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चीन ने डैम-इन्वेंटरी मैप में अरुणाचल के क्षेत्रों को किया शामिल

चीन ने अरुणाचल प्रदेश में नई चाल चली है. ड्रैगन की नजर पूर्वोत्तर भारत के सबसे बड़े राज्य के समृद्ध जल संसाधनों पर है. इसीलिए चीन अपने डैम-इन्वेंटरी मैप में अरुणाचल के क्षेत्रों को शामिल किया है. पढ़ें वरिष्ठ संवाददाता संजीब कुमार बरुआ की रिपोर्ट...

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Published : Oct 6, 2020, 7:03 PM IST

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चीन का डैम-इन्वेंटरी मैप

नई दिल्ली : अरुणाचल प्रदेश पर अपने क्षेत्रीय दावे को रेखांकित करते हुए चीन ने नई चाल चली है. चीन पूर्वोत्तर भारत के सबसे बड़े राज्य अरुणाचल प्रदेश के समृद्ध जल संसाधनों का दोहन करना चाहता है. इसके लिए उसने अपने डैम-इनवेंटरी मैप में अरुणाचल के क्षेत्रों को शामिल किया है.

चीन की सबसे बड़ी सरकारी कंपनी हाइड्रोचाइना कॉर्पोरेशन द्वारा कथित तौर पर एक दशक पुराना नक्शा तैयार किया गया है, जो जलविद्युत और जल संसाधन विकास में संपूर्ण तकनीकी सेवाओं की योजना और क्रियान्वयन तथा अरुणाचल प्रदेश के अंतर्गत आने वाले क्षेत्रों में बांध स्थलों को दर्शाता है.

चीन का डैम-इन्वेंटरी मैप
चीन का डैम-इन्वेंटरी मैप

हाइड्रोचाइना से संबंधित प्रोजेक्ट इन्वेंट्री मैप में अरुणाचल प्रदेश के मंदारिन क्षेत्र के साथ, ताइवान के क्षेत्र भी शामिल है. यह दोनों क्षेत्र चीनी नियंत्रण में नहीं हैं.

कंपनी की आधिकारिक वेबसाइट ने मानचित्र को जारी किया था, फिलहाल इंटरनेट पर सर्च करने पर मैप का लिंक एरर पेज (error page) के रूप में सामने आता है.

भारत और चीन की सेना के बीच अप्रैल महीने से पूर्वी लद्दाख और अन्य सीमा क्षेत्रों में तनाव चल रहा है. इसके परिणामस्वरूप सीमा पर सैनिकों और युद्ध हथियारों का अभूतपूर्व जमावड़ा हो गया है. कई स्तरों पर वार्ता के बावजूद स्थिति सामान्य होने के कोई संकेत नहीं दिख रहे हैं. दोनों देशों की सेनाएं कठोर सर्दियों में भी सीमा पर डटे रहने के लिए तैयारी कर रही हैं.

पानी पर अधिकार को लेकर भविष्य में युद्ध की आशंका जताई जा रही है. इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि चीन की नजर दुनिया के सबसे समृद्ध विद्युत जल संसाधन क्षेत्रों में से एक अरुणाचल प्रदेश पर है.

हालांकि, मैकमोहन रेखा (एमएल) भारतीय और तिब्बती क्षेत्र का सीमांकन करती है, लेकिन चीन ने मैकमोहन रेखा को मानने से इनकार कर दिया है और 2006 से अरुणाचल प्रदेश को 'दक्षिणी तिब्बत' बताकर अपना अधिकार जता रहा है.

तिब्बत और चीन के विशेष जानकार क्लाउड अर्पी (Claude Arpi) ने ईटीवी भारत से बात करते हुए कहा कि चीन अपने सभी मानचित्रों में अरुणाचल प्रदेश को दर्शाता है. उन्होंने कहा कि चीन अरुणाचल के लिए बांध की योजना नहीं बना सकता, क्योंकि यह क्षेत्र उसके कब्जे में नहीं है.

उन्होंने कहा कि चीन की नई चाल पश्चिम में अक्साई चिन के लिए सौदेबाजी का दावा है.

उत्तरी चीन पानी से घिरा हुआ है, लेकिन दक्षिणी क्षेत्र जल संसाधन समृद्ध है और देश के जल संसाधनों में 80 प्रतिशत तक की हिस्सेदारी है.

अपने जल संसाधनों का नियंत्रण, संरक्षण और कुशलतापूर्वक उपयोग सुनिश्चित करना चीन के लिए चुनौतीपूर्ण रहा है, जिसकी आवश्यकता तेजी से आर्थिक विकास के साथ-साथ बढ़ती जा रही है.

यह भी पढ़ें- सीमा नियमों में बदलाव से एलएसी बन सकती है 'नई एलओसी'

चीन के पूर्व जल संसाधन मंत्री वांग शुचेंग को देश में जल विद्युत नियोजन का श्रेय जाता है. एक बार उन्होंने कहा था कि पानी की हर बूंद के लिए लड़ना या मरना चीन के सामने चुनौती है.

यही वजह है कि चीन बांध बनाने में दुनिया में सबसे आगे है. चीन में लगभग 80,000 बांध हैं, जिनमें से एक-चौथाई से अधिक मेगा बांध हैं.

चीन की एक वर्तमान महत्वाकांक्षी योजना का मकसद तिब्बती पठार में दक्षिणी नदियों के पानी को मोड़ना है, जिसमें यारलुंग त्संगपो (जो असम में ब्रह्मपुत्र बन जाता है) सहित शुष्क उत्तरी क्षेत्र आता है, जिसके लिए कई बांध परियोजनाएं पहले से ही मौजूद हैं.

