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अक्टूबर में युद्ध की आशंका, मोदी-जिनपिंग वार्ता से ही सुलझ सकता है मसला - संजीब कुमार बरुआ

पूर्वी लद्दाख में हुए गतिरोध को लेकर भारत के चुशुल पोस्ट पर मोल्दो में सोमवार को हुई सैन्य स्तर की छठे दौर की वार्ता बिना किसी परिणाम के समाप्त हो गई. बातचीत के सभी रास्ते बंद होने के बाद अब दोनों देशों के शीर्ष नेताओं से इस मामले को सुलझाने की उम्मीद है. पढ़िए वरिष्ठ संवाददाता संजीब कुमार बरुआ की रिपोर्ट...

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Published : Sep 22, 2020, 7:19 PM IST

Updated : Sep 22, 2020, 7:44 PM IST

नई दिल्ली : पूर्वी लद्दाख में हुए गतिरोध को लेकर पिछले कुछ माह में हुईं सभी कोर कमांडर स्तर की बैठकों की तरह, भारत के चुशुल पोस्ट पर मोल्दो में सोमवार को हुई 14 घंटे की मैराथन वार्ता भी बिना किसी परिणाम के समाप्त हो गई.

घटनाक्रम पर जानकारी रखने वाले एक सूत्र के अनुसार चीनी पक्ष पूर्वी लद्दाख में अपनी सैन्य स्थिति को पीछे न हटाने पर अड़ा रहा और उसने पैंगोंग झील के उत्तरी तट, देपसांग और हॉट स्प्रिंग्स क्षेत्रों से अपनी सेना को हटाने के सभी उपायों को नकार दिया.

इतना ही नहीं PLA ने भारतीय सेना को पैंगोंग त्सो के दक्षिणी तट पर नए कब्जे वाले प्रमुख स्थानों से हट जाने को कहा, जो भारत के लिए स्पष्ट रूप से स्वीकार्य नहीं था.

सूत्रों ने कहा कि बैठक में गतिरोध को कम करने की दिशा में कोई प्रगति नहीं हुई है, हालांकि दोनों पक्ष 15 दिनों के भीतर फिर मिलने के लिए सहमत हो गए हैं.

उल्लेखनीय है कि यह बैठक अप्रैल-मई में शुरू हुए टकरावों के बाद से विभिन्न स्तरों पर बातचीत का एक हिस्सा थी.

अब शीर्ष नेता ही निकाल सकते हैं समाधान

बातचीत के सभी रास्ते समाप्त होने के बाद अब दोनों देशों के शीर्ष नेताओं से इस मामले को सुलझाने की उम्मीद है. ऐसा इसलिए है, क्योंकि पीएम नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति शी जिनपिंग दोनों राष्ट्रवादी नेता इस समय घरेलू लोकप्रियता के शिखर पर हैं और यह दोनों ही इस मामले में कोई समाधान निकाल सकते हैं.

अगर ऐसा नहीं हुआ, तो वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर हालात और खराब हो सकते हैं, यहां तक कि चीन अक्टूबर में भारत को युद्ध के लिए उकसा सकता है.

अक्टूबर में ही क्यों है युद्ध की आशंका?

नवंबर के दौरान और उसके बाद, LAC पर स्थितियां किसी भी मानवीय गतिविधि के लिए काफी मुश्किल हो जाती हैं. भारी बर्फ, ठंडा तापमान, सर्दी और बर्फीली हवा किसी भी मानवीय गतिविधि को अंसभव बना देते हैं. ऐसे में वहां युद्ध लड़ना मुश्किल हो जाता है.

दूसरी ओर बर्फ के पिघलने तक हिमालयी ऊंचाइयों पर तैनात जवानों के लिए रसद को बनाए रखना दोनों देशों पर बहुत आर्थिक बोझ डाल सकता है.

भारतीय अर्थव्यवस्था में लगातार गिरावट और कोरोना की मार के बीच त्योहार के सीजन में (अक्टूबर-जनवरी) रबी की फसल और शादी के सीजन में वस्तुओं की भारी मांग अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने की क्षमता रखती है. यह सीजन भारत की अर्थ व्यवस्था को हुए नुकसान को कम से कम करने का अवसर देगा.

