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जलियांवाला बाग हत्याकांड के 100 साल पूरे, जानें पूरी कहानी

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Published : Apr 13, 2019, 9:54 AM IST

Updated : Apr 13, 2019, 11:36 AM IST

आज जलियांवाला बाग हत्याकांड के 100 साल पूरे हो चुके हैं. करीब एक हजार लोग शहीद हो गए थे. हजारों लोग घायल हुए. आखिर क्या हुआ था उस दिन, जानें पूरी कहानी.

जलियांवाला बाग

नई दिल्ली : देश की आजादी के इतिहास में 13 अप्रैल का दिन एक दुखद घटना के रूप में दर्ज है. 1919 का 13 अप्रैल का दिन था, जब जलियांवाला बाग में एक शांतिपूर्ण सभा के लिए जमा हुए हजारों भारतीयों पर अंग्रेज हुक्मरान ने अंधाधुंध गोलियां बरसाई थीं. इस हत्याकांड के आज 100 साल पूरे हो चुके हैं. आज भी उस दिन की काली तस्वीरों को लोग भूला नहीं पाए हैं.

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जलियांवाला बाग

बैसाखी के दिन 13 अप्रैल 1919 को पंजाब के अमृतसर जिले में ऐतिहासिक स्वर्ण मंदिर के नजदीक जलियांवाला बाग में एक सभा आयोजित का गई थी. यहां हजारों लोग रॉलेट एक्ट के विरोध में शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे थे. ब्रिटिश सरकार को यह पता चला, तो जनरल रेजीनल्ड डायर ने पंजाब के तत्कालीन गवर्नर माइकल ओड्वायर के आदेश पर अंधाधुंध गोलीबारी शुरु कर दी. यहां तक कि उन्होंने बाग से बाहर निकलने के सारे रास्ते भी बंद करवा दिए थे. बाग में जाने का सिर्फ एक रास्ता खुला था. जनरल डायर ने उस रास्ते पर हथियारबंद गाड़ियां खड़ी करवा दी थीं.

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जलियांवाला बाग में मौजूद कुएं की तस्वीर.

अंग्रेजों की गोलीबारी से बचने के लिए कई महिलाएं और बच्चे बाग के एक कुंअे में कूद गई थीं. निकास का रास्ता संकरा होने के कारण बहुत से लोग भगदड़ में कुचले गए और हजारों लोग गोलियों की चपेट में आए. गोलीबारी के बाद कुएं से 200 से ज्यादा शव बरामद हुए थे.

इस घटना में सैकड़ो लोगों ने अपनी जान गंवाई, लेकिन इसका सही-सही आंकड़ा कभी सामने नहीं आ पाया. कांग्रेस की उस समय की रिपोर्ट के मुताबिक इस घटना में कम से कम 1,000 लोग मारे गए और 2,000 के करीब घायल हुए. सरकारी आंकड़ों में मरने वालों की संख्या 379 बताई गई, लेकिन पं. मदनमोहन मालवीय के अनुसार इस नृशंस कत्लेआम में 1,300 लोग मारे गए थे. स्वामी श्रद्धानंद ने मरने वालों की संख्या 1,500 से अधिक बताई थी.

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प्रदर्शन के लिए जाते लोग.

जलियांवाला बाग हत्याकांड का प्रतिशोध लेने के लिए उधम सिंह ने 13 मार्च 1940 को लंदन के एक भरे हॉल में माइकल डायर को गोली मारकर हत्या कर दी.

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उधम सिंह

हाल ही में ब्रिटेन की पीएम टरीजा मे ने जालियांवाल बाग हत्याकांड पर अफसोस जाहिर किया है और इसे तत्कालीन ब्रिटिश शासन के लिए शर्मनाक धब्बा करार दिया है. टरीजा ने बयान जारी कर इस घटना पर अफसोस जताया. उन्होंने कहा, 'जो हुआ और जो त्रासदी झेलनी पड़ी उसपर हमें अफसोस है.' उन्होंने आगे कहा, '1919 की जालियांवाल बाग त्रासदी ब्रिटिश-भारतीय इतिहास के लिए शर्मनाक धब्बा है. जैसा कि महारानी एलिजाबेथ द्वितीय ने 1997 में जालियांवाला बाग जाने से पहले कहा था कि यह भारत के साथ हमारे बीते हुए इतिहास का दुखद उदाहरण है.'

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ब्रिटेन की पीएम टरीजा मे

1997 में महारानी एलिज़ाबेथ ने इस स्मारक पर आकर मृतकों को श्रद्धांजलि दी थी. 2013 में भी तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री डेविड कैमरॉन इस स्मारक पर आए थे. घटना के मद्देनजर विजिटर्स बुक में उन्होंने लिखा था कि 'ब्रिटिश इतिहास की यह एक शर्मनाक घटना थी.'

