ETV Bharat / bharat

विशेष : क्या महामारी की आड़ में विज्ञान को नकारने में जुटा है आधुनिक समाज - विज्ञान और मानव

आज सारा विश्व जानता है कि कोरोना ने मानवजाति पर कितना क्रूर प्रहार किया है. इससे ज्यादा दुख की बात यह है कि जब बुद्धिजीवी वर्ग और विश्व के बड़े नेता इस महामारी को लेकर अपनी विचित्र राय दुनिया की पटल पर रखते हैं, तो बातें बननी शुरू हो जाती हैं. इससे उनकी विज्ञान के प्रति नकारात्मक सोच साफ झलकती है. महामारी के साथ-साथ उसके प्रति लोगों की सोच और विज्ञान को लेकर आधुनिक मानव का नजरिया आज के ज्वलंत मुद्दे हैं. क्योंकि कुछ लोगों का विज्ञान के प्रति जो नजरिया निकल कर सामने आ रहा है वह किसी वैचारिक महामारी से कम नहीं है.

जपदूद
प्रतीकात्मक तस्वीर.
author img

By

Published : Apr 30, 2020, 1:27 PM IST

Updated : May 29, 2020, 12:24 PM IST

जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा कि कीटाणुनाशक का सेवन करना कोरोना वायरस के इलाज के तौर एक संभावित उपाय हो सकता है, तो वह उन नेताओं की एक लंबी कतार में शामिल हो रहे थे, जो विज्ञान को दरकिनार करते रहे हैं. उनका यह ज्ञान इतिहास में आधुनिक विज्ञान के पिता गैलीलियो गैलीली के समय तक जा पहुंचता है. जिन्हें रोमन कैथोलिक चर्च द्वारा सूर्य की केन्द्रीयता पर उनके विचारों के लिए दोषी पाया गया था, जिनका मानना था कि उन्होंने शास्त्रों का खंडन किया है.

मारियो लिवियो, इजरायल-अमेरिकी खगोल भौतिकीविद, अपनी एक नई किताब, गैलीलियो एंड साइंस डेनिएर्स में कहते हैं: 'सरकार के विज्ञान विरोधी दृष्टिकोणों की दुनिया में, जिसमे विज्ञान और धर्म के बीच के अनावश्यक टकराव और मानविकी और विज्ञान के बीच एक व्यापक मदभेद की धारणा मौजूद है. गैलीलियो गैलीली की कहानी सर्वप्रथम विचार की स्वतंत्रता के महत्व के एक शक्तिशाली अनुस्मारक के रूप में कार्य करती है.'

अब जबकि कोरोना वायरस का प्रकोप बढ़ रहा है, विज्ञान को नकारने जैसी एक दूसरी महामारी अनियंत्रित होती जा रही है. ब्राजील के राष्ट्रपति जायर बोल्सोनारो को एक से अधिक कारणों के लिए उष्णकटिबंधीय क्षेत्र का ट्रंप कहा गया है - उनमें से एक कारण है, कोरोना वायरस को एक वैश्विक महामारी के रूप में मानने से उनका इनकार करना. इसके बजाय उसको 'मामूली फ्लू' और 'ज़ुकाम' कहना.

ब्राजील के लोगों को उनके अनुसार कोई संक्रमण नहीं हो सकता है, भले ही वह गंदे नाले में छलांग लगा दें. साथ ही उनका कहना है कि वह अपने भीतर पहले से ही वायरस के प्रसार को रोकने के लिए 'एंटीबॉडी' विकसित कर चुके हैं, लेकिन फिर उन्होंने वनों की कटाई के डेटा सामने लाने के कारण अंतरिक्ष एजेंसी के प्रमुख को यह कहते हुए बर्खास्त कर दिया कि वह गढ़ा हुआ झूठ है.

उधर इंग्लैंड में प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन कोरोना वायरस पर पांच प्रमुखों की बैठकों में शामिल नहीं हुए और फिर वह स्वयं उससे संक्रमित होकर बीमार पड़ गए, लेकिन जलवायु परिवर्तन पर उनके विचारों को देखते हुए महामारी के प्रति उनका यह रवैये असामान्य प्रतीत नहीं होता है. यह पता चला है कि जलवायु विज्ञान से इनकार करने वाले समूह उनके 2019 के चुनाव अभियान के सबसे बड़े दानदाता थे.

