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Afghan-Taliban crisis : भारत के अरबों डॉलर के निवेश पर संकट, व्यापार पर भी असर - अफगानिस्तान पर नियंत्रण

अफगानिस्तान में तालिबान काबिज हो गया है. भारत तालिबान का पुरजोर विरोध करता आया है ऐसे में उसके साथ संबंध शुरू करना आसान नहीं होगा. अफगानिस्तान में भारत ने काफी निवेश कर रखा है. दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार की बात करें तो ये रकम करीब 1.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर है. इस विशेष रिपोर्ट में जानिए संबंधों पर क्या असर पड़ सकता है.

तालिबान संकट का भारत पर असर
तालिबान संकट का भारत पर असर
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Published : Aug 16, 2021, 7:33 PM IST

Updated : Aug 16, 2021, 7:41 PM IST

हैदराबाद : तालिबान ने अफगानिस्तान पर नियंत्रण कर लिया है ऐसे में भारत के साथ अफगानिस्तान के संबंध कैसे रहेंगे इसको लेकर अटकलें और चर्चाओं का दौर तेज है. अफगानिस्तान के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए भारत ने पिछले हफ्ते ही अपने कंधार वाणिज्य दूतावास को बंद कर वहां से लगभग 50 अधिकारियों और सुरक्षा कर्मियों को निकाल लिया था. 15 अगस्त को उसने विमान से वहां फंसे अपने नागरिकों को भी सुरक्षित निकाल लिया. लेकिन 16 अगस्त को आई रिपोर्टस के मुताबिक वहां करीब 1500 भारतीय फंसे हुए हैं. भारत सरकार ने एअर इंडिया की कुछ फ्लाइट्स को अपने नागरिकों को निकालने के लिए तैयार रखा है.

अफगानिस्तान-तालिबान संकट (Afghan-Taliban Crisis) के बीच केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने कहा है कि अफगानिस्तान में फंसे हिंदुओं और सिखों को निकालने (evacuation of Sikhs and Hindus) का इंतजाम विदेश मंत्रालय (Ministry of External Affairs) करेगा.

दूतावास बंद होने से संबंधों पर पड़ेगा असर
भारत ने कंधार में अपना दूतावास बंद कर दिया है. अप्रैल 2020 के बाद से अस्थायी रूप से बंद होने वाला यह तीसरा वाणिज्य दूतावास था. इससे पहले भारत ने हेरात और जलालाबाद में अपने वाणिज्य दूतावास बंद कर दिए थे. ऐसे में उसे अपने सभी नागरिकों को निकालने में जाहिर तौर पर दिक्कत होगी.

तालिबान से बातचीत नहीं होगी आसान
भारत जिस तरह से राष्ट्रपति गनी का समर्थन और तालिबान का विरोध करता आया है और अब तालिबान के काबिज हो जाने के बाद बातचीत का दौर आसान नहीं होगा. भारत के पास तालिबान के साथ संचार का कोई आधिकारिक चैनल नहीं है. यह 1990 के दशक के दौरान अफगानिस्तान में पहले तालिबान शासन में भी महंगा साबित हुआ था. हालांकि, वाशिंगटन पोस्ट के एक लेख में दावा किया गया है कि भारत तालिबान के साथ किसी स्तर पर बातचीत कर सकता है.

तीन बिलियन डॉलर के निवेश पर संकट
भारत ने 2001 के बाद से अफगानिस्तान में पुनर्निर्माण में करीब 3 बिलियन डॉलर से अधिक का निवेश किया है. संसद भवन, सलमा बांध और जरांज-देलाराम हाईवे प्रोजेक्ट में भारी निवेश किया है. इनके अलावा भारत-ईरान के चाबहार बंदरगाह के विकास का काम कर रहा है. भारत को ईरान के रणनीतिक चाबहार के शाहिद बेहेश्टी क्षेत्र में पांच बर्थ के साथ दो टर्मिनल का निर्माण करना था, जो एक पारगमन गलियारे का हिस्सा होता. यह भारतीय व्यापार की पहुंच को अफगानिस्तान, मध्य एशिया और रूस तक पहुंच प्रदान करता. इस परियोजना में दो टर्मिनल, 600-मीटर कार्गो टर्मिनल और 640-मीटर कंटेनर टर्मिनल शामिल थे. इसके अलावा 628 किलोमीटर लंबी रेलवे लाइन का निर्माण होना था, जो चाबहार को अफगानिस्तान सीमावर्ती शहर जाहेदान से जोड़ती. जानकारों का मानना है कि भारत ने चीन के चाबहार के जवाब में ग्वादर प्रोजेक्ट में निवेश किया था. अब तालिबान के राज में इसके पूरा होने पर संशय है.

