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मानसून सत्र में कृषि बिल के विरोध में स्थगन प्रस्ताव की तैयारी में जुटा अकाली दल

एक समय भाजपा की सहयोगी पार्टी रही अकाली दल ने संसद के मानसून सत्र में किसान बिल के विरोध में सरकार को घेरने की तैयारी कर ली है. इसी के मद्देनजर पार्टी द्वारा सहमति बनाने के लिए कई पार्टियों से संपर्क किया गया है. इस पर कई पार्टियों ने अपनी सहमति भी दे दी है. वहीं दूसरी तरफ भाजपा ने किसान बिल के बारे में अपने सांसदों व मंत्रियों को जानकारी देने के लिए बिल का विस्तृत ब्योरा दिया है. पढ़िए वरिष्ठ संवाददाता अनामिका रत्ना की रिपोर्ट...

मानसून सत्र
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Published : Jul 16, 2021, 10:18 PM IST

Updated : Jul 16, 2021, 10:26 PM IST

नई दिल्ली : कभी भारतीय जनता पार्टी की सहयोगी पार्टी रही अकाली दल आने वाले मानसून सत्र में केंद्र सरकार को किसान बिल पर घेरने की तैयारी कर रही है. अकाली दल ना सिर्फ अपनी पार्टी बल्कि कई और पार्टियों के साथ सामूहिकता में स्थगन प्रस्ताव लाने की तैयारी कर रही है जिसे लेकर कहीं ना कहीं सरकार की मुश्किलें बढ़ गई हैं.

हालांकि ईटीवी भारत ने पहले ही अपने खबरों में बताया था कि आने वाला मानसून सत्र कई मुद्दों पर काफी हंगामेदार हो सकता है. क्योंकि तमाम विपक्षी और सहयोगी पार्टियां भी सरकार को घेरने की तैयारी कर रही हैं. ऐसे में सबसे महत्वपूर्ण है भारतीय जनता पार्टी की सहयोगी पार्टी रही अकाली दल के रुख से है जो किसान बिल पर शुरू से ही आक्रामक है और इसी बिल को सरकार की तरफ से पारित किए जाने के विरोध में केंद्र सरकार से अपना गठबंधन वापस ले लिया था.

ये भी पढ़ें - किसानों ने विपक्षी सांसदों को मतदाता व्हिप जारी किया, सदन में अपने मुद्दे उठाने को कहा

एक तरफ लगभग 1 साल से चल रहे किसान आंदोलन को लेकर सरकार कोई समझौते का रास्ता निकाल नहीं पा रही और ना ही इसका हल ढूंढ पाई है. वहीं दूसरी तरफ संसद का मानसून सत्र भी इस बिल को लेकर हंगामेदार होने की संभावना है. किसानों के आंदोलन को खत्म कराने में केंद्र सरकार को अभी तक सफलता हाथ नहीं लगी है. वहीं अब संसद के मानसून सत्र में अकाली दल कई पार्टियों के साथ मिलकर इस बिल के विरोध में स्थगन प्रस्ताव लाने की तैयारी में है.

50 सांसदों का हस्ताक्षर होना जरूरी

फिलहाल अकाली दल इस समय बिल के विरोध में क्षेत्रीय दलों की सहमति जुटा रहा है, इसके लिए लगभग 50 सांसदों के हस्ताक्षर जरूरी है ताकि यह स्थगन प्रस्ताव सभापति या लोक सभा के स्पीकर को एडमिट करना पड़े. सूत्रों की मानें तो यही वजह है कि अकाली दल ने कई क्षेत्रीय पार्टियों से इस पर समर्थन मांगा है. इसमें क्षेत्रीय पार्टी शिवसेना, बहुजन समाज पार्टी, नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी , द्रविड़ मुनेत्र कड़गम, तृणमूल कांग्रेस, बीजू जनता दल ,वाईएसआरसीपी, तेलंगाना राष्ट्र समिति पार्टी और कुछ अन्य क्षेत्रीय दल भी शामिल हैं. इनमें से शिवसेना, बहुजन समाज पार्टी, एनसीपी, डीएमके और टीएमसी ने अकाली दल को अपना समर्थन इस स्थगन प्रस्ताव के खिलाफ दे दिया है, शेष पार्टियों का समर्थन जुटाना अभी बाकी है.