विज्ञान को नकारने वाले अभिजनकों के इस कुलीन वर्ग में अन्य लोग भी शामिल हैं, जैसे कि कम्बोडिया के बाहुबली, हुन सेन, मास्क पहनने के लिए लोगों को फटकार लगाते हैं. मैक्सिको के राष्ट्रपति एंड्रेस ओब्रेडोर तक यह मानते हैं कि उनका 'मजबूत नैतिक चरित्र' उन्हें संक्रमित होने से रोकता है.

अपनी नई पुस्तक में लिवियो हमें याद दिलाते हैं कि हम गैलीलियो के पहले भी यहां मौजूद थे. वह कहते हैं कि विज्ञान के प्रति जिस तरह के तिरस्कार और दुश्मनी का अनुभव आज हम कर रहे हैं, ठीक उसी प्रकार के रवैये के खिलाफ गैलीलियो भी लड़ रहे थे.

शास्त्र की व्याख्या और विज्ञान को अलग करने के उनके प्रयासों और प्रायोगिक परिणामों से प्रकृति के नियमों को पढ़कर न कि उन्हें एक निश्चित 'उद्देश्य' के साथ जोड़कर गैलीलियो ने सबसे पहले यह अनुमान लगाया था कि विज्ञान हमें अपने भाग्य की जिम्मेदारी लेने के लिए मजबूर करता है. साथ ही साथ हमारे ग्रह के बारे में भी बताता है.

भारत भी ‘डिनायलिस्म’ यानी नकारवाद की वैश्विक महामारी से अछूता नहीं है. इस शब्द को विज्ञान के लेखक मार्क होफनागले द्वारा गढ़ा गया है, जिन्होंने कहा कि इनकार करने वालों ने जलवायु परिवर्तन, क्रमागत उन्नति, से लेकर एचआईवी/एड्स तक कई विषयों के खिलाफ एक ही रणनीति का इस्तेमाल किया, जिनमें साजिश, सुविधा अनुसार चयनात्मकता, नकली विशेषज्ञ, असंभव उम्मीदें (जिसे खिसकते गोलपोस्ट के रूप में भी जाना जाता है) तर्क की सामान्य गिरावट शामिल हैं.

इस तरह के नकारवाद ने एक पूर्व वरिष्ठ मंत्री को डार्विन के विकास के सिद्धांत को खारिज करते देखा है और टीवी पर कई अनुयायी वाले आध्यात्मिक गुरु को कहते सुना गया कि एचआईवी को योग के माध्यम से 'ठीक' किया जा सकता है. वहीं असम के एक भाजपा विधायक को वायरस का मुकाबला करने के लिए एक शक्तिशाली मिश्रण के रूप में गोमूत्र का समर्थन करते हुए भी देखा है.

आज जबकि पूरी दुनिया कोरोना वायरस नाम की महामारी के कहर के कारण ठहर गई है. टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च के प्रोफेसर अर्नब भट्टाचार्य का मानना है कि अधिक चिंताजनक बात सूचनामारी है, जो कि गलत तरीके से फैलाई जाने वाली गलत सूचनाएं हैं. यह हानिरहित है, लेकिन गलत होने से लेकर संभावित तौर पर जीवन के लिए खतरा हो सकती हैं. जिन्हें टीवी चैनल, वाट्सएप और ट्विटर पर वायरस से भी ज्यादा तेज़ी से फैलाया जा रहा है. 'और इसे बदतर बनाने के लिए,' वह कहते हैं, 'हमारे पास डोनाल्ड ट्रंप जैसे मूर्ख हैं, जिनके बयान विचित्र होने से भी परे हैं.

उनका कीटाणुनाशक के इंजेक्शन लगाने जैसा तथ्यहीन बयान देकर बच जाना इसलिए मुमकिन है, क्योंकि यह उस चिंताकानक संस्कृति का नतीजा है, जो आधुनिक समाज के माध्यम से विज्ञान को नकार रही है. यह चाहें अमरीका में हो या भारत में यह वो देश हैं, जो अपने संविधान में अंकित वैज्ञानिक सोच पर गर्व करते आए हैं, लेकिन जलवायु परिवर्तन से लेकर जीएम फसलों तक और होमियोपैथी में विश्वास से लेकर चमत्कारों के ज़रिये इलाज तक, विज्ञान को नकारना एक महामारी है, जो धीरे-धीरे दुनिया भर में फैल गई है.

