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हांगकांग पर आधिपत्य जमाने का हथियार है चीन का राष्ट्रीय सुरक्षा कानून

हांगकांग में चीन के राष्ट्रीय सुरक्षा कानून का पुरजोर विरोध किया जा रहा है. राष्ट्रीय सुरक्षा कानून को हांगकांगवासी अपनी स्वतंत्र और स्वायत्त शासन प्रणाली को मुख्य चीन द्वारा उसके अधीन करने के प्रयासों के तौर पर देख रहे हैं. प्रदर्शनकारियों का कहना है कि शी जिनपिंग की कम्युनिस्ट पार्टी यह कानून लाकर हांगकांग की न्यायिक स्वतंत्रता को कमजोर कर देगी और बीजिंग की नीतियों की आलोचना करने वालों के लिए खतरा पैदा कर देगी.

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Published : Jun 30, 2020, 4:41 PM IST

Updated : Jun 30, 2020, 4:48 PM IST

चीन के राष्ट्रीय सुरक्षा कानून का विरोध
चीन के राष्ट्रीय सुरक्षा कानून का विरोध

हैदराबाद : हांगकांग में पूर्ण लोकतंत्र की मांग को लेकर पिछले कई महीनों से जारी विरोध प्रदर्शन को रोकने के लिए चीनी सरकार ने एक नया विवादास्पद कानून बनाया है, जिसे राष्ट्रीय सुरक्षा कानून का नाम दिया गया है. इस कानून के तहत किसी भी तरह का अलगाव, तोड़फोड़, आतंकवाद और विदेशी ताकतों के साथ मिलीभगत को अपराध की श्रेणी में रखा गया है.

व्यापक आशंकाएं हैं कि एक अधिनायकवादी शासन द्वारा अब नए सुरक्षा कानून की आड़ में अर्ध स्वायत्त क्षेत्र में नागरिक स्वतंत्रता व राजनीतिक स्वतंत्रता और कुचल दी जाएगी, जो पहले से ही ताइवान से दक्षिण और पूर्वी चीन सागर तक (जो भारत की वास्तविक नियंत्रण रेखा है) आक्रामकता से विस्तार में लगी हुई है. पिछले एक साल में नौ हजार से अधिक कार्यकर्ताओं और नेताओं को इसलिए गिरफ्तार किया गया है कि वे अंतरराष्ट्रीय संगठनों से उनकी समस्याओं की तरफ ध्यान देने की मांग कर रहे थे.

पिछले कुछ हफ्तों में इस कानून की अंतरराष्ट्रीय जगत में काफी निंदा हुई है, लेकिन चीन ने अपने निजी मामलों में हस्तक्षेप बताकर इन सभी टिप्पणियों को खारिज कर दिया. आज की रिपोर्ट के अनुसार बीजिंग में नेशनल पीपुल्स कांग्रेस की स्थायी समिति ने सर्वसम्मति से इस राष्ट्रद्रोह विरोधी कानून को पारित किया है और अब इसे हांगकांग के मूल कानून में शामिल कर दिया जाएगा.

पढ़ें : चीन ने पारित किया विवादास्पद हांगकांग सुरक्षा विधेयक

अमेरिका के विदेश मंत्रालय ने घोषणा की कि अमेरिका और हांगकांग के बिगड़ते रिश्ते के बीच बीजिंग की यह नई हरकत विवादों को और बढ़ाएगी. इसने ट्रंप सरकार को भी नए सिरे से सोचने पर मजबूर किया है. अमेरिका ने कहा है कि बीजिंग का यह फैसला यूएन रजिस्टर्ड सिनो-ब्रिटिश संयुक्त घोषणा के तहत उसकी अपनी ही प्रतिबद्धताओं का उल्लंघन है.

अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पोम्पियो ने कहा, 'अगर चीन हांगकांगवासियों और अंतरराष्ट्रीय समुदाय के विश्वास को फिर से हासिल करना चाहता है, तो उसे हांगकांग के लोगों और यूनाइटेड किंगडम में संयुक्त राष्ट्र में पंजीकृत 1984 की चीन-ब्रिटिश संयुक्त घोषणा में किए गए वादों का सम्मान करना चाहिए.' ग्रेट ब्रिटेन और ताइवान ने पहले ही कहा है कि अगर इस नए कानून के लागू होने से वहां विरोध बढ़ता है तो वे लोकतंत्र के समर्थन में प्रदर्शन कर रहे लोगों और शरणार्थियों की मदद करेंगे.

