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साथ आकर हरित भारत के लिये प्रण करें! - भारत में वायु प्रदूषण

ग्रीनपीस दक्षिण एशिया की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में वायु प्रदूषण से सालाना 10 लाख लोग अपनी जान गंवाते हैं. इस रिपोर्ट में कहा गया है कि, प्रदूषण के पर्यावरण पर असर के कारण 9.80 लाख बच्चों का जन्म समय से पहले होता है. कार्बन उत्सर्जन से होने वाले प्रदूषण के लिहाज से संवेदनशील देशों की सूची में भारत का तीसरा स्थान है. यह तथ्य हालातों की गंभीरता को साफ करते है.

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प्रतीकात्मक चित्र, साभार- सोशल मीडिया
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Published : Feb 28, 2020, 12:57 PM IST

Updated : Mar 2, 2020, 8:37 PM IST

जैसे जैसे पर्यावरण में हो रहे बदलाव दुनिया के लिये परेशानी का कारण बनते जा रहे हैं, वैसे ही पर्यावरण संरक्षण को तेजी से अपनाने की आवश्यकता है. पर्यावरण पर संकट कई देशों की अर्थव्यवस्था पर असर डाल रहा है. इस दृष्टि से भारत ने 2020 के बजट में पेरिस समझौते को ध्यान में रखते हुए पर्यावरण संरक्षण के लिये 4,400 करोड़ रुपये रखे हैं. इस बजट में उन शहरों में वायु प्रदूषण को कम करने पर ध्यान दिया गया है, जहां वायु प्रदूषण बढ़ता जा रहा है.

देश के पूर्व और दक्षिण के शहर इस बात को दर्शाते हैं कि वायु प्रदूषण कितनी बड़ी समस्या है. सर्दियों के आते ही, स्मॉग के साथ मिलकर वायु प्रदूषण शहरों का दम घोंटने लगता है. इसके कारण, केंद्र सरकार एक नीति के तहत काम कर रही है, ताकि हवा में प्रदूषण की मात्रा कम हो सके. इसे पर्यावरण संरक्षण की तरफ एक महत्वपूर्ण कदम की तरह देखा जा सकता है.

सरकार द्वारा हवा की गुणवत्ता के लिये मानक तय किये जाने को एक सराहनीय कदम की तरह देखा जाना चाहिये. इसकी जिम्मेदारी केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय को सौंपी गई है. हाल के बजट में, इस मंत्रालय को प्रदूषण नियंत्रण के तरीके अपनाने के लिये अतिरिक्त 460 करोड़ रुपये दिये गये हैं. इस पैसे का इस्तेमाल, नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम के तहत किया जायेगा.

केंद्र सरकार ने नेशनल ग्रीन मिशन को भी 311 करोड़ रुपये दिये हैं. इसमें से 246 करोड़ रुपये का इस्तेमाल देश भर में वनों को पुनर्जीवित करने के लिये किया जायेगा. शहरीकरण और औद्योगीकरण के कारण जंगलों के क्षेत्र में तेजी से कमी आ रही है. वनाग्नि के रोकने के लिये 50 करोड़ रुपये रखे गये है.

ग्रीनपीस दक्षिण एशिया की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में वायु प्रदूषण से सालाना 10 लाख लोग अपनी जान गंवाते हैं. इस रिपोर्ट में कहा गया है कि, प्रदूषण के पर्यावरण पर असर के कारण 9.80 लाख बच्चों का जन्म समय से पहले होता है. कार्बन उत्सर्जन से होने वाले प्रदूषण के लिहाज से संवेदनशील देशों की सूची में भारत का तीसरा स्थान है. यह तथ्य हालातों की गंभीरता को साफ करते है.

प्रदूषण के कारण सालाना होने वाला नुकसान देश की जीडीपी के 5.4% के बराबर है. भारत में होने वाली हर 8 मौतों में से 1 वायु प्रदूषण से होती है. पिछली और मौजूदा सरकारों की नीतियों से यह साफ है कि पर्यावरण प्रदूषण और संरक्षण इन सरकारों की प्राथमिकताओं में शामिल नहीं थे. व्यापार, उद्योग और राजनीति पर पर्यावरण का असर ना के बराबर है. पर्यावरण संरक्षण के लिये नाम मात्र बजट आवंटन को भी पर्यावरण के मौजूदा हालातों के लिये जिम्मेदार माना जाता है. आज के समय में पर्यावरण में हो रहे बदलाव, आबादी के एक हिस्से पर काफी असर डाल रहा है. बाढ़, सूखा, असमय मौसम और बढ़ते तापमान इसका सबूत हैं. लोगों की जीवनशैली में बढ़ोतरी के लिये कार्बन उत्सर्जन पर काबू पाना बेहद जरूरी है.