सहसंबंध और कारण को मिलाना आसान है, डेटा का मन-मुताबिक चयन करना आसान है, आंकड़ों पर सुविधा अनुसार भरोसा करना आसान है. विशेष रूप से प्राधिकारी और 'बड़ों' के प्रति श्रद्धा में डूबी हुई संस्कृति में किसी दिए गए बयानों पर आवाज़ उठाना या उन्हें चुनौती देना मुश्किल या खतरनाक भी हो सकता है. हमें कभी भी क्यों पूछने के लिए प्रोत्साहित नहीं किया जाता. यहाँ तक कि स्कूल में भी नहीं. और यहाँ से शुरू होती है, वो पूरी प्रक्रिया जो विज्ञान को एक दुर्भाग्यपूर्ण विषय की तरह देखती है, जिसे इस दुनिया, जिसमें हम रहते हैं, को समझने के बजाय स्कूल छोड़ने के बाद भुला दिया जाता है. अपने प्रतिष्ठित नाटक, लाइफ ऑफ़ गैलीलियो में, बर्टोल्ट ब्रेख्त ने लिखा: सोचना मानव जाति के सबसे बड़े सुखों में से एक है.

अफ़सोस की बात है कि हम एक ऐसी दुनिया में रहते हैं, जहां तेजी से भारतीय अतीत की ओर पीछे हटते जा रहे हैं, जिसमें प्लास्टिक सर्जरी जैसी वैज्ञानिक उपलब्धियों और शून्य के आविष्कार की बातें हैं न कि स्वदेशी उपग्रह बनाने और दुनिया की कुछ सबसे सस्ती जीवन-रक्षक दवाओं के उत्पादन के रूप में सच्ची समकालीन उपलब्धियों का जश्न मनाया जाता हो.

ऐसे समय में जब दुनिया के सबसे शक्तिशाली नेता के विज्ञान के प्रति अविश्वास के कारण 2018 में रोग नियंत्रण और रोकथाम बजट में 15 बिलियन डॉलर की कटौती और वैश्विक बीमारी की रोकथाम में योगदान में 80 प्रतिशत की कमी होते देखी है, यह महत्वपूर्ण है कि विश्व के अन्य नेता कोविड मूर्खता (कोविडियोसी) नामक दूसरी महामारी से संक्रमित न हो जाएं.

(लेखक-कावेरी बामजई, पूर्व संपादक, इंडिया टुडे)

जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा कि कीटाणुनाशक का सेवन करना कोरोना वायरस के इलाज के तौर एक संभावित उपाय हो सकता है, तो वह उन नेताओं की एक लंबी कतार में शामिल हो रहे थे, जो विज्ञान को दरकिनार करते रहे हैं. उनका यह ज्ञान इतिहास में आधुनिक विज्ञान के पिता गैलीलियो गैलीली के समय तक जा पहुंचता है. जिन्हें रोमन कैथोलिक चर्च द्वारा सूर्य की केन्द्रीयता पर उनके विचारों के लिए दोषी पाया गया था, जिनका मानना था कि उन्होंने शास्त्रों का खंडन किया है.

मारियो लिवियो, इजरायल-अमेरिकी खगोल भौतिकीविद, अपनी एक नई किताब, गैलीलियो एंड साइंस डेनिएर्स में कहते हैं: 'सरकार के विज्ञान विरोधी दृष्टिकोणों की दुनिया में, जिसमे विज्ञान और धर्म के बीच के अनावश्यक टकराव और मानविकी और विज्ञान के बीच एक व्यापक मदभेद की धारणा मौजूद है. गैलीलियो गैलीली की कहानी सर्वप्रथम विचार की स्वतंत्रता के महत्व के एक शक्तिशाली अनुस्मारक के रूप में कार्य करती है.'

