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चुनाव में गलत हलफनामा दायर करना सदस्यता समाप्ति का आधार बने : निर्वाचन आयोग

मुख्य चुनाव आयुक्त ने विधि मंत्रालय के साथ बैठक की. बैठक में गलत हलफनामा दायर करने पर सदस्यता की समाप्ति से लेकर मतदाता अर्हता के सात चुनाव संबंधी 40 मुद्दों पर चर्चा की गई. पढ़ें पूरी खबर...

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चुनाव अयोग की बैठक
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Published : Feb 19, 2020, 2:24 PM IST

Updated : Mar 1, 2020, 8:20 PM IST

नई दिल्ली : चुनाव आयोग (ईसी)ने सरकार के साथ चुनाव सुधार प्रक्रिया को आगे बढ़ाने की एक बार फिर पहल की. आयोग ने प्रत्याशियों द्वारा गलत हलफनामा देने और फर्जी खबरों के प्रसार को निर्वाचन प्रक्रिया दूषित करने वाले अपराध की श्रेणी में रखने का प्रस्ताव दिया है, जिससे निर्वाचित होने के बाद दोषियों की सदस्यता समाप्त की जा सके.

चुनाव सुधार को लेकर मंगलवार को विधि मंत्रालय में सचिव जी नारायण राजू के साथ मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा, चुनाव आयुक्त अशोक लवासा और सुशील चंद्रा की बैठक में इन मुद्दों पर चर्चा की गई.

आयोग द्वारा जारी बयान के अनुसार बैठक में उम्मीदवारों के गलत हलफनामे और फर्जी खबरों के प्रसार को रोकने के अलावा मतदाता पहचान पत्र को आधार से जोड़ने के मुद्दे पर भी विचार किया गया.

उल्लेखनीय है कि आयोग ने हाल ही में विधि मंत्रालय को पत्र लिखकर मतदाता पहचान पत्र को आधार से जोड़ने के लिए जनप्रतिनिधित्व कानून के प्रावधानों में संशोधन का अनुरोध किया था. आयोग की दलील है कि एक ही मतदाता के एक से अधिक मतदाता पहचान पत्र बनवाने की समस्या के समाधान के लिए इसे आधार से जोड़ना ही एकमात्र विकल्प है.

सूत्रों के अनुसार मंत्रालय ने आयोग की इस दलील से सहमति जताते हुए आधार के डाटा को विभिन्न स्तरों पर संरक्षित करने की अनिवार्यता का पालन सुनिश्चित करने को कहा है.

मतदाता बनने की अर्हता में प्रावधान संबंधी सुझाव
बैठक में आयोग ने मतदाता बनने की अर्हता के लिए उम्र संबंधी प्रावधानों में भी बदलाव का सुझाव दिया है. मौजूदा व्यवस्था में प्रत्येक साल की एक जनवरी तक 18 वर्ष की आयु प्राप्त करने वालों को मतदाता बनने का अधिकार मिल जाता है. आयोग ने उम्र संबंधी अर्हता के लिए एक जनवरी के अलावा साल में एक से अधिक तारीखें तय करने का सुझाव दिया है.

40 लंबित प्रस्तावों की भी दिलाई याद
बयान के अनुसार अरोड़ा ने विधि मंत्रालय के अधिकारियों को चुनाव सुधार संबंधी आयोग के लगभग 40 लंबित प्रस्तावों की भी याद दिलाई. यह प्रस्ताव पिछले कई सालों से लंबित हैं.

इनमें सशस्त्र बल और केन्द्रीय सशस्त्र पुलिस बल के कर्मियों के लिए निर्वाचन नियमों को लैंगिक आधार पर एक समान बनाने का प्रस्ताव भी शामिल है.

इसके तहत आयोग ने महिला सैन्यकर्मियों के पति को भी सर्विस वोटर का दर्जा देने के लिए जनप्रतिनिधित्व कानून में बदलाव के लंबित प्रस्ताव पर अमल करने का अनुरोध किया है. मौजूदा व्यवस्था में सैन्यकर्मियों की पत्नी को सर्विस वोटर का दर्जा मिलता है लेकिन महिला सैन्यकर्मी के पति को यह दर्जा देने का कोई प्रावधान नहीं है.

