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लोकसभा उपचुनावः आखिर बेटे से छिन गई पिता मुलायम की गद्दी, अखिलेश से हुई ये चूक - आजमगढ़ लोकसभा सीट

आजमगढ़ की सीट अब भाजपा के खाते में चली गई है. मुलायम सिंह का यह अभेद किला अब ढह चुका है. आखिर क्या वजह रही कि अखिलेश यादव इस सीट को बचाने में कामयाब नहीं रहे, चलिए जानते हैं इस बारे में.

मुलायम सिंह यादव
मुलायम सिंह यादव
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Published : Jun 26, 2022, 10:31 PM IST

हैदराबादः आजमगढ़ की सीट सपा का अभेद किला मानी जाती थी. इसे अखिलेश ने पिता की विरासत के तौर पर संभाला था. इस बार के लोकसभा उपचुनाव में यह गद्दी अखिलेश यादव से छिनकर भाजपा के पास चली गई.अब सवाल उठ रहे हैं कि आखिर इस चुनाव में अखिलेश से कौन सी चूक हो गई जिसका फायदा बीजेपी को मिल गया.

मोदी लहर यानी वर्ष 2014 के चुनाव में मुलायम सिंह यादव और भाजपा के रमाकांत यादव के बीच चुनावी मुकाबला हुआ था. उस चुनाव में बसपा के गुड्डू जमाली ने मुकाबला त्रिकोणीय बना दिया था. मुलायम सिंह जैसे बड़े नेता उस चुनाव में 63,204 वोटों से ही जीत दर्ज कर सके थे. इसके बाद मुलायम ने यह सीट अपने बेटे अखिलेश यादव को दे दी थी.

वर्ष 2019 में जब अखिलेश यादव इस सीट से लड़े थे तब अखिलेश यादव को 6,21,578 और निरहुआ को 3,61,704 वोट मिले थे. अखिलेश को कुल पड़े वोट का 60 फीसदी और निरहुआ को 35 फीसदी वोट मिले थे. अखिलेश के नेतृत्व में इस बार सपा ने विधानसभा चुनाव लड़ा था. इस चुनाव में आजमगढ़ की सभी दस सीटों पर साइकिल दौड़ी थी. इसी के बाद अखिलेश ने यहां की लोकसभा सीट से इस्तीफा दे दिया था. लोकसभा उपचुनाव 2022 में अखिलेश ने इस सीट पर धर्मेंद्र यादव को उतारा था.

इस सीट पर इस उपचुनाव में भाजपा के दिनेश लाल यादव निरहुआ ने जीत दर्ज की है. उन्हें 2,94,377 वोट (34.42%) वोट मिले हैं. वहीं, दूसरे नंबर पर रहे सपा के धर्मेंद्र यादव को 2,83,164 (33.11%) वोट मिले है. तीसरे स्थान पर रहे बसपा के गुड्डू जमाली को 2,52,725 (29.55%) वोट मिले हैं.अगर जीत के अंतर की बात की जाए तो इस बार जीत का अंतर बेहद कम रहा है.

आजमगढ़ जिले की आबादी 46,13,913 लाख है. सवाल उठ रहा है कि पिछले विधानसभा चुनाव में सपा ने दस सीटों पर क्लीन स्वीप करते हुए इस जिले में कमल नहीं खिलाने दिया था, अचानक लोकसभा चुनाव में ऐसा क्या हो गया कि अखिलेश यादव को हार का सामना करना पड़ा.

कहा जा रहा है कि इस बार आजमगढ़ में अखिलेश यादव ने उस तेजी के साथ प्रचार नहीं किया, जैसा वे करते थे. इसका मतदाताओं पर काफी असर पड़ा है. आजमगढ़ सीट पर यादवों की आबादी करीब 26 फीसदी है, वहीं, मुस्लिम मतदाता करीब 24 फीसदी हैं. इन दोनों को मिला दिया जाए तो 50 फीसदी मतदाता एक तरफ हो जाते हैं और समाजवादी पार्टी की जीत का आधार भी यही बनते हैं. इस बार यह फैक्टर काम ही नहीं आया.

