वारंगल (आंध्र प्रदेश) : सोमैया ने शादी के 21 साल बाद 1992 में अपनी पत्नी सुलोचना के साथ संबंध तोड़ लिया. सुलोचना को अपने दो बेटों के साथ खाली हाथ ससुराल से बाहर होना पड़ा. अपनी मां को उसका कानूनी हक दिलाने के लिए सुलोचना के बड़े बेटा सरथ ने संकल्प लिया और 30 साल बाद अपने पिता से मां के लिए गुजारा भत्ता का केस जीता. उन्होंने इसके लिए खास तौर से इसके लिए कानून की पढ़ाई की और खुद केस लड़ा.
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'फेयरी टेल' जैसी कहानी की शुरुआत 1971 में हुई जब सरथ की मां सुलोचना की शादी सोमैया से हुई थी. कुछ ही वर्षों में सुलोचना ने सरथ और राजा रविकिरण को जन्म दिया. समस्या तब सामने आई जब दंपति के बीच अक्सर झगड़े होने लगे. आखिरकार 1992 में उन्होंने अलग होने का फैसला किया. सुलोचना के पास जाने के लिए कोई और जगह नहीं थी. वह कन्नूर में अपने माता-पिता के घर पर रही. बच्चों के भविष्य को लेकर चिंतित, सुलोचना ने अपने तलाकशुदा पति से गुजारा भत्ता की मांग के लिए वारंगल जिला न्यायालय का दरवाजा खटखटाया.
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वर्षों के संघर्ष के बाद अदालत ने 1997 में उसके पक्ष में एक आदेश जारी किया. लेकिन संबंधित वकील सुलोचना से किसी तरह की गलतफहमी के कारण- एक अशिक्षित महिला होने के कारण कानूनी औपचारिकताएं समय पर पूरी करने में विफल रही और वह गुजारा भत्ता से वंचित रह गई. हालांकि, इसके बाद सरथ ने इस अन्याय के खिलाफ लड़ने का फैसला किया. अपने परिवार की देखभाल करने के साथ-साथ उन्होंने न केवल अपनी औपचारिक शिक्षा पूरी की बल्कि अपनी मां का केस लड़ने के लिए कानून की पढ़ाई की.
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अपनी बीमार मां को राहत देने और अपने भाई को बेहतर जीवन देने के लिए सारथ ने खुद वकील बनने का फैसला किया. यह बिलकुल भी आसान नहीं था. अपने मन में सदा अटल धैर्य के साथ, उन्होंने अपार आर्थिक संघर्ष के बावजूद कानून की पढ़ाई की. सरथ ने कानून की पढ़ाई के लिए आवश्यक धन इकट्ठा करने के लिए एक निजी कंपनी में भी काम किया. आखिरकार 2014 में सारथ ने कानून में स्नातक की डिग्री के लिए दाखिला लिया और वर्ष 2019 के अंत तक उत्तीर्ण हुए. वकील के रूप में अभ्यास करने के दो साल बाद, उन्होंने 1992 में अदालत द्वारा पारित पुरानी डिक्री प्राप्त की.
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48 साल के वकील सारथ ने कहा कि मैं उस समय सिर्फ 18 साल का था और इंटर का छात्र था. मेरे ऊपर परिवार की जिम्मेदारी थी. मैंने पॉलिटेक्निक की पढ़ाई की और साथ ही साथ अपने परिवार का भरण-पोषण करने के लिए एक निजी कंपनी में काम किया. मैं अकेले ही केस लड़ना चाहता था. उन्होंने कहा कि यह केवल गुजारा भत्ता का सवाल नहीं था. यह मेरी मां के सम्मान का सवाल था और मैं इसे छोड़ नहीं सकता था.
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सरथ ने अपने 72 वर्षीय पिता से अपनी 62 वर्षीय मां सुलोचना के लिए गुजारा भत्ता की मांग की, लोक अदालत ने 19 सितंबर को सुलोचना और उसके दो बच्चों को 30,000 रुपये प्रति माह गुजारा भत्ता देते हुए विवाद का निपटारा किया. सारथ ने बताया कि मैंने घरेलू हिंसा की याचिका भी दायर की है और 20 लाख के मुआवजे की मांग की है. मुझे पता है कि वह बातचीत के लिए आएंगे. यह एक बहुत बड़ा क्षण है. उन्होंने कहा कि मैं अपनी मां को उचित सम्मान और पहचान दिलाने में सफल रहा हूं. वह बहुत खुश है और यही मेरा इनाम है. इसमें ही मेरी खुशी है.