चीन रणनीतिक योजना के तहत अपने दृष्टिकोण के आधार पर भारत के आर्थिक सुधार की संभावनाओं को खतरे में डाल सकता है और इसके लिए वह LAC पर आगे बढ़ने की कोशिश कर सकता हैं.

ऐसे में भारी सैन्य उपकरणों के साथ अतिरिक्त 40,000 सैनिकों को क्षेत्र में तैनात रखने की लागत अर्थव्यवस्था पर एक बड़ा बोझ साबित हो सकती है.

विभिन्न स्तरों पर हो चुकी है वार्ता

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने चार सितंबर को मॉस्को में अपने चीनी समकक्ष वेई फेंग से मुलाकात की थी. वहीं विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भी 10 सितंबर को मॉस्को में अपने चीनी समकक्ष वांग यी से मुलाकात की. चीन में भारत के विशेष प्रतिनिधि (SR) अजीत डोभाल, जो राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार भी हैं, ने चीनी समकक्ष वांग यी से छह जुलाई को वर्चुअल बातचीत की.

इसके अलावा कमांडर स्तर पर 6 जून, 22 जून, 30 जून, 14 जुलाई 14 अगस्त के बाद सोमवार को चुशुल माल्दा में छठी बार लेफ्टिनेंट जनरल स्तर की बैठक की, लेकिन बैठक में जो अनोखा था वह था भारत के विदेश मामलों के मंत्रालय के संयुक्त सचिव नवीन श्रीवास्तव के अलावा 14 कॉर्प कमांडर चीन के प्रभारी लेफ्टिनेंट जनरल हरिंदर सिंह और लेफ्टिनेंट जनरल पीजीके मेनन का शामिल होना.

पढ़ें - भारत-चीन के सैन्य कमांडरों की बैठक, 13 घंटे तक चली वार्ता

दोनों देशों के विदेश मंत्रियों का आया था संयुक्त बयान

सोमवार की वार्ता में सबसे महत्वपूर्ण बात यह थी कि 10 सितंबर के पांच सूत्री संयुक्त स्टेटमेंट में दो एशियाई दिग्गजों के विदेश मंत्रियों द्वारा जारी प्रस्ताव के आधार पर दोनों पक्षों ने सहमति जताई.

दिलचस्प बात यह है कि संयुक्त बयान का पहला खंड प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग द्वारा अपने 'अनौपचारिक' शिखर सम्मेलन वुहान (27-28 अप्रैल, 2018) और मामल्लपुरम (12 अक्टूबर, 2019) के दौरान किए गए समझौते की व्यापक शर्तों के संदर्भ में 'नेताओं' की आम सहमति की श्रृंखला पर जोर देता है.

मोदी-शी की बैठक से यह संदर्भ मिलता है कि जब सीमा रेखा विवाद को हल करने में सभी तंत्र विफल हो जाएंगे, तो यह विवाद मोदी-शी के स्तर पर ले जाया जाएगा, जिसका संकेत अब मिल रहा है.

भारत-चीन समस्या की प्रकृति ऐसी है कि इन्हें दोनों देशों के उच्चतम कार्यालयों में ही संबोधित किया जा सकता है, जिनके पास लंबे समय से जारी मुद्दे को हल करने के लिए आवश्यक समाधान और जनादेश है. इस मुद्दे को समग्र रूप से केवल सैन्य या राजनयिक स्तर पर बातचीत द्वारा नहीं सुलझाया जा सकता.

अब चीन केंद्रित रणनीति बना रहा भारत

हिमालय के पार सैनिकों, सैन्य संपत्तियों और रसद व्यवस्था की अभूतपूर्व भीड़ के बीच भारत-चीन वार्ता हो रही है. फिलहाल LAC के दोनों ओर और गहराई वाले इलाकों में 1,00,000 से अधिक सैनिक तैनात हैं. इस तैयारी से बुनियादी ढांचे और लॉजिस्टिक के विकास को गति मिली है, जबकि चीन ने पहली बार LAC के पास इतनी बड़ी संख्या में अपनी सेनाएं जुटाई हैं. ऐसे में भारत पाकिस्तान केंद्रित सैन्य रणनीति से अब चीन केंद्रित रणनीति की ओर तेजी से बढ़ रहा है.

