हैदराबाद : पुस्तक को ज्ञान का भंडार कहा जाता है. ज्ञान की इस कुंजी को प्राप्त करने के लिए मनुष्य को पुस्तकालय का रुख करना पड़ता है. भारत में हर साल 12 अगस्त को राष्ट्रीय पुस्तकालय दिवस मनाया जाता है. भारत में पुस्तकालय के जनक प्रोफेसर डॉ. एसआर रंगनाथन (1892-1972) की याद में पुस्तकालय दिवस मनाया जाता है.
रंगनाथन का जन्म दक्षिण भारत के तमिलनाडु राज्य में छोटे से शहर शियाली में नौ अगस्त 1892 को हुआ. रंगनाथन ने अपने जीवन की शुरुआत एक गणितज्ञ के रूप में की. उनका आजीवन लक्ष्य गणित पढ़ाना था. गणित के प्रोफेसर के रूप में उन्होंने गणित के इतिहास पर कुछ शोध पत्र प्रकाशित किए.
गणित के शिक्षक के रूप में करियर
रंगनाथन ने 1921 में मैंगलोर के गवर्नमेंट कॉलेज में गणित में सहायक व्याख्याता के रूप में अपना करियर शुरू किया. वह मैंगलोर, कोयम्बटूर और मद्रास में विश्वविद्यालयों में गणित संकायों के सदस्य रहे. वे मद्रास टीचर्स गिल्ड के गणित और विज्ञान अनुभाग के सचिव भी रहे.
मद्रास यूनिवर्सिटी लाइब्रेरी
रंगनाथन को जनवरी 1924 में यूनिवर्सिटी लाइब्रेरियन के लिए चुना गया था. नियुक्ति की शर्तों के अनुसार चयनित उम्मीदवार को लाइब्रेरियन और लाइब्रेरी के काम में प्रशिक्षण के लिए इंग्लैंड जाना था. रंगनाथन को पुस्तकालय प्रबंधन में आधुनिक प्रथाओं का अध्ययन करने के लिए लंदन भेजा गया. इंग्लैंड में नौ महीने रहने और पढ़ने के बाद रंगनाथन ने भारत जैसे देश में सामाजिक संस्थानों के रूप में पुस्तकालयों के महत्व को महसूस किया.
रंगनाथन ने वापस आकर काम पूरी लगन से शुरू किया. इसके लिए एक कार्य योजना बनाई जैसे :-
- पुस्तकालय को साल के सभी दिनों में सुबह 8 बजे से रात 8 बजे तक खुला रखना.
- स्नातक छात्रों को भी पुस्तकालय में आने-जाने की अनुमति देना.
- गहन उपयोगकर्ता सहायता प्रदान करना.
लाइब्रेरियन के रूप में कार्यभार संभालने के कुछ सालों के अंदर रंगनाथन ने पाठकों की रुचि के प्रोफाइल के आधार पर चुनिंदा पाठकों के लिए व्यक्तिगत आवश्यकताओं (PARS, अनुसंधान विद्वानों के लिए व्यक्तिगत सहायता) के अनुरूप एक सेवा शुरू की.
वे किताबें पढ़ने वालों की आवश्यकताओं के आधार पर किताबों के स्टॉक में विविधता लाने लगे. पुस्तकालय के संसाधनों और सेवाओं को प्रचारित करने के लिए उन्होंने एक कार्यक्रम का आयोजन किया, जिसमें हर हफ्ते, रविवार को शहर के समाचार पत्रों के संस्करण में पुस्तकालय में लाई गई नई पुस्तकों की सूची को प्रकाशित करना, विभिन्न मंचों से लोगों को इस विषय पर संबोधित करना, पत्रिकाओं और समाचार पत्रों में पुस्तक और पुस्तकालय से जुड़े लेख लिखना शामिल था.
उन्होंने बहुत ही कम पैसों में किताबों की होम डिलीवरी करना और पाठकों के पढ़ने के लिए सही प्रकार का माहौल बनाना भी शुरू किया.
सामान्य सिद्धांत
1931 तक दार्शनिक आधार की उनकी खोज पुस्तकालय विज्ञान के पांच नियमों में बदल गई. पांच नियमों की प्रेरणा रंगनाथन को धर्मशास्त्र के लेखक मनु से मिली.
पांच नियम :-
- किताबें उपयोग के लिए हैं
- हर पाठक को उसकी पुस्तक
- हर किताब को उसका पाठक
- पाठक का समय बचाएं
- पुस्तकालय एक वर्धनशील संस्था है
लाइब्रेरियन के रूप में रंगनाथन का प्राथमिक उद्देश्य लोगों तक आसानी से पहुंचाकर उनकी जिज्ञासाओं को शांत करना था.
पुस्तकालय संघ और सार्वजनिक पुस्तकालय आंदोलन
करियर की शुरुआत में ही रंगनाथन ने पुस्तकालय आंदोलन को एक जन आंदोलन बनाने के लिए राजनीतिक समर्थन के महत्व को पहचान लिया था. 1927 में अखिल भारतीय सार्वजनिक पुस्तकालय सम्मेलन मद्रास में आयोजित किया गया. सम्मेलन ने रंगनाथन को कुछ हद तक इस क्षेत्र को सामाज और राजनीति से जोड़ने का अवसर दिया. मद्रास के एक प्रमुख अधिवक्ता केवी कृष्णास्वामी अय्यर और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से जुड़े कुछ अन्य जाने-माने लोगों के समर्थन से रंगनाथन ने जनवरी 1928 में मद्रास लाइब्रेरी एसोसिएशन (MALA) की स्थापना की.