कई क्षेत्रीय पार्टियों ने समर्थन देने पर सहमति दे दी है : सांसद नरेश गुजराल

इस मुद्दे पर ईटीवी भारत से बात करते हुए अकाली दल के सांसद नरेश गुजराल ने कहा कि अकाली दल ने क्षेत्रीय पार्टियों का समर्थन जुटाने के लिए उनसे बात की है. इस सवाल पर कि क्या कांग्रेस भी उनके स्थगन प्रस्ताव में साथ आ सकती है, गुजराल का कहना था कि उन्होंने फिलहाल कांग्रेस से संपर्क नहीं किया है. साथ ही गुजराल का कहना था कि क्षेत्रीय पार्टियों में से काफी पार्टियों ने अपनी सहमति दे दी है और उनकी पार्टी कुछ और क्षेत्रीय पार्टियों से बात कर रही है. उन्होंने कहा कि किसान बिल के विरोध में अकाली दल किसानों के हित में कहीं तक भी जा सकती है और पार्लियामेंट का मॉनसून सत्र शुरू हो रहा है और इसके खिलाफ आवाज उठाने का इससे अच्छा प्लेटफार्म और कोई नहीं हो सकता. इसके चलते अकाली दल का इस मानसून सत्र में स्थगन प्रस्ताव लाने की तैयारी है.

ये भी पढ़ें - अब टूट जाएगा किसान आंदोलन और अपने समर्थकों के साथ रास्ता अलग कर लेंगे गुरनाम चढ़ूनी?

इस सवाल पर कि अकाली पहले भारतीय जनता पार्टी के सहयोगी पार्टी रही है यदि फॉर्म बिल पर सहमति बन जाए तो क्या वापस एनडीए में उनकी पार्टी आ सकती है. इस पर उनका कहना था कि उन्होंने मुद्दों के आधार पर गठबंधन से हटने का फैसला किया था और ऐसा किसानों की समस्या जब तक हल नहीं होती तब तक वह केंद्र सरकार के खिलाफ अपनी लड़ाई जारी रखेंगे.

बता दें कि पिछले साल ही संसद के सत्र में किसानों से संबंधित तीन कानून पास किए गए थे और उसके बाद ही अकाली दल ने एनडीए से अपना नाता तोड़ लिया था. साथ ही धरना-प्रदर्शन कर रहे किसानों का साथ खुल कर देने के लिए वह केंद्र सरकार के खिलाफ सड़कों पर उतरे थे. अगले साल पंजाब में भी चुनाव होने हैं, और पंजाब एक कृषि बहुल क्षेत्र है. किसान बिल का वहां के वोट बैंक पर खासा असर होने की संभावना को देखते हुए सारी पार्टियां अपनी-अपनी राजनीति कर किसानों को अपने हक में करने की कोशिश कर रही हैं.

भाजपा बना रही रणनीति

सूत्रों की माने तो भारतीय जनता पार्टी इस पर भी गहन रणनीति बना रही है और यही वजह है कि मॉनसून सत्र शुरू होने से पहले ही किसान बिल के मसौदे दोबारा अपने मंत्रियों और सांसदों को भेजे गए हैं. पिछले संसद सत्र से पहले भी किसान बिल का विस्तृत ब्योरा इन सांसदों को दिया गया था और इससे संबंधित तमाम बारीकियों को समझाने के लिए पार्टी की तरफ से क्लास भी रखी गई थी. इस बार फिर से भाजपा अपने सांसदों और नए निर्वाचित मंत्रियों को इसके लिए तैयार कर रही है.

नई दिल्ली : कभी भारतीय जनता पार्टी की सहयोगी पार्टी रही अकाली दल आने वाले मानसून सत्र में केंद्र सरकार को किसान बिल पर घेरने की तैयारी कर रही है. अकाली दल ना सिर्फ अपनी पार्टी बल्कि कई और पार्टियों के साथ सामूहिकता में स्थगन प्रस्ताव लाने की तैयारी कर रही है जिसे लेकर कहीं ना कहीं सरकार की मुश्किलें बढ़ गई हैं.

हालांकि ईटीवी भारत ने पहले ही अपने खबरों में बताया था कि आने वाला मानसून सत्र कई मुद्दों पर काफी हंगामेदार हो सकता है. क्योंकि तमाम विपक्षी और सहयोगी पार्टियां भी सरकार को घेरने की तैयारी कर रही हैं. ऐसे में सबसे महत्वपूर्ण है भारतीय जनता पार्टी की सहयोगी पार्टी रही अकाली दल के रुख से है जो किसान बिल पर शुरू से ही आक्रामक है और इसी बिल को सरकार की तरफ से पारित किए जाने के विरोध में केंद्र सरकार से अपना गठबंधन वापस ले लिया था.

ये भी पढ़ें - किसानों ने विपक्षी सांसदों को मतदाता व्हिप जारी किया, सदन में अपने मुद्दे उठाने को कहा

एक तरफ लगभग 1 साल से चल रहे किसान आंदोलन को लेकर सरकार कोई समझौते का रास्ता निकाल नहीं पा रही और ना ही इसका हल ढूंढ पाई है. वहीं दूसरी तरफ संसद का मानसून सत्र भी इस बिल को लेकर हंगामेदार होने की संभावना है. किसानों के आंदोलन को खत्म कराने में केंद्र सरकार को अभी तक सफलता हाथ नहीं लगी है. वहीं अब संसद के मानसून सत्र में अकाली दल कई पार्टियों के साथ मिलकर इस बिल के विरोध में स्थगन प्रस्ताव लाने की तैयारी में है.

