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अटल जयंती विशेष : खुद लिखते और फिर साइकिल से बांटते थे 'राष्ट्रधर्म'

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Published : Dec 25, 2019, 7:39 AM IST

भारत रत्न पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की आज जयंती है. उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के राजेंद्र नगर स्थित आरएसएस मुख्यालय के ठीक बगल में राष्ट्रधर्म पत्रिका का काम शुरू हुआ था. तब अटल बिहारी वाजपेयी खुद से खबरों की कंपोजिंग करते थे और फिर उन्हें साइकिल से बांटते थे. पढ़ें पूरी खबर...

atal bihari vajpayee birth anniversary
अटल जयंती

लखनऊ: भारत रत्न पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की जयंती 25 दिसंबर यानी आज ही के दिन मनाई जाती है. इस अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राजधानी लखनऊ में अटल की एक भव्य अष्टधातु से बनी प्रतिमा का अनावरण करेंगे. जयंती के अवसर पर ईटीवी भारत ने अटल जी से जुड़े कुछ रोचक तथ्य आपको बताने की मुहिम शुरू की है.

राजधानी लखनऊ के राजेंद्र नगर स्थित आरएसएस मुख्यालय के ठीक बगल में राष्ट्रधर्म का काम शुरू हुआ था. साल 1947 में अटल बिहारी वाजपेयी राष्ट्रधर्म पत्रिका के पहले संपादक बने. देश आजाद होने के बाद राष्ट्रवाद की अलख जगाने के उद्देश्य से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की योजना के अनुसार प्रकाशित राष्ट्रधर्म पत्रिका में लेखन और फिर उसकी छपाई का काम शुरू हुआ था. राष्ट्रधर्म में लेखन और उसके वितरण का काम अटल बिहारी वाजपेयी खुद करते थे. अटल जी न सिर्फ खबरों और लेख लिखने का काम करते थे, बल्कि उसे जन-जन तक पहुंचाने के लिए लखनऊ की गलियों में साइकिल से भी राष्ट्रधर्म पत्रिका बांटने का काम किया.

भारत रत्न पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से जुड़े कुछ रोचक तथ्य

31 अगस्त 1947 को राष्ट्रधर्म का निकला पहला अंक
15 अगस्त 1947 को देश आजाद हुआ और 31 अगस्त 1947 को राष्ट्रधर्म का पहला अंक निकला. स्वतंत्रता प्राप्ति के ठीक 16वें दिन राष्ट्रधर्म का पहला अंक निकला. अटल जी की देशभर में जो बड़ी कविता प्रसिद्ध है 'हिंदू तन मन हिंदू जीवन, हिन्दू रग-रग, हिन्दू मेरा परिचय' राजधर्म के पहले अंक में प्रथम पृष्ठ पर छपी थी.

अटल जी खुद करते थे कंपोजिंग
पहला अंक की 3500, दूसरे अंक की आठ हजार और तीसरे अंक की 12000 प्रतियां निकली थीं. धीरे-धीरे करके युवा संपादक के रूप में अटल जी की धूम पूरे देश भर में हो गई थी. जितनी प्रसन्नता 12000 प्रतियां छपने की थी, उतनी ही दुश्वारियां भी थीं. अटल जी को अपने ही हाथ से कंपोजिंग करना रहता था. राष्ट्रधर्म के बंडल साइकिल पर लेकर उनको बांटने के लिए जाना पड़ता था. इतनी विषम परिस्थिति में अटल जी काम करते थे.

विरोधी भी थे अटल के कायल
अटल जी को लखनऊ कभी नहीं भूलेगा. अटल जी का अंतिम सार्वजनिक कार्यक्रम 6 अगस्त 2007 को राष्ट्रधर्म के साथ पूरा हुआ. अटल जी के साथ मिलकर जनसंघ और भाजपा विशेषांक निकाला था. अटल जी इसके बाद फिर किसी कार्यक्रम में सार्वजनिक मंचों पर नहीं दिखे. राष्ट्रधर्म के जुड़ाव के कारण देश-विदेश में भी उनकी प्रतिष्ठा रही. उनके विरोधी भी उनके कायल थे और श्रद्धा रखते थे. पूरा विश्व अटल जी को कभी भूल नहीं सकता.