सपा की हार की दूसरी सबसे बड़ी वजह रही कम मतदान. 2019 के लोकसभा चुनाव में आजमगढ़ में 57.40% वोटिंग हुई थी, वहीं इस बार यहां 49.48% वोटिंग हुई. यहां भी कम वोटिंग ने सपा को झटका दिया है.

इसके अलावा तीसरी वजह रही बसपा के गुड्डू जमाली का मजबूती के साथ लड़ना. इस चुनाव में गुड्डू जमाली ने 2,52,725 वोट जुटा लिए. सपा के धर्मेंद्र यादव को 2,83,164 वोट मिले थे. ऐसे में कहीं न कहीं गुड्डू जमाली ने सपा का मुस्लिम वोट झटक लिया. अगर ये वोट धर्मेंद्र यादव के हिस्से में आए होते तो सपा बड़े अंतर के साथ जीत दर्ज करती.

चौथी वजह रही अखिलेश भाजपा के नेताओं की रणनीति समझने में कामयाब नहीं हो पाए. सीएम योगी समेत भाजपा के ज्यादातर दिग्गज नेता आजमगढ़ में डेरा डाले रहे और सपा चुपचाप चुनाव लड़ती रही. धर्मेंद्र यादव को टिकट दिए जाने पर भाजपा ने परिवारवाद का आरोप लगाकर आजमगढ़ में सपा को खूब नुकसान पहुंचाया. इसके अलावा सपा के दिग्गज नेता भी भाजपा नेताओं का मुकाबला करने आजमगढ़ नहीं पहुंचे. ये भी भाजपा के लिए फायदेमंद रहा.

कुल मिलाकर भाजपा आजमगढ़ की जनता को यह समझाने में कामयाब रही कि केंद्र और प्रदेश में शासन उसी का है तो वोट देना भाजपा को ही फायदेमंद रहेगा. वहीं, अखिलेश यादव अपने बिखरते वोटों से बेखबर रहे. परिणाम आने के बाद अब अखिलेश की इन चूकों को लेकर सवाल उठ रहे हैं. अब अखिलेश क्या इन गलितयों से सबक लेंगे, ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा.

ये भी पढ़ेंः आजम-अखिलेश की सियासी चालों पर भाजपा ने ऐसे फेरा पानी, इन वजहों से पंचर हुई साइकिल

हैदराबादः आजमगढ़ की सीट सपा का अभेद किला मानी जाती थी. इसे अखिलेश ने पिता की विरासत के तौर पर संभाला था. इस बार के लोकसभा उपचुनाव में यह गद्दी अखिलेश यादव से छिनकर भाजपा के पास चली गई.अब सवाल उठ रहे हैं कि आखिर इस चुनाव में अखिलेश से कौन सी चूक हो गई जिसका फायदा बीजेपी को मिल गया.

मोदी लहर यानी वर्ष 2014 के चुनाव में मुलायम सिंह यादव और भाजपा के रमाकांत यादव के बीच चुनावी मुकाबला हुआ था. उस चुनाव में बसपा के गुड्डू जमाली ने मुकाबला त्रिकोणीय बना दिया था. मुलायम सिंह जैसे बड़े नेता उस चुनाव में 63,204 वोटों से ही जीत दर्ज कर सके थे. इसके बाद मुलायम ने यह सीट अपने बेटे अखिलेश यादव को दे दी थी.

वर्ष 2019 में जब अखिलेश यादव इस सीट से लड़े थे तब अखिलेश यादव को 6,21,578 और निरहुआ को 3,61,704 वोट मिले थे. अखिलेश को कुल पड़े वोट का 60 फीसदी और निरहुआ को 35 फीसदी वोट मिले थे. अखिलेश के नेतृत्व में इस बार सपा ने विधानसभा चुनाव लड़ा था. इस चुनाव में आजमगढ़ की सभी दस सीटों पर साइकिल दौड़ी थी. इसी के बाद अखिलेश ने यहां की लोकसभा सीट से इस्तीफा दे दिया था. लोकसभा उपचुनाव 2022 में अखिलेश ने इस सीट पर धर्मेंद्र यादव को उतारा था.