हांगकांग में लोग सड़कों पर क्यों उतर आए
पिछले साल जून में पहली बार पेश किए गए प्रत्यर्पण विधेयक के बाद प्रस्तावित कानून के विरोध में सड़कों पर निकले लगभग 10 लाख लोगों ने जोरदार तरीके से प्रदर्शन किया था. उस बिल के अनुसार जो भी विरोध प्रदर्शन करता, उसे पकड़कर मुख्य चीन में भेजने का प्रावधान था. इसे 'वन कंट्री, टू सिस्टम' ढांचे के तहत हांगकांग की न्यायिक स्वतंत्रता पर प्रत्यक्ष हमले के रूप में माना गया.

हालांकि उस बिल को गत वर्ष सितंबर में वापस ले लिया गया, लेकिन सामाजिक अशांति जारी रही. नेता विहीन विरोध आंदोलन को और बल मिला, जब लोकतंत्र समर्थक नेताओं ने नवंबर में हुए 18 स्थानीय परिषदों के चुनाव में से 17 परिषदों में जीत हासिल कर ली. बीजिंग ने जून 2019 में लोकतंत्र समर्थकों के विरोध प्रदर्शनों को हवा दी थी. अब इस साल मई में राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के मसौदे ने इन विरोध प्रदर्शनों के लिए आग में घी का काम किया क्योंकि इसमें हिंसा भड़काने, अलगाववाद को बढ़ावा देने वाले तत्वों के साथ-साथ तोड़फोड़ और विदेशी ताकतों के शामिल होने का आरोप लगाया गया था.

प्रदर्शनकारियों की मांगें क्या थीं
हांगकांग में लोगों ने विरोध प्रदर्शन कर यह मांग की कि मुख्य चीन उनके अधिकारों का हनन नहीं करेगा. उन्होंने राष्ट्रीय सुरक्षा कानून को पूरी तरह नकार दिया, जिसे आतंकवाद से लड़ने के लिए एक उपकरण के रूप में बताया गया था. वे पूर्ण लोकतांत्रिक अधिकार चाहते हैं ताकि पूरी आबादी को अपना मुख्य कार्यकारी चुनने की अनुमति मिल सके. हांगकांगवासियों ने नागरिक प्रदर्शनकारियों के खिलाफ पुलिस की बर्बरता के आरोपों की स्वतंत्र जांच के लिए एक समिति गठित करने की भी मांग की.

मुख्य भूमि से अलगाव हालांकि बहुमत की मांग नहीं थी. नए सुरक्षा कानून के एक आधिकारिक वक्तव्य की अब भी प्रतीक्षा की जा रही है. लेकिन रिपोर्ट्स की मानें तो इस कानून से मुख्य चीन को हांगकांग के स्कूलों में शिक्षा की देखरेख के अधिकार प्राप्त हो जाते हैं. हांगकांग सरकार कानून लागू कर सकती है, लेकिन मुख्य चीन की सरकार उसे पलट सकती है.

‘वन कंट्री, टू सिस्टम’
ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन रहे हांगकांग को 1997 में 'वन कंट्री, टू सिस्टम' यानी 'एक देश, दो व्यवस्था' के तहत विशेष अधिकार और स्वायत्तता के साथ चीन को वापस सौंप दिया गया था. विशेष स्वायत्त क्षेत्र हांगकांग (HKSAR) की अपनी न्यायपालिका है और मुख्य भूमि चीन से अलग एक कानून प्रणाली भी है, जो विधानसभा और भाषण की स्वतंत्रता के अधिकारों की अनुमति देती है.

हांगकांग ने अपने नियम-कानून खुद बनाए हैं, जिसमें राष्ट्रीय सुरक्षा भी शामिल है. यही इसका छोटा सा संविधान है, जिसके दिशानिर्देशानुसार यहां शासन चलाया जाता है. इसे हांगकांग के एक छोटे संविधान के तौर पर भी समझा जा सकता है. हैंडओवर के बाद से करीब दो दशकों से अधिक समय में हांगकांग ने अपने स्वतंत्र प्रेस, स्वतंत्र अदालतों और विधायिका का निर्माण किया है, जो मुख्य चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के तहत शासित नहीं होते.

अब इस प्रत्यर्पण विधेयक को हांगकांग अपनी स्वतंत्र और स्वायत्त शासन प्रणाली को मुख्य चीन द्वारा उसके अधीन करने के प्रयासों के तौर पर देख रहा है. प्रदर्शनकारियों का कहना है कि शी जिनपिंग और उनकी कम्युनिस्ट पार्टी उनकी न्यायिक स्वतंत्रता को कमजोर कर देगी और बीजिंग की नीतियों की आलोचना करने वालों के लिए खतरा पैदा कर सकती है.