जनवरी 1, 2021 तक पेरिस समझौते के तहत ग्लोबल वॉर्मिंग को कम करने के तरीकों को लागू करने के लिए भारत सरकार रणनीति के तहत काम कर रही है. इसके तहत सरकार उन सभी थर्मल पावर प्लांट को बंद करने जा रही है, जो कार्बन नियमों के मौजूदा मापदंडों के अनुसार नहीं बने हैं.

देश की 70% आबादी जो कृषि क्षेत्र में काम करती है, इन्हें ऊर्जा के साफ तरीकों के इस्तेमाल करने के लिये जागरूक करने के मकसद से पीएम कुसुम योजना को देशभर में चलाया जायेगा. देशभर में किसानों ने आगे आकर 35 लाख सौर ऊर्जा से चलने वाले पंप लगाये हैं, जो एक सराहनीय कदम है. इसके साथ ही अगर, किसानों को बंजर पड़ी जमीनों पर सौर ऊर्जा प्लांट लगाने के लिये प्रेरित किया जायेगा तो इससे भी कार्बन उत्सर्जन पर काबू पाया जा सकता है.

लगातार बढ़ते वायु प्रदूषण को रोकने के लिये नीति आयोग की सिफारिशों को लागू करने की ज़रूरत है. यह परेशान करने वाली बात है कि, हवा की गुणवत्ता के सूचकांक में मौजूद देशों में भारत का स्थान 180 है. एक और अंतर्राष्ट्रीय शोध के अनुसार दुनिया के 20 सबसे ज्यादा प्रदूषित शहरों में से 15 भारत में हैं. गाड़ियों और कारखानों से होने वाले उत्सर्जन से श्वास संबंधी बीमारियां बढ़ती जा रही हैं. एक तरफ़ देश में सालाना 3.5 लाख बच्चों को अस्थमा हो रहा है तो वहीं, व्यस्कों में लंग कैंसर और लकवा होने के मामले बढ़ते जा रहे हैं. इस सबके पीछे वायु प्रदूषण बड़ा कारण है.

पिछले पांच दशकों में बड़ी ग्लोबल वॉर्मिंग ने देशों के बीच में असमानता पैदा कर दी है. अमीर देश और ज्यादा अमीर और समृद्ध हो गये तो वहीं, गरीब देश और अधिक गरीब होते गये हैं. कार्बन उत्सर्जन, वायु प्रदूषण और पर्यावरण में बदलाव, दुनिया को पर्यावरण के लिहाज से खतरे की तरफ धकेल रहा है.

ब्रिटेन, न्यूजीलैंड और कनाडा ने अपने यहां पहले ही पर्यावरण आपातकाल घोषित कर दिया है क्योंकि, इन देशों में 53, 49 और 32 फीसदी रिहायशी इलाके वायु प्रदूषण के कारण रहने लायक नहीं रहे हैं. अन्य देशों को भी इन देशों से सीख लेकर, वायु प्रदूषण को चिन्हित करना चाहिए और कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिये कारगर उपाय उठाने चाहिये.

गाड़ियों में तेल के इस्तेमाल को रोकने के लिए बिजली से चलने वाली गाड़ियों के निर्माण और इस्तेमाल को बढ़ावा देने के लिये सहयोग देना चाहिए. जानकार, शंघाई, बर्लिन, लंदन, पैरिस, मैडरिड और सियोल जैसे शहरों को बेहतरीन पब्लिक ट्रांसपोर्ट प्रणाली लागू करने और वायु प्रदूषण पर काबू पाने के लिये मिसाल मानते है. भारत को भी इन शहरों के कदमों पर चलने की जरूरत है. इसके लिये यह जरूरी है कि नागरिक भी जागरूक हों. तेजी से खत्म होते जंगलों को बचाने की जरूरत है. पर्यावरण संरक्षण में हर नागरिक को अपनी जिम्मेदारी निभाने की ज़रूरत है. अगर कार्बन उत्सर्जन को नहीं रोका गया तो, दुनिया की बड़ी आबादी पर खत्म होने का खतरा मंडराने लगेगा. कुछ जानकारों ने पहले ही कहा है कि हम शायद धरती पर आखिरी पीढ़ी हों. इसलिये पर्यावरण संरक्षण लोगों और राजनेताओें के लिये सबसे बड़ी प्राथमिकता होनी चाहिए. अगर ऐसा होता है तब ही, प्रदूषित भारत को हरित भारत में बदलने का सपना साकार हो सकेगा.

