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उत्तराखंड के इस कल्पवृक्ष की उम्र जानकर हो जाएंगे हैरान, वैज्ञानिक भी अचंभे में - दिव्य अमर ज्योति का ज्ञान

जोशीमठ के ज्योतिर्पीठ में करीब 2500 साल से ज्यादा पुराना अमर कल्पवृक्ष है, जो आज भी हरा-भरा है. इस अद्भुत कल्पवृक्ष ने वैज्ञानिकों को भी अचरज में डाल दिया है.

कल्पवृक्ष
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Published : Jun 22, 2020, 1:08 AM IST

देहरादून : जोशीमठ एक धार्मिक, पौराणिक, ऐतिहासिक महत्व का शहर है और यहीं आदिगुरु शंकराचार्य ने कई वर्षों तक तपस्या की थी. इस दौरान दिव्य अखंड ज्योति के दर्शन किए. यहीं ज्योतिर्पीठ में स्थित है अमर कल्पवृक्ष. जो करीब 2500 साल से ज्यादा पुराना है. इस चमत्कारिक अमर कल्पवृक्ष के सामने विज्ञान भी नतमस्तक है. आखिर 15 से 20 साल औसत आयु का कल्पवृक्ष (शहतूत का वृक्ष) कैसे 2500 साल से हरा भरा खड़ा है. यह वैज्ञानिकों को भी हैरत में डाल देता है.

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इसी वृक्ष के नीचे भगवान शिव के अवतार कहे जाने वाले आदिगुरु शंकराचार्य ने 5 साल तपस्या कर दिव्य अमर ज्योति का ज्ञान प्राप्त किया था. साथ ही उन्होंने इसी वृक्ष के नीचे स्थित गुफा में शांकरभाष्य सहित दर्जनों धार्मिक ग्रंथों की रचना की.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

पुजारी रामचंद्र उनियाल ने बताया कि कल्प वृक्ष समुद्रमंथन से निकला हुआ अमर कल्पवृक्ष हैं, जिसको कि भगवान इंद्र को दिया गया था. कहा जाता है कि भगवान इंद्र ने इसको हिमालय के उत्तर में ज्योतिर्मठ में रोपण कर दिया. यह पृथ्वी का पारिजात वृक्ष माना जाता है. साथ ही यह सभी मनोकामनाओं को पूरा करने वाला माना जाता है.

पढ़ें- सेना के शीर्ष अधिकारियों ने किया चीन और नेपाल सीमा का दौरा

जोशीमठ के ज्योतिर्मठ में स्थित यह वृक्ष 24 मीटर व्यास का खोखला वृक्ष हजारों शाखाओं वाला है. हैरानी की बात यह है कि इस कल्पवृक्ष पर फल नहीं लगता. इस वृक्ष पर केवल फूल खिलते है. हर साल हजारों श्रदालु इस कल्पवृक्ष पर रक्षा सूत्र बांधकर मनौतियां मांगते है. शास्त्रों के अनुसार यह कल्प वृक्ष द्वापर युग का माना जाता है.

देहरादून : जोशीमठ एक धार्मिक, पौराणिक, ऐतिहासिक महत्व का शहर है और यहीं आदिगुरु शंकराचार्य ने कई वर्षों तक तपस्या की थी. इस दौरान दिव्य अखंड ज्योति के दर्शन किए. यहीं ज्योतिर्पीठ में स्थित है अमर कल्पवृक्ष. जो करीब 2500 साल से ज्यादा पुराना है. इस चमत्कारिक अमर कल्पवृक्ष के सामने विज्ञान भी नतमस्तक है. आखिर 15 से 20 साल औसत आयु का कल्पवृक्ष (शहतूत का वृक्ष) कैसे 2500 साल से हरा भरा खड़ा है. यह वैज्ञानिकों को भी हैरत में डाल देता है.

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इसी वृक्ष के नीचे भगवान शिव के अवतार कहे जाने वाले आदिगुरु शंकराचार्य ने 5 साल तपस्या कर दिव्य अमर ज्योति का ज्ञान प्राप्त किया था. साथ ही उन्होंने इसी वृक्ष के नीचे स्थित गुफा में शांकरभाष्य सहित दर्जनों धार्मिक ग्रंथों की रचना की.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

पुजारी रामचंद्र उनियाल ने बताया कि कल्प वृक्ष समुद्रमंथन से निकला हुआ अमर कल्पवृक्ष हैं, जिसको कि भगवान इंद्र को दिया गया था. कहा जाता है कि भगवान इंद्र ने इसको हिमालय के उत्तर में ज्योतिर्मठ में रोपण कर दिया. यह पृथ्वी का पारिजात वृक्ष माना जाता है. साथ ही यह सभी मनोकामनाओं को पूरा करने वाला माना जाता है.

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जोशीमठ के ज्योतिर्मठ में स्थित यह वृक्ष 24 मीटर व्यास का खोखला वृक्ष हजारों शाखाओं वाला है. हैरानी की बात यह है कि इस कल्पवृक्ष पर फल नहीं लगता. इस वृक्ष पर केवल फूल खिलते है. हर साल हजारों श्रदालु इस कल्पवृक्ष पर रक्षा सूत्र बांधकर मनौतियां मांगते है. शास्त्रों के अनुसार यह कल्प वृक्ष द्वापर युग का माना जाता है.

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