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क्या है नेशनल मेडिकल कमीशन बिल- क्यों है इस पर विवाद, जानें सबकुछ

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Published : Sep 9, 2019, 9:10 PM IST

Updated : Sep 30, 2019, 1:16 AM IST

पिछले दिनों सरकार ने संसद में नेशनल मेडिकल काउंसिल (एनएमसी) अधिनियम पेश किया जिसे संसद द्वारा पास कर दिया गया. हालांकि इस बिल के खिलाफ डाक्टरों ने पूरे भारत में विरोध प्रर्दशन किया था. आइये जानते हैं डाक्टरों के अनुसार एनएमसी अधिनियम में क्या हैं खामियां.

डा. हर्षवर्धन केंद्रिय स्वास्थ मंत्री

नई दिल्ली: पिछले दशक के दौरान दुनिया के चिकित्सा क्षेत्र में कई बड़े बदलाव हुए हैं. इन बदलावों के साथ ताल मेल बनाने के लिए ही चिकित्सा शिक्षा पद्धति में भी कई बड़े बदलाव किए गए. निजी मेडिकल कॉलेजों और विश्वविद्यालयों की स्थापना और टीचिंग हॉस्पिटल्स का खोला जाना इस बात का जीता जागता प्रमाण है. लेकिन एक कड़वा सच ये भी है कि मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया ने मेडिकल कॉलेजों को मंजूरी तो दे दी पर उनकी निगरानी करने में कितनी सफल रही यह विषय भी सोचनीय है.

निसंदेह, एक तथ्य यह भी है कि मेडिकल काउंसिल आफ इंडिया भ्रष्टाचार का अड्डा बन गयी थी और चिकित्सा शिक्षा के मानकों को काफी नुकसान पहुंचाया था. मेडिकल काउंसिल आफ इंडिया में हो रहे भष्ट्राचार से निपटने के लिए सरकार ने राष्ट्रीय चिकित्सा परिषद (एनएमसी) लाने का फैसला किया लेकिन एनएमसी लागू होने से पहले ही विवाद में आ गया.

etv bhart
फाइल फोटो

भारत में चिकित्सा शिक्षा के सबसे बड़े सुधारों में से एक माने जा रहे, राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (NMC) विधेयक 2019, को डाक्टरों के प्रतीरोध का सामना करना पड़ा. जूनियर डॉक्टरों (जुडास) ने इसके खिलाफ आंदोलन किया, हड़ताल की, हालांकि दोनों सदनों में पारित होने के और राष्ट्रपति से भी स्वीकृत किये जाने के बाद , यह अब एक कानूनी अधिनियम बन गया है.

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री, हर्षवर्धन ने घोषणा की कि यह विधेयक देश के चिकित्सा क्षेत्र में प्रभावित कर सकता है और नए इतिहास बना सकता है. अगर बिल में कुछ गलत नहीं है, तो इसका विरोध क्यों हो रहा है? दूसरी ओर, सरकार का तर्क है कि बिल को दो साल पहले एक मसौदे के रूप में बिल को पेश किया गया था और कई सुझावों को ध्यान में रखते हुए, इसमें कई बदलावों को शामिल किया गया था, जिसके बाद बिलका वर्तमान खाका तैयार हुआ है.

बिल को लेकर संदेह-

भारत में कई बड़े डाक्टर हुए हैं, उनकी न सिर्फ भारत में बल्कि विश्व भर में विशेषज्ञ चिकित्सा पेशेवरों के रूप में पहचान और इज्जत है.

सिर्फ कुछ राजनेताओं के समर्थन के कारण, चिकित्सा के क्षेत्र में अवैध गतिविधियां चल रही हैं. सलाहकारों का तर्क है कि केवल सरकार के नामित सदस्य ही कैसे भ्रष्टाचार मुक्त कार्य कर सकते हैं और पारदर्शिता के साथ लोगों की आकांक्षाओं के अनुरूप हो सकते हैं और एक वैकल्पिक ढांचा ला सकते हैं जिसे थोपा जा रहा है.

नई संरचना के साथ, राज्यों का महत्व कम हो जाएगा क्योंकि कुछ सदस्यों को बारी-बारी से नियुक्त किया जाता है. उनका तर्क है कि ऐसी संस्था जिसे कुछ राज्यों के प्रतिनिधित्व के बिना हि, दो या तीन वर्षों में एक बार बदलता है, कहां तक उचित है?

