नई दिल्ली : भारत सरकार के कृषि मंत्रालय द्वारा 27 जेनेरिक पेस्टिसाइड को प्रतिबंधित करने के निर्णय पर प्रतिरोध लगातार जारी है. क्रॉप केअर फेडरेशन ऑफ इंडिया (सीसीएफआई) ने इस निर्णय को प्रधानमंत्री मोदी के मेक इन इंडिया मुहिम पर आघात बताते हुए कई ऐसे तथ्य सामने रखे हैं जो उद्योग जगत के पक्ष को भी मजबूत बनाता है.
ईटीवी भारत ने इस पूरे मामले पर सीसीएफआई के वरिष्ठ सलाहकार हरीश मेहता से विस्तृत बातचीत की, जिसमें उन्होंने पेस्टिसाइड पर प्रतिबंध, प्रतिबंध लगाने के आधार और प्रतिबंध के बाद भारतीय पेस्टिसाइड उद्योग पर होने वाले प्रभाव के बारे में जानकारी दी है. बहरहाल सीसीएफआई कृषि मंत्रालय के समक्ष अपना पक्ष रखने के लिए सभी 27 प्रतिबंधित मॉलिक्यूल का विस्तृत विवरण तैयार करने में जुटा है.
हरीश मेहता ने जानकारी दी कि यह मामला सिर्फ 27 मॉलिक्यूल्स का नहीं है बल्कि इनके टेक्निकल फार्मूलेशन और कॉम्बिनेशन से कुल 130 प्रोडक्ट तैयार होते हैं जो भारत सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त हैं.
'आज हमारी भारतीय कंपनियों के पास इन सभी उत्पादों को बनाने की क्षमता भी है और व्यवस्था भी है. किसान 40-50 सालों से इनका इस्तेमाल खेती में करते आ रहे हैं और आज तक कोई ऐसा मामला सामने नहीं आया, जिससे ये पता चले कि इनसे किसी पशु, व्यक्ति या पर्यावरण को नुकसान पहुंचा हो. जो लोग इन मॉलिक्यूल्स के विकल्पों की बात कर रहे हैं वो गलत जानकारी दे रहे हैं. सभी पेस्टिसाइड्स के विकल्प अभी तक भारतीय बाजार में उपलब्ध नहीं हैं. अगर आज भारत में इनका उत्पादन प्रतिबंधित होता है तो रेडीमेड प्रोडक्ट चीन, जापान और अमेरिका जैसे देशों से आयात करना पड़ेगा, जिसमें सबसे बड़ा फायदा उन बहुराष्ट्रीय कंपनियों का होगा.'
कीटनाशक उत्पादन में सबसे बड़ा बाजार चीन के हिस्से में है और बतौर हरीश मेहता आज भी देश में कई कंपनियां चीन से कई पेस्टिसाइड आयात कर सिर्फ ब्रांडिंग लगा कर बेच रही हैं. यह व्यापार कम से कम 13,000 करोड़ का है.
CCFI के अनुसार भारत में कुल 6000 करोड़ मूल्य के कीटनाशकों की घरेलू खपत है. सीसीएफआई के मुताबिक कुल 27 कीटनाशकों का निर्यात मूल्य 7000 करोड़ रुपये है.
भारत में बने कीटनाशक आज कई विकसित देशों में निर्यात होते हैं और प्रतिबंधित कीटनाशक से बने उत्पादों का निर्यात 7000 करोड़ रुपए तक का है. ऐसे में यदि इन्हें प्रतिबंधित किया जाता है तो यह हिस्सा सीधे सीधे चीन के पाले में चला जाएगा.
हालांकि, केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने पिछले हफ्ते एक ऑनलाइन कॉन्फ्रेंस में अपने संबोधन के दौरान यह घोषणा की थी कि इन उत्पादों के निर्यात को प्रतिबंधित नहीं किया जाएगा. उत्पादकों के लिए अपना पक्ष लिखित रूप में सौंपने की मियाद भी 45 दिन से 90 दिन कर दी गई है. लेकिन उद्योग पक्ष इस राहत को पर्याप्त नहीं मानता.
'निर्यात के पहले कंपनियों को प्रॉडक्ट बनाने के लिये सरकार से अनुमति लेनी पड़ेगी और लाइसेंस मिलने के बाद ही कोई भी कंपनी इन प्रतिबंधित कीटनाशक को बना सकती है. जहां तक 45 दिन के अतिरिक्त समय का सवाल है हम उससे पहले ही अपना जवाब एक एक विवरण के साथ सरकार के सामने रखने के लिए तैयार है. हमने 28 मई को पत्र लिख कर मंत्रालय और CIBRC से यह पूछा कि इन मॉलिक्यूल्स को प्रतिबंधित करने का आधार क्या है लेकिन उनका कोई जवाब नहीं मिला. तीन जून को सीसीएफआई ने एक और पत्र लिखा जिसका जवाब भी नहीं आया है. अगर कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है तो सरकार को इस निर्णय पर विचार कर इसे वापस लेना चाहिए.
