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हिमालय की तलहटी में उच्च वर्षा की घटनाओं में वृद्धि करते हैं एयरोसोल्स : अध्ययन - ब्लैक कार्बन और डस्ट

वैज्ञानिकों को सिन्धु-गंगा मैदानों में ब्लैक कार्बन और डस्ट जैसे एयरोसोल्स मिले हैं, जो हिमालय क्षेत्र की तलहटी में उच्च वर्षा की घटनाओं में वृद्धि हुई है. अध्ययन से पता चला है कि एयरोसोल चरम वर्षा की घटनाओं को कैसे प्रभावित करते हैं.

हिमालय की तलहटी
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Published : Dec 11, 2020, 8:44 PM IST

हैदराबाद : वैज्ञानिकों को सिन्धु-गंगा मैदानों में ब्लैक कार्बन और डस्ट जैसे एयरोसोल्स मिले हैं. यह सिन्धु-गंगा मैदान को दुनिया के सबसे प्रदूषित क्षेत्रों में से एक बनाते हैं और इनके कारण हिमालय क्षेत्र की तलहटी में उच्च वर्षा की घटनाओं में वृद्धि हुई है.

सिन्धु-गंगा के मैदान दक्षिण में स्थित हैं और हिमालय की तलहटी से दूर हैं. यह क्षेत्र उच्च एयरोसोल लोडिंग के साथ जुड़ा हुआ है, जिसके अधिकांश भाग में ब्लैक कार्बन और डस्ट है.

वैज्ञानिकों को अध्ययन से पता चला है कि एयरोसोल चरम वर्षा की घटनाओं को कैसे प्रभावित करते हैं, खासकर जब वायु द्रव्यमान कम ऊंचाई से अधिक ऊंचाई की तरफ फोर्स लगाता है और यह ऊपर चला जाता है. इस बढ़ते भू-भाग को तकनीकी रूप से भौगोलिक बल कहा जाता है.

नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी राउरकेला, लीपजिग इंस्टीट्यूट फॉर मेटियोरोलॉजी (लीम), यूनिवर्सिटी ऑफ लीपजिग के वैज्ञानिकों की एक टीम , जो भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मद्रास, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान कानपुर विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा समर्थित है, ने डीएसटी जलवायु परिवर्तन कार्यक्रम के तहत हिमालयी क्षेत्र में उच्च वर्षा की घटनाओं पर एयरोसोल सीधे रेडियों एक्टिव के प्रभाव की भूमिका पर महत्वपूर्ण प्रकाश डाला है.

वर्तमान कार्य के निष्कर्षों को हाल ही में वैज्ञानिक पत्रिका 'रसायन विज्ञान और भौतिकी' में प्रकाशित करने के लिए स्वीकार किया गया है.

अध्ययन में वैज्ञानिकों ने दर्शाया है कि कण उत्सर्जन, क्लाउड सिस्टम की भौतिकी और गतिशील गुणों को बदल सकता है और बदले में अत्यधिक प्रदूषित शहरी क्षेत्रों में वर्षा की घटनाओं को बढ़ा सकता है.

अध्ययन में 17 वर्ष (2001–2017) तक वर्षा दर और एरोसोल मापा गया . इसे एरोसोल ऑप्टिकल डेप्थ (AOD) कहा जाता है.

इसमें थर्मोडायनामिक वेरिएबल की गणना करने के लिए विभिन्न ऊंचाई पर मौसम संबंधी री-एनालिसिस फील्ड जैसे दबाव, तापमान और नमी सामग्री का उपयोग किया जाता है.

इसके अलावा नम स्थैतिक ऊर्जा (moist static energy) और हिमालय की तलहटी पर उच्च वर्षा की घटनाओं की जांच करने के लिए भारतीय क्षेत्र में लंबी-तरंग विकिरण (long-wave radiation) का इस्तेमाल किया जाता है.

पढ़ें- अंतरराष्ट्रीय पर्वत दिवस : क्यों मनाते हैं यह दिन, जानें इतिहास और थीम

इस दौरान उन्होंने टीम ने उच्च वर्षा की घटनाओं उच्च एरोसोल लोडिंग और उच्च नम स्थैतिक ऊर्जा (MSE) वैल्यूस के बीच स्पष्ट संबंध पाया गया कि (एक वायु द्रव्यमान की स्थैतिक ऊर्जा में जमीन के ऊपर इसकी ऊंचाई और इसकी नमी के कारण अव्यक्त गर्मी के कारण संभावित ऊर्जा शामिल होता है).

अध्ययन से निष्कर्ष निकला कि हिमालय क्षेत्र में उच्च वर्षा की घटनाओं पर एरोसोल के रेडियोधर्मी प्रभाव एक मुख्य भूमिका निभाते हैं. अध्ययन के परिणामों से संकेत मिलता है कि मानसून के मौसम में हिमालय पर रोमांचक उच्च वर्षा की घटनाओं में एरोसोल महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं.

