देहारादून (उत्तराखंड): शौर्य और देश सेवा में बलिदान के लिए उत्तराखंड इतिहास में लंबे समय से अपनी अहम भूमिका निभाता आ रहा है. इसका उदाहरण मिला है पहले विश्व युद्ध में उत्तराखंड से जर्मनी में लड़ने गए एक सैनिक की रिकॉर्डेट आवाज से. राइफलमैन शिव (शिब) सिंह कैंतुरा जर्मनी में युद्ध बंदी बना लिए गए थे. उनका 104 साल पुराना ऑडियो सामने आया है.
प्रथम विश्व युद्ध के सैनिक थे शिब सिंह कैंतुरा: आजादी से पहले ब्रिटिश साम्राज्य में भी उत्तराखंड के वीर जवानों की बड़ी भूमिका थी. उत्तराखंड के इसी शौर्य का एहसास कराती है रुद्रप्रयाग के लुटिया गांव के निवासी रहे शिव सिंह कैंतुरा की कहानी. दरअसल, पहले विश्व युद्ध के दौरान वर्ष 1917 से वर्ष 1919 तक उत्तराखंड से आने वाले राइफलमैन शिव सिंह कैंतुरा जर्मनी में युद्ध बंदी रहे. प्रथम विश्व युद्ध में ब्रिटिश सेना की तरफ से भाग लेने गए राइफलमैन शिव सिंह कैंतुरा को जर्मनी में युद्ध बंदी बनाया गया. वह 2 साल तक युद्ध बंदी रहने के बाद हालांकि छोड़ दिए गए, लेकिन वह वापस अपने देश कभी नहीं पहुंचे. शिव सिंह कैंतुरा पर हुए शोध में पता चला है कि वह जर्मनी से छूटने के बाद लंदन पहुंचे. वहां बीमारी से उनकी मौत हो गई. आज भी लंदन में उनकी कब्र मौजूद है.
हंबोल्ट यूनिवर्सिटी के आर्काइव में है शिव सिंह कैंतुरा की ऑडियो: दरअसल, प्रथम विश्वयुद्ध में अनेक देशों ने भाग लिया था. इसी दौरान दुनिया के अनेक देशों से ब्रिटेन की ओर से लड़ने गए सैनिक जर्मनी में युद्ध बंदी बना लिए गए थे. जर्मनी की सरकार ने इन युद्ध बंदी सैनिकों के ऑडियो और लिखित रिकॉर्ड रख लिए.
जर्मनी ने युद्ध बंदियों की ऑडियो रिकॉर्ड की थी: जर्मनी ने दुनिया के अलग-अलग कोनों से आए इन सभी युद्ध बंदियों की आवाज रिकॉर्ड करने के साथ ही अन्य जानकारियां इकट्ठा कर लीं. विश्व युद्ध खत्म होने के बाद जर्मनी की सरकार ने इसका एकेडमिक रूप में प्रयोग किया. आज भी बर्लिन में मौजूद हंबोल्ट यूनिवर्सिटी की आर्काइव में यह ऑडियो सुरक्षित रखी गई हैं. इस पूरी कहानी की खोज करने वाले वरिष्ठ पत्रकार और शोधकर्ता राजू गुसाईं बताते हैं कि बर्लिन में मौजूद हंबोल्ट यूनिवर्सिटी की आर्काइव में अलग-अलग तरह की 7000 आवाजें संरक्षित की गई हैं जो कि अपने आप में बेहद ऐतिहासिक और महत्वपूर्ण है. इनमें से 300 आवाजें केवल भारत के युद्ध बंदी सैनिकों की हैं.