पढ़ें- वाणिज्यिक ही नहीं, मानवता के लिहाज से भी महत्वपूर्ण है चाबहार पोर्ट : विदेश मंत्री

1.4 बिलियन डॉलर का द्विपक्षीय व्यापार
भारत-अफगानिस्तान लंबे समय से भागीदार रहे हैं. एक रिपोर्ट के मुताबिक 2020-21 में दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार 1.4 बिलियन अमरीकी डालर था. 2019-20 में व्यापार की बात की जाए तो ये करीब 1.52 बिलियन अमरीकी डालर था. भारत से निर्यात 826 मिलियन अमरीकी डालर था और आयात 2020-21 में 510 मिलियन अमरीकी डालर था.

अफगानिस्तान-भारत के बीच इनका आयात-निर्यात
अफगान भारत को सूखे किशमिश, अखरोट, बादाम, अंजीर, पाइन नट, पिस्ता, सूखे खुबानी, चेरी, तरबूज और औषधीय जड़ी-बूटियों निर्यात करता है जबकि भारत उसे चाय, कॉफी, काली मिर्च और कपास आदि निर्यात करता है.

निर्यातकों का मानना व्यापार होगा प्रभावित
निर्यातकों ने कहा है कि तालिबान के काबुल पर कब्जा करने के साथ इस अनिश्चित समय में अफगानिस्तान और भारत के बीच द्विपक्षीय व्यापार पर काफी असर पड़ेगा. फेडरेशन ऑफ इंडियन एक्सपोर्ट ऑर्गनाइजेशन (फियो) के महानिदेशक अजय सहाय ने कहा कि घरेलू निर्यातकों को अफगानिस्तान में राजनीतिक घटनाक्रम को देखते हुए, विशेष रूप से भुगतान को लेकर सावधानी बरतनी चाहिए, जिसके लिए उनके द्वारा पर्याप्त ऋण बीमा का लाभ उठाया जा सकता है. उन्होंने कहा, 'व्यापार प्रभावित होगा. अफगानिस्तान में बढ़ती अनिश्चितता के कारण इसमें कमी आएगी.'

पढ़ें-Afghan-Taliban Crisis : केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी बोले, हिंदुओं और सिखों को निकालने का इंतजाम करेंगे

फियो के पूर्व अध्यक्ष और देश के प्रमुख निर्यातक एस के सराफ ने भी कहा कि द्विपक्षीय व्यापार में काफी कमी आएगी. सराफ ने कहा, 'हो सकता है कि हम सब कुछ न खोएं क्योंकि उन्हें हमारे उत्पादों की जरूरत है.' फियो के उपाध्यक्ष खालिद खान ने कहा कि व्यापार कुछ समय पूरी तरह से ठप हो सकता है क्योंकि अफगानिस्तान में स्थिति नियंत्रण से बाहर है. अनिश्चितता में कमी होने पर ही व्यापार बहाल होगा.

जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय (जेएनयू) में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर बिस्वजीत धर ने कहा कि अफगानिस्तान को भारत की मदद से वहां घरेलू उत्पादों के बाजार का निर्माण हो रहा था लेकिन मौजूदा स्थिति से 'यह सब रुक जाएगा.'