रंगनाथन ने ग्रामीण क्षेत्रों में भी पुस्तकालय हो इस लिए पहली बैलगाड़ी पुस्तकालय सेवा शुरू की.
सार्वजनिक पुस्तकालय कानून
उनका मानना था कि राष्ट्रीय विकास के लिए एक प्रभावी सार्वजनिक पुस्तकालय प्रणाली आवश्यक थी. उन्होंने भारत के कई राज्यों के लिए सार्वजनिक पुस्तकालय बिलों का मसौदा तैयार किया. रंगनाथन के प्रयासों से मद्रास पब्लिक लाइब्रेरी एक्ट 1948 पारित किया गया था.
रंगनाथन ने भारत के लिए एक राष्ट्रीय पुस्तकालय प्रणाली की योजना भी तैयार की. भारत सरकार ने नई दिल्ली में एक राष्ट्रीय केंद्रीय पुस्तकालय स्थापित करने के लिए एक समिति का गठन किया, जिसमें एस आर रंगनाथन सदस्य थे. रंगनाथन ने एक पुस्तकालय विकास योजना का मसौदा तैयार किया.
रंगनाथन द्वारा किए गए प्रयासों से आज 20 से अधिक भारतीय राज्यों ने सार्वजनिक पुस्तकालय कानून पारित किया है.
रंगनाथन ने 1944 से 1953 तक इंडियन लाइब्रेरी एसोसिएशन के अध्यक्ष के रूप में भी काम किया. उन्होंने मैसूर लाइब्रेरी एसोसिएशन (अब कर्नाटक स्टेट लाइब्रेरी एसोसिएशन) और इंडियन एसोसिएशन ऑफ टीचर्स ऑफ लाइब्रेरी साइंस (IATLIS) अब, इंडियन एसोसिएशन ऑफ टीचर्स ऑफ लाइब्रेरी एंड इंफॉर्मेशन साइंस की भी स्थापना की.
सम्मान और पुरस्कार
प्रोफेसर डॉ. एस आर रंगनाथन को उनके योगदान के लिए कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया.
- राव साहेब (1935 में ब्रिटिश शासन के अधीन भारत सरकार द्वारा प्रदान सम्मान)
- डॉक्टरेट हॉनरिस कॉसा (दिल्ली विश्वविद्यालय, 1948)
- हॉनरी फेलो, वर्जीनिया बिब्लियोग्राफिक सोसाइटी, 1951
- हॉनरी मेंबर, इंडियन एसोसिएशन ऑफ स्पेशल लाइब्रेरी एंड इंफॉर्मेशन सेंटर्स, 1956
- पद्मश्री (1957 में भारत सरकार द्वारा प्रदान सम्मान)
- हॉनरी वाइस - प्रेसिडेंट लाइब्रेरी एसोसिएशन (लंदन), 1957
- हॉनरी फेलो, इंटरनेशनल फेडरेशन फॉर डॉक्यूमेंटेशन, 1957
- हॉनरी डी लिट् (पिट्सबर्ग विश्वविद्यालय, 1964)
- हॉनरी फेलो, इंडियन स्टैंडर्ड इंस्टीट्यूशन, 1967
- राष्ट्रीय अनुसंधान प्रोफेसर (भारत सरकार, 1965)
- मार्गरेट मान प्रशस्ति पत्र (अमेरिकन लाइब्रेरी एसोसिएशन, 1970; पहली बार अमेरिका के बाहर के किसी व्यक्ति को प्रस्तुत किया गया प्रशस्ति पत्र)
- ग्रैंड नाइट ऑफ पीस, मार्क ट्वेन सोसाइटी, यूएसए, 1971
रंगनाथन ने खुद को विभिन्न संस्थानों में छात्रों को पुरस्कृत किया.
- 1934 : एडवर्ड बी.रॉस स्टूडेंटशिप, मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज
- 1958 : शारदा रंगनाथन पुरस्कार फॉर मेथेमेटिक्स, गवर्नमेंट कॉलेज, मैंगलोर
- 1958 : शारदा रंगनाथन मेरिट पुरस्कार, संस्कृत कॉलेज, श्रीपेरुम्बुदूर, चेन्नई
- 1959 : शारदा रंगनाथन मेरिट पुरस्कार, हाई स्कूल, उज्जैन, मध्य प्रदेश
रंगनाथन के पास लाइब्रेरियनशिप, सूचना कार्य और सेवा का शायद ही कोई ऐसा पहलू हो जिस पर उन्होंने काम न किया हो. वे एक लेखक और शोधकर्ता थे. उन्होंने बहुत लंबे समय तक लिखना और किताबों का प्रकाशन जारी रखा.
अपने जीवनकाल के दौरान उन्होंने 60 से अधिक पुस्तकें लिखी और 1,500 से ज्यादा शोध पत्र/लेख प्रकाशित किए. उनकी विरासत को पूरे भारत के पुस्तकालयों और शैक्षणिक संस्थानों में देखा जा सकता है.