कुछ सदस्यों को बारी-बारी से नियुक्त किए जाने के कारण नई संरचनाओं के साथ राज्यों का महत्व घट जाएगा. इस पर तर्क यह है कि ऐसा होने से यह साध्य निकाय के तौर पर कैसे खड़ा होगा. क्या यह उचित है कि एक निकाय को दो या तीन सालों में एक बार बदला जाए, बिना कुछ राज्यों के प्रतिनिधित्व के.

एनएमसी के खिलाफ यह तर्क दिया जाता है कि इस अधिनियम के कार्यान्वयन के साथ, राज्य सरकारों का प्रतिनिधित्व कम हो जाएगा और यह संघीय भावना को आहत करता है. आपको बता दें कि इस अधिनियम के तहत निकाय के अध्यक्ष सहित सभी सदस्यों को अपनी आय और संपत्ति का विवरण घोषित करना होगा. साथ ही यह अधिनियम यह भी निर्धारित करता है कि परिषद में काम करने के बाद, सदस्यों को किसी भी निजी शिक्षण अस्पतालों या संगठन में काम नहीं करना चाहिए. इस वजह से एनएमसी को भ्रष्टाचार मुक्त बताया जा रहा है.

निर्णय लेने वाले सदस्य में, सिर्फ ही डॉक्टर नहीं होंगे, बल्कि आईआईटी, आईआईएम और अन्य निकायों और क्षेत्रों से भी नामित लोगों की एक टीम होगी. यह भी तर्क दिया जा रहा है कि इस तरह की रचना से, चिकित्सक अमले का प्रतिनिधित्व कम हो जाएगा और विविध क्षेत्रों का हस्तक्षेप होगा.

पढ़ें- NMC बिल: रेजिडेंट डॉक्टरों से डॉ. हर्षवर्धन ने की मुलाकात, बोले- गलतफहमियों को किया दूर

यह उल्लेखनीय है कि किसी भी संस्था में, विभिन्न क्षेत्रों के व्यक्तियों का प्रतिनिधित्व नहीं होगा, यदि यह चार स्वायत्त निकायों के साथ सहयोग करने का इरादा है, तो एमसीआई को पूरी तरह से समाप्त करने की कोई आवश्यकता नहीं है.

अगर हम शिक्षा के व्यापारिकरण के दौर में उच्च मानकों की अपेक्षा करते हैं तो यह एक बेमानी बात होगी. अगर मैनेजमेंट कोटा जो अब तक 15 फीसदी था वो बढ़ कर 50 प्रतिशत हो जाता है तो निजी भागीदारी का हिस्सा बढ़ेगा.

इस समय पूरे देश में 536 मेडिकल कालेज हैं और उनमें लगभग 80,000 एमबीबीएस सीटें हैं. इनमें से 38000 सीटें निजी मेडिकल कालेजों के अंतर्गत आती है. अब 20,000 सीटों को मैनेजमेंट कोटा के तहत भरा जा रहा है. जिसकी वजह से मेडिकल शिक्षा आम लोगों की पहुंच से बाहर होती जा रही है.

etv bhart
फाइल फोटो

सरकार को चाहिए प्रतिभा को प्रोत्साहित करें, लेकिन अगर प्राथमिकता निजी चिकित्सा शिक्षण संस्थाओं को प्रोत्साहित करने को दी जा रही है तो इसके परिणाम घातक सिद्ध होंगे.

वास्तव में, आरोप यह है कि अनुमोदन प्रक्रिया के समय एमसीआई में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार हुआ था. क्या इस नए बिल से भ्रष्टाचार पर लगाम लग पाएगा? क्या करोड़ों रुपये देकर हासिल की गई शिक्षा, समाज का भला कर सकती है और आम आदमी के आगे झुक सकती है? यह सिर्फ एक बीमार प्रणाली से अच्छे परिणाम की उम्मीद करने जैसी बात होगी.

इन प्राइवेट मेडिकल फैक्ट्रियों से निकले डाक्टरों में से कितने गांवों में काम कर सकेंगे? यह संदेह के घेरे में है. साथ ही सरकार के इस कदम से आम जनता को कितना फायदा पहुंचेगा.

