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स्वास्थ्य कर्मियों की सुरक्षा के लिए सेंट्रल प्रोटेक्शन एक्ट लागू करने की मांग - हेल्थ वर्कर्स की सुरक्षा

लखनऊ के किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल के डॉक्टरों और नर्सों पर हुए हमले की एम्स के डॉक्टर ने कड़ी निंदा की है. साथ ही स्वास्थ्य कर्मियों की सुरक्षा के लिए सेंट्रल प्रोटेक्शन एक्ट पास करने की मांग की है.

सेंट्रल प्रोटेक्शन एक्ट पास करने की मांग
सेंट्रल प्रोटेक्शन एक्ट पास करने की मांग
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Published : Aug 4, 2020, 3:23 PM IST

नई दिल्ली : कोरोना 'काल' में भी डॉक्टर हिंसा के शिकार हो रहे हैं. एक तरफ स्वास्थ्य कर्मी अपनी जान जोखिम में डालकर लोगों की जान बचा रहे हैं तो दूसरी तरफ इन कोरोना वारियर्स के ऊपर लोग हमले भी कर रहे हैं. लखनऊ के किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल के डॉक्टरों और नर्सों पर छोटी सी बात को लेकर हमला किया गया. एम्स के डॉक्टर ने इसकी कड़ी निंदा की है. साथ ही स्वास्थ्य कर्मियों की सुरक्षा के लिए सेंट्रल प्रोटेक्शन एक्ट पास करने की मांग की है.

सेंट्रल प्रोटेक्शन एक्ट पास करने की मांग

दो डॉक्टर और नर्सिंग स्टाफ के साथ मारपीट
एम्स के कार्डियो-रेडियो डिपार्टमेंट के असिस्टेंट प्रोफेसर अमरिंदर सिंह ने कहा कि डॉक्टर्स अपनी जान को दांव पर लगाकर मरीजों की सेवा कर रहे हैं और दूसरी तरफ उनके सेवा भाव को भूलकर लोग इनके ऊपर हमला कर रहे हैं. कोरोना महामारी के इस दौर में भी जब डॉक्टर, नर्सिंग स्टाफ और पैरामेडिकल स्टाफ कोरोना वारियर्स की तरह कोरोना वायरस का सामना कर रहे हैं और हमारी जान की रक्षा कर रहे हैं, उन्हें भी पीटने से लोग परहेज नहीं कर रहे हैं.

उन्होंने कहा कि लखनऊ के मेडिकल कॉलेज में हादसा हुआ है, वहां दो डॉक्टरों और नर्सिंग स्टाफ के साथ मारपीट की गई है. उन पर जानलेवा हमला किया गया है. आखिर लोग अपनी जान बचाने वाले डॉक्टर के लिए कैसे हिंसक हो जाते हैं?

बेहोशी की अवस्था में कराया एडमिट
अमरिंदर सिंह बताते हैं कि आखिर यह हादसा हुआ ही क्यों? दरअसल, 50 साल की एक बुजुर्ग महिला का किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज और हॉस्पिटल के इमरजेंसी में हाइपरटेंशन का इलाज चल रहा था. वह बेहोशी की अवस्था में हॉस्पिटल में लाई गई थीं, उन्हें स्ट्रोक भी आया था. बेहोशी की अवस्था में ही उन्हें अस्पताल की इमरजेंसी में एडमिट कराया जाता है.

एक जूनियर डॉक्टर मरीज की मेडिकल हिस्ट्री तैयार करता है और बेसिक ट्रीटमेंट देता है. स्ट्रोक के मरीज का जो भी ट्रीटमेंट प्रोटोकॉल है, उसका पालन किया जाता है. इसी बीच सड़क दुर्घटना में घायल एक मरीज इमरजेंसी में आता है. डॉक्टर उस मरीज को देखने चला जाता है. बस यही बात उस बुजुर्ग महिला मरीज के तीमारदारों को बुरी लगी.