इस सीट पर इस उपचुनाव में भाजपा के दिनेश लाल यादव निरहुआ ने जीत दर्ज की है. उन्हें 2,94,377 वोट (34.42%) वोट मिले हैं. वहीं, दूसरे नंबर पर रहे सपा के धर्मेंद्र यादव को 2,83,164 (33.11%) वोट मिले है. तीसरे स्थान पर रहे बसपा के गुड्डू जमाली को 2,52,725 (29.55%) वोट मिले हैं.अगर जीत के अंतर की बात की जाए तो इस बार जीत का अंतर बेहद कम रहा है.

आजमगढ़ जिले की आबादी 46,13,913 लाख है. सवाल उठ रहा है कि पिछले विधानसभा चुनाव में सपा ने दस सीटों पर क्लीन स्वीप करते हुए इस जिले में कमल नहीं खिलाने दिया था, अचानक लोकसभा चुनाव में ऐसा क्या हो गया कि अखिलेश यादव को हार का सामना करना पड़ा.

कहा जा रहा है कि इस बार आजमगढ़ में अखिलेश यादव ने उस तेजी के साथ प्रचार नहीं किया, जैसा वे करते थे. इसका मतदाताओं पर काफी असर पड़ा है. आजमगढ़ सीट पर यादवों की आबादी करीब 26 फीसदी है, वहीं, मुस्लिम मतदाता करीब 24 फीसदी हैं. इन दोनों को मिला दिया जाए तो 50 फीसदी मतदाता एक तरफ हो जाते हैं और समाजवादी पार्टी की जीत का आधार भी यही बनते हैं. इस बार यह फैक्टर काम ही नहीं आया.

सपा की हार की दूसरी सबसे बड़ी वजह रही कम मतदान. 2019 के लोकसभा चुनाव में आजमगढ़ में 57.40% वोटिंग हुई थी, वहीं इस बार यहां 49.48% वोटिंग हुई. यहां भी कम वोटिंग ने सपा को झटका दिया है.

इसके अलावा तीसरी वजह रही बसपा के गुड्डू जमाली का मजबूती के साथ लड़ना. इस चुनाव में गुड्डू जमाली ने 2,52,725 वोट जुटा लिए. सपा के धर्मेंद्र यादव को 2,83,164 वोट मिले थे. ऐसे में कहीं न कहीं गुड्डू जमाली ने सपा का मुस्लिम वोट झटक लिया. अगर ये वोट धर्मेंद्र यादव के हिस्से में आए होते तो सपा बड़े अंतर के साथ जीत दर्ज करती.

चौथी वजह रही अखिलेश भाजपा के नेताओं की रणनीति समझने में कामयाब नहीं हो पाए. सीएम योगी समेत भाजपा के ज्यादातर दिग्गज नेता आजमगढ़ में डेरा डाले रहे और सपा चुपचाप चुनाव लड़ती रही. धर्मेंद्र यादव को टिकट दिए जाने पर भाजपा ने परिवारवाद का आरोप लगाकर आजमगढ़ में सपा को खूब नुकसान पहुंचाया. इसके अलावा सपा के दिग्गज नेता भी भाजपा नेताओं का मुकाबला करने आजमगढ़ नहीं पहुंचे. ये भी भाजपा के लिए फायदेमंद रहा.

कुल मिलाकर भाजपा आजमगढ़ की जनता को यह समझाने में कामयाब रही कि केंद्र और प्रदेश में शासन उसी का है तो वोट देना भाजपा को ही फायदेमंद रहेगा. वहीं, अखिलेश यादव अपने बिखरते वोटों से बेखबर रहे. परिणाम आने के बाद अब अखिलेश की इन चूकों को लेकर सवाल उठ रहे हैं. अब अखिलेश क्या इन गलितयों से सबक लेंगे, ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा.

ये भी पढ़ेंः आजम-अखिलेश की सियासी चालों पर भाजपा ने ऐसे फेरा पानी, इन वजहों से पंचर हुई साइकिल

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