सिर्फ डाक्टरों की संख्या बढ़ाने से आम आदमी की अच्छी सेहत और इलाज नहीं दिया जा सकता. कॉर्पोरेट डॉक्टर, जो पहले से ही नैतिकता को पूरी तरह समाप्त करने जैसी आलोचनाओं का सामना कर रहा है, वो भी सरकारी मेडिकल कॉलेजों का ही उत्पाद हैं. सामाजिक मूल्य केवल उस कॉलेज पर निर्भर नहीं करता है जिसका उन्होंने अध्ययन किया है. वे अच्छे परिवार की पृष्ठभूमि, परवरिश और कुछ आदर्शवादी शिक्षकों के प्रभाव पर भी निर्भर करते हैं.

इसलिए, सभी निजी मेडिकल कॉलेजों पर संदेह करने की आवश्यकता नहीं है.

पढ़ें-देश के 57.3 फीसदी डॉक्टर फर्जी, केंद्र ने स्वीकार की WHO की रिपोर्ट

एमबीबीएस पूरा करने के बाद अनिवार्य नेशनल एग्जिट टेस्ट (NEXT) एक बहुत ही महत्वपूर्ण परीक्षा है क्योंकि देश में चिकित्सा शिक्षा के मानक एक समान नहीं हैं. यह आश्चर्य की बात है कि है कि एक समान बहुविकल्पीय प्रकार के प्रश्न परीक्षण किस तरह से सभी क्षेत्रों को संतुलित करेंगे. इसके अलावा, इसमें 'मेडिकल स्किल्स' के बारे में कुछ नहीं किया गया है.

पहले ही इस व्यवस्था प्रणाली पर ऐसे डाक्टर देने का आरोप है, जो न तो सुई लगाना जानते हैं न ही छोटी मोटी सर्जरी करना. इससे लोग आशंकित हैं कि समस्या और तेज हो जाएगी और सार्वजनिक स्वास्थ्य को जटिल खतरा पैदा हो जाएगा.

फिर, उन लोगों के बारे में क्या है जो नेशनल एग्जिट टेस्ट को क्लियर नहीं कर पा रहे हैं? क्या उन्हें फिर से कक्षा 12 में या अगली बार परीक्षा के लिए कितना समय मिलेगा? उन्हें परीक्षा कितनी बार देने की अनुमति होगी? इन सवालों के कोई स्पष्ट उत्तर नहीं हैं.

etv bhart
फाइल फोटो

अशावादी नजरिया-

नए अधिनियम को समझने में निश्चित रूप से कुछ और समय लगेगा. कुछ आशंकाओं को दूर किया जा सकता है. अप्रत्याशित विकास भी हो सकते हैं. एक समझदार समाज हमेशा बदलाव की तलाश में रहता है.

यदि बदलाव अच्छे के लिए होगा तो समाज निश्चित तोर पर खुश होगा. समाज में उत्साह परिवर्तन को स्वीकार करेगा आगे बढ़ेगा और विकास की दिशा की दिशा में आगे बढ़ाया जाएगा. यह उल्लेखनीय है कि जो नए अधिनियम की आलोचना करने वाले लोग वह भी बदलाव का पूरी तरह से विरोध नहीं करते हैं.

सरकार के सामने बड़ी चुनौती इस संगठन को भ्रष्टाचार मुक्त बनाने की है. न केवल विशेषज्ञों को बल्कि सही व्यक्तियों को भी नियुक्त किया जाना चाहिए; अन्यथा, यह एक नई बोतल में पुरानी शराब जैसा होगा. निजी मेडिकल कॉलेजों की अनुमति प्रदान करने और उनके मानकों का आकलन करने के लिए निष्पक्ष नीति विकसित की जानी चाहिए. राज्यों की सरकार को सरकारी मेडिकल कॉलेजों के लिए विशेषज्ञ उपलब्ध कराने में सहयोग प्रदान करना चाहिए.

