हैदराबाद : 25 जून, 1975 की आधी रात को पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देशभर में राष्ट्रीय आपातकाल लागू कर दिया था. यही वह दिन था, जब तत्कालीन कांग्रेस सरकार की सलाह पर राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने अनुच्छेद 352 (1) के तहत देश में आपातकाल लगाने की घोषणा की थी. इस लेख में ईटीवी भारत उन घटनाक्रमों की समयावधि के बारे में बताएगा, जिसने इस विवादास्पद घटना को जन्म दिया था.
आपातकाल लगने के अहम कारक
कई कारक और घटनाएं थीं, जिनके कारण आपातकाल लागू हुआ. इस घोषणा से पहले के महीनों में देश व्यापक दंगे, आंदोलन, बेरोजगारी, भोजन की कमी सहित तमाम परेशानियों से जूझ रहा था.
1970 के दशक के चार प्रमुख घटनाक्रम, जिन्होंने आपातकाल की घोषणा में प्रमुख भूमिका निभाई :-
गुजरात में नवनिर्माण आंदोलन
1973 और मार्च 1974 के बीच गुजरात में पहले फीस वृद्धि को लेकर छात्रों के नेतृत्व में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए. बाद में इस प्रदर्शन में कारखाने के श्रमिक और अन्य लोग भी शामिल हुए, जिन्होंने कांग्रेस के नेतृत्व वाली राज्य सरकार को उसकी 'भ्रष्ट प्रथाओं' को खारिज करने की मांग की.
इस विरोध को नवनिर्माण आंदोलन नाम दिया गया. बढ़ते आंदोलन का यह नतीजा हुआ कि फरवरी 1974 तक केंद्र सरकार को राज्य विधानसभा को निलंबित करने और राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने के लिए मजबूर होना पड़ा.
जेपी आंदोलन
मार्च 1974 में बिहार छात्र संघर्ष समिति के नेतृत्व में बिहार में भी छात्रों द्वारा बिहार सरकार के खिलाफ एक विरोध प्रदर्शन हुआ, जिसको जेपी के नाम से लोकप्रिय गांधीवादी समाजवादी जयप्रकाश नारायण का राजनीतिक समर्थन मिला.
यह उस स्वतंत्रता सेनानी की भागीदारी ही थी कि जो आंदोलन पहले 'बिहार आंदोलन' के रूप में जाना जाता था, उसे अंततः 'जेपी आंदोलन' के नाम से जाना जाने लगा.
रेलवे आंदोलन
मई 1974 में समाजवादी नेता जॉर्ज फर्नांडिस के नेतृत्व में रेलवे हड़ताल हुई, जिसके परिणामस्वरूप देशभर में माल ढुलाई और सार्वजनिक आवाजाही बाधित हुई. इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने अपनी पुस्तक 'इंडिया आफ्टर गांधी' में लिखा- लगभग तीन सप्ताह तक चली हड़ताल में एक लाख से अधिक रेलवे कर्मचारियों की भागीदारी देखी गई.
इस प्रदर्शन के बाद केंद्र सरकार ने हजारों लोगों की गिरफ्तारियां कीं और कई कर्मचारियों व उनके परिवारों को उनके आवासों से बाहर निकालकर इस आंदोलन को कुचल दिया.
इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला
तत्कालीन कांग्रेस शासन को अंतिम चोट तब पहुंची, जब समाजवादी नेता राज नारायण ने इंदिरा गांधी पर भ्रष्ट चुनावी प्रथाओं का आरोप लगाया और इलाहाबाद उच्च न्यायालय में मामला दायर कर दिया. दरअसल, 1971 में हुए लोकसभा चुनाव में इंदिरा गांधी ने रायबरेली सीट से राज नारायण को हराया था.
इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति जग मोहन लाल सिन्हा ने 12 जून 1975 को देश की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को चुनाव में सरकारी मशीनरी के इस्तेमाल का दोषी ठहराते हुए उनके 1971 के निर्वाचन को अमान्य करार दिया. हाईकोर्ट ने साथ ही इस फैसले पर सुप्रीम कोर्ट में अपील करने के लिए उन्हें 20 दिनों का समय दिया.
इंदिरा गांधी ने उच्च न्यायालय के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी. 24 जून, 1975 को सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति वी.आर. कृष्णा अय्यर ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश पर सशर्त रोक लगाते हुए पीएम को संसद में उपस्थित होने की अनुमति प्रदान की, लेकिन उनकी अपील पर फैसला आने तक उन्हें मतदान से रोक दिया.