हरीश मेहता ने आगे बताया कि जहां तक बाजार में नकली कीटनाशक की बात होती है उसमें भी सरकार के आंकड़े ही कहते हैं कि औसतन इसकी मात्रा केवल 2.7 प्रतिशत पाई गई है.
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'हमने देश के अलग अलग राज्यों में आरटीआई के माध्यम से जानकारी ली, जिसमें यह सरकार की तरफ से बताया गया कि कुल 54932 नमूने लिए गए, जिसमें से कुल 1527 नमूने टेस्ट में फेल हुए. यह टेस्टिंग के कुल लिए गए नमूनों का केवल 2.7 प्रतिशत है जो इन पेस्टिसाइड को प्रतिबंधित करने का कोई ठोस आधार नहीं हो सकता. नकली कीटनाशक बनाने की बात को बढ़ा चढ़ा कर फैलाया जाता है ताकि भारतीय कंपनियों को बदनाम किया जा सके और बाहर से बहुराष्ट्रीय कंपनियों के उत्पाद को भारतीय बाजार में प्रवेश दिलाया जाए. इस काम में इन कंपनियों को कुछ बड़े एनजीओ का साथ भी मिलता है.'
दूसरा आधार खाद्य पदार्थों में कीटनाशक के अंश पाए जाने को भी बनाया जा सकता है. इस सवाल पर सीसीएफआई के वरिष्ठ सलाहकार ने बताया कि फेडरेशन ने 2015 से 2019 के बीच के आंकड़े सूचना का अधिकार के माध्यम से निकाले हैं जिसमें फल, सब्जियां, अनाज, दूध, मांस, मछली इत्यादि खाद्य पदार्थों के नमूने ले कर यह जांच की जाती है कि उनमें कीटनाशक के अंश किस मात्रा में हैं. कुल 53006 नमूनों में सिर्फ 1126 में कुछ अंश पाए गए. बाकी सभी बिल्कुल सुरक्षित थे.
जिन उत्पादों में कीटनाशक के अंश दो प्रतिशत तक पाए भी गए वह सरकार द्वारा निर्धारित अधिकतम सीमा के नीचे ही थे. ऐसे में यह कहना उचित नहीं होगा कि बाजार में आने वाले सभी खाने पीने की चीजों में कीटनाशक के अंश मौजूद होते हैं जो सेहत को प्रभावित करते हों. बतौर मेहता इस तरह से सीधे सीधे पेस्टिसाइड बनाने वाली कंपनियों को दोष देना या इन प्रोडक्ट्स को हानिकारक बताने का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं दिखता.
तीसरा आधार कीटनाशक कंपनियों द्वारा इन जेनेरिक मॉलिक्यूल्स के बारे में पर्याप्त जानकारी न देने का है. इस पर सीसीएफआई के वरिष्ठ सलाहकार कहते हैं कि 2019 तक जो कंपनियों ने इन पेस्टिसाइड्स के बारे में जानकारी दी है वह पर्याप्त है.
आज कोरोना महामारी और लॉकडाउन के बीच सीसीएफआई कीटनाशकों पर बैन की मांग कर रही है. सीसीएफआई की दलील है कि बाहर से आ रही कंपनियों के रेडीमेड प्रोडक्ट भारतीय बाजार पर कब्जा जमाना चाहती हैं. ऐसे में सरकार से इन उत्पादों पर निर्यात कर लगाने की बात भी हो रही है. सीसीएफ आई का कहना है कि कोरोना महामारी की परिस्थिति में कोई नई जानकारी और विवरण लाना कैसे संभव हो सकता है. इसके लिए ट्रायल करने होते हैं और उसमें समय लगता है.
इस पूरे प्रकरण में सरकार द्वारा गठित अनुपम वर्मा कमिटी और CIBRC की भूमिका पर भी उत्पादकों के संगठन ने सवाल खड़े किए हैं. सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक अब सरकार इस पर एक अलग एक्सपर्ट पैनल गठित करने पर विचार कर रही है जो उत्पादकों के पक्ष पर विचार करेगी.
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बहरहाल उत्पादक और कई किसान प्रतिनिधियों ने भी जेनेरिक पेस्टिसाइड को प्रतिबंधित करने के निर्णय को वापस लेने की मांग सरकार से की है. CCFI की मांग यह भी है कि बाहर से आयात हो रहे रेडीमेड कीटनाशक पर आयात कर बढ़ा कर 25 प्रतिशत कर देना चाहिए, जिसके बाद ऐसे उत्पादों पर मुनाफा कम हो जाएगा और आयात कम होगा. ऐसे में भारतीय उत्पादकों को बेहतर मौका मिलेगा.