'समय पर उचित उपचार' लोगों का प्राथमिक अधिकार है. स्वस्थ नागरिक देश के विकास का हिस्सा बनेंगे. सुविधाओं की कमी के लिए इस अधिनियम के माध्यम से, 'सामुदायिक स्वास्थ्य प्रदाताओं" को ग्राम स्तर के लिए पेश किया गया है. आशा है कि छह महीने तक प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद, ये गांवों में प्राथमिक स्वास्थ्य प्रदान करने में सक्षम होंगे.

पढ़ें-डॉक्टर्स की हड़ताल: मरीजों का हाल-बेहाल, आपातकालीन सेवाएं भी बाधित

यह गांवों में नहीं जाने वाले विशेषज्ञों की समस्या का वैकल्पिक समाधान है. डॉक्टरों को लगता है कि इससे कई सवाल खड़े होंगे और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में उचित सुविधाएं भी नहीं मिल पाएंगी.

चूंकि मरीजों को कम गुणवत्ता वाला उपचार मिल रहा है, इसलिए सुविधाएं बढ़ाई जानी चाहिए. बहुत से डाक्टर सरकारी नौकरी की तलाश में हैं. वहीं कई सारे राज्यों में रिक्त पद भी हैं. वे कहते हैं कि पर्याप्त सुविधाएं प्रदान किए बिना, डॉक्टरों को दोष देना उचित नहीं होगा कि वे अपर्याप्त उपचार करते हैं.

कई सवाल हैं कि ग्रामीण लोग बेहतर उपचार कैसे प्राप्त कर सकते हैं जो पहले से ही ग्रामीण (आरएमपी) डॉक्टरों से इलाज करवा रहे हैं.

नई दिल्ली: पिछले दशक के दौरान दुनिया के चिकित्सा क्षेत्र में कई बड़े बदलाव हुए हैं. इन बदलावों के साथ ताल मेल बनाने के लिए ही चिकित्सा शिक्षा पद्धति में भी कई बड़े बदलाव किए गए. निजी मेडिकल कॉलेजों और विश्वविद्यालयों की स्थापना और टीचिंग हॉस्पिटल्स का खोला जाना इस बात का जीता जागता प्रमाण है. लेकिन एक कड़वा सच ये भी है कि मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया ने मेडिकल कॉलेजों को मंजूरी तो दे दी पर उनकी निगरानी करने में कितनी सफल रही यह विषय भी सोचनीय है.

निसंदेह, एक तथ्य यह भी है कि मेडिकल काउंसिल आफ इंडिया भ्रष्टाचार का अड्डा बन गयी थी और चिकित्सा शिक्षा के मानकों को काफी नुकसान पहुंचाया था. मेडिकल काउंसिल आफ इंडिया में हो रहे भष्ट्राचार से निपटने के लिए सरकार ने राष्ट्रीय चिकित्सा परिषद (एनएमसी) लाने का फैसला किया लेकिन एनएमसी लागू होने से पहले ही विवाद में आ गया.

etv bhart
फाइल फोटो

भारत में चिकित्सा शिक्षा के सबसे बड़े सुधारों में से एक माने जा रहे, राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (NMC) विधेयक 2019, को डाक्टरों के प्रतीरोध का सामना करना पड़ा. जूनियर डॉक्टरों (जुडास) ने इसके खिलाफ आंदोलन किया, हड़ताल की, हालांकि दोनों सदनों में पारित होने के और राष्ट्रपति से भी स्वीकृत किये जाने के बाद , यह अब एक कानूनी अधिनियम बन गया है.

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री, हर्षवर्धन ने घोषणा की कि यह विधेयक देश के चिकित्सा क्षेत्र में प्रभावित कर सकता है और नए इतिहास बना सकता है. अगर बिल में कुछ गलत नहीं है, तो इसका विरोध क्यों हो रहा है? दूसरी ओर, सरकार का तर्क है कि बिल को दो साल पहले एक मसौदे के रूप में बिल को पेश किया गया था और कई सुझावों को ध्यान में रखते हुए, इसमें कई बदलावों को शामिल किया गया था, जिसके बाद बिलका वर्तमान खाका तैयार हुआ है.

बिल को लेकर संदेह-

भारत में कई बड़े डाक्टर हुए हैं, उनकी न सिर्फ भारत में बल्कि विश्व भर में विशेषज्ञ चिकित्सा पेशेवरों के रूप में पहचान और इज्जत है.