उन्होंने डॉक्टर से कहा कि आप हमारे मरीज को छोड़कर किसी दूसरे मरीज का इलाज नहीं कर सकते. मना करने पर डॉक्टर के साथ मारपीट शुरू कर दी गई. वहां काफी तोड़फोड़ भी की गई.

क्या है ट्रीटमेंट प्रोटोकॉल?
डॉ. अमरिंदर बताते हैं कि ट्रीटमेंट प्रोटोकॉल के हिसाब से अगर कोई ज्यादा गंभीर मरीज आता है, तो वहां उपलब्ध डॉक्टर सबसे पहले उस मरीज की देखभाल करते हैं. डॉक्टर ने अपनी जिम्मेदारी को समझते हुए स्ट्रोक की बुजुर्ग मरीज को बेसिक ट्रीटमेंट दे दिया. उसके बाद सड़क दुर्घटना में घायल मरीज को देखने चला गया.

इस बात से बुजुर्ग महिला मरीज के तीमारदार इतना नाराज हो गए कि वह अपने मरीज को वहां से हटा लिया और अस्पताल में बुरी तरह से तोड़फोड़ शुरू कर दी. मौके पर मौजूद फीमेल डॉक्टर को भी नहीं बख्शा गया. नर्स के पेट में गंभीर चोट आई है.

सेंट्रल प्रोटेक्शन एक्ट लागू करने की मांग
डॉक्टर अमरिंदर बताते हैं कि अगर सेंट्रल प्रोटेक्शन एक्ट आ गया होता तो कोई भी डॉक्टर के ऊपर हमला करने के पहले जरूर सोचता. इस एक्ट के प्रावधान के मुताबिक अगर कोई भी मरीज या मरीज के तीमारदार किसी डॉक्टर या नर्सिंग स्टाफ के ऊपर हाथ उठाता है, तो इसके लिए उसे अधिकतम सात साल तक की सजा हो सकती है. इसके साथ ही उन पर भारी आर्थिक जुर्माना भी लगाने का प्रावधान किया गया है.

उन्होंने कहा कि डॉक्टर को सुरक्षा प्रदान करने का सबसे अच्छा तरीका है, इंडियन मेडिकल सर्विस को लागू करना. यह लागू होते ही डॉक्टर के खिलाफ हिंसा लगभग खत्म हो जाएगी. डॉ अमरिंदर ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से डॉक्टर की सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए सेंट्रल प्रोटेक्शन एक्ट को जल्द से जल्द लागू करने की मांग की है.

नई दिल्ली : कोरोना 'काल' में भी डॉक्टर हिंसा के शिकार हो रहे हैं. एक तरफ स्वास्थ्य कर्मी अपनी जान जोखिम में डालकर लोगों की जान बचा रहे हैं तो दूसरी तरफ इन कोरोना वारियर्स के ऊपर लोग हमले भी कर रहे हैं. लखनऊ के किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल के डॉक्टरों और नर्सों पर छोटी सी बात को लेकर हमला किया गया. एम्स के डॉक्टर ने इसकी कड़ी निंदा की है. साथ ही स्वास्थ्य कर्मियों की सुरक्षा के लिए सेंट्रल प्रोटेक्शन एक्ट पास करने की मांग की है.

सेंट्रल प्रोटेक्शन एक्ट पास करने की मांग

दो डॉक्टर और नर्सिंग स्टाफ के साथ मारपीट
एम्स के कार्डियो-रेडियो डिपार्टमेंट के असिस्टेंट प्रोफेसर अमरिंदर सिंह ने कहा कि डॉक्टर्स अपनी जान को दांव पर लगाकर मरीजों की सेवा कर रहे हैं और दूसरी तरफ उनके सेवा भाव को भूलकर लोग इनके ऊपर हमला कर रहे हैं. कोरोना महामारी के इस दौर में भी जब डॉक्टर, नर्सिंग स्टाफ और पैरामेडिकल स्टाफ कोरोना वारियर्स की तरह कोरोना वायरस का सामना कर रहे हैं और हमारी जान की रक्षा कर रहे हैं, उन्हें भी पीटने से लोग परहेज नहीं कर रहे हैं.

