नई दिल्ली: भले ही भारत इस तथ्य को स्वीकार कर रहा है कि चीन समर्थक उम्मीदवार मोहम्मद मुइज को मालदीव के राष्ट्रपति के रूप में चुना गया है, श्रीलंका ने चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के प्रिय बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) के लिए अपना समर्थन और सहयोग दोहराया है.
बेल्ट एंड रोड फोरम के बाद बीजिंग में श्रीलंकाई राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे और शी जिनपिंग के बीच हुई बैठक के बाद जारी एक संयुक्त बयान में कहा गया है कि दोनों देशों के नेताओं के नेतृत्व और मार्गदर्शन में चीन और श्रीलंका ने बेल्ट एंड रोड सहयोग पर सार्थक परिणाम हासिल किए हैं. बयान में कहा गया है कि 'श्रीलंका ने दोहराया कि वह चीन द्वारा प्रस्तावित बेल्ट एंड रोड पहल में सक्रिय रूप से भाग लेना जारी रखेगा.'
इसमें यह भी कहा गया है कि श्रीलंका अपने आर्थिक विकास में सकारात्मक भूमिका निभाने वाले चीनी उद्यमों और चीनी उद्यमों से अधिक निवेश का स्वागत करता है जिसके लिए वह अनुकूल निवेश और कारोबारी माहौल को बढ़ावा देगा.
'चीन सक्षम चीनी उद्यमों को श्रीलंका में निवेश करने और पारस्परिक रूप से लाभप्रद सहयोग करने के लिए प्रोत्साहित करना जारी रखेगा.' संयुक्त बयान में कहा गया है कि 'कोलंबो पोर्ट सिटी और हंबनटोटा पोर्ट दोनों देशों के बीच बेल्ट एंड रोड सहयोग की हस्ताक्षर परियोजनाएं हैं. श्रीलंका चीनी उद्यमों से आगे के निवेश का स्वागत करता है, आवश्यक विधायी उपायों सहित पोर्ट सिटी में निवेश के लिए अनुकूल माहौल बनाने के लिए तत्परता व्यक्त करता है.'
भारत शुरुआत से ही बीआरआई का विरोध करता रहा है क्योंकि इसके तहत एक प्रमुख परियोजना चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (सीपीईसी) पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर से होकर गुजरती है. और पहले की तरह, नई दिल्ली ने इस सप्ताह की शुरुआत में बीजिंग में आयोजित बेल्ट एंड रोड फोरम का फिर से बहिष्कार किया. भारत और अन्य प्रमुख शक्तियां भी चिंता जताती रही हैं कि बीआरआई में भाग लेने वाले देश कर्ज के जाल में फंसते जा रहे हैं.
एक्सपर्ट का कहना है कि श्रीलंका के लिए चीन को ना कहना मुश्किल है. चीन ने श्रीलंका में बड़ा निवेश किया है. कोलंबो पर चीन का काफी कर्ज बकाया है और बीजिंग उसका फायदा उठा रहा है.
फिर, इस महीने की शुरुआत में चीन ने श्रीलंका की ऋण पुनर्गठन प्रक्रिया का नेतृत्व करने के लिए कदम बढ़ाया, जिससे भारत सहित द्वीप राष्ट्र के अन्य ऋणदाता आश्चर्यचकित हो गए. बीजिंग ने साफ कर दिया है कि वह कोलंबो को अपने होल्ड में रखना चाहता है.
इसके अलावा, नई दिल्ली द्वारा बार-बार चिंता जताए जाने के बावजूद चीन जाहिर तौर पर शोध के लिए श्रीलंकाई जलक्षेत्र में नौसैनिक जहाज भेजता रहता है. भारत इस क्षेत्र को अपने प्रभाव क्षेत्र के अंतर्गत आने वाला मानता है.
इस बीच, मुइज के मालदीव का राष्ट्रपति चुने जाने से भारत को हिंद महासागर क्षेत्र में कूटनीतिक मोर्चे पर दूसरी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है. मुइज चीन समर्थक पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन का शिष्य है. मुइज ने अपना राष्ट्रपति अभियान 'इंडिया आउट' नारे के साथ चलाया था.
'इंडिया आउट' अभियान का उद्देश्य मालदीव में भारत के निवेश, दोनों पक्षों के बीच रक्षा साझेदारी और हिंद महासागर द्वीपसमूह राष्ट्र में भारतीय सुरक्षा कर्मियों की उपस्थिति के बारे में संदेह पैदा करके नफरत फैलाना था.
दरअसल, निर्वाचित राष्ट्रपति बनने के तुरंत बाद मुइज ने नवंबर में पद संभालने के बाद अपने देश से भारतीय सुरक्षा कर्मियों को बाहर करने को अपनी सर्वोच्च प्राथमिकता बनाने की कसम खाई थी. और जैसे ही यह रिपोर्ट दाखिल की जा रही है, ऐसी खबरें आई हैं कि मुइज ने मालदीव के राज्य व्यापार संगठन से एक भारतीय कंपनी के साथ एक फार्मास्युटिकल सौदे को स्थगित करने के लिए कहा है.
हालांकि भारत मालदीव का एक महत्वपूर्ण भागीदार बना हुआ है, नई दिल्ली अपनी स्थिति को लेकर आत्मसंतुष्ट नहीं हो सकता और उसे मालदीव के विकास पर ध्यान देना चाहिए. दक्षिण एशिया और आसपास की समुद्री सीमाओं में क्षेत्रीय सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए भारत को इंडो-पैसिफिक सुरक्षा क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभानी चाहिए.
भारत के पड़ोस में चीन की रणनीतिक पैठ बढ़ी है. मालदीव दक्षिण एशिया में चीन के 'स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स' निर्माण में एक महत्वपूर्ण 'मोती' के रूप में उभरा है. श्रीलंका और मालदीव से उत्पन्न दोहरी चुनौतियों को देखते हुए, नई दिल्ली अपने विकल्पों पर कैसे विचार कर सकती है? 'इसका मतलब है कि हमें तैयार रहना होगा.'
मनोहर पर्रिकर इंस्टीट्यूट ऑफ डिफेंस स्टडीज एंड एनालिसिस के एसोसिएट फेलो और दक्षिण एशिया के विशेषज्ञ आनंद कुमार ने ईटीवी भारत को बताया, 'बदली हुई परिस्थितियों में भारत को सक्रिय कूटनीति की आवश्यकता होगी.' पर्रिकर का मानना है कि मालदीव में नई सरकार के रुख के कारण भारत को बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है.
उन्होंने कहा कि 'हम मालदीव के लिए भारत के महत्व को उजागर करने की कोशिश कर रहे हैं और उम्मीद करते हैं कि वे ऐसा कुछ भी नहीं करेंगे जो दोनों देशों के लिए हानिकारक हो.'
श्रीलंका के मामले में कुमार ने कहा कि चीन के साथ कोलंबो का ऋण पुनर्गठन समझौता इस समझ के साथ आया है कि हिंद महासागर द्वीप राष्ट्र बीआरआई का हिस्सा बना रहेगा और ऐसा कुछ भी नहीं करेगा जिसे बीजिंग द्वारा सकारात्मक रूप से नहीं देखा जाएगा. जहां तक चीनी नौसैनिक जहाजों के श्रीलंकाई जलक्षेत्र में आने का सवाल है, कुमार ने कहा, 'ऐसा लगता है कि श्रीलंका को चीनी जहाजों को पहुंच देते रहना होगा.'