सिर्फ कुछ राजनेताओं के समर्थन के कारण, चिकित्सा के क्षेत्र में अवैध गतिविधियां चल रही हैं. सलाहकारों का तर्क है कि केवल सरकार के नामित सदस्य ही कैसे भ्रष्टाचार मुक्त कार्य कर सकते हैं और पारदर्शिता के साथ लोगों की आकांक्षाओं के अनुरूप हो सकते हैं और एक वैकल्पिक ढांचा ला सकते हैं जिसे थोपा जा रहा है.

नई संरचना के साथ, राज्यों का महत्व कम हो जाएगा क्योंकि कुछ सदस्यों को बारी-बारी से नियुक्त किया जाता है. उनका तर्क है कि ऐसी संस्था जिसे कुछ राज्यों के प्रतिनिधित्व के बिना हि, दो या तीन वर्षों में एक बार बदलता है, कहां तक उचित है?

कुछ सदस्यों को बारी-बारी से नियुक्त किए जाने के कारण नई संरचनाओं के साथ राज्यों का महत्व घट जाएगा. इस पर तर्क यह है कि ऐसा होने से यह साध्य निकाय के तौर पर कैसे खड़ा होगा. क्या यह उचित है कि एक निकाय को दो या तीन सालों में एक बार बदला जाए, बिना कुछ राज्यों के प्रतिनिधित्व के.

एनएमसी के खिलाफ यह तर्क दिया जाता है कि इस अधिनियम के कार्यान्वयन के साथ, राज्य सरकारों का प्रतिनिधित्व कम हो जाएगा और यह संघीय भावना को आहत करता है. आपको बता दें कि इस अधिनियम के तहत निकाय के अध्यक्ष सहित सभी सदस्यों को अपनी आय और संपत्ति का विवरण घोषित करना होगा. साथ ही यह अधिनियम यह भी निर्धारित करता है कि परिषद में काम करने के बाद, सदस्यों को किसी भी निजी शिक्षण अस्पतालों या संगठन में काम नहीं करना चाहिए. इस वजह से एनएमसी को भ्रष्टाचार मुक्त बताया जा रहा है.

निर्णय लेने वाले सदस्य में, सिर्फ ही डॉक्टर नहीं होंगे, बल्कि आईआईटी, आईआईएम और अन्य निकायों और क्षेत्रों से भी नामित लोगों की एक टीम होगी. यह भी तर्क दिया जा रहा है कि इस तरह की रचना से, चिकित्सक अमले का प्रतिनिधित्व कम हो जाएगा और विविध क्षेत्रों का हस्तक्षेप होगा.

पढ़ें- NMC बिल: रेजिडेंट डॉक्टरों से डॉ. हर्षवर्धन ने की मुलाकात, बोले- गलतफहमियों को किया दूर

यह उल्लेखनीय है कि किसी भी संस्था में, विभिन्न क्षेत्रों के व्यक्तियों का प्रतिनिधित्व नहीं होगा, यदि यह चार स्वायत्त निकायों के साथ सहयोग करने का इरादा है, तो एमसीआई को पूरी तरह से समाप्त करने की कोई आवश्यकता नहीं है.

अगर हम शिक्षा के व्यापारिकरण के दौर में उच्च मानकों की अपेक्षा करते हैं तो यह एक बेमानी बात होगी. अगर मैनेजमेंट कोटा जो अब तक 15 फीसदी था वो बढ़ कर 50 प्रतिशत हो जाता है तो निजी भागीदारी का हिस्सा बढ़ेगा.

इस समय पूरे देश में 536 मेडिकल कालेज हैं और उनमें लगभग 80,000 एमबीबीएस सीटें हैं. इनमें से 38000 सीटें निजी मेडिकल कालेजों के अंतर्गत आती है. अब 20,000 सीटों को मैनेजमेंट कोटा के तहत भरा जा रहा है. जिसकी वजह से मेडिकल शिक्षा आम लोगों की पहुंच से बाहर होती जा रही है.

etv bhart
फाइल फोटो

सरकार को चाहिए प्रतिभा को प्रोत्साहित करें, लेकिन अगर प्राथमिकता निजी चिकित्सा शिक्षण संस्थाओं को प्रोत्साहित करने को दी जा रही है तो इसके परिणाम घातक सिद्ध होंगे.

