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गुंडिचा मंदिर में भगवान जगन्नाथ को अर्पित किया गया 'आडप अबढा'

भगवान जगन्नाथ रथ यात्रा के समय नौ दिनों तक श्रीमंदिर को छोड़कर गुंडिचा मंदिर में वार्षिक निवास करते हैं. इस मंदिर को पुरी मंदिर के सभी देवताओं का जन्मस्थान कहा जाता है. कथाओं के अनुसार भगवान जगन्नाथ की मां यहां 'आडप अबढा' तैयार कर उन्हें खिलाती हैं. इसके बाद 'आडप अबढा' को भक्तों में वितरित किया जाता है. भगवान जगन्नाथ का दर्शन और प्रसाद ग्रहण करने से प्रभु का विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है. पढ़ें पूरी खबर...

importance of adapa abhada
'आडप अबढा' का महत्व
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Published : Jun 25, 2020, 8:05 PM IST

पुरी : भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा नौ दिवसीय प्रवास के लिए गुंडिचा मंदिर में पहुंच गई है. तीन चरणों में मनाए जाने वाला रथ यात्रा महोत्सव अब अपने दूसरे चरण पर पहुंच चुका है. इस चरण में त्रिमूर्ति (भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भाई बलभद्र व बहन सुभद्रा) गुंडिचा मंदिर की यात्रा पर (अपनी मौसी के यहां) गए हैं. भगवान जगन्नाथ अपने आभूषण, सिंहासन छोड़कर लकड़ी के रथ पर सवार होकर अपने जन्मस्थल गुंडिचा मंदिर पहुंचे हैं. गुंडिचा मंदिर में भगवान सात दिनों तक 'आडप मंडप' में विराजमान रहते हैं.

इस क्रम में शुक्ल पक्ष के चौथे दिन से नौवें दिन तक गुंडिचा मंदिर में भगवान के लिए चावल पकाया जाता है. देवी लक्ष्मी सालभर अपने कर्तव्य को भगवान की सच्ची सहमति के रूप में निभाती हैं और उन्हें महाप्रसाद (पुरी मंदिर में देवताओं को अर्पित किया जाने वाला पवित्र पका हुआ चावल) बनाकर खिलाती हैं. लेकिन साल के सिर्फ इन छह दिनों के दौरान रानी गुंडिचा, जिन्हें भगवान की मां कहा जाता है, उनके लिए खाना पकाती हैं. इस अवधि में पवित्र पके हुए चावल को 'आडप अबढा' कहा जाता है. इस अवधि में भगवान को अपनी मां द्वारा पकाया गया भोजन ग्रहण करने से संतुष्टि प्राप्त होती है.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट.

कहा जाता है कि ब्राह्मणों को यह 'आडप अबढा' प्रदान करने से उनके पूर्वजों का आशीर्वाद मिलता है. भगवान की मौसी के घर पर (गुंडिचा मंदिर) एक विशेष रसोई भी है, जहां 'आडप अबढा' बनाया जाता है. भगवान जगन्नाथ रथ यात्रा महोत्सव के अगले दिन गुंडिचा मंदिर के 'आडप मंडप' में प्रवेश करते हैं. उसके अगले दिन 'आडप अबढा' पकाया जाता है. इसे भगवान के सामने अर्पित करने के बाद भक्तों में वितरित किया जाता है. माना जाता है कि यदि कोई श्री गुंडिचा मंदिर में भगवान को अपने शानदार मंडप पर देखता है और 'आडप अबढा' ग्रहण करता है तो उसे हजारों जन्मों में किए गए पापों से छुटकारा मिल जाता है.

कहा जाता है कि श्री जगन्नाथ मंदिर में दस वर्षों तक दर्शन करने पर जो दिव्य आशीर्वाद मिलता है, वह गुंडिचा मंदिर में सिर्फ एक दिन भगवान के दर्शन से प्राप्त होने वाले आशीर्वाद के बराबर होता है. रात में भगवान के दर्शन के दौरान प्राप्त दिव्य आशीर्वाद दिन के समय देवता को देखने की तुलना में दस गुना अधिक है. भक्त भी गुंडिचा मंदिर में भगवान के दर्शन के उपरांत स्वच्छ हृदय व शुद्ध मन से अपनी पूर्ण संतुष्टि के लिए 'आडप अबढा' का सेवन कर पुण्यलाभ कमाते हैं.