अब जबकि कोरोना वायरस का प्रकोप बढ़ रहा है, विज्ञान को नकारने जैसी एक दूसरी महामारी अनियंत्रित होती जा रही है. ब्राजील के राष्ट्रपति जायर बोल्सोनारो को एक से अधिक कारणों के लिए उष्णकटिबंधीय क्षेत्र का ट्रंप कहा गया है - उनमें से एक कारण है, कोरोना वायरस को एक वैश्विक महामारी के रूप में मानने से उनका इनकार करना. इसके बजाय उसको 'मामूली फ्लू' और 'ज़ुकाम' कहना.

ब्राजील के लोगों को उनके अनुसार कोई संक्रमण नहीं हो सकता है, भले ही वह गंदे नाले में छलांग लगा दें. साथ ही उनका कहना है कि वह अपने भीतर पहले से ही वायरस के प्रसार को रोकने के लिए 'एंटीबॉडी' विकसित कर चुके हैं, लेकिन फिर उन्होंने वनों की कटाई के डेटा सामने लाने के कारण अंतरिक्ष एजेंसी के प्रमुख को यह कहते हुए बर्खास्त कर दिया कि वह गढ़ा हुआ झूठ है.

उधर इंग्लैंड में प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन कोरोना वायरस पर पांच प्रमुखों की बैठकों में शामिल नहीं हुए और फिर वह स्वयं उससे संक्रमित होकर बीमार पड़ गए, लेकिन जलवायु परिवर्तन पर उनके विचारों को देखते हुए महामारी के प्रति उनका यह रवैये असामान्य प्रतीत नहीं होता है. यह पता चला है कि जलवायु विज्ञान से इनकार करने वाले समूह उनके 2019 के चुनाव अभियान के सबसे बड़े दानदाता थे.

विज्ञान को नकारने वाले अभिजनकों के इस कुलीन वर्ग में अन्य लोग भी शामिल हैं, जैसे कि कम्बोडिया के बाहुबली, हुन सेन, मास्क पहनने के लिए लोगों को फटकार लगाते हैं. मैक्सिको के राष्ट्रपति एंड्रेस ओब्रेडोर तक यह मानते हैं कि उनका 'मजबूत नैतिक चरित्र' उन्हें संक्रमित होने से रोकता है.

अपनी नई पुस्तक में लिवियो हमें याद दिलाते हैं कि हम गैलीलियो के पहले भी यहां मौजूद थे. वह कहते हैं कि विज्ञान के प्रति जिस तरह के तिरस्कार और दुश्मनी का अनुभव आज हम कर रहे हैं, ठीक उसी प्रकार के रवैये के खिलाफ गैलीलियो भी लड़ रहे थे.

शास्त्र की व्याख्या और विज्ञान को अलग करने के उनके प्रयासों और प्रायोगिक परिणामों से प्रकृति के नियमों को पढ़कर न कि उन्हें एक निश्चित 'उद्देश्य' के साथ जोड़कर गैलीलियो ने सबसे पहले यह अनुमान लगाया था कि विज्ञान हमें अपने भाग्य की जिम्मेदारी लेने के लिए मजबूर करता है. साथ ही साथ हमारे ग्रह के बारे में भी बताता है.

भारत भी ‘डिनायलिस्म’ यानी नकारवाद की वैश्विक महामारी से अछूता नहीं है. इस शब्द को विज्ञान के लेखक मार्क होफनागले द्वारा गढ़ा गया है, जिन्होंने कहा कि इनकार करने वालों ने जलवायु परिवर्तन, क्रमागत उन्नति, से लेकर एचआईवी/एड्स तक कई विषयों के खिलाफ एक ही रणनीति का इस्तेमाल किया, जिनमें साजिश, सुविधा अनुसार चयनात्मकता, नकली विशेषज्ञ, असंभव उम्मीदें (जिसे खिसकते गोलपोस्ट के रूप में भी जाना जाता है) तर्क की सामान्य गिरावट शामिल हैं.

इस तरह के नकारवाद ने एक पूर्व वरिष्ठ मंत्री को डार्विन के विकास के सिद्धांत को खारिज करते देखा है और टीवी पर कई अनुयायी वाले आध्यात्मिक गुरु को कहते सुना गया कि एचआईवी को योग के माध्यम से 'ठीक' किया जा सकता है. वहीं असम के एक भाजपा विधायक को वायरस का मुकाबला करने के लिए एक शक्तिशाली मिश्रण के रूप में गोमूत्र का समर्थन करते हुए भी देखा है.

