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12 साल की लड़की केरल में चला रही है मुफ्त लाइब्रेरी - घर से लाइब्रेरी का संचालन

केरल में 12 वर्षीय लड़की ने किताब पढ़ने के लिए अपने घर में ही एक लाइब्रेरी शुरू कर दी. यहां किताबें पढ़ने के लिए न तो कोई फीस ली जाती है और न ही कोई फाइन लगता है.

यशोदा
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Published : Jul 15, 2019, 12:13 AM IST

तिरुवनंतपुरम:करीब छह महीने पहले यशोदा डी शिनॉय, एक 12 साल की लड़की ने मटनचेर्री स्थित अपने घर की ऊपर एक लाइब्रेरीशुरू की है. इस लाइब्रेरी में कोई भी जा सकता है. यह लाइब्रेरी हर रोज सुबह नौ बजे से शाम 7 बजे तक खुली रहती है.

बता दें कि यशोदा आठ साल की उम्र से ही किताबें पढ़ती है. एक दिन उसने देखा कि उसके पिता लाइब्रेरी से लाई एक किताब के बकाए का भुगतान कर रहे थे. यह देख उसने अपने पिता से पूछा कि आपने किताबों के लिए भुगतान क्यों किया,तो उसके पिता ने जवाब दिया कि 'कोई किताब मुफ्त नहीं आती.'

लाइब्रेरी का वीडियो

जब उसे पता चला कि पुस्तकालय की बकाया राशि और गरीबों के कारण गरीब लोगों को पढ़ने के लिए किताबें नहीं मिल पाती तो उसने एक लाइब्रेरी खोलने का फैसला किया. उसने इस बारे में अपने पिता को बताया.

पुस्तकालय खोलने के लिए उसने फेसबुक पर एक पोस्ट लिखी और लोगों से किताबें मांगी. इस पोस्ट को पढ़ते ही लोगों ने अलग अलग जगह से किताबें भेजना शुरू करदी.

ईटीवी भारत से बात करती यशोदा

यशेदा ने बताया कि उसने दो हजार किताबों से लाइब्रेरी शुरू की,अब यहां 3500 किताबें हैं. इसके अलावा 110 लोग इस लाइब्रेरी के सदस्य हैं. उन्होंने कहा कि उसकी मनपसंद किताब बशीर है. उन्होंने बताया कि पुस्तकालय में सभी वर्ग के लोगों को लिए किताबें मौजूद हैं.

पढ़ें- गुजरात से असम भेजी गई एशियाई शेरों की जोड़ी, देखें वीडियो

यशोदा ने बताया कि यहां किताब 15 दिन के लिए दी जाती है और कोई फाइन नहीं लिया जाता. इतना ही नहीं वृद्ध लोगों के लिए और जो लोग बीमार हैं जो लाइब्रेरी में नहीं आ सकते उन्हें घर पर किताबें मुहैया कराई जाती हैं.

यशोद ने बताया कि लाइब्रेरी के संचालन में उसके बड़े भाई अच्युत , मां ब्रहम्जा और पिता दिनेश शिनॉय उसकी सहायता करते हैं.

तिरुवनंतपुरम:करीब छह महीने पहले यशोदा डी शिनॉय, एक 12 साल की लड़की ने मटनचेर्री स्थित अपने घर की ऊपर एक लाइब्रेरीशुरू की है. इस लाइब्रेरी में कोई भी जा सकता है. यह लाइब्रेरी हर रोज सुबह नौ बजे से शाम 7 बजे तक खुली रहती है.

बता दें कि यशोदा आठ साल की उम्र से ही किताबें पढ़ती है. एक दिन उसने देखा कि उसके पिता लाइब्रेरी से लाई एक किताब के बकाए का भुगतान कर रहे थे. यह देख उसने अपने पिता से पूछा कि आपने किताबों के लिए भुगतान क्यों किया,तो उसके पिता ने जवाब दिया कि 'कोई किताब मुफ्त नहीं आती.'

लाइब्रेरी का वीडियो

जब उसे पता चला कि पुस्तकालय की बकाया राशि और गरीबों के कारण गरीब लोगों को पढ़ने के लिए किताबें नहीं मिल पाती तो उसने एक लाइब्रेरी खोलने का फैसला किया. उसने इस बारे में अपने पिता को बताया.

पुस्तकालय खोलने के लिए उसने फेसबुक पर एक पोस्ट लिखी और लोगों से किताबें मांगी. इस पोस्ट को पढ़ते ही लोगों ने अलग अलग जगह से किताबें भेजना शुरू करदी.

ईटीवी भारत से बात करती यशोदा

यशेदा ने बताया कि उसने दो हजार किताबों से लाइब्रेरी शुरू की,अब यहां 3500 किताबें हैं. इसके अलावा 110 लोग इस लाइब्रेरी के सदस्य हैं. उन्होंने कहा कि उसकी मनपसंद किताब बशीर है. उन्होंने बताया कि पुस्तकालय में सभी वर्ग के लोगों को लिए किताबें मौजूद हैं.

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यशोदा ने बताया कि यहां किताब 15 दिन के लिए दी जाती है और कोई फाइन नहीं लिया जाता. इतना ही नहीं वृद्ध लोगों के लिए और जो लोग बीमार हैं जो लाइब्रेरी में नहीं आ सकते उन्हें घर पर किताबें मुहैया कराई जाती हैं.

यशोद ने बताया कि लाइब्रेरी के संचालन में उसके बड़े भाई अच्युत , मां ब्रहम्जा और पिता दिनेश शिनॉय उसकी सहायता करते हैं.

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Nearly six months ago Yashoda D Shenoy, 12 year old girl has opened a library on the top floor of her house at Mattancherry in Kochi. The library is running free for all in kochi. it is open every day, from 9 am to 7pm. 



Yashoda, who reads books from the age of eight, one day saw her father pay money when a library book was due and when she asked about that. her father replied that 'no book came free'. she decided to start a free library when she learned about library dues and the poor who would not be able to access books to read. she told her dad about it, he published a post on facebook and books came from many places.



"We bagan with about 2000 books, now there are more than 3500. and the library has 110 members. her favourite is Basheer books",she says. but the books in the library are for both children and grownups. "there is no fine but a book is to be taken out for 15 days and then brought back. for the unwell and the aged who cannot come to the library, we deliver the books they want at home if we have it in the library", Yashodha says. she manages the library with the help of her elder brother Achuth and mother Brahmaja and father Dinesh Shenoy.




Conclusion:
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