100 साल पुराने दस्तावेज से आज भी सुरक्षित, ऐसे हुआ खुलासा: पहले विश्व युद्ध के दौरान उत्तराखंड के सैनिक राइफलमैन शिव सिंह कैंतुरा की कहानी जितनी रोचक है, उतनी ही रोचक है इस कहानी के सामने आने की कहानी. दरअसल उत्तराखंड के लोकगीत और लोक साहित्य पर शोध कर रहे वरिष्ठ पत्रकार और शोधकर्ता राजू गुसाईं जब उत्तराखंड के लोक संगीत पर शोध कर रहे थे, तो उन्हें इंटरनेट और अन्य माध्यम से इस तरह की एक ऑडियो की जानकारी मिली थी. ये ऑडियो उत्तराखंड से संबंध रखती थी.
थोड़ा बहुत जानकारी मिलने के बाद राजू गुसाईं ने इस ऑडियो के बारे में ज्यादा जानकारी एकत्रित करने की सोची. उन्होंने जर्मनी के बर्लिन में मौजूद हंबोल्ट यूनिवर्सिटी से संपर्क किया. वहां से उन्हें ऑडियो के साथ साथ कई ऐसे हैंड रिटन (हस्तलिखित) दस्तावेज भी प्राप्त हुए जो कि अपने आप में बेहद यूनिक और रोचक थे. इन दस्तावेजों में राइफलमैन शिव सिंह कैंतूरा की आवाज के साथ-साथ उनके हाथ से लिखे कुछ दस्तावेज भी मौजूद थे. साथ ही उनकी आवाज में उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग में मौजूद उनके गांव और उनके स्कूल की तमाम बातें कही गई थी.
रुद्रप्रयाग के लुटिया गांव का गौरव, लेकिन नहीं परिजनों का पता: रुद्रप्रयाग से प्रथम विश्व युद्ध में गए और कभी वापस लौट कर ना आए राइफलमैन शिव सिंह कैंतूरा पर शोध करते करते वरिष्ठ पत्रकार और शोधकर्ता राजू गुसाईं ने बर्लिन यूनिवर्सिटी से तमाम दस्तावेज प्राप्त किए. शोधकर्ता राजू गुसाईं ने राइफलमैन शिव सिंह कैंतुरा के बारे में और भी जानकारी जुटाने शुरू की. पता चला कि प्रथम विश्व युद्ध के दौरान 1917 में जर्मनी में युद्ध बंदी रहे शिव सिंह कैंतुरा को 1919 में छोड़ दिया गया था.
शोध में जानकारी मिली कि वर्ष 1919 में जर्मनी से छूटने के बाद वह लंग कैंसर के शिकार हो गए थे. जर्मनी से छूटने के बाद वो लंदन पहुंचे थे. खराब स्वास्थ्य की वजह से उनकी लंदन में ही मौत हो गई थी. इस कारण वह कभी अपने घर नहीं लौट पाए. लंदन में आज भी शिव सिंह कैंतूरा की समाधि मौजूद है. समाधि पर उनके बारे में लिखा गया है. शिव सिंह कैंतुरा के संबंध में मिले दस्तावेज में उनके गांव का नाम लुटिया गांव दिखाया गया है. रुद्रप्रयाग जिले में पड़ने वाला लुटिया गांव आज भी कैंतुरा जाति के लोगों का गांव है.
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लुटिया गांव में 100 साल पहले प्रथम विश्व युद्ध की लड़ाई पर गए शिव सिंह कैंतुरा के बारे में आज किसी को जानकारी नहीं है. ये जानकारी भी नहीं है कि वह किस परिवार से आते थे. गांव वाले इतना जरूर बताते हैं कि उनके गांव से सैनिकों का नाता बेहद पुराना रहा है. आज भी इस गांव से लोग सेना में अपना बलिदान दे रहे हैं. लेकिन शिव सिंह कैंतुरा के बलिदान और समर्पण के प्रति गांव के लोगों की अपार आस्था है. वह किसके परिवार से आते हैं, यह लोग नहीं जानते हैं, इसलिए पूरा गांव उन्हें अपने परिवार का व्यक्ति मानता है.