जैसे जैसे पर्यावरण में हो रहे बदलाव दुनिया के लिये परेशानी का कारण बनते जा रहे हैं, वैसे ही पर्यावरण संरक्षण को तेजी से अपनाने की आवश्यकता है. पर्यावरण पर संकट कई देशों की अर्थव्यवस्था पर असर डाल रहा है. इस दृष्टि से भारत ने 2020 के बजट में पेरिस समझौते को ध्यान में रखते हुए पर्यावरण संरक्षण के लिये 4,400 करोड़ रुपये रखे हैं. इस बजट में उन शहरों में वायु प्रदूषण को कम करने पर ध्यान दिया गया है, जहां वायु प्रदूषण बढ़ता जा रहा है.

देश के पूर्व और दक्षिण के शहर इस बात को दर्शाते हैं कि वायु प्रदूषण कितनी बड़ी समस्या है. सर्दियों के आते ही, स्मॉग के साथ मिलकर वायु प्रदूषण शहरों का दम घोंटने लगता है. इसके कारण, केंद्र सरकार एक नीति के तहत काम कर रही है, ताकि हवा में प्रदूषण की मात्रा कम हो सके. इसे पर्यावरण संरक्षण की तरफ एक महत्वपूर्ण कदम की तरह देखा जा सकता है.

सरकार द्वारा हवा की गुणवत्ता के लिये मानक तय किये जाने को एक सराहनीय कदम की तरह देखा जाना चाहिये. इसकी जिम्मेदारी केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय को सौंपी गई है. हाल के बजट में, इस मंत्रालय को प्रदूषण नियंत्रण के तरीके अपनाने के लिये अतिरिक्त 460 करोड़ रुपये दिये गये हैं. इस पैसे का इस्तेमाल, नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम के तहत किया जायेगा.

केंद्र सरकार ने नेशनल ग्रीन मिशन को भी 311 करोड़ रुपये दिये हैं. इसमें से 246 करोड़ रुपये का इस्तेमाल देश भर में वनों को पुनर्जीवित करने के लिये किया जायेगा. शहरीकरण और औद्योगीकरण के कारण जंगलों के क्षेत्र में तेजी से कमी आ रही है. वनाग्नि के रोकने के लिये 50 करोड़ रुपये रखे गये है.

ग्रीनपीस दक्षिण एशिया की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में वायु प्रदूषण से सालाना 10 लाख लोग अपनी जान गंवाते हैं. इस रिपोर्ट में कहा गया है कि, प्रदूषण के पर्यावरण पर असर के कारण 9.80 लाख बच्चों का जन्म समय से पहले होता है. कार्बन उत्सर्जन से होने वाले प्रदूषण के लिहाज से संवेदनशील देशों की सूची में भारत का तीसरा स्थान है. यह तथ्य हालातों की गंभीरता को साफ करते है.

प्रदूषण के कारण सालाना होने वाला नुकसान देश की जीडीपी के 5.4% के बराबर है. भारत में होने वाली हर 8 मौतों में से 1 वायु प्रदूषण से होती है. पिछली और मौजूदा सरकारों की नीतियों से यह साफ है कि पर्यावरण प्रदूषण और संरक्षण इन सरकारों की प्राथमिकताओं में शामिल नहीं थे. व्यापार, उद्योग और राजनीति पर पर्यावरण का असर ना के बराबर है. पर्यावरण संरक्षण के लिये नाम मात्र बजट आवंटन को भी पर्यावरण के मौजूदा हालातों के लिये जिम्मेदार माना जाता है. आज के समय में पर्यावरण में हो रहे बदलाव, आबादी के एक हिस्से पर काफी असर डाल रहा है. बाढ़, सूखा, असमय मौसम और बढ़ते तापमान इसका सबूत हैं. लोगों की जीवनशैली में बढ़ोतरी के लिये कार्बन उत्सर्जन पर काबू पाना बेहद जरूरी है.

