजीव राजन)

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Last Updated : Nov 28, 2019, 6:03 PM IST
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