50 सांसदों का हस्ताक्षर होना जरूरी

फिलहाल अकाली दल इस समय बिल के विरोध में क्षेत्रीय दलों की सहमति जुटा रहा है, इसके लिए लगभग 50 सांसदों के हस्ताक्षर जरूरी है ताकि यह स्थगन प्रस्ताव सभापति या लोक सभा के स्पीकर को एडमिट करना पड़े. सूत्रों की मानें तो यही वजह है कि अकाली दल ने कई क्षेत्रीय पार्टियों से इस पर समर्थन मांगा है. इसमें क्षेत्रीय पार्टी शिवसेना, बहुजन समाज पार्टी, नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी , द्रविड़ मुनेत्र कड़गम, तृणमूल कांग्रेस, बीजू जनता दल ,वाईएसआरसीपी, तेलंगाना राष्ट्र समिति पार्टी और कुछ अन्य क्षेत्रीय दल भी शामिल हैं. इनमें से शिवसेना, बहुजन समाज पार्टी, एनसीपी, डीएमके और टीएमसी ने अकाली दल को अपना समर्थन इस स्थगन प्रस्ताव के खिलाफ दे दिया है, शेष पार्टियों का समर्थन जुटाना अभी बाकी है.

कई क्षेत्रीय पार्टियों ने समर्थन देने पर सहमति दे दी है : सांसद नरेश गुजराल

इस मुद्दे पर ईटीवी भारत से बात करते हुए अकाली दल के सांसद नरेश गुजराल ने कहा कि अकाली दल ने क्षेत्रीय पार्टियों का समर्थन जुटाने के लिए उनसे बात की है. इस सवाल पर कि क्या कांग्रेस भी उनके स्थगन प्रस्ताव में साथ आ सकती है, गुजराल का कहना था कि उन्होंने फिलहाल कांग्रेस से संपर्क नहीं किया है. साथ ही गुजराल का कहना था कि क्षेत्रीय पार्टियों में से काफी पार्टियों ने अपनी सहमति दे दी है और उनकी पार्टी कुछ और क्षेत्रीय पार्टियों से बात कर रही है. उन्होंने कहा कि किसान बिल के विरोध में अकाली दल किसानों के हित में कहीं तक भी जा सकती है और पार्लियामेंट का मॉनसून सत्र शुरू हो रहा है और इसके खिलाफ आवाज उठाने का इससे अच्छा प्लेटफार्म और कोई नहीं हो सकता. इसके चलते अकाली दल का इस मानसून सत्र में स्थगन प्रस्ताव लाने की तैयारी है.

ये भी पढ़ें - अब टूट जाएगा किसान आंदोलन और अपने समर्थकों के साथ रास्ता अलग कर लेंगे गुरनाम चढ़ूनी?

इस सवाल पर कि अकाली पहले भारतीय जनता पार्टी के सहयोगी पार्टी रही है यदि फॉर्म बिल पर सहमति बन जाए तो क्या वापस एनडीए में उनकी पार्टी आ सकती है. इस पर उनका कहना था कि उन्होंने मुद्दों के आधार पर गठबंधन से हटने का फैसला किया था और ऐसा किसानों की समस्या जब तक हल नहीं होती तब तक वह केंद्र सरकार के खिलाफ अपनी लड़ाई जारी रखेंगे.

बता दें कि पिछले साल ही संसद के सत्र में किसानों से संबंधित तीन कानून पास किए गए थे और उसके बाद ही अकाली दल ने एनडीए से अपना नाता तोड़ लिया था. साथ ही धरना-प्रदर्शन कर रहे किसानों का साथ खुल कर देने के लिए वह केंद्र सरकार के खिलाफ सड़कों पर उतरे थे. अगले साल पंजाब में भी चुनाव होने हैं, और पंजाब एक कृषि बहुल क्षेत्र है. किसान बिल का वहां के वोट बैंक पर खासा असर होने की संभावना को देखते हुए सारी पार्टियां अपनी-अपनी राजनीति कर किसानों को अपने हक में करने की कोशिश कर रही हैं.

भाजपा बना रही रणनीति

सूत्रों की माने तो भारतीय जनता पार्टी इस पर भी गहन रणनीति बना रही है और यही वजह है कि मॉनसून सत्र शुरू होने से पहले ही किसान बिल के मसौदे दोबारा अपने मंत्रियों और सांसदों को भेजे गए हैं. पिछले संसद सत्र से पहले भी किसान बिल का विस्तृत ब्योरा इन सांसदों को दिया गया था और इससे संबंधित तमाम बारीकियों को समझाने के लिए पार्टी की तरफ से क्लास भी रखी गई थी. इस बार फिर से भाजपा अपने सांसदों और नए निर्वाचित मंत्रियों को इसके लिए तैयार कर रही है.

Last Updated : Jul 16, 2021, 10:26 PM IST
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