वास्तव में, आरोप यह है कि अनुमोदन प्रक्रिया के समय एमसीआई में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार हुआ था. क्या इस नए बिल से भ्रष्टाचार पर लगाम लग पाएगा? क्या करोड़ों रुपये देकर हासिल की गई शिक्षा, समाज का भला कर सकती है और आम आदमी के आगे झुक सकती है? यह सिर्फ एक बीमार प्रणाली से अच्छे परिणाम की उम्मीद करने जैसी बात होगी.

इन प्राइवेट मेडिकल फैक्ट्रियों से निकले डाक्टरों में से कितने गांवों में काम कर सकेंगे? यह संदेह के घेरे में है. साथ ही सरकार के इस कदम से आम जनता को कितना फायदा पहुंचेगा.

सिर्फ डाक्टरों की संख्या बढ़ाने से आम आदमी की अच्छी सेहत और इलाज नहीं दिया जा सकता. कॉर्पोरेट डॉक्टर, जो पहले से ही नैतिकता को पूरी तरह समाप्त करने जैसी आलोचनाओं का सामना कर रहा है, वो भी सरकारी मेडिकल कॉलेजों का ही उत्पाद हैं. सामाजिक मूल्य केवल उस कॉलेज पर निर्भर नहीं करता है जिसका उन्होंने अध्ययन किया है. वे अच्छे परिवार की पृष्ठभूमि, परवरिश और कुछ आदर्शवादी शिक्षकों के प्रभाव पर भी निर्भर करते हैं.

इसलिए, सभी निजी मेडिकल कॉलेजों पर संदेह करने की आवश्यकता नहीं है.

पढ़ें-देश के 57.3 फीसदी डॉक्टर फर्जी, केंद्र ने स्वीकार की WHO की रिपोर्ट

एमबीबीएस पूरा करने के बाद अनिवार्य नेशनल एग्जिट टेस्ट (NEXT) एक बहुत ही महत्वपूर्ण परीक्षा है क्योंकि देश में चिकित्सा शिक्षा के मानक एक समान नहीं हैं. यह आश्चर्य की बात है कि है कि एक समान बहुविकल्पीय प्रकार के प्रश्न परीक्षण किस तरह से सभी क्षेत्रों को संतुलित करेंगे. इसके अलावा, इसमें 'मेडिकल स्किल्स' के बारे में कुछ नहीं किया गया है.

पहले ही इस व्यवस्था प्रणाली पर ऐसे डाक्टर देने का आरोप है, जो न तो सुई लगाना जानते हैं न ही छोटी मोटी सर्जरी करना. इससे लोग आशंकित हैं कि समस्या और तेज हो जाएगी और सार्वजनिक स्वास्थ्य को जटिल खतरा पैदा हो जाएगा.

फिर, उन लोगों के बारे में क्या है जो नेशनल एग्जिट टेस्ट को क्लियर नहीं कर पा रहे हैं? क्या उन्हें फिर से कक्षा 12 में या अगली बार परीक्षा के लिए कितना समय मिलेगा? उन्हें परीक्षा कितनी बार देने की अनुमति होगी? इन सवालों के कोई स्पष्ट उत्तर नहीं हैं.

etv bhart
फाइल फोटो

अशावादी नजरिया-

नए अधिनियम को समझने में निश्चित रूप से कुछ और समय लगेगा. कुछ आशंकाओं को दूर किया जा सकता है. अप्रत्याशित विकास भी हो सकते हैं. एक समझदार समाज हमेशा बदलाव की तलाश में रहता है.

यदि बदलाव अच्छे के लिए होगा तो समाज निश्चित तोर पर खुश होगा. समाज में उत्साह परिवर्तन को स्वीकार करेगा आगे बढ़ेगा और विकास की दिशा की दिशा में आगे बढ़ाया जाएगा. यह उल्लेखनीय है कि जो नए अधिनियम की आलोचना करने वाले लोग वह भी बदलाव का पूरी तरह से विरोध नहीं करते हैं.

