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ऐसी पहल से रुकेगा हाथियों और इंसानों का संघर्ष - मुख सामाजिक कार्यकर्ता बिनोद डुलु बोरा

असम की राजधानी दिसपुर से करीब 110 किमी दूर नौगांव जिले के किसान अब चैन की सांसें ले सकते हैं. उन्हें अब अपनी फसल की तबाही की उतनी चिंता नहीं है, जितनी पहले होती थी. इसकी मुख्य वजह थी हाथियों के झुडों द्वारा फसलों का नष्ट करना. गांव वालों ने इसका समाधान ढूंढ लिया है. यहां के एक प्रमुख सामाजिक कार्यकर्ता बिनोद डुलु बोरा ने गांव वालों की मदद से करीब 200 बीघा जमीन पर खेती बंद कर दी. उन्होंने इस जमीन पर हाथियों के लिए खाने की व्यवस्था कर दी है. केले वगैरह के पेड़ लगा दिये गये हैं, ताकि हाथियों का झुंड यहां आए, तो उन्हें खाना मिल सके. देखें वीडियो...

ऐसी पहल से रुकेगा हाथियों-इंसानों का संघर्ष
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Published : Nov 7, 2019, 9:22 PM IST

Updated : Nov 7, 2019, 10:02 PM IST

दिसपुर : असम की राजधानी दिसपुर से करीब 110 किमी दूर नौगांव जिले के किसान अब चैन की सांसें ले सकते हैं. उन्हें अपनी फसल की तबाही की उतनी चिंता नहीं है, जितनी पहले होती थी. इसकी मुख्य वजह थी हाथियों के झुडों द्वारा फसलों का नष्ट करना.

गौरतलब है कि हाथियों के आने से न सिर्फ फसलों की बर्बादी होती है, बल्कि आम लोगों की भी जान जाने का खतरा बना रहता है. 2010 से अब तक असम में हाथियों और इंसानों के बीच हुए संघर्ष में करीब 761 लोगों की मौत हो चुकी है और 249 हाथी भी मारे गये हैं.

ऐसी पहल से रुकेगा हाथियों-इंसानों का संघर्ष, देखें वीडियो...

हाथियों के लिए खाने की कमी है मुख्य वजह
इंसानों और हाथियों के बीच संघर्ष की मुख्य वजह है जंगलों का हो रहा विनाश और उसके बाद हाथियों के लिए खाने की कमी.

गांव वालों ने ढूंढा समाधान
पर, अब असम के नौगांव जिले के ग्रामीणों ने इसका एक समाधान ढूंढ लिया है. यहां के एक प्रमुख सामाजिक कार्यकर्ता बिनोद डुलु बोरा ने गांव वालों की मदद से करीब 200 बीघा जमीन पर खेती बंद कर दी. उन्होंने इस जमीन पर हाथियों के लिए खाने की व्यवस्था कर दी है. केले वगैरह के पेड़ लगा दिये गये हैं, ताकि हाथियों का झुंड यहां आए, तो उन्हें खाना मिल सके.

अब नहीं होते खेत नष्ट
इस तरह से हाथी उन इलाकों में नहीं जाते हैं, जहां आम किसान खेती करते हैं.

उम्मीद की जानी चाहिए, कि इससे दूसरे इलाकों के लोगों में भी जागरूकता अवश्य आएगी और हाथियों और इंसानों का नुकसान कम हो सकेगा.

दिसपुर : असम की राजधानी दिसपुर से करीब 110 किमी दूर नौगांव जिले के किसान अब चैन की सांसें ले सकते हैं. उन्हें अपनी फसल की तबाही की उतनी चिंता नहीं है, जितनी पहले होती थी. इसकी मुख्य वजह थी हाथियों के झुडों द्वारा फसलों का नष्ट करना.

गौरतलब है कि हाथियों के आने से न सिर्फ फसलों की बर्बादी होती है, बल्कि आम लोगों की भी जान जाने का खतरा बना रहता है. 2010 से अब तक असम में हाथियों और इंसानों के बीच हुए संघर्ष में करीब 761 लोगों की मौत हो चुकी है और 249 हाथी भी मारे गये हैं.

ऐसी पहल से रुकेगा हाथियों-इंसानों का संघर्ष, देखें वीडियो...

हाथियों के लिए खाने की कमी है मुख्य वजह
इंसानों और हाथियों के बीच संघर्ष की मुख्य वजह है जंगलों का हो रहा विनाश और उसके बाद हाथियों के लिए खाने की कमी.

गांव वालों ने ढूंढा समाधान
पर, अब असम के नौगांव जिले के ग्रामीणों ने इसका एक समाधान ढूंढ लिया है. यहां के एक प्रमुख सामाजिक कार्यकर्ता बिनोद डुलु बोरा ने गांव वालों की मदद से करीब 200 बीघा जमीन पर खेती बंद कर दी. उन्होंने इस जमीन पर हाथियों के लिए खाने की व्यवस्था कर दी है. केले वगैरह के पेड़ लगा दिये गये हैं, ताकि हाथियों का झुंड यहां आए, तो उन्हें खाना मिल सके.

अब नहीं होते खेत नष्ट
इस तरह से हाथी उन इलाकों में नहीं जाते हैं, जहां आम किसान खेती करते हैं.

उम्मीद की जानी चाहिए, कि इससे दूसरे इलाकों के लोगों में भी जागरूकता अवश्य आएगी और हाथियों और इंसानों का नुकसान कम हो सकेगा.

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Last Updated : Nov 7, 2019, 10:02 PM IST
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