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Alpha Targeted Therapy: दिल्ली एम्स की अल्फा टारगेटेड थेरेपी कैंसर के अंतिम स्टेज में दो साल बढ़ा देगी लाइफ, पढ़ें

दिल्ली एम्स के डॉक्टर के कैंसर के अल्फा टारगेटेड थेरेपी ने अमेरिका और पूरे यूरोप में तहलका मचा दिया है. बताया जा रहा है कि एक्टीनियम आण्विक हमला कर चुन-चुन कर कैंसर सेल्स को मारती है. अंतिम स्टेज के मरीज की लाइफ भी दो साल से अधिक तक बढ़ाई जा सकती है.

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Published : May 25, 2023, 3:39 PM IST

नई दिल्ली : दिल्ली एम्स के डॉक्टरों ने सबसे खतरनाक कैंसर मैटेस्टेटिक गैस्ट्रोइंटेरोपैंक्रिेएटिक कैंसर के प्रभावी इलाज अल्फा थेरेपी पर अध्ययन किया है. जिसके काफी उत्साहजनक परिणाम देखने को मिले हैं. इस कैंसर से पीड़ित मरीजों के टारगेटेडि थेरेपी से अधिक समय तक जीवित रहने की संभावना काफी बढ़ गई है. न्यूक्लियर मेडिसिन विभाग ने बीआर अंबेडकर रोटरी कैंसर अस्पताल में मेडिकल ऑन्कोलॉजी विभाग के सहयोग से मेटास्टैटिक वाले कैंसर के मरीजों के जीवित रहने के परिणामों पर एक महत्वपूर्ण अध्ययन जारी किया है.

टारगेटेड डोटाटेप थेरेपी इस कैंसर से पीड़ित मरीज पर कितना कारगर है इसको लेकर एम्स में आने वाले मरीजों पर इसका अध्ययन किया गया. न्यूक्लियर मेडिसीन विभाग के अध्यक्ष डॉ. सीएस बाल ने अपने विभाग में चार वर्षों के दौरान 91 मरीजों पर स्टडी के बाद इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि मैटेस्टेटिक गैस्ट्रोइंटेरोपैंक्रिएटिक कैंसर से पीड़ित मरीजों की लाइफ 26 महीने तक बढ़ाई जा सकती है. जबकि, आम कीमोथेरेपी और रेडिएशन से केवल 3-4 महीने तक ही मरीज सर्वाइव कर सकता है. डॉ. बाल की यह अनोखी स्टडी जर्नल ऑफ न्यूक्लियर मेडिसीन में पब्लिश होने के बाद पूरे यूरोप में तहलका मचा रहा है.

91 मरीजों पर 4 साल तक किया अध्ययनः डॉ. बाल ने बताया कि उन्होंने टारगेटेड अल्फा थेरेपी पर मार्च 2018 में स्टडी शुरू की थी. इसके लिए उन्होंने मैटेस्टेटिक गैस्ट्रोइंटेरोपैंक्रिएटिक कैंसर से पीड़ित 91 मरीजों को तीन वर्गों में बांट कर स्टडी की. हर ग्रुप में एक तिहाई मरीजों को शामिल किया. पहले ग्रुप के मरीजों को पारंपरागत बीटा थेरेपी दी गई. मरीज की मौत के साथ ही यह प्रयोग फेल हो गया.

न्यूक्लियर मेडिसीन विभाग के अध्यक्ष डॉ. सीएस बाल
न्यूक्लियर मेडिसीन विभाग के अध्यक्ष डॉ. सीएस बाल

दूसरे ग्रुप में न्यूट्रिशियम डोटाटेप दिया, जो उन पर आंशिक रूप से कारगर हुआ. तीसरे ग्रुप में मरीजों को सीधे अल्फा थेरेपी दी गई जो टारगेटे​ड थी. यह टारगेट पर पहुंचकर रेडियो न्यूक्लिाइड टारगेट केवल कैंसर सेल्स को नष्ट करने में सफल रहा. इससे मरीजों का जीवन 26 महीने तक बढ़ाया जा सका है. फरवरी 2023 में यह स्टडी अमेरिका की सबसे प्रतिष्ठित मेडिकल जर्नल जर्नल ऑफ न्यूक्लियर मेडिसीन में पब्लिश हुई.

परंपरागत इलाज से अंतिम स्टेज के मरीज को बचाना मुश्किलः अध्ययन के दौरान डॉ. बाल ने पाया कि गेप-नेट ऐसा ट्यूमर हैं जिसके मेटस्टेस होने पर यानी इसके शरीर के दूसरे अंगों में फैलने के बाद इलाज करना काफी चुनौतीपूर्ण हो सकता है. किसी एक अंग तक सीमित जीईपी-एनईटी (गेप-नेट) के लिए सर्जरी अभी भी इलाज का बेहतर विकल्प है. जब यह कैंसर शरीर के दूसरे अंगों में फैलने लगता है तो ऐसे मरीजों के इलाज के लिए उन्नत वैकल्पिक विकल्पों की आवश्यकता होती है.

पहले के उपचार विकल्पों में शामिल सोमैटोस्टैटिन एनालॉग्स, इंटरफेरॉन, टाइरोसिन किनेज इनहिबिटर, मैमेलियन टारगेट-ऑफ-रैपामाइसिन अवरोधक, पेप्टाइड रिसेप्टर रेडियोन्यूक्लाइड थेरेपी (पीआरआरटी), सिस्टमिक कीमोथेरेपी और लिवर-लक्षित थेरेपी की तुलना में अल्फा टारगेटेड थेरेपी से मरीज की लाइफ को दो साल से अधिक तक बढ़ाई जा सकती है.