सरकार के सामने बड़ी चुनौती इस संगठन को भ्रष्टाचार मुक्त बनाने की है. न केवल विशेषज्ञों को बल्कि सही व्यक्तियों को भी नियुक्त किया जाना चाहिए; अन्यथा, यह एक नई बोतल में पुरानी शराब जैसा होगा. निजी मेडिकल कॉलेजों की अनुमति प्रदान करने और उनके मानकों का आकलन करने के लिए निष्पक्ष नीति विकसित की जानी चाहिए. राज्यों की सरकार को सरकारी मेडिकल कॉलेजों के लिए विशेषज्ञ उपलब्ध कराने में सहयोग प्रदान करना चाहिए.

'समय पर उचित उपचार' लोगों का प्राथमिक अधिकार है. स्वस्थ नागरिक देश के विकास का हिस्सा बनेंगे. सुविधाओं की कमी के लिए इस अधिनियम के माध्यम से, 'सामुदायिक स्वास्थ्य प्रदाताओं" को ग्राम स्तर के लिए पेश किया गया है. आशा है कि छह महीने तक प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद, ये गांवों में प्राथमिक स्वास्थ्य प्रदान करने में सक्षम होंगे.

पढ़ें-डॉक्टर्स की हड़ताल: मरीजों का हाल-बेहाल, आपातकालीन सेवाएं भी बाधित

यह गांवों में नहीं जाने वाले विशेषज्ञों की समस्या का वैकल्पिक समाधान है. डॉक्टरों को लगता है कि इससे कई सवाल खड़े होंगे और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में उचित सुविधाएं भी नहीं मिल पाएंगी.

चूंकि मरीजों को कम गुणवत्ता वाला उपचार मिल रहा है, इसलिए सुविधाएं बढ़ाई जानी चाहिए. बहुत से डाक्टर सरकारी नौकरी की तलाश में हैं. वहीं कई सारे राज्यों में रिक्त पद भी हैं. वे कहते हैं कि पर्याप्त सुविधाएं प्रदान किए बिना, डॉक्टरों को दोष देना उचित नहीं होगा कि वे अपर्याप्त उपचार करते हैं.

कई सवाल हैं कि ग्रामीण लोग बेहतर उपचार कैसे प्राप्त कर सकते हैं जो पहले से ही ग्रामीण (आरएमपी) डॉक्टरों से इलाज करवा रहे हैं.

Intro:Body:

CONTROVERSIAL NATIONAL MEDICAL COUNCIL ACT



There have been several drastic changes in world’s medical field during the

past decade. Medical education domain too is rapidly changing in several

ways in tune with them. The establishment of private Medical University

and Teaching Hospitals is ample proof for this. But it is a bitter truth that,

having sanctioned them, the Medical Council of India (MCI) has failed in

monitoring them. Undoubtedly, it is also a fact that the Council has

become a haven for corruption and dented medical education standards.

The National Medical Council brought in by the central government in its

place has become very controversial even before it took off. Touted as one

of the biggest reforms in medical education in India, the National Medical

Commission (NMC) Bill, 2019, is facing major resistance from medical

fraternity. Junior doctors (Judas) have taken up agitation, strikes against

this After getting it passed in both the houses, and having received the

assent from the President too, it has now become a legal act.

Several Doubts

Union Health Minister, Harshavardhan declared that the bill can impact

country’s medical field and galvanize it to new vistas. Had it been so well

conceived, how is it, so many are opposing it? On the other hand, the

government argues that the bill was introduced as a draft two years ago

and taking into consideration a number of suggestions, several changes

were incorporated and it emerged in the form of the present bill. India has

produced several top doctors. They have high reputation in India and

abroad as expert medical professionals. Under that background, just

because of the support of some politicians, illegal activities are going on.

As such, when the government is overhauling the total system and bringing

in a new order, some doctors are opposing it. But the adversaries argue

that how can only government nominated members, function corruption

free and with transparency in accordance with the aspirations of people

and bring in an alternate structure which being imposed. With the new

structure, the importance of states would be dwindled because some

members are appointed in an alternate way by rotation; They argue how

can it stand as a viable body. How is such a body, which changes once in

two or three years, without representation from some states, is justified? It

is argued that with the implementation of this act, the representation of the

state governments would be reduced and this distorts the federal spirit.