पढ़ें- जगन्नाथ पुरी मंदिर के देवताओं का जन्मस्थान है गुंडिचा मंदिर

गुंडिचा मंदिर में 'आडप अबढा' मुख्य मंदिर (श्री जगन्नाथ मंदिर) में 'महाप्रसाद' लेने की तरह ही है. भगवान के प्रसाद को ग्रहण कर भक्त खुशी से अभिभूत हो जाता है और बार-बार भगवान श्रीजगन्नाथ का नाम लेता है.

पुरी : भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा नौ दिवसीय प्रवास के लिए गुंडिचा मंदिर में पहुंच गई है. तीन चरणों में मनाए जाने वाला रथ यात्रा महोत्सव अब अपने दूसरे चरण पर पहुंच चुका है. इस चरण में त्रिमूर्ति (भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भाई बलभद्र व बहन सुभद्रा) गुंडिचा मंदिर की यात्रा पर (अपनी मौसी के यहां) गए हैं. भगवान जगन्नाथ अपने आभूषण, सिंहासन छोड़कर लकड़ी के रथ पर सवार होकर अपने जन्मस्थल गुंडिचा मंदिर पहुंचे हैं. गुंडिचा मंदिर में भगवान सात दिनों तक 'आडप मंडप' में विराजमान रहते हैं.

इस क्रम में शुक्ल पक्ष के चौथे दिन से नौवें दिन तक गुंडिचा मंदिर में भगवान के लिए चावल पकाया जाता है. देवी लक्ष्मी सालभर अपने कर्तव्य को भगवान की सच्ची सहमति के रूप में निभाती हैं और उन्हें महाप्रसाद (पुरी मंदिर में देवताओं को अर्पित किया जाने वाला पवित्र पका हुआ चावल) बनाकर खिलाती हैं. लेकिन साल के सिर्फ इन छह दिनों के दौरान रानी गुंडिचा, जिन्हें भगवान की मां कहा जाता है, उनके लिए खाना पकाती हैं. इस अवधि में पवित्र पके हुए चावल को 'आडप अबढा' कहा जाता है. इस अवधि में भगवान को अपनी मां द्वारा पकाया गया भोजन ग्रहण करने से संतुष्टि प्राप्त होती है.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट.

कहा जाता है कि ब्राह्मणों को यह 'आडप अबढा' प्रदान करने से उनके पूर्वजों का आशीर्वाद मिलता है. भगवान की मौसी के घर पर (गुंडिचा मंदिर) एक विशेष रसोई भी है, जहां 'आडप अबढा' बनाया जाता है. भगवान जगन्नाथ रथ यात्रा महोत्सव के अगले दिन गुंडिचा मंदिर के 'आडप मंडप' में प्रवेश करते हैं. उसके अगले दिन 'आडप अबढा' पकाया जाता है. इसे भगवान के सामने अर्पित करने के बाद भक्तों में वितरित किया जाता है. माना जाता है कि यदि कोई श्री गुंडिचा मंदिर में भगवान को अपने शानदार मंडप पर देखता है और 'आडप अबढा' ग्रहण करता है तो उसे हजारों जन्मों में किए गए पापों से छुटकारा मिल जाता है.

कहा जाता है कि श्री जगन्नाथ मंदिर में दस वर्षों तक दर्शन करने पर जो दिव्य आशीर्वाद मिलता है, वह गुंडिचा मंदिर में सिर्फ एक दिन भगवान के दर्शन से प्राप्त होने वाले आशीर्वाद के बराबर होता है. रात में भगवान के दर्शन के दौरान प्राप्त दिव्य आशीर्वाद दिन के समय देवता को देखने की तुलना में दस गुना अधिक है. भक्त भी गुंडिचा मंदिर में भगवान के दर्शन के उपरांत स्वच्छ हृदय व शुद्ध मन से अपनी पूर्ण संतुष्टि के लिए 'आडप अबढा' का सेवन कर पुण्यलाभ कमाते हैं.

पढ़ें- जगन्नाथ पुरी मंदिर के देवताओं का जन्मस्थान है गुंडिचा मंदिर

गुंडिचा मंदिर में 'आडप अबढा' मुख्य मंदिर (श्री जगन्नाथ मंदिर) में 'महाप्रसाद' लेने की तरह ही है. भगवान के प्रसाद को ग्रहण कर भक्त खुशी से अभिभूत हो जाता है और बार-बार भगवान श्रीजगन्नाथ का नाम लेता है.

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