ये भी पढ़ें : Heart Attack Research : शोध में वैज्ञानिकों का दावा, हार्ट अटैक होने पर मजबूत पैर वाले मरीजों के लिए खतरा होता है कम

नई दिल्ली : दिल्ली एम्स के डॉक्टरों ने सबसे खतरनाक कैंसर मैटेस्टेटिक गैस्ट्रोइंटेरोपैंक्रिेएटिक कैंसर के प्रभावी इलाज अल्फा थेरेपी पर अध्ययन किया है. जिसके काफी उत्साहजनक परिणाम देखने को मिले हैं. इस कैंसर से पीड़ित मरीजों के टारगेटेडि थेरेपी से अधिक समय तक जीवित रहने की संभावना काफी बढ़ गई है. न्यूक्लियर मेडिसिन विभाग ने बीआर अंबेडकर रोटरी कैंसर अस्पताल में मेडिकल ऑन्कोलॉजी विभाग के सहयोग से मेटास्टैटिक वाले कैंसर के मरीजों के जीवित रहने के परिणामों पर एक महत्वपूर्ण अध्ययन जारी किया है.

टारगेटेड डोटाटेप थेरेपी इस कैंसर से पीड़ित मरीज पर कितना कारगर है इसको लेकर एम्स में आने वाले मरीजों पर इसका अध्ययन किया गया. न्यूक्लियर मेडिसीन विभाग के अध्यक्ष डॉ. सीएस बाल ने अपने विभाग में चार वर्षों के दौरान 91 मरीजों पर स्टडी के बाद इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि मैटेस्टेटिक गैस्ट्रोइंटेरोपैंक्रिएटिक कैंसर से पीड़ित मरीजों की लाइफ 26 महीने तक बढ़ाई जा सकती है. जबकि, आम कीमोथेरेपी और रेडिएशन से केवल 3-4 महीने तक ही मरीज सर्वाइव कर सकता है. डॉ. बाल की यह अनोखी स्टडी जर्नल ऑफ न्यूक्लियर मेडिसीन में पब्लिश होने के बाद पूरे यूरोप में तहलका मचा रहा है.

91 मरीजों पर 4 साल तक किया अध्ययनः डॉ. बाल ने बताया कि उन्होंने टारगेटेड अल्फा थेरेपी पर मार्च 2018 में स्टडी शुरू की थी. इसके लिए उन्होंने मैटेस्टेटिक गैस्ट्रोइंटेरोपैंक्रिएटिक कैंसर से पीड़ित 91 मरीजों को तीन वर्गों में बांट कर स्टडी की. हर ग्रुप में एक तिहाई मरीजों को शामिल किया. पहले ग्रुप के मरीजों को पारंपरागत बीटा थेरेपी दी गई. मरीज की मौत के साथ ही यह प्रयोग फेल हो गया.

न्यूक्लियर मेडिसीन विभाग के अध्यक्ष डॉ. सीएस बाल
न्यूक्लियर मेडिसीन विभाग के अध्यक्ष डॉ. सीएस बाल

दूसरे ग्रुप में न्यूट्रिशियम डोटाटेप दिया, जो उन पर आंशिक रूप से कारगर हुआ. तीसरे ग्रुप में मरीजों को सीधे अल्फा थेरेपी दी गई जो टारगेटे​ड थी. यह टारगेट पर पहुंचकर रेडियो न्यूक्लिाइड टारगेट केवल कैंसर सेल्स को नष्ट करने में सफल रहा. इससे मरीजों का जीवन 26 महीने तक बढ़ाया जा सका है. फरवरी 2023 में यह स्टडी अमेरिका की सबसे प्रतिष्ठित मेडिकल जर्नल जर्नल ऑफ न्यूक्लियर मेडिसीन में पब्लिश हुई.

परंपरागत इलाज से अंतिम स्टेज के मरीज को बचाना मुश्किलः अध्ययन के दौरान डॉ. बाल ने पाया कि गेप-नेट ऐसा ट्यूमर हैं जिसके मेटस्टेस होने पर यानी इसके शरीर के दूसरे अंगों में फैलने के बाद इलाज करना काफी चुनौतीपूर्ण हो सकता है. किसी एक अंग तक सीमित जीईपी-एनईटी (गेप-नेट) के लिए सर्जरी अभी भी इलाज का बेहतर विकल्प है. जब यह कैंसर शरीर के दूसरे अंगों में फैलने लगता है तो ऐसे मरीजों के इलाज के लिए उन्नत वैकल्पिक विकल्पों की आवश्यकता होती है.

पहले के उपचार विकल्पों में शामिल सोमैटोस्टैटिन एनालॉग्स, इंटरफेरॉन, टाइरोसिन किनेज इनहिबिटर, मैमेलियन टारगेट-ऑफ-रैपामाइसिन अवरोधक, पेप्टाइड रिसेप्टर रेडियोन्यूक्लाइड थेरेपी (पीआरआरटी), सिस्टमिक कीमोथेरेपी और लिवर-लक्षित थेरेपी की तुलना में अल्फा टारगेटेड थेरेपी से मरीज की लाइफ को दो साल से अधिक तक बढ़ाई जा सकती है.

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