All the members, including the Chairperson of the body should declare their

income and property details. This act also stipulates that subsequent to

working in the Council, members should not work in any private teaching

hospitals or organization. With this, they say, there is a scope for NMC,

functioning as a corruption-free body. In decision taking bodies, the

members will not be just doctors, but also will be nominees from IIT, IIM

and other bodies and fields. It is also being argued that with such

composition, the representation of medical fraternity would be reduced and

it becomes pot pourri. It is notable that in any body, there will not be

representation of persons from different fields. If it is the intention of

collaborating with four autonomous bodies, there is no need to totally

abolish MCI.

It would be too ambitious for us to expect higher standards in the

background of importance being given to corporatization. If the

management quota, which has so far been 15% is hiked to 50%, the

participation of private partnership would increase. Of the 536 existing

medical colleges in the country, there are about 80,000 MBBS seats. Of

these, 38,000 seats are in the control of private medical colleges. Now,

20,000 seats are being filled in management quota. Thus, medical

education gets out of reach to commoners. The government should

encourage talent; instead, if it encourages taking over of medical education

by private bodies, the consequences would be diastrous. In fact, the

allegation is that large scale corruption had taken place in MCI at the time

of approval process. The newly formulated bill has not shown any

corruption-free viable alternative for this. Can education acquired by

pumping in crores of rupees, provide good for the society and succour to

the common man? It would be utopian to expect good results from such an

ill-gotten system.

How many of these doctors emerging from private medical factories would

be able to work in the villages? It is doubtful that the well-meaning intention

of the government to churn out a greater number of doctors in a short span

of time, would be in the direction of providing proper medial aid to the

common man. Mere enhancing the number of doctors in the country would

not result in providing health and safety to common men. Corporate

doctors, who are already facing the criticism that ethics are totally

compromised, also are the products of government medical colleges.



Social values do not just depend upon the college they have studied. They

depend upon good family background, upbringing and the influence of

teachers and above all, sticking to certain ideals. Therefore, there is no

need to be suspicious of all private medical colleges. The obligatory

National Exit Test (NEXT), after completing MBBS is a very critical test

because the standards of medical education in the country are not uniform.

As such, people wonder as to how a uniform multiple-choice type questions

tests, will balance all the regions. Further, in this, items on ‘clinical skills’

are missing. Already, there is an allegation that the present system is

turning out doctors who cannot give injections and minor surgeries. People

are apprehensive that the problem will intensify and gets complicated

jeopardizing public health. Then, what about those who are not able to

clear the National Exit Test? Should they go back to intermediate level or

when should they appear for the test next? How many times would they be

permitted to take the test? There are no clear answers for these questions.

Optimistic Outlook

It will surely take some more time to understand the nature of the new Act.

Some of the apprehensions may be cleared. Unexpected developments too

may crop up. A sensible society always looks for change. If the change is

for good, the society will be enlightened. The society will be charged with

enthusiasm and imbibes the change and moves forward towards

development. What is notable is even those who criticize the new act do

not totally oppose the change. The big challenge before the government to

evolve this organization corruption-free. Not just experts but also righteous

persons should be appointed; otherwise, it would be like ‘old wine in a new

bottle’. Impartial policy should be evolved for according permission to

private medical colleges and assessing their standards. State governments

should render cooperation in providing experts for government medical

colleges. “Proper treatment on time” is people’s primary right. Healthy

citizens will become part of country’s development. The result of gaining

independence is evolving disease-free India.

Lack of Facilities

Through this act, “Community Health Providers” have been introduced for

village level. It is hoped that after receiving training for six months, these

will be able to render primary health in the villages. This is the alternative



solution to the problem of experts not going to villages. Doctors feel that

this would lead to several questions. There will not be proper facilities in

primary health centres. Since the opportunity to provide quality treatment to

the patients is less, more facilities should be created. A number of doctors

are looking forward for government jobs. In several states, unfilled

vacancies are high. They say that without providing adequate facilities, it

would not be proper to blame the doctors that they render inadequate

treatment. Several question that how can rural people receive better

treatment who already receive scanty treatment with RMP doctors. It is

very interesting to see, how Community Health Providers would be facing

the RMP doctors set-up who have political support.


Conclusion:
Last Updated : Sep 30, 2019, 1:16 AM IST
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