उन्होंने कहा कि लखनऊ के मेडिकल कॉलेज में हादसा हुआ है, वहां दो डॉक्टरों और नर्सिंग स्टाफ के साथ मारपीट की गई है. उन पर जानलेवा हमला किया गया है. आखिर लोग अपनी जान बचाने वाले डॉक्टर के लिए कैसे हिंसक हो जाते हैं?

बेहोशी की अवस्था में कराया एडमिट
अमरिंदर सिंह बताते हैं कि आखिर यह हादसा हुआ ही क्यों? दरअसल, 50 साल की एक बुजुर्ग महिला का किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज और हॉस्पिटल के इमरजेंसी में हाइपरटेंशन का इलाज चल रहा था. वह बेहोशी की अवस्था में हॉस्पिटल में लाई गई थीं, उन्हें स्ट्रोक भी आया था. बेहोशी की अवस्था में ही उन्हें अस्पताल की इमरजेंसी में एडमिट कराया जाता है.

एक जूनियर डॉक्टर मरीज की मेडिकल हिस्ट्री तैयार करता है और बेसिक ट्रीटमेंट देता है. स्ट्रोक के मरीज का जो भी ट्रीटमेंट प्रोटोकॉल है, उसका पालन किया जाता है. इसी बीच सड़क दुर्घटना में घायल एक मरीज इमरजेंसी में आता है. डॉक्टर उस मरीज को देखने चला जाता है. बस यही बात उस बुजुर्ग महिला मरीज के तीमारदारों को बुरी लगी.

उन्होंने डॉक्टर से कहा कि आप हमारे मरीज को छोड़कर किसी दूसरे मरीज का इलाज नहीं कर सकते. मना करने पर डॉक्टर के साथ मारपीट शुरू कर दी गई. वहां काफी तोड़फोड़ भी की गई.

क्या है ट्रीटमेंट प्रोटोकॉल?
डॉ. अमरिंदर बताते हैं कि ट्रीटमेंट प्रोटोकॉल के हिसाब से अगर कोई ज्यादा गंभीर मरीज आता है, तो वहां उपलब्ध डॉक्टर सबसे पहले उस मरीज की देखभाल करते हैं. डॉक्टर ने अपनी जिम्मेदारी को समझते हुए स्ट्रोक की बुजुर्ग मरीज को बेसिक ट्रीटमेंट दे दिया. उसके बाद सड़क दुर्घटना में घायल मरीज को देखने चला गया.

इस बात से बुजुर्ग महिला मरीज के तीमारदार इतना नाराज हो गए कि वह अपने मरीज को वहां से हटा लिया और अस्पताल में बुरी तरह से तोड़फोड़ शुरू कर दी. मौके पर मौजूद फीमेल डॉक्टर को भी नहीं बख्शा गया. नर्स के पेट में गंभीर चोट आई है.

सेंट्रल प्रोटेक्शन एक्ट लागू करने की मांग
डॉक्टर अमरिंदर बताते हैं कि अगर सेंट्रल प्रोटेक्शन एक्ट आ गया होता तो कोई भी डॉक्टर के ऊपर हमला करने के पहले जरूर सोचता. इस एक्ट के प्रावधान के मुताबिक अगर कोई भी मरीज या मरीज के तीमारदार किसी डॉक्टर या नर्सिंग स्टाफ के ऊपर हाथ उठाता है, तो इसके लिए उसे अधिकतम सात साल तक की सजा हो सकती है. इसके साथ ही उन पर भारी आर्थिक जुर्माना भी लगाने का प्रावधान किया गया है.

उन्होंने कहा कि डॉक्टर को सुरक्षा प्रदान करने का सबसे अच्छा तरीका है, इंडियन मेडिकल सर्विस को लागू करना. यह लागू होते ही डॉक्टर के खिलाफ हिंसा लगभग खत्म हो जाएगी. डॉ अमरिंदर ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से डॉक्टर की सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए सेंट्रल प्रोटेक्शन एक्ट को जल्द से जल्द लागू करने की मांग की है.

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