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कांग्रेस ने एनएससीएन के दावे को लेकर सरकार पर निशाना साधा

कांग्रेस ने 2015 के रूपरेखा समझौते (फ्रेमवर्क एग्रीमेंट) के संदर्भ में नगा संगठन एनएससीएन-आईएम के दावे को लेकर बुधवार को केंद्र सरकार पर निशाना साधा और कहा कि सरकार को इस मामले पर अपना रुख स्पष्ट करते हुए देश को सही स्थिति से अवगत कराना चाहिए.

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Published : Aug 19, 2020, 11:04 PM IST

नई दिल्ली : कांग्रेस ने 2015 के रूपरेखा समझौते (फ्रेमवर्क एग्रीमेंट) के संदर्भ में नगा संगठन एनएससीएन-आईएम के दावे को लेकर बुधवार को केंद्र सरकार पर निशाना साधा और कहा कि सरकार को इस मामले पर अपना रुख स्पष्ट करते हुए देश को सही स्थिति से अवगत कराना चाहिए.

इससे पहले नगालैंड में विपक्षी एनपीएफ नगा राजनीतिक मुद्दों पर गठित संयुक्त विधायक मंच (जेएलएफ) से यह कहते हुए अलग हो गया कि मुद्दे के समाधान के लिए प्रगति करने में असफल रहा.

गोहिल ने कहा कि सरकार को स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए और देश की जनता को सही जानकारी देनी चाहिए.

जेएलएफ से अलग होने का फैसला दीमापुर में विपक्षी नेता टीआर जेलियांग के आवास पर मंगलवार को हुई नगा पीपुल्स फ्रंट (एनपीएफ) के विधायक दल की बैठक में लिया गया.

एनपीएफ ने हालांकि, जोर देकर कहा कि वह मामले के शीघ्र समाधान के लिए ‘सक्रिय सहायक’ की भूमिका जारी रखेगा.

गौरतलब है कि सरकार के साथ शांति वार्ता कर चुके एनएससीएन-आईएम ने पिछले सप्ताह कहा था कि अलग नगा ध्वज और संविधान के बिना दशकों पुराने मुद्दे का सम्मानजनक समाधान नहीं निकल सकता.

बैठक में पारित पस्ताव में कहा गया कि गत 23 साल में नगा राजनीतिक समस्या को सुलझाने के लिए एनपीएफ ने विभिन्न चरणों में सक्रिय भूमिका निभाई है.

प्रस्ताव में कहा गया कि एनपीएफ स्वेच्छा से जेएलएफ का हिस्सा इस उम्मीद से बना था कि यह आकांक्षाओें के अनुरूप समस्या के समाधान के लिए काम करेगा. हालांकि, 18 सितंबर 2018 को जेएलएफ के पुनर्गठन के बाद मौजूदा सरकार की अनिच्छा की वजह से इसमें कोई प्रगति नहीं हो सकी.

गौरतलब है कि 60 सदस्यीय विधानसभा के सभी सदस्य जेएलएफ के सदस्य हैं. इस मंच की 20 सदस्यीय कोर समिति भी है जिसमें एनपीएफ के पांच विधायक सदस्य हैं.

कांग्रेस प्रवक्ता शक्ति सिंह गोहिल ने संवाददाताओं से कहा कि राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे, 15 अगस्त 1985 को असम शांति समझौता किया गया था. उस वक्त पूरे देश को बताया कि उसमें क्या प्रावधान हैं. वहीं राजीव गांधी ने 30 जून, 1986 को मिज़ो शांति समझौते पर हस्ताक्षर किया था. उन्होंने पूर्वोत्तर के राज्यों में शांति स्थापित करने की कोशिश की.

पढ़ेंः कांग्रेस का दावा: यूपीए-2 में राहुल ने ठुकराया था पीएम पद का ऑफर

उन्होंने दावा किया कि पीएम मोदी ने 15 अगस्त, 2015 को ऐलान किया कि शांति समझौते पर हस्ताक्षर कर लिया गया है और अब नगा समस्या खत्म हो जाएगी. इस समझौते का कोई ब्योरा नहीं बताया गया. बाद में पता चला कि यह शांति समझौता नहीं था. ये सिर्फ एक फ्रेमवर्क एग्रीमेंट हुआ था.

