नई दिल्ली : राजस्थान में सिर्फ कांग्रेस पार्टी के अंदर ही कलह नहीं चल रही बल्कि भाजपा की राज्य इकाई में भी अंदरूनी कलह कुछ कम नहीं है. एक तरफ राजस्थान में भाजपा की सरकार बनाने की असफल कोशिश हुई. वहीं दूसरी तरफ पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की चुप्पी जगजाहिर है. शायद यही कारण है कि राज्य की कार्यकारिणी में वसुंधरा के ज्यादातर विश्वासपात्रों के नाम केंद्रीय नेतृत्व द्वारा हटा दिए गए हैं.
सूत्रों की मानें तो वसुंधरा राजे पार्टी के आलाकमान से और केंद्रीय नेताओं से नाराज हैं, क्योंकि राजस्थान में हुई राजनीति नौटंकी के बाद भाजपा नेतृत्व की तरफ से जो राज्य की कार्यकारिणी तैयार की गई है, उसमें से ज्यादातर वसुंधरा के विश्वासपात्रों के नाम काट दिए गए हैं.
राज्य में अशोक गहलोत और सचिन पायलट एपिसोड के समय अगर वसुंधरा राजे की भूमिका देखी जाए तो वह पूरी तरह से शून्य दिखीं.
सूत्रों के अनुसार, प्रदेश की कार्यकारिणी में वसुंधरा से ज्यादा सतीश पूनिया के करीबियों को जगह दी गई है. इसके अलावा आरएसएस के बैकग्राउंड वाले नेताओं को जगह दी गई है. इतना ही नहीं, इनमें ऐसे लोगों के भी नाम शामिल हैं, जिन्हें वसुंधरा बिल्कुल भी पसंद नहीं करतीं.
पिछले हफ्ते उन्होंने दिल्ली आकर कुछ आला नेताओं से मुलाकात भी की थी और अंदाजा लगाया जा रहा था कि वसुंधरा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी मिलेंगी, मगर यह मुलाकात संभव नहीं हो पाई.
भाजपा सांसद सीपी जोशी, विधायक चंद्रकांता मेघवाल, मुकेश दाधीच, मधुरम चौधरी, प्रसन्न मेहता, हेमराज मीणा और अलका गुर्जर को कार्यकारिणी में शामिल किया गया है और जयपाल सिंह को राजस्थान भाजपा का उपाध्यक्ष चुना गया है. इसके अलावा मदन दिलावर को राज्य में पार्टी महासचिव के तौर पर नियुक्त किया गया है, जो आरएसएस के नजदीकी माने जाते रहे हैं.
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पार्टी के सूत्रों का कहना है कि वसुंधरा ने केंद्र में पार्टी के वरिष्ठ नेताओं से मुलाकात कर यह भी शिकायत की थी कि जो राज्य की कार्यकारिणी तय की गई वह उन्हें तवज्जो नहीं देती है.
सूत्रों का कहना है कि संगठन मंत्री और भाजपा आलाकमान ने वसुंधरा को यह निर्देश दिए कि वह इन नेताओं के बीच ही तालमेल बिठाने की कोशिश करें ताकि राजस्थान में जो पिछले दिनों संदेश गया है कि वहां दो लॉबी काम कर रही है, इस तरह का संदेश दोबारा पार्टी की तरफ से जनता के बीच न जाए.