ये भी पढ़ें- मेरठ: राहुल और प्रियंका गांधी को प्रशासन ने शहर पहुंचने से पहले लौटाया

साइकिल से बांटने थे पत्रिका
साल 1947 में जब राष्ट्रधर्म प्रकाशन का काम शुरू हुआ, तब अटल बिहारी वाजपेयी खुद से खबरों की कंपोजिंग करते थे और फिर उन्हें साइकिल से बांटने का काम करते थे. उस दौर में ट्रेडइल और विक्टोरिया फ्रंट जैसी छोटी मशीनों में पत्रिका और अखबारों की छपाई का काम होता था. धीरे-धीरे करके यह काम अटल जी के नेतृत्व में आगे बढ़ा और उनके नेतृत्व में लोगों को राष्ट्रवाद के विचार मिलने शुरू हो गए. वर्ष 2016 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन राव भागवत ने राष्ट्रधर्म प्रकाशन में एक बड़ी फोर कलर प्रिंटिंग मशीन का उद्घाटन किया. तब से अब इन्हीं बड़ी मशीनों में राष्ट्रधर्म पत्रिका की छपाई हो रही है.

लखनऊ: भारत रत्न पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की जयंती 25 दिसंबर यानी आज ही के दिन मनाई जाती है. इस अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राजधानी लखनऊ में अटल की एक भव्य अष्टधातु से बनी प्रतिमा का अनावरण करेंगे. जयंती के अवसर पर ईटीवी भारत ने अटल जी से जुड़े कुछ रोचक तथ्य आपको बताने की मुहिम शुरू की है.

राजधानी लखनऊ के राजेंद्र नगर स्थित आरएसएस मुख्यालय के ठीक बगल में राष्ट्रधर्म का काम शुरू हुआ था. साल 1947 में अटल बिहारी वाजपेयी राष्ट्रधर्म पत्रिका के पहले संपादक बने. देश आजाद होने के बाद राष्ट्रवाद की अलख जगाने के उद्देश्य से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की योजना के अनुसार प्रकाशित राष्ट्रधर्म पत्रिका में लेखन और फिर उसकी छपाई का काम शुरू हुआ था. राष्ट्रधर्म में लेखन और उसके वितरण का काम अटल बिहारी वाजपेयी खुद करते थे. अटल जी न सिर्फ खबरों और लेख लिखने का काम करते थे, बल्कि उसे जन-जन तक पहुंचाने के लिए लखनऊ की गलियों में साइकिल से भी राष्ट्रधर्म पत्रिका बांटने का काम किया.

भारत रत्न पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से जुड़े कुछ रोचक तथ्य

31 अगस्त 1947 को राष्ट्रधर्म का निकला पहला अंक
15 अगस्त 1947 को देश आजाद हुआ और 31 अगस्त 1947 को राष्ट्रधर्म का पहला अंक निकला. स्वतंत्रता प्राप्ति के ठीक 16वें दिन राष्ट्रधर्म का पहला अंक निकला. अटल जी की देशभर में जो बड़ी कविता प्रसिद्ध है 'हिंदू तन मन हिंदू जीवन, हिन्दू रग-रग, हिन्दू मेरा परिचय' राजधर्म के पहले अंक में प्रथम पृष्ठ पर छपी थी.

अटल जी खुद करते थे कंपोजिंग
पहला अंक की 3500, दूसरे अंक की आठ हजार और तीसरे अंक की 12000 प्रतियां निकली थीं. धीरे-धीरे करके युवा संपादक के रूप में अटल जी की धूम पूरे देश भर में हो गई थी. जितनी प्रसन्नता 12000 प्रतियां छपने की थी, उतनी ही दुश्वारियां भी थीं. अटल जी को अपने ही हाथ से कंपोजिंग करना रहता था. राष्ट्रधर्म के बंडल साइकिल पर लेकर उनको बांटने के लिए जाना पड़ता था. इतनी विषम परिस्थिति में अटल जी काम करते थे.