उन्होंने मीडिया में आई खबरों का हवाला देते हुए कहा कि एनएससीएन (आईएम) के नेता ने एक साक्षात्कार में कहा है कि वह अलग झंडा और पासपोर्ट चाहते हैं. ये एक बहुत ही चिंता का विषय है. किसी भी सूरत में देश की अखंडता से समझौता नहीं किया जा सकता.

नई दिल्ली : कांग्रेस ने 2015 के रूपरेखा समझौते (फ्रेमवर्क एग्रीमेंट) के संदर्भ में नगा संगठन एनएससीएन-आईएम के दावे को लेकर बुधवार को केंद्र सरकार पर निशाना साधा और कहा कि सरकार को इस मामले पर अपना रुख स्पष्ट करते हुए देश को सही स्थिति से अवगत कराना चाहिए.

इससे पहले नगालैंड में विपक्षी एनपीएफ नगा राजनीतिक मुद्दों पर गठित संयुक्त विधायक मंच (जेएलएफ) से यह कहते हुए अलग हो गया कि मुद्दे के समाधान के लिए प्रगति करने में असफल रहा.

गोहिल ने कहा कि सरकार को स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए और देश की जनता को सही जानकारी देनी चाहिए.

जेएलएफ से अलग होने का फैसला दीमापुर में विपक्षी नेता टीआर जेलियांग के आवास पर मंगलवार को हुई नगा पीपुल्स फ्रंट (एनपीएफ) के विधायक दल की बैठक में लिया गया.

एनपीएफ ने हालांकि, जोर देकर कहा कि वह मामले के शीघ्र समाधान के लिए ‘सक्रिय सहायक’ की भूमिका जारी रखेगा.

गौरतलब है कि सरकार के साथ शांति वार्ता कर चुके एनएससीएन-आईएम ने पिछले सप्ताह कहा था कि अलग नगा ध्वज और संविधान के बिना दशकों पुराने मुद्दे का सम्मानजनक समाधान नहीं निकल सकता.

बैठक में पारित पस्ताव में कहा गया कि गत 23 साल में नगा राजनीतिक समस्या को सुलझाने के लिए एनपीएफ ने विभिन्न चरणों में सक्रिय भूमिका निभाई है.

प्रस्ताव में कहा गया कि एनपीएफ स्वेच्छा से जेएलएफ का हिस्सा इस उम्मीद से बना था कि यह आकांक्षाओें के अनुरूप समस्या के समाधान के लिए काम करेगा. हालांकि, 18 सितंबर 2018 को जेएलएफ के पुनर्गठन के बाद मौजूदा सरकार की अनिच्छा की वजह से इसमें कोई प्रगति नहीं हो सकी.

गौरतलब है कि 60 सदस्यीय विधानसभा के सभी सदस्य जेएलएफ के सदस्य हैं. इस मंच की 20 सदस्यीय कोर समिति भी है जिसमें एनपीएफ के पांच विधायक सदस्य हैं.

कांग्रेस प्रवक्ता शक्ति सिंह गोहिल ने संवाददाताओं से कहा कि राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे, 15 अगस्त 1985 को असम शांति समझौता किया गया था. उस वक्त पूरे देश को बताया कि उसमें क्या प्रावधान हैं. वहीं राजीव गांधी ने 30 जून, 1986 को मिज़ो शांति समझौते पर हस्ताक्षर किया था. उन्होंने पूर्वोत्तर के राज्यों में शांति स्थापित करने की कोशिश की.

पढ़ेंः कांग्रेस का दावा: यूपीए-2 में राहुल ने ठुकराया था पीएम पद का ऑफर

उन्होंने दावा किया कि पीएम मोदी ने 15 अगस्त, 2015 को ऐलान किया कि शांति समझौते पर हस्ताक्षर कर लिया गया है और अब नगा समस्या खत्म हो जाएगी. इस समझौते का कोई ब्योरा नहीं बताया गया. बाद में पता चला कि यह शांति समझौता नहीं था. ये सिर्फ एक फ्रेमवर्क एग्रीमेंट हुआ था.

उन्होंने मीडिया में आई खबरों का हवाला देते हुए कहा कि एनएससीएन (आईएम) के नेता ने एक साक्षात्कार में कहा है कि वह अलग झंडा और पासपोर्ट चाहते हैं. ये एक बहुत ही चिंता का विषय है. किसी भी सूरत में देश की अखंडता से समझौता नहीं किया जा सकता.

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