लेकिन सिक्के का दूसरा पहलू यह है कि चीन राष्ट्रीय सुरक्षा कानून को लागू कर अब विश्व शक्तियों, खासकर अमेरिका का विरोध करने का संकेत दे रहा है.

अमेरिका की रणनीति
एक अंतरराष्ट्रीय शहर के रूप में हांगकांग के भारत और अमेरिका सहित कई देशों के साथ करीबी निवेश संबंध हैं. संयुक्त राज्य अमेरिका ने हांगकांग नीति अधिनियम के तहत हांगकांग को 1992 में विशेष दर्जा दिया था.

जिस तरह से चीन जबर्दस्ती नए कानून को लागू कर रहा है, उसके विरोध में ट्रंप प्रशासन ने संवेदनशील अमेरिकी रक्षा उपकरणों के निर्यात पर रोक लगा दी है और कहा है कि वह यही प्रतिबंध हांगकांग को दिए जा रहे यूएस डिफेंस और डूएल यूज टेक्नोलॉजी पर लगा देगा, जैसा कि उसने चीन के साथ किया है.

पढें : हांगकांग मामला : बौखलाए चीन ने भी अमेरिकी अधिकारियों पर लगाया वीजा प्रतिबंध

माइक पोम्पियो ने कहा, 'हम इन हथियारों का पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के हाथों में पड़ने का जोखिम नहीं ले सकते, जिसका मुख्य उद्देश्य किसी भी तरह से सीसीपी की तानाशाही को बरकरार रखना है. संयुक्त राज्य अमेरिका अपनी सुरक्षा के लिए यह कार्रवाई करने को मजबूर है. हम अब हांगकांग या मुख्य चीन को नियंत्रित वस्तुओं के निर्यात के बीच अंतर नहीं कर सकते.'

इसके जवाब में चीन ने अमेरिकी नागरिकों के वीजा को प्रतिबंधित करने की धमकी दी है. इसकी वजह से चीन और अमेरिका के बीज पहले से ही चल रहे तनाव में और इजाफा हो गया है. पॉम्पियो ने कहा, 'हमारी कार्रवाई चीनी शासन के खिलाफ है न कि चीनी लोगों के. लेकिन बीजिंग अब हांगकांग को 'वन कंट्री, वन सिस्टम' मानता है, इसलिए हम ऐसा करने को मजबूर हैं. संयुक्त राज्य अमेरिका अन्य अधिकारियों के साथ हालातों की समीक्षा कर रहा है ताकि हांगकांग की जमीनी सच्चाई सामने आ सके.'

(स्मिता शर्मा - वरिष्ठ पत्रकार)

हैदराबाद : हांगकांग में पूर्ण लोकतंत्र की मांग को लेकर पिछले कई महीनों से जारी विरोध प्रदर्शन को रोकने के लिए चीनी सरकार ने एक नया विवादास्पद कानून बनाया है, जिसे राष्ट्रीय सुरक्षा कानून का नाम दिया गया है. इस कानून के तहत किसी भी तरह का अलगाव, तोड़फोड़, आतंकवाद और विदेशी ताकतों के साथ मिलीभगत को अपराध की श्रेणी में रखा गया है.

व्यापक आशंकाएं हैं कि एक अधिनायकवादी शासन द्वारा अब नए सुरक्षा कानून की आड़ में अर्ध स्वायत्त क्षेत्र में नागरिक स्वतंत्रता व राजनीतिक स्वतंत्रता और कुचल दी जाएगी, जो पहले से ही ताइवान से दक्षिण और पूर्वी चीन सागर तक (जो भारत की वास्तविक नियंत्रण रेखा है) आक्रामकता से विस्तार में लगी हुई है. पिछले एक साल में नौ हजार से अधिक कार्यकर्ताओं और नेताओं को इसलिए गिरफ्तार किया गया है कि वे अंतरराष्ट्रीय संगठनों से उनकी समस्याओं की तरफ ध्यान देने की मांग कर रहे थे.

पिछले कुछ हफ्तों में इस कानून की अंतरराष्ट्रीय जगत में काफी निंदा हुई है, लेकिन चीन ने अपने निजी मामलों में हस्तक्षेप बताकर इन सभी टिप्पणियों को खारिज कर दिया. आज की रिपोर्ट के अनुसार बीजिंग में नेशनल पीपुल्स कांग्रेस की स्थायी समिति ने सर्वसम्मति से इस राष्ट्रद्रोह विरोधी कानून को पारित किया है और अब इसे हांगकांग के मूल कानून में शामिल कर दिया जाएगा.