इसी तरह क्षेत्रीय मॉडलिंग अध्ययनों में हिमालयी क्षेत्र में उच्च वर्षा की घटनाओं का पूर्वानुमान करते समय रसायन विज्ञान सहित एरोसोल पर विचार करना आवश्यक है.

हैदराबाद : वैज्ञानिकों को सिन्धु-गंगा मैदानों में ब्लैक कार्बन और डस्ट जैसे एयरोसोल्स मिले हैं. यह सिन्धु-गंगा मैदान को दुनिया के सबसे प्रदूषित क्षेत्रों में से एक बनाते हैं और इनके कारण हिमालय क्षेत्र की तलहटी में उच्च वर्षा की घटनाओं में वृद्धि हुई है.

सिन्धु-गंगा के मैदान दक्षिण में स्थित हैं और हिमालय की तलहटी से दूर हैं. यह क्षेत्र उच्च एयरोसोल लोडिंग के साथ जुड़ा हुआ है, जिसके अधिकांश भाग में ब्लैक कार्बन और डस्ट है.

वैज्ञानिकों को अध्ययन से पता चला है कि एयरोसोल चरम वर्षा की घटनाओं को कैसे प्रभावित करते हैं, खासकर जब वायु द्रव्यमान कम ऊंचाई से अधिक ऊंचाई की तरफ फोर्स लगाता है और यह ऊपर चला जाता है. इस बढ़ते भू-भाग को तकनीकी रूप से भौगोलिक बल कहा जाता है.

नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी राउरकेला, लीपजिग इंस्टीट्यूट फॉर मेटियोरोलॉजी (लीम), यूनिवर्सिटी ऑफ लीपजिग के वैज्ञानिकों की एक टीम , जो भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मद्रास, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान कानपुर विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा समर्थित है, ने डीएसटी जलवायु परिवर्तन कार्यक्रम के तहत हिमालयी क्षेत्र में उच्च वर्षा की घटनाओं पर एयरोसोल सीधे रेडियों एक्टिव के प्रभाव की भूमिका पर महत्वपूर्ण प्रकाश डाला है.

वर्तमान कार्य के निष्कर्षों को हाल ही में वैज्ञानिक पत्रिका 'रसायन विज्ञान और भौतिकी' में प्रकाशित करने के लिए स्वीकार किया गया है.

अध्ययन में वैज्ञानिकों ने दर्शाया है कि कण उत्सर्जन, क्लाउड सिस्टम की भौतिकी और गतिशील गुणों को बदल सकता है और बदले में अत्यधिक प्रदूषित शहरी क्षेत्रों में वर्षा की घटनाओं को बढ़ा सकता है.

अध्ययन में 17 वर्ष (2001–2017) तक वर्षा दर और एरोसोल मापा गया . इसे एरोसोल ऑप्टिकल डेप्थ (AOD) कहा जाता है.

इसमें थर्मोडायनामिक वेरिएबल की गणना करने के लिए विभिन्न ऊंचाई पर मौसम संबंधी री-एनालिसिस फील्ड जैसे दबाव, तापमान और नमी सामग्री का उपयोग किया जाता है.

इसके अलावा नम स्थैतिक ऊर्जा (moist static energy) और हिमालय की तलहटी पर उच्च वर्षा की घटनाओं की जांच करने के लिए भारतीय क्षेत्र में लंबी-तरंग विकिरण (long-wave radiation) का इस्तेमाल किया जाता है.

पढ़ें- अंतरराष्ट्रीय पर्वत दिवस : क्यों मनाते हैं यह दिन, जानें इतिहास और थीम

इस दौरान उन्होंने टीम ने उच्च वर्षा की घटनाओं उच्च एरोसोल लोडिंग और उच्च नम स्थैतिक ऊर्जा (MSE) वैल्यूस के बीच स्पष्ट संबंध पाया गया कि (एक वायु द्रव्यमान की स्थैतिक ऊर्जा में जमीन के ऊपर इसकी ऊंचाई और इसकी नमी के कारण अव्यक्त गर्मी के कारण संभावित ऊर्जा शामिल होता है).

अध्ययन से निष्कर्ष निकला कि हिमालय क्षेत्र में उच्च वर्षा की घटनाओं पर एरोसोल के रेडियोधर्मी प्रभाव एक मुख्य भूमिका निभाते हैं. अध्ययन के परिणामों से संकेत मिलता है कि मानसून के मौसम में हिमालय पर रोमांचक उच्च वर्षा की घटनाओं में एरोसोल महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं.

इसी तरह क्षेत्रीय मॉडलिंग अध्ययनों में हिमालयी क्षेत्र में उच्च वर्षा की घटनाओं का पूर्वानुमान करते समय रसायन विज्ञान सहित एरोसोल पर विचार करना आवश्यक है.

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