कानून में इस आशय के संशोधन से जुड़ा विधेयक पिछली लोकसभा में पारित नहीं हो पाने के कारण निष्प्रभावी हो गया था. सरकार के लिए मौजूदा लोकसभा में नए विधेयक को पेश करने की जरूरत होगी. उल्लेखनीय है कि आयोग के प्रशासनिक मामले सीधे तौर पर विधि मंत्रालय के तहत आते हैं.

चुनाव में गलत हलफनामा पेश करने के बारे में मौजूदा व्यवस्था में दोषी ठहराए जाने पर उम्मीदवार के खिलाफ आपराधिक कानून के तहत धोखाधड़ी का ही मामला दर्ज होता है. आयोग ने गलत हलफनामा देकर चुनाव जीतने वाले उम्मीदवार की सदस्यता समाप्त करने का प्रस्ताव दिया है.

पढ़ें : भारत दौरे से पहले ट्रंप का बयान : मोदी मुझे पसंद हैं लेकिन अभी नहीं होगी ट्रेड डील

एक अन्य प्रस्ताव में चुनाव आयोग ने विधानसभा चुनाव की तर्ज पर विधान परिषद के चुनाव में भी चुनाव प्रचार खर्च की सीमा तय करने की पहल की है.

इसके अलावा आयोग ने मंत्रालय से मुख्य चुनाव आयुक्त की तर्ज पर दो चुनाव आयुक्तों को भी संवैधानिक संरक्षण देने के पुराने प्रस्ताव पर विचार करने का अनुरोध किया है.

उल्लेखनीय है कि विधि मंत्रालय के अनुमोदन पर मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति राष्ट्रपति करते हैं.

मुख्य चुनाव आयुक्त को संसद द्वारा महाभियोग के माध्यम से ही पद से हटाया जा सकता है. जबकि चुनाव आयुक्तों को राष्ट्रपति, मुख्य चुनाव आयुक्त की सिफारिश पर हटा सकते हैं. विधि आयोग ने मार्च 2015 में चुनाव सुधारों पर पेश अपनी रिपोर्ट में दोनों चुनाव आयुक्तों को भी संवैधानिक संरक्षण प्रदान करने का प्रस्ताव दिया था.

नई दिल्ली : चुनाव आयोग (ईसी)ने सरकार के साथ चुनाव सुधार प्रक्रिया को आगे बढ़ाने की एक बार फिर पहल की. आयोग ने प्रत्याशियों द्वारा गलत हलफनामा देने और फर्जी खबरों के प्रसार को निर्वाचन प्रक्रिया दूषित करने वाले अपराध की श्रेणी में रखने का प्रस्ताव दिया है, जिससे निर्वाचित होने के बाद दोषियों की सदस्यता समाप्त की जा सके.

चुनाव सुधार को लेकर मंगलवार को विधि मंत्रालय में सचिव जी नारायण राजू के साथ मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा, चुनाव आयुक्त अशोक लवासा और सुशील चंद्रा की बैठक में इन मुद्दों पर चर्चा की गई.

आयोग द्वारा जारी बयान के अनुसार बैठक में उम्मीदवारों के गलत हलफनामे और फर्जी खबरों के प्रसार को रोकने के अलावा मतदाता पहचान पत्र को आधार से जोड़ने के मुद्दे पर भी विचार किया गया.

उल्लेखनीय है कि आयोग ने हाल ही में विधि मंत्रालय को पत्र लिखकर मतदाता पहचान पत्र को आधार से जोड़ने के लिए जनप्रतिनिधित्व कानून के प्रावधानों में संशोधन का अनुरोध किया था. आयोग की दलील है कि एक ही मतदाता के एक से अधिक मतदाता पहचान पत्र बनवाने की समस्या के समाधान के लिए इसे आधार से जोड़ना ही एकमात्र विकल्प है.

सूत्रों के अनुसार मंत्रालय ने आयोग की इस दलील से सहमति जताते हुए आधार के डाटा को विभिन्न स्तरों पर संरक्षित करने की अनिवार्यता का पालन सुनिश्चित करने को कहा है.