पढ़ें : चीन ने पारित किया विवादास्पद हांगकांग सुरक्षा विधेयक

अमेरिका के विदेश मंत्रालय ने घोषणा की कि अमेरिका और हांगकांग के बिगड़ते रिश्ते के बीच बीजिंग की यह नई हरकत विवादों को और बढ़ाएगी. इसने ट्रंप सरकार को भी नए सिरे से सोचने पर मजबूर किया है. अमेरिका ने कहा है कि बीजिंग का यह फैसला यूएन रजिस्टर्ड सिनो-ब्रिटिश संयुक्त घोषणा के तहत उसकी अपनी ही प्रतिबद्धताओं का उल्लंघन है.

अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पोम्पियो ने कहा, 'अगर चीन हांगकांगवासियों और अंतरराष्ट्रीय समुदाय के विश्वास को फिर से हासिल करना चाहता है, तो उसे हांगकांग के लोगों और यूनाइटेड किंगडम में संयुक्त राष्ट्र में पंजीकृत 1984 की चीन-ब्रिटिश संयुक्त घोषणा में किए गए वादों का सम्मान करना चाहिए.' ग्रेट ब्रिटेन और ताइवान ने पहले ही कहा है कि अगर इस नए कानून के लागू होने से वहां विरोध बढ़ता है तो वे लोकतंत्र के समर्थन में प्रदर्शन कर रहे लोगों और शरणार्थियों की मदद करेंगे.

हांगकांग में लोग सड़कों पर क्यों उतर आए
पिछले साल जून में पहली बार पेश किए गए प्रत्यर्पण विधेयक के बाद प्रस्तावित कानून के विरोध में सड़कों पर निकले लगभग 10 लाख लोगों ने जोरदार तरीके से प्रदर्शन किया था. उस बिल के अनुसार जो भी विरोध प्रदर्शन करता, उसे पकड़कर मुख्य चीन में भेजने का प्रावधान था. इसे 'वन कंट्री, टू सिस्टम' ढांचे के तहत हांगकांग की न्यायिक स्वतंत्रता पर प्रत्यक्ष हमले के रूप में माना गया.

हालांकि उस बिल को गत वर्ष सितंबर में वापस ले लिया गया, लेकिन सामाजिक अशांति जारी रही. नेता विहीन विरोध आंदोलन को और बल मिला, जब लोकतंत्र समर्थक नेताओं ने नवंबर में हुए 18 स्थानीय परिषदों के चुनाव में से 17 परिषदों में जीत हासिल कर ली. बीजिंग ने जून 2019 में लोकतंत्र समर्थकों के विरोध प्रदर्शनों को हवा दी थी. अब इस साल मई में राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के मसौदे ने इन विरोध प्रदर्शनों के लिए आग में घी का काम किया क्योंकि इसमें हिंसा भड़काने, अलगाववाद को बढ़ावा देने वाले तत्वों के साथ-साथ तोड़फोड़ और विदेशी ताकतों के शामिल होने का आरोप लगाया गया था.

प्रदर्शनकारियों की मांगें क्या थीं
हांगकांग में लोगों ने विरोध प्रदर्शन कर यह मांग की कि मुख्य चीन उनके अधिकारों का हनन नहीं करेगा. उन्होंने राष्ट्रीय सुरक्षा कानून को पूरी तरह नकार दिया, जिसे आतंकवाद से लड़ने के लिए एक उपकरण के रूप में बताया गया था. वे पूर्ण लोकतांत्रिक अधिकार चाहते हैं ताकि पूरी आबादी को अपना मुख्य कार्यकारी चुनने की अनुमति मिल सके. हांगकांगवासियों ने नागरिक प्रदर्शनकारियों के खिलाफ पुलिस की बर्बरता के आरोपों की स्वतंत्र जांच के लिए एक समिति गठित करने की भी मांग की.

मुख्य भूमि से अलगाव हालांकि बहुमत की मांग नहीं थी. नए सुरक्षा कानून के एक आधिकारिक वक्तव्य की अब भी प्रतीक्षा की जा रही है. लेकिन रिपोर्ट्स की मानें तो इस कानून से मुख्य चीन को हांगकांग के स्कूलों में शिक्षा की देखरेख के अधिकार प्राप्त हो जाते हैं. हांगकांग सरकार कानून लागू कर सकती है, लेकिन मुख्य चीन की सरकार उसे पलट सकती है.