विरोधी भी थे अटल के कायल
अटल जी को लखनऊ कभी नहीं भूलेगा. अटल जी का अंतिम सार्वजनिक कार्यक्रम 6 अगस्त 2007 को राष्ट्रधर्म के साथ पूरा हुआ. अटल जी के साथ मिलकर जनसंघ और भाजपा विशेषांक निकाला था. अटल जी इसके बाद फिर किसी कार्यक्रम में सार्वजनिक मंचों पर नहीं दिखे. राष्ट्रधर्म के जुड़ाव के कारण देश-विदेश में भी उनकी प्रतिष्ठा रही. उनके विरोधी भी उनके कायल थे और श्रद्धा रखते थे. पूरा विश्व अटल जी को कभी भूल नहीं सकता.

ये भी पढ़ें- मेरठ: राहुल और प्रियंका गांधी को प्रशासन ने शहर पहुंचने से पहले लौटाया

साइकिल से बांटने थे पत्रिका
साल 1947 में जब राष्ट्रधर्म प्रकाशन का काम शुरू हुआ, तब अटल बिहारी वाजपेयी खुद से खबरों की कंपोजिंग करते थे और फिर उन्हें साइकिल से बांटने का काम करते थे. उस दौर में ट्रेडइल और विक्टोरिया फ्रंट जैसी छोटी मशीनों में पत्रिका और अखबारों की छपाई का काम होता था. धीरे-धीरे करके यह काम अटल जी के नेतृत्व में आगे बढ़ा और उनके नेतृत्व में लोगों को राष्ट्रवाद के विचार मिलने शुरू हो गए. वर्ष 2016 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन राव भागवत ने राष्ट्रधर्म प्रकाशन में एक बड़ी फोर कलर प्रिंटिंग मशीन का उद्घाटन किया. तब से अब इन्हीं बड़ी मशीनों में राष्ट्रधर्म पत्रिका की छपाई हो रही है.

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लखनऊ। भारत रत्न पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेई की 25 दिसंबर को जयंती मनाई जा रही है। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राजधानी लखनऊ में बुधवार को अटल जी की एक भव्य अष्टधातु से बनी प्रतिमा का अनावरण करेंगे। जयंती के अवसर पर ईटीवी भारत अटल जी से जुड़े कुछ रोचक तथ्य आपको बताने की मुहिम शुरू की है।





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भारत रत्न पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी बाजपेई की जयंती 25 दिसंबर को मनाई जाएगी। राजधानी लखनऊ के राजेंद्र नगर स्थित आरएसएस मुख्यालय के ठीक बगल में राष्ट्रधर्म का काम शुरू हुआ था साल 1947 में, अटल बिहारी बाजपेई राष्ट्रधर्म पत्रिका के पहले संस्थापक संपादक बने और देश आजाद होने के बाद राष्ट्रवाद की अलख जगाने के उद्देश्य से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की योजना के अनुसार प्रकाशित राष्ट्रधर्म पत्रिका में लेखन और फिर उसकी छपाई का काम शुरू हुआ था अटल जी के नेतृत्व में। राष्ट्रधर्म में लेखन और उसके वितरण का काम पंडित अटल बिहारी बाजपेई खुद करते थे, अटल जी न सिर्फ खबरों और लेख लिखने का काम करते थे बल्कि उसे जन-जन तक पहुंचाने के लिए लखनऊ की गलियों में उन्होंने साइकिल से भी राष्ट्रधर्म पत्रिका बांटने का काम किया।