नई दिल्ली : पूर्वी लद्दाख में हुए गतिरोध को लेकर पिछले कुछ माह में हुईं सभी कोर कमांडर स्तर की बैठकों की तरह, भारत के चुशुल पोस्ट पर मोल्दो में सोमवार को हुई 14 घंटे की मैराथन वार्ता भी बिना किसी परिणाम के समाप्त हो गई.

घटनाक्रम पर जानकारी रखने वाले एक सूत्र के अनुसार चीनी पक्ष पूर्वी लद्दाख में अपनी सैन्य स्थिति को पीछे न हटाने पर अड़ा रहा और उसने पैंगोंग झील के उत्तरी तट, देपसांग और हॉट स्प्रिंग्स क्षेत्रों से अपनी सेना को हटाने के सभी उपायों को नकार दिया.

इतना ही नहीं PLA ने भारतीय सेना को पैंगोंग त्सो के दक्षिणी तट पर नए कब्जे वाले प्रमुख स्थानों से हट जाने को कहा, जो भारत के लिए स्पष्ट रूप से स्वीकार्य नहीं था.

सूत्रों ने कहा कि बैठक में गतिरोध को कम करने की दिशा में कोई प्रगति नहीं हुई है, हालांकि दोनों पक्ष 15 दिनों के भीतर फिर मिलने के लिए सहमत हो गए हैं.

उल्लेखनीय है कि यह बैठक अप्रैल-मई में शुरू हुए टकरावों के बाद से विभिन्न स्तरों पर बातचीत का एक हिस्सा थी.

अब शीर्ष नेता ही निकाल सकते हैं समाधान

बातचीत के सभी रास्ते समाप्त होने के बाद अब दोनों देशों के शीर्ष नेताओं से इस मामले को सुलझाने की उम्मीद है. ऐसा इसलिए है, क्योंकि पीएम नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति शी जिनपिंग दोनों राष्ट्रवादी नेता इस समय घरेलू लोकप्रियता के शिखर पर हैं और यह दोनों ही इस मामले में कोई समाधान निकाल सकते हैं.

अगर ऐसा नहीं हुआ, तो वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर हालात और खराब हो सकते हैं, यहां तक कि चीन अक्टूबर में भारत को युद्ध के लिए उकसा सकता है.

अक्टूबर में ही क्यों है युद्ध की आशंका?

नवंबर के दौरान और उसके बाद, LAC पर स्थितियां किसी भी मानवीय गतिविधि के लिए काफी मुश्किल हो जाती हैं. भारी बर्फ, ठंडा तापमान, सर्दी और बर्फीली हवा किसी भी मानवीय गतिविधि को अंसभव बना देते हैं. ऐसे में वहां युद्ध लड़ना मुश्किल हो जाता है.

दूसरी ओर बर्फ के पिघलने तक हिमालयी ऊंचाइयों पर तैनात जवानों के लिए रसद को बनाए रखना दोनों देशों पर बहुत आर्थिक बोझ डाल सकता है.

भारतीय अर्थव्यवस्था में लगातार गिरावट और कोरोना की मार के बीच त्योहार के सीजन में (अक्टूबर-जनवरी) रबी की फसल और शादी के सीजन में वस्तुओं की भारी मांग अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने की क्षमता रखती है. यह सीजन भारत की अर्थ व्यवस्था को हुए नुकसान को कम से कम करने का अवसर देगा.

चीन रणनीतिक योजना के तहत अपने दृष्टिकोण के आधार पर भारत के आर्थिक सुधार की संभावनाओं को खतरे में डाल सकता है और इसके लिए वह LAC पर आगे बढ़ने की कोशिश कर सकता हैं.