अर्पी ने कहा कि भूकंपीय क्षेत्र होने के कारण यारलुंग त्संगपो पर मेगा बांध बनाना जोखिम भरा है. उम्मीद है कि ऐसा नहीं होगा.

नई दिल्ली : अरुणाचल प्रदेश पर अपने क्षेत्रीय दावे को रेखांकित करते हुए चीन ने नई चाल चली है. चीन पूर्वोत्तर भारत के सबसे बड़े राज्य अरुणाचल प्रदेश के समृद्ध जल संसाधनों का दोहन करना चाहता है. इसके लिए उसने अपने डैम-इनवेंटरी मैप में अरुणाचल के क्षेत्रों को शामिल किया है.

चीन की सबसे बड़ी सरकारी कंपनी हाइड्रोचाइना कॉर्पोरेशन द्वारा कथित तौर पर एक दशक पुराना नक्शा तैयार किया गया है, जो जलविद्युत और जल संसाधन विकास में संपूर्ण तकनीकी सेवाओं की योजना और क्रियान्वयन तथा अरुणाचल प्रदेश के अंतर्गत आने वाले क्षेत्रों में बांध स्थलों को दर्शाता है.

चीन का डैम-इन्वेंटरी मैप
चीन का डैम-इन्वेंटरी मैप

हाइड्रोचाइना से संबंधित प्रोजेक्ट इन्वेंट्री मैप में अरुणाचल प्रदेश के मंदारिन क्षेत्र के साथ, ताइवान के क्षेत्र भी शामिल है. यह दोनों क्षेत्र चीनी नियंत्रण में नहीं हैं.

कंपनी की आधिकारिक वेबसाइट ने मानचित्र को जारी किया था, फिलहाल इंटरनेट पर सर्च करने पर मैप का लिंक एरर पेज (error page) के रूप में सामने आता है.

भारत और चीन की सेना के बीच अप्रैल महीने से पूर्वी लद्दाख और अन्य सीमा क्षेत्रों में तनाव चल रहा है. इसके परिणामस्वरूप सीमा पर सैनिकों और युद्ध हथियारों का अभूतपूर्व जमावड़ा हो गया है. कई स्तरों पर वार्ता के बावजूद स्थिति सामान्य होने के कोई संकेत नहीं दिख रहे हैं. दोनों देशों की सेनाएं कठोर सर्दियों में भी सीमा पर डटे रहने के लिए तैयारी कर रही हैं.

पानी पर अधिकार को लेकर भविष्य में युद्ध की आशंका जताई जा रही है. इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि चीन की नजर दुनिया के सबसे समृद्ध विद्युत जल संसाधन क्षेत्रों में से एक अरुणाचल प्रदेश पर है.

हालांकि, मैकमोहन रेखा (एमएल) भारतीय और तिब्बती क्षेत्र का सीमांकन करती है, लेकिन चीन ने मैकमोहन रेखा को मानने से इनकार कर दिया है और 2006 से अरुणाचल प्रदेश को 'दक्षिणी तिब्बत' बताकर अपना अधिकार जता रहा है.

तिब्बत और चीन के विशेष जानकार क्लाउड अर्पी (Claude Arpi) ने ईटीवी भारत से बात करते हुए कहा कि चीन अपने सभी मानचित्रों में अरुणाचल प्रदेश को दर्शाता है. उन्होंने कहा कि चीन अरुणाचल के लिए बांध की योजना नहीं बना सकता, क्योंकि यह क्षेत्र उसके कब्जे में नहीं है.

उन्होंने कहा कि चीन की नई चाल पश्चिम में अक्साई चिन के लिए सौदेबाजी का दावा है.

उत्तरी चीन पानी से घिरा हुआ है, लेकिन दक्षिणी क्षेत्र जल संसाधन समृद्ध है और देश के जल संसाधनों में 80 प्रतिशत तक की हिस्सेदारी है.

अपने जल संसाधनों का नियंत्रण, संरक्षण और कुशलतापूर्वक उपयोग सुनिश्चित करना चीन के लिए चुनौतीपूर्ण रहा है, जिसकी आवश्यकता तेजी से आर्थिक विकास के साथ-साथ बढ़ती जा रही है.

यह भी पढ़ें- सीमा नियमों में बदलाव से एलएसी बन सकती है 'नई एलओसी'

चीन के पूर्व जल संसाधन मंत्री वांग शुचेंग को देश में जल विद्युत नियोजन का श्रेय जाता है. एक बार उन्होंने कहा था कि पानी की हर बूंद के लिए लड़ना या मरना चीन के सामने चुनौती है.

यही वजह है कि चीन बांध बनाने में दुनिया में सबसे आगे है. चीन में लगभग 80,000 बांध हैं, जिनमें से एक-चौथाई से अधिक मेगा बांध हैं.

चीन की एक वर्तमान महत्वाकांक्षी योजना का मकसद तिब्बती पठार में दक्षिणी नदियों के पानी को मोड़ना है, जिसमें यारलुंग त्संगपो (जो असम में ब्रह्मपुत्र बन जाता है) सहित शुष्क उत्तरी क्षेत्र आता है, जिसके लिए कई बांध परियोजनाएं पहले से ही मौजूद हैं.

अर्पी ने कहा कि भूकंपीय क्षेत्र होने के कारण यारलुंग त्संगपो पर मेगा बांध बनाना जोखिम भरा है. उम्मीद है कि ऐसा नहीं होगा.

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