हैदराबाद : 14 साल पहले आज ही के दिन 21 अगस्त, 2006 को शहनाई के जादूगर भारत रत्न उस्ताद बिस्मिल्ला खान ने दुनिया को अलविदा कहा था और संगीत जगत में शोक की लहर दौड़ गई.
आज उस्ताद बिस्मिल्ला खान की 14वीं पुण्यतिथि है. इस अवसर बिस्मिल्ला खान को याद किया जा रहा है.
शहनाई वादक बिस्मिल्ला खान का जन्म 21 मार्च, 1916 को बिहार के बक्सर जिले के दमरन गांव में हुआ था और 21 अगस्त, 2006 को बनारस में उनका निधन हुआ.
बिस्मिल्ला खान बचपन में ही बनारस में अपने चाचा अली बख्श के पास आए और उनसे शहनाई बजाने की कला सीखी.
अपनी आत्मा में बनारस की भावना को समा लेने वाले उस्ताद बिस्मिल्ला खान अपने पूरे जीवन में कई प्रतिष्ठित पुरस्कार हासिल किए. उन्हें भारत रत्न से भी सम्मानित किया गया.
1947 में बिस्मिल्ला खान ने लाल किले में शहनाई बजाकर आजादी का स्वागत किया था. उसके बाद पंडित जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें उस्ताद कहा, तब से वह उस्ताद बिस्मिल्ला खान कहे जाने लगे.
बिस्मिल्ला खां को दरगाह फातमान से काफी लगाव था. वह शोक के दिनों में बनारस के दरगाह फातमान में शहनाई बजाते थे.
उन्हें इमाम हुसैन से बहुत मोहब्बत थी और मुहर्रम के दिनों में वह चप्पल नहीं पहने थे. वह दरगाह फातमान के एक कुएं के करीब चटाई बिछाते थे और जुलूस में शामिल होते.
बिस्मिल्ला खां की मौत के बाद उन्हें उसी स्थान पर दफनाया गया, जहां वह दरगाह फातमान में शहनाई बजाते थे.
उल्लेखनीय है कि हाल ही में उस्ताद बिस्मिल्ला खान के घर को ध्वस्त करने की कोशिश की गई और उनके उस कमरे को क्षतिग्रस्त कर दिया गया, जहां वह बैठते थे और शहनाई का अभ्यास करते थे.
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दरअसल, उनके पूरे घर को एक वाणिज्यिक भवन में बदलने की योजना बनाई गई थी, लेकिन उनके परिवार के कुछ सदस्यों और संगीत क्षेत्र से जुड़े लोगों के विरोध के कारण बनारस विकास प्राधिकरण ने अपने घर के आधुनिकीकरण का कार्य रोक दिया.
ईटीवी भारत से बात करते हुए बिस्मिल्ला खान के पौत्र आफाक ने कहा कि घर के आर्थिक हालात ठीक नहीं हैं और यह ही कारण है कि उनके परिजनों ने सरकार से अपील की है कि बिस्मिल्ला खान की यादों को एक म्यूजियम की शक्ल में परवर्तित करे और उनको घर का मुआवजा दे, ताकि परिजनों को भी परेशानी न हो.