25 जून, 1975 की शाम को जेपी, मोरारजी देसाई, राज नारायण, नानाजी देशमुख, मदन लाल खुराना और कई अन्य राजनीतिक दिग्गजों ने राम लीला मैदान में एक विशाल भीड़ को संबोधित किया और इंदिरा गांधी से इस्तीफा देने का आह्वान किया. लेकिन वह मजबूती से प्रधानमंत्री पद पर डटी रहीं.
उन्होंने सेना और पुलिस को उन आदेशों का पालन करने के लिए कहा, जिन्हें वह अवैध और असंवैधानिक मानते थे. इन सभी घटनाक्रमों का एक अध्यादेश के रूप में समापन हुआ, जब देश में आंतरिक आपातकाल की स्थिति घोषित करने का मसौदा तैयार किया गया और राष्ट्रपति ने इस पर तुरंत हस्ताक्षर कर दिए.
राष्ट्रपति को लिखे अपने पत्र में आपातकाल की घोषणा का अनुरोध करते हुए इंदिरा गांधी ने लिखा, 'सूचना हम तक पहुंच गई है, जो भारत की सुरक्षा को लेकर खतरे का संकेत देती है.'
स्वतंत्र भारत के इतिहास में यह तीसरी बार था, जब आपातकाल घोषित किया गया था. इससे पहले यह दो बार लग चुका था. 1962 में चीन के साथ युद्ध के दौरान और फिर 1971 में जब भारत-पाकिस्तान युद्ध हुआ था, जिसके कारण बांग्लादेश का जन्म हुआ.
आपातकाल की अवधि
उसके बाद मध्यरात्रि में चलाई गई देशव्यापी छापेमारी के तहत जेपी, मोरारजी देसाई, जॉर्ज फर्नांडिस, अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, अरुण जेटली सहित बड़ी संख्या में विपक्षी नेताओं को उनके आवासों से उठाकर हिरासत में ले लिया गया.
हालांकि, आपातकाल का सबसे आलोचनात्मक पहलू देश की प्रेस पर लगाई गई सेंसरशिप थी, जिससे बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता दबा दी गई थी.
इस क्रम में 25 जून की रात को कई समाचार पत्र कार्यालयों की बिजली आपूर्ति काट दी गई ताकि घटनाओं की रिपोर्टिंग से उन्हें रोका जा सके.
गांधी सरकार ने कुछ नियमों और दिशानिर्देश जारी किए, जिनका पालन देशभर के पत्रकारों को करना था. प्रेस को कुछ भी प्रकाशित करने से पहले प्रेस सलाहकार से अनुमति लेनी पड़ती थी.
कई अखबारों ने अपना विरोध दर्ज करते हुए खाली पन्नों को प्रकाशित किया और रामनाथ गोयनका के स्वामित्व वाले इंडियन एक्सप्रेस इस विरोध की अगुआई की. हालांकि ज्यादातर अखबारों को कुछ हफ्तों के बाद दबाव में संघर्ष छोड़ दिया, लेकिन इंडियन एक्सप्रेस एक अपवाद बना रहा.
उसके बाद मानवाधिकार उल्लंघन की कई अन्य घटनाएं सामने आईं, जिनमें प्रधानमंत्री के बेटे संजय गांधी के नेतृत्व में चलाया गया जबरन सामूहिक नसबंदी अभियान भी शामिल था.
आपातकाल के बाद क्या हुआ?
21 मार्च, 1977 को आपातकाल की समाप्ति के बाद इंदिरा गांधी ने विपक्षी नेताओं को जेल से रिहा कर दिया और तत्काल चुनावों की घोषणा करते हुए उन्होंने प्रेस की स्वतंत्रता बहाल की.
इस कदम के बाद कांग्रेस पार्टी सत्ता से बाहर हो गई और मोरारजी देसाई के प्रधानमंत्रित्व में 21 महीने की अवधि के लिए जनता पार्टी के शासनकाल का रास्ता साफ हुआ.
1978 में जनता पार्टी की सरकार ने संविधान के 44वें संशोधन के माध्यम से 'आंतरिक अशांति' शब्दों को 'या सशस्त्र विद्रोह' शब्दों से बदल दिया और तब से इस अनुच्छेद के साथ कोई और छेड़छाड़ नहीं हुई है.