नई दिल्ली : देश की आजादी के इतिहास में 13 अप्रैल का दिन एक दुखद घटना के रूप में दर्ज है. 1919 का 13 अप्रैल का दिन था, जब जलियांवाला बाग में एक शांतिपूर्ण सभा के लिए जमा हुए हजारों भारतीयों पर अंग्रेज हुक्मरान ने अंधाधुंध गोलियां बरसाई थीं. इस हत्याकांड के आज 100 साल पूरे हो चुके हैं. आज भी उस दिन की काली तस्वीरों को लोग भूला नहीं पाए हैं.

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जलियांवाला बाग

बैसाखी के दिन 13 अप्रैल 1919 को पंजाब के अमृतसर जिले में ऐतिहासिक स्वर्ण मंदिर के नजदीक जलियांवाला बाग में एक सभा आयोजित का गई थी. यहां हजारों लोग रॉलेट एक्ट के विरोध में शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे थे. ब्रिटिश सरकार को यह पता चला, तो जनरल रेजीनल्ड डायर ने पंजाब के तत्कालीन गवर्नर माइकल ओड्वायर के आदेश पर अंधाधुंध गोलीबारी शुरु कर दी. यहां तक कि उन्होंने बाग से बाहर निकलने के सारे रास्ते भी बंद करवा दिए थे. बाग में जाने का सिर्फ एक रास्ता खुला था. जनरल डायर ने उस रास्ते पर हथियारबंद गाड़ियां खड़ी करवा दी थीं.

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जलियांवाला बाग में मौजूद कुएं की तस्वीर.

अंग्रेजों की गोलीबारी से बचने के लिए कई महिलाएं और बच्चे बाग के एक कुंअे में कूद गई थीं. निकास का रास्ता संकरा होने के कारण बहुत से लोग भगदड़ में कुचले गए और हजारों लोग गोलियों की चपेट में आए. गोलीबारी के बाद कुएं से 200 से ज्यादा शव बरामद हुए थे.

इस घटना में सैकड़ो लोगों ने अपनी जान गंवाई, लेकिन इसका सही-सही आंकड़ा कभी सामने नहीं आ पाया. कांग्रेस की उस समय की रिपोर्ट के मुताबिक इस घटना में कम से कम 1,000 लोग मारे गए और 2,000 के करीब घायल हुए. सरकारी आंकड़ों में मरने वालों की संख्या 379 बताई गई, लेकिन पं. मदनमोहन मालवीय के अनुसार इस नृशंस कत्लेआम में 1,300 लोग मारे गए थे. स्वामी श्रद्धानंद ने मरने वालों की संख्या 1,500 से अधिक बताई थी.

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प्रदर्शन के लिए जाते लोग.

जलियांवाला बाग हत्याकांड का प्रतिशोध लेने के लिए उधम सिंह ने 13 मार्च 1940 को लंदन के एक भरे हॉल में माइकल डायर को गोली मारकर हत्या कर दी.

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उधम सिंह

हाल ही में ब्रिटेन की पीएम टरीजा मे ने जालियांवाल बाग हत्याकांड पर अफसोस जाहिर किया है और इसे तत्कालीन ब्रिटिश शासन के लिए शर्मनाक धब्बा करार दिया है. टरीजा ने बयान जारी कर इस घटना पर अफसोस जताया. उन्होंने कहा, 'जो हुआ और जो त्रासदी झेलनी पड़ी उसपर हमें अफसोस है.' उन्होंने आगे कहा, '1919 की जालियांवाल बाग त्रासदी ब्रिटिश-भारतीय इतिहास के लिए शर्मनाक धब्बा है. जैसा कि महारानी एलिजाबेथ द्वितीय ने 1997 में जालियांवाला बाग जाने से पहले कहा था कि यह भारत के साथ हमारे बीते हुए इतिहास का दुखद उदाहरण है.'

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ब्रिटेन की पीएम टरीजा मे

1997 में महारानी एलिज़ाबेथ ने इस स्मारक पर आकर मृतकों को श्रद्धांजलि दी थी. 2013 में भी तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री डेविड कैमरॉन इस स्मारक पर आए थे. घटना के मद्देनजर विजिटर्स बुक में उन्होंने लिखा था कि 'ब्रिटिश इतिहास की यह एक शर्मनाक घटना थी.'

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Last Updated : Apr 13, 2019, 11:36 AM IST
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