‘वन कंट्री, टू सिस्टम’
ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन रहे हांगकांग को 1997 में 'वन कंट्री, टू सिस्टम' यानी 'एक देश, दो व्यवस्था' के तहत विशेष अधिकार और स्वायत्तता के साथ चीन को वापस सौंप दिया गया था. विशेष स्वायत्त क्षेत्र हांगकांग (HKSAR) की अपनी न्यायपालिका है और मुख्य भूमि चीन से अलग एक कानून प्रणाली भी है, जो विधानसभा और भाषण की स्वतंत्रता के अधिकारों की अनुमति देती है.

हांगकांग ने अपने नियम-कानून खुद बनाए हैं, जिसमें राष्ट्रीय सुरक्षा भी शामिल है. यही इसका छोटा सा संविधान है, जिसके दिशानिर्देशानुसार यहां शासन चलाया जाता है. इसे हांगकांग के एक छोटे संविधान के तौर पर भी समझा जा सकता है. हैंडओवर के बाद से करीब दो दशकों से अधिक समय में हांगकांग ने अपने स्वतंत्र प्रेस, स्वतंत्र अदालतों और विधायिका का निर्माण किया है, जो मुख्य चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के तहत शासित नहीं होते.

अब इस प्रत्यर्पण विधेयक को हांगकांग अपनी स्वतंत्र और स्वायत्त शासन प्रणाली को मुख्य चीन द्वारा उसके अधीन करने के प्रयासों के तौर पर देख रहा है. प्रदर्शनकारियों का कहना है कि शी जिनपिंग और उनकी कम्युनिस्ट पार्टी उनकी न्यायिक स्वतंत्रता को कमजोर कर देगी और बीजिंग की नीतियों की आलोचना करने वालों के लिए खतरा पैदा कर सकती है.

लेकिन सिक्के का दूसरा पहलू यह है कि चीन राष्ट्रीय सुरक्षा कानून को लागू कर अब विश्व शक्तियों, खासकर अमेरिका का विरोध करने का संकेत दे रहा है.

अमेरिका की रणनीति
एक अंतरराष्ट्रीय शहर के रूप में हांगकांग के भारत और अमेरिका सहित कई देशों के साथ करीबी निवेश संबंध हैं. संयुक्त राज्य अमेरिका ने हांगकांग नीति अधिनियम के तहत हांगकांग को 1992 में विशेष दर्जा दिया था.

जिस तरह से चीन जबर्दस्ती नए कानून को लागू कर रहा है, उसके विरोध में ट्रंप प्रशासन ने संवेदनशील अमेरिकी रक्षा उपकरणों के निर्यात पर रोक लगा दी है और कहा है कि वह यही प्रतिबंध हांगकांग को दिए जा रहे यूएस डिफेंस और डूएल यूज टेक्नोलॉजी पर लगा देगा, जैसा कि उसने चीन के साथ किया है.

पढें : हांगकांग मामला : बौखलाए चीन ने भी अमेरिकी अधिकारियों पर लगाया वीजा प्रतिबंध

माइक पोम्पियो ने कहा, 'हम इन हथियारों का पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के हाथों में पड़ने का जोखिम नहीं ले सकते, जिसका मुख्य उद्देश्य किसी भी तरह से सीसीपी की तानाशाही को बरकरार रखना है. संयुक्त राज्य अमेरिका अपनी सुरक्षा के लिए यह कार्रवाई करने को मजबूर है. हम अब हांगकांग या मुख्य चीन को नियंत्रित वस्तुओं के निर्यात के बीच अंतर नहीं कर सकते.'

इसके जवाब में चीन ने अमेरिकी नागरिकों के वीजा को प्रतिबंधित करने की धमकी दी है. इसकी वजह से चीन और अमेरिका के बीज पहले से ही चल रहे तनाव में और इजाफा हो गया है. पॉम्पियो ने कहा, 'हमारी कार्रवाई चीनी शासन के खिलाफ है न कि चीनी लोगों के. लेकिन बीजिंग अब हांगकांग को 'वन कंट्री, वन सिस्टम' मानता है, इसलिए हम ऐसा करने को मजबूर हैं. संयुक्त राज्य अमेरिका अन्य अधिकारियों के साथ हालातों की समीक्षा कर रहा है ताकि हांगकांग की जमीनी सच्चाई सामने आ सके.'

(स्मिता शर्मा - वरिष्ठ पत्रकार)

Last Updated : Jun 30, 2020, 4:48 PM IST
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