ऐसे में भारी सैन्य उपकरणों के साथ अतिरिक्त 40,000 सैनिकों को क्षेत्र में तैनात रखने की लागत अर्थव्यवस्था पर एक बड़ा बोझ साबित हो सकती है.

विभिन्न स्तरों पर हो चुकी है वार्ता

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने चार सितंबर को मॉस्को में अपने चीनी समकक्ष वेई फेंग से मुलाकात की थी. वहीं विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भी 10 सितंबर को मॉस्को में अपने चीनी समकक्ष वांग यी से मुलाकात की. चीन में भारत के विशेष प्रतिनिधि (SR) अजीत डोभाल, जो राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार भी हैं, ने चीनी समकक्ष वांग यी से छह जुलाई को वर्चुअल बातचीत की.

इसके अलावा कमांडर स्तर पर 6 जून, 22 जून, 30 जून, 14 जुलाई 14 अगस्त के बाद सोमवार को चुशुल माल्दा में छठी बार लेफ्टिनेंट जनरल स्तर की बैठक की, लेकिन बैठक में जो अनोखा था वह था भारत के विदेश मामलों के मंत्रालय के संयुक्त सचिव नवीन श्रीवास्तव के अलावा 14 कॉर्प कमांडर चीन के प्रभारी लेफ्टिनेंट जनरल हरिंदर सिंह और लेफ्टिनेंट जनरल पीजीके मेनन का शामिल होना.

पढ़ें - भारत-चीन के सैन्य कमांडरों की बैठक, 13 घंटे तक चली वार्ता

दोनों देशों के विदेश मंत्रियों का आया था संयुक्त बयान

सोमवार की वार्ता में सबसे महत्वपूर्ण बात यह थी कि 10 सितंबर के पांच सूत्री संयुक्त स्टेटमेंट में दो एशियाई दिग्गजों के विदेश मंत्रियों द्वारा जारी प्रस्ताव के आधार पर दोनों पक्षों ने सहमति जताई.

दिलचस्प बात यह है कि संयुक्त बयान का पहला खंड प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग द्वारा अपने 'अनौपचारिक' शिखर सम्मेलन वुहान (27-28 अप्रैल, 2018) और मामल्लपुरम (12 अक्टूबर, 2019) के दौरान किए गए समझौते की व्यापक शर्तों के संदर्भ में 'नेताओं' की आम सहमति की श्रृंखला पर जोर देता है.

मोदी-शी की बैठक से यह संदर्भ मिलता है कि जब सीमा रेखा विवाद को हल करने में सभी तंत्र विफल हो जाएंगे, तो यह विवाद मोदी-शी के स्तर पर ले जाया जाएगा, जिसका संकेत अब मिल रहा है.

भारत-चीन समस्या की प्रकृति ऐसी है कि इन्हें दोनों देशों के उच्चतम कार्यालयों में ही संबोधित किया जा सकता है, जिनके पास लंबे समय से जारी मुद्दे को हल करने के लिए आवश्यक समाधान और जनादेश है. इस मुद्दे को समग्र रूप से केवल सैन्य या राजनयिक स्तर पर बातचीत द्वारा नहीं सुलझाया जा सकता.

अब चीन केंद्रित रणनीति बना रहा भारत

हिमालय के पार सैनिकों, सैन्य संपत्तियों और रसद व्यवस्था की अभूतपूर्व भीड़ के बीच भारत-चीन वार्ता हो रही है. फिलहाल LAC के दोनों ओर और गहराई वाले इलाकों में 1,00,000 से अधिक सैनिक तैनात हैं. इस तैयारी से बुनियादी ढांचे और लॉजिस्टिक के विकास को गति मिली है, जबकि चीन ने पहली बार LAC के पास इतनी बड़ी संख्या में अपनी सेनाएं जुटाई हैं. ऐसे में भारत पाकिस्तान केंद्रित सैन्य रणनीति से अब चीन केंद्रित रणनीति की ओर तेजी से बढ़ रहा है.

Last Updated : Sep 22, 2020, 7:44 PM IST
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