दुनिया भर की विभिन्न प्रयोगशालाओं में चिकित्सा विशेषज्ञ और शोधकर्ता इस खोज में दिन - रात लगे हैं कि कैसे कोरोना वायरस को फैलने से रोका जाए. पीड़ितों को वर्तमान महामारी से बचाने के लिए उपचार के विभिन्न तौर-तरीके अपनाए गए हैं. उचित दवाओं और वैक्सीन की अपर्याप्त उपलब्धता चिकित्सकों को वायरस के प्लाज्मा के आधार पर इलाज की शोध के लिए मजबूर कर रही है.
इस तकनीक का उपयोग उपचार में किया जा रहा है क्योंकि यह डॉक्टरों को एक हद तक रोगियों का इलाज करने में मदद कर रहा है हालांकि इससे उतनी उम्मीद नहीं है जितना कि आशा की जा रही है.
प्लाज्मा उपचार करने के लिए कोरोना वायरस से बच निकल आए लोगों से रक्त एकत्र किया जाना चाहिए. हालांकि, यह पता नहीं चल पाया है कि ऐसे कितने बचे लोग रक्तदान देने को राज़ी हैं. इस समस्या के निदान के लिए कुछ दिन पहले डॉ के लालित्य ने, जो फ्लिंडर्स यूनिवर्सिटी, ऑस्ट्रेलिया में जनरल मेडिसिन में एम. डी. कर रही हैं, कृत्रिम एंटी बोडी द्वारा वायरस को प्रसारित होने से रोकने के विचार को इंटरनेशनल जर्नल ऑफ़ मेडिसिन में प्रकाशित करने के लिए भेजा है.
वर्त्तमान में वे चेन्नई में रह रही हैं. वे प्रसिद्द गायक घंटशाला वेंकटेश्वर राव की पौत्री हैं. ईनाडु से एक्सक्लूसिव बातचीत में उन्होंने कृत्रिम एंटी बोड़ी के बारे में बताया.
फेज डिस्प्ले मोड में डीएनए
20 जनवरी से 25 मार्च, 2020 तक की अवधि में, चीन के शेन जेन अस्पताल के डॉक्टरों ने प्लास्माथेरेपी के माध्यम से कोविड -19 के 5 रोगियों में एंटीबॉडी का प्रवेश किया है. उनमें से तीन को इलाज के बाद और पूरी तरह से ठीक हो जाने के बाद घर भेज दिया गया. प्लाज्मा उपचार के लिए उन रोगियों के रक्त की आवश्यकता होती है जो संक्रमण से उबर चुके हैं.
लेकिन ऐसे बहुत कम लोग स्वेच्छा से रक्त देने के लिए तैयार नहीं होते. इस स्थिति का मुकाबला करने के लिए, रक्त में सफेद रक्त कोशिकाओं को समान एंटीबॉडी डीएनए कोशिकाओं में परिवर्तित करने की आवश्यकता होती है. सिंथेटिक एंटीबॉडी की तैयारी के लिए फेज डिस्प्ले विधि का उपयोग करके एंटीबॉडी और डीएनए तैयार किया जाना चाहिए.
इस तरह के एंटीबॉडी की सफाई बफर फ्यूल वाले इल्यूसन द्वारा कोशिकाओं पर वीरो-डी6 डालते समय प्रयोगशालाओं में की जानी चाहिए. इस क्रम में, एंटीबॉडी की तैयारी के लिए आवश्यक टिश्यू सामग्री सिर्फ एक कोशिका से चिपकेगी और इस प्रक्रिया को पूरा होने में कम से कम एक महीने का समय लगेगा.
ये प्रयोग सरकारों, अनुसंधान केंद्रों या सरकारों द्वारा ली गई अनुमतियों के साथ संचालित निजी प्रयोगशालाओं में किए जा सकते हैं।
50 दिन में नतीजे
एक बार एक ही एंटीबॉडी बनाने के बाद इसकी लाखों प्रतियां बनाई जा सकती है. हालांकि, उनका पहले खरगोश और बंदर जैसे जानवरों पर परीक्षण किया जाना चाहिए. कोरोना वायरस की है. इस अवधि के दौरान उन पर प्रभाव को ध्यान में रखते हुए, सिंथेटिक एंटीबॉडी तैयार करने के लिए आवश्यक परिवर्तन और परिवर्धन संभव हैं.
सही नतीजे बाहर आने में 44 से 50 लग सकते हैं क्यों कि एंटी बॉडी को तैयार करने में 30 दिन और ऊष्मायन अवधि के 14 दिन मिला कर इतना ही समय लगेगा.
इस एंटीबॉडी को तैयार करने की प्रक्रिया को , जिसे मरीज के रक्त में इंजेक्ट किया जाता है, उसे मेडिकल शब्दों में 'निष्क्रिय प्रतिरक्षा' कहा जाता है. इस प्रक्रिया को वैज्ञानिकों ने वर्ष 1894 में ही आजमाया था, ताकि गंभीर बीमारियों और वायरल की समस्या वाले लोगों में प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाया जा सके.
उसके बाद, सकारात्मक परिणामों के साथ तपेदिक, परिगलन और टाइफाइड जैसी गंभीर बीमारियों से पीड़ित लोगों को निष्क्रिय प्रतिरक्षा दी गई. इसका इस्तेमाल कुछ देशों में कैंसर को ठीक करने के लिए भी किया जा रहा है.
कोरोना वायरस के लिए डिज़ाइन किए गए एंटीबॉडी को भविष्य में टीकाकरण और कोरोना वायरस के इलाज के लिए भी इस्तेमाल किया जा सकता है. वर्तमान में कोविड -19 के साथ लड़ने के लिए कई प्रयोग किए जा रहे हैं. तुलना की जाय, तो इस तरह के सिंथेटिक एंटीबॉडी बनाने की प्रक्रिया को दुनिया भर में महामारी कोविड -19 के खिलाफ लड़ाई में एक आसान तरीका माना जा सकता है!
(वैज्ञानिक डॉ के लालित्य)