मतदाता बनने की अर्हता में प्रावधान संबंधी सुझाव
बैठक में आयोग ने मतदाता बनने की अर्हता के लिए उम्र संबंधी प्रावधानों में भी बदलाव का सुझाव दिया है. मौजूदा व्यवस्था में प्रत्येक साल की एक जनवरी तक 18 वर्ष की आयु प्राप्त करने वालों को मतदाता बनने का अधिकार मिल जाता है. आयोग ने उम्र संबंधी अर्हता के लिए एक जनवरी के अलावा साल में एक से अधिक तारीखें तय करने का सुझाव दिया है.

40 लंबित प्रस्तावों की भी दिलाई याद
बयान के अनुसार अरोड़ा ने विधि मंत्रालय के अधिकारियों को चुनाव सुधार संबंधी आयोग के लगभग 40 लंबित प्रस्तावों की भी याद दिलाई. यह प्रस्ताव पिछले कई सालों से लंबित हैं.

इनमें सशस्त्र बल और केन्द्रीय सशस्त्र पुलिस बल के कर्मियों के लिए निर्वाचन नियमों को लैंगिक आधार पर एक समान बनाने का प्रस्ताव भी शामिल है.

इसके तहत आयोग ने महिला सैन्यकर्मियों के पति को भी सर्विस वोटर का दर्जा देने के लिए जनप्रतिनिधित्व कानून में बदलाव के लंबित प्रस्ताव पर अमल करने का अनुरोध किया है. मौजूदा व्यवस्था में सैन्यकर्मियों की पत्नी को सर्विस वोटर का दर्जा मिलता है लेकिन महिला सैन्यकर्मी के पति को यह दर्जा देने का कोई प्रावधान नहीं है.

कानून में इस आशय के संशोधन से जुड़ा विधेयक पिछली लोकसभा में पारित नहीं हो पाने के कारण निष्प्रभावी हो गया था. सरकार के लिए मौजूदा लोकसभा में नए विधेयक को पेश करने की जरूरत होगी. उल्लेखनीय है कि आयोग के प्रशासनिक मामले सीधे तौर पर विधि मंत्रालय के तहत आते हैं.

चुनाव में गलत हलफनामा पेश करने के बारे में मौजूदा व्यवस्था में दोषी ठहराए जाने पर उम्मीदवार के खिलाफ आपराधिक कानून के तहत धोखाधड़ी का ही मामला दर्ज होता है. आयोग ने गलत हलफनामा देकर चुनाव जीतने वाले उम्मीदवार की सदस्यता समाप्त करने का प्रस्ताव दिया है.

पढ़ें : भारत दौरे से पहले ट्रंप का बयान : मोदी मुझे पसंद हैं लेकिन अभी नहीं होगी ट्रेड डील

एक अन्य प्रस्ताव में चुनाव आयोग ने विधानसभा चुनाव की तर्ज पर विधान परिषद के चुनाव में भी चुनाव प्रचार खर्च की सीमा तय करने की पहल की है.

इसके अलावा आयोग ने मंत्रालय से मुख्य चुनाव आयुक्त की तर्ज पर दो चुनाव आयुक्तों को भी संवैधानिक संरक्षण देने के पुराने प्रस्ताव पर विचार करने का अनुरोध किया है.

उल्लेखनीय है कि विधि मंत्रालय के अनुमोदन पर मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति राष्ट्रपति करते हैं.

मुख्य चुनाव आयुक्त को संसद द्वारा महाभियोग के माध्यम से ही पद से हटाया जा सकता है. जबकि चुनाव आयुक्तों को राष्ट्रपति, मुख्य चुनाव आयुक्त की सिफारिश पर हटा सकते हैं. विधि आयोग ने मार्च 2015 में चुनाव सुधारों पर पेश अपनी रिपोर्ट में दोनों चुनाव आयुक्तों को भी संवैधानिक संरक्षण प्रदान करने का प्रस्ताव दिया था.

Last Updated : Mar 1, 2020, 8:20 PM IST
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