जनवरी 1, 2021 तक पेरिस समझौते के तहत ग्लोबल वॉर्मिंग को कम करने के तरीकों को लागू करने के लिए भारत सरकार रणनीति के तहत काम कर रही है. इसके तहत सरकार उन सभी थर्मल पावर प्लांट को बंद करने जा रही है, जो कार्बन नियमों के मौजूदा मापदंडों के अनुसार नहीं बने हैं.

देश की 70% आबादी जो कृषि क्षेत्र में काम करती है, इन्हें ऊर्जा के साफ तरीकों के इस्तेमाल करने के लिये जागरूक करने के मकसद से पीएम कुसुम योजना को देशभर में चलाया जायेगा. देशभर में किसानों ने आगे आकर 35 लाख सौर ऊर्जा से चलने वाले पंप लगाये हैं, जो एक सराहनीय कदम है. इसके साथ ही अगर, किसानों को बंजर पड़ी जमीनों पर सौर ऊर्जा प्लांट लगाने के लिये प्रेरित किया जायेगा तो इससे भी कार्बन उत्सर्जन पर काबू पाया जा सकता है.

लगातार बढ़ते वायु प्रदूषण को रोकने के लिये नीति आयोग की सिफारिशों को लागू करने की ज़रूरत है. यह परेशान करने वाली बात है कि, हवा की गुणवत्ता के सूचकांक में मौजूद देशों में भारत का स्थान 180 है. एक और अंतर्राष्ट्रीय शोध के अनुसार दुनिया के 20 सबसे ज्यादा प्रदूषित शहरों में से 15 भारत में हैं. गाड़ियों और कारखानों से होने वाले उत्सर्जन से श्वास संबंधी बीमारियां बढ़ती जा रही हैं. एक तरफ़ देश में सालाना 3.5 लाख बच्चों को अस्थमा हो रहा है तो वहीं, व्यस्कों में लंग कैंसर और लकवा होने के मामले बढ़ते जा रहे हैं. इस सबके पीछे वायु प्रदूषण बड़ा कारण है.

पिछले पांच दशकों में बड़ी ग्लोबल वॉर्मिंग ने देशों के बीच में असमानता पैदा कर दी है. अमीर देश और ज्यादा अमीर और समृद्ध हो गये तो वहीं, गरीब देश और अधिक गरीब होते गये हैं. कार्बन उत्सर्जन, वायु प्रदूषण और पर्यावरण में बदलाव, दुनिया को पर्यावरण के लिहाज से खतरे की तरफ धकेल रहा है.

ब्रिटेन, न्यूजीलैंड और कनाडा ने अपने यहां पहले ही पर्यावरण आपातकाल घोषित कर दिया है क्योंकि, इन देशों में 53, 49 और 32 फीसदी रिहायशी इलाके वायु प्रदूषण के कारण रहने लायक नहीं रहे हैं. अन्य देशों को भी इन देशों से सीख लेकर, वायु प्रदूषण को चिन्हित करना चाहिए और कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिये कारगर उपाय उठाने चाहिये.

गाड़ियों में तेल के इस्तेमाल को रोकने के लिए बिजली से चलने वाली गाड़ियों के निर्माण और इस्तेमाल को बढ़ावा देने के लिये सहयोग देना चाहिए. जानकार, शंघाई, बर्लिन, लंदन, पैरिस, मैडरिड और सियोल जैसे शहरों को बेहतरीन पब्लिक ट्रांसपोर्ट प्रणाली लागू करने और वायु प्रदूषण पर काबू पाने के लिये मिसाल मानते है. भारत को भी इन शहरों के कदमों पर चलने की जरूरत है. इसके लिये यह जरूरी है कि नागरिक भी जागरूक हों. तेजी से खत्म होते जंगलों को बचाने की जरूरत है. पर्यावरण संरक्षण में हर नागरिक को अपनी जिम्मेदारी निभाने की ज़रूरत है. अगर कार्बन उत्सर्जन को नहीं रोका गया तो, दुनिया की बड़ी आबादी पर खत्म होने का खतरा मंडराने लगेगा. कुछ जानकारों ने पहले ही कहा है कि हम शायद धरती पर आखिरी पीढ़ी हों. इसलिये पर्यावरण संरक्षण लोगों और राजनेताओें के लिये सबसे बड़ी प्राथमिकता होनी चाहिए. अगर ऐसा होता है तब ही, प्रदूषित भारत को हरित भारत में बदलने का सपना साकार हो सकेगा.

Last Updated : Mar 2, 2020, 8:37 PM IST
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