आज जबकि पूरी दुनिया कोरोना वायरस नाम की महामारी के कहर के कारण ठहर गई है. टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च के प्रोफेसर अर्नब भट्टाचार्य का मानना है कि अधिक चिंताजनक बात सूचनामारी है, जो कि गलत तरीके से फैलाई जाने वाली गलत सूचनाएं हैं. यह हानिरहित है, लेकिन गलत होने से लेकर संभावित तौर पर जीवन के लिए खतरा हो सकती हैं. जिन्हें टीवी चैनल, वाट्सएप और ट्विटर पर वायरस से भी ज्यादा तेज़ी से फैलाया जा रहा है. 'और इसे बदतर बनाने के लिए,' वह कहते हैं, 'हमारे पास डोनाल्ड ट्रंप जैसे मूर्ख हैं, जिनके बयान विचित्र होने से भी परे हैं.

उनका कीटाणुनाशक के इंजेक्शन लगाने जैसा तथ्यहीन बयान देकर बच जाना इसलिए मुमकिन है, क्योंकि यह उस चिंताकानक संस्कृति का नतीजा है, जो आधुनिक समाज के माध्यम से विज्ञान को नकार रही है. यह चाहें अमरीका में हो या भारत में यह वो देश हैं, जो अपने संविधान में अंकित वैज्ञानिक सोच पर गर्व करते आए हैं, लेकिन जलवायु परिवर्तन से लेकर जीएम फसलों तक और होमियोपैथी में विश्वास से लेकर चमत्कारों के ज़रिये इलाज तक, विज्ञान को नकारना एक महामारी है, जो धीरे-धीरे दुनिया भर में फैल गई है.

सहसंबंध और कारण को मिलाना आसान है, डेटा का मन-मुताबिक चयन करना आसान है, आंकड़ों पर सुविधा अनुसार भरोसा करना आसान है. विशेष रूप से प्राधिकारी और 'बड़ों' के प्रति श्रद्धा में डूबी हुई संस्कृति में किसी दिए गए बयानों पर आवाज़ उठाना या उन्हें चुनौती देना मुश्किल या खतरनाक भी हो सकता है. हमें कभी भी क्यों पूछने के लिए प्रोत्साहित नहीं किया जाता. यहाँ तक कि स्कूल में भी नहीं. और यहाँ से शुरू होती है, वो पूरी प्रक्रिया जो विज्ञान को एक दुर्भाग्यपूर्ण विषय की तरह देखती है, जिसे इस दुनिया, जिसमें हम रहते हैं, को समझने के बजाय स्कूल छोड़ने के बाद भुला दिया जाता है. अपने प्रतिष्ठित नाटक, लाइफ ऑफ़ गैलीलियो में, बर्टोल्ट ब्रेख्त ने लिखा: सोचना मानव जाति के सबसे बड़े सुखों में से एक है.

अफ़सोस की बात है कि हम एक ऐसी दुनिया में रहते हैं, जहां तेजी से भारतीय अतीत की ओर पीछे हटते जा रहे हैं, जिसमें प्लास्टिक सर्जरी जैसी वैज्ञानिक उपलब्धियों और शून्य के आविष्कार की बातें हैं न कि स्वदेशी उपग्रह बनाने और दुनिया की कुछ सबसे सस्ती जीवन-रक्षक दवाओं के उत्पादन के रूप में सच्ची समकालीन उपलब्धियों का जश्न मनाया जाता हो.

ऐसे समय में जब दुनिया के सबसे शक्तिशाली नेता के विज्ञान के प्रति अविश्वास के कारण 2018 में रोग नियंत्रण और रोकथाम बजट में 15 बिलियन डॉलर की कटौती और वैश्विक बीमारी की रोकथाम में योगदान में 80 प्रतिशत की कमी होते देखी है, यह महत्वपूर्ण है कि विश्व के अन्य नेता कोविड मूर्खता (कोविडियोसी) नामक दूसरी महामारी से संक्रमित न हो जाएं.

(लेखक-कावेरी बामजई, पूर्व संपादक, इंडिया टुडे)

Last Updated : May 29, 2020, 12:24 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.