बाईट,
डॉ पवनपुत्र बादल, प्रबंधक राष्ट्रधर्म, लखनऊ
अटल जी अटल जी थे 15 अगस्त 1947 को देश आजाद हुआ और 31 अगस्त 1947 को राष्ट्र धर्म का पहला अंक निकला हम कहेंगे कि स्वतंत्रता प्राप्ति के ठीक ठीक 16 में दिन राष्ट्र धर्म का पहला अंक निकला एक दूरदर्शिता थी भाऊराव देवरस जी की पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी के अटल जी को कानपुर से लाकर राष्ट्रधर्म के साथ उनको संपादक बना पहला अंक निकाला गया देशभर में जो बड़ी कविता प्रसिद्ध है अटल जी की हिंदू तन मन हिंदू जीवन, हिन्दू रग रग, हिन्दू मेरा परिचय,,अटल जी के वहां पहले कविता राज धर्म के पहले अंक में प्रथम पृष्ठ पर छपी थी पहला अंक 3500 और दूसरा अंक 8000 निकला था और तीसरा अंक 12000 निकला था। धीरे-धीरे करके युवा संपादक के रूप में अटल जी के धूम पूरे देश भर में हो गए थे इतने बड़े साहित्यकार थे वह सब राष्ट्रधर्म के साथ जुड़ गए थे लेकिन जितनी प्रसन्नता 12000 प्रतियां सपने के थे उतनी ही दुश्वारियां भी थीं। अटल जी को अपने ही हाथ से कंपोजिंग करना रहता था राष्ट्रधर्म के बंडल लेकर साइकिल पर लेकर उनको बांटने के लिए जाना यह काम अटलजी किया करते थे इतनी विषम परिस्थिति में अटल जी काम करते थे संसाधन को कोई नहीं थे पैसा नहीं था लेकिन धर्म के बीच ले जाना था अपने विचार को हमें जन-जन तक पहुंचाना था इसलिए कंपोजिंग लेखन और बाद में वितरण की व्यवस्था करते थे।
अटल जी का जो काम था लखनऊ कभी नहीं भूलेगा लोग कहते हैं कि राजस्थान के साथ अटल जी का जो लगाओ तक का जो जुड़ा होता रहा वह बराबर चलता रहा एक बहुत ही बड़ी घटना देवयोग से हुई अटल जी ने अपने सामाजिक जीवन की शुरुआत राष्ट्रम के साथ शुरू की थी और उनका जो अंतिम सार्वजनिक कार्यक्रम था 6 अगस्त 2007 को राष्ट्र धर्म के साथ पूरा हुआ राष्ट्र में अटल जी के साथ मिलकर जनसंघ और भाजपा विशेषांक निकाला था अटल जी के पास जो हम लोग गए थे आपको इस कार्यक्रम में आना है और लोकार्पण करना है मैं तो अब लखनऊ नहीं चल सकता और हम लोग दिल्ली जाकर उस विशेषांक का लोकार्पण कर आए थे 6 अगस्त 2007 को राष्ट्र धर्म के दोनों जन संघ भाजपा का लोकार्पण किया था हम कहेंगे कि भगवत कृपा है या संयोग है जो यात्रा अगस्त 1947 को शुरू हुई थी धर्म के साथ शुरू हुई थी अंतिम सार्वजनिक कार्यक्रम अटल जी का 6 अगस्त 2007 को धर्म के साथ ही पूर्व हुआ अटल जी इसके बाद फिर किसी कार्यक्रम में सार्वजनिक मंचों पर नहीं दिखे आज राष्ट्रधर्म के जुड़ाव के कारण देश के प्रधानमंत्री उनको भारत देश विदेश में भी उनकी उनकी प्रतिष्ठा रही है उनके विरोधी भी उनके कायल थे और श्रद्धा रखते थे यह देश समाज में पूरा विश्व अटल जी को कभी भूल नहीं सकता।




Conclusion:एंड पीटूसी


साल 1947 में जब राष्ट्रधर्म प्रकाशन का काम शुरू हुआ तब अटल बिहारी बाजपेई खुद से खबरों की कंपोजिंग करते थे और फिर उन्हें साइकिल से बांटने का काम करते थे उस दौर में ट्रेडइल और विक्टोरिया फ्रंट जैसी छोटी मशीनों में पत्रिका और अखबारों की छपाई का काम होता था धीरे-धीरे करके यह काम अटल जी के नेतृत्व में आगे बढ़ाओ और अटल जी के नेतृत्व में लोगों को राष्ट्रवाद के विचार मिलने शुरू हो गए। वर्ष 2016 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन राव भागवत ने राष्ट्रधर्म प्रकाशन में एक बड़ी फोर कलर प्रिंटिंग मशीन का उद्घाटन किया तब से अब इन्हीं बड़ी मशीनों में राष्ट्र धर्म पत्रिका की छपाई हो रही है अटल जी ने जो काम शुरू किया वह अब यहां पर निरंतर होता चला आ रहा है।


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