तालिबान का काबिज होना सिर्फ भारत की चिंता नहीं
अफगानिस्तान में तालिबान की वापसी से चिंतित होने वाला भारत अकेला देश नहीं है. पाकिस्तान, जिसे पाकिस्तान सेना की इंटर-स्टेट इंटेलिजेंस (आईएसआई) के माध्यम से अफगानिस्तान में तालिबान के मामलों में गहराई से शामिल माना जाता है के लिए भी तालिबान आने वाले समय में खतरा बनेगा. जहां तक चीन की बात है तो ड्रैगन अपने अशांत शिनजियांग प्रांत के माध्यम से अफगानिस्तान के साथ छोटी सीमा रेखा साझा करता है. ऐसी खबरें आई हैं कि तालिबान चीनी कम्युनिस्ट शासन का विरोध करने वाले उइगर मुस्लिम समूहों के प्रति सहानुभूति रखता है. ऐसे में चीन को डर है कि तालिबान पूर्वी तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट (ETIM) की मदद कर सकता है.

पढ़ें- जानिए कौन हैं तालिबान लड़ाकों के आका, कैसे अरबों डॉलर कमाते हैं तालिबानी
पढ़ें- अफगानिस्तान : काबुल एयरपोर्ट पर हालात बेकाबू, भारत का विशेष विमान पहुंचा काबुल

हैदराबाद : तालिबान ने अफगानिस्तान पर नियंत्रण कर लिया है ऐसे में भारत के साथ अफगानिस्तान के संबंध कैसे रहेंगे इसको लेकर अटकलें और चर्चाओं का दौर तेज है. अफगानिस्तान के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए भारत ने पिछले हफ्ते ही अपने कंधार वाणिज्य दूतावास को बंद कर वहां से लगभग 50 अधिकारियों और सुरक्षा कर्मियों को निकाल लिया था. 15 अगस्त को उसने विमान से वहां फंसे अपने नागरिकों को भी सुरक्षित निकाल लिया. लेकिन 16 अगस्त को आई रिपोर्टस के मुताबिक वहां करीब 1500 भारतीय फंसे हुए हैं. भारत सरकार ने एअर इंडिया की कुछ फ्लाइट्स को अपने नागरिकों को निकालने के लिए तैयार रखा है.

अफगानिस्तान-तालिबान संकट (Afghan-Taliban Crisis) के बीच केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने कहा है कि अफगानिस्तान में फंसे हिंदुओं और सिखों को निकालने (evacuation of Sikhs and Hindus) का इंतजाम विदेश मंत्रालय (Ministry of External Affairs) करेगा.

दूतावास बंद होने से संबंधों पर पड़ेगा असर
भारत ने कंधार में अपना दूतावास बंद कर दिया है. अप्रैल 2020 के बाद से अस्थायी रूप से बंद होने वाला यह तीसरा वाणिज्य दूतावास था. इससे पहले भारत ने हेरात और जलालाबाद में अपने वाणिज्य दूतावास बंद कर दिए थे. ऐसे में उसे अपने सभी नागरिकों को निकालने में जाहिर तौर पर दिक्कत होगी.

तालिबान से बातचीत नहीं होगी आसान
भारत जिस तरह से राष्ट्रपति गनी का समर्थन और तालिबान का विरोध करता आया है और अब तालिबान के काबिज हो जाने के बाद बातचीत का दौर आसान नहीं होगा. भारत के पास तालिबान के साथ संचार का कोई आधिकारिक चैनल नहीं है. यह 1990 के दशक के दौरान अफगानिस्तान में पहले तालिबान शासन में भी महंगा साबित हुआ था. हालांकि, वाशिंगटन पोस्ट के एक लेख में दावा किया गया है कि भारत तालिबान के साथ किसी स्तर पर बातचीत कर सकता है.

तीन बिलियन डॉलर के निवेश पर संकट
भारत ने 2001 के बाद से अफगानिस्तान में पुनर्निर्माण में करीब 3 बिलियन डॉलर से अधिक का निवेश किया है. संसद भवन, सलमा बांध और जरांज-देलाराम हाईवे प्रोजेक्ट में भारी निवेश किया है. इनके अलावा भारत-ईरान के चाबहार बंदरगाह के विकास का काम कर रहा है. भारत को ईरान के रणनीतिक चाबहार के शाहिद बेहेश्टी क्षेत्र में पांच बर्थ के साथ दो टर्मिनल का निर्माण करना था, जो एक पारगमन गलियारे का हिस्सा होता. यह भारतीय व्यापार की पहुंच को अफगानिस्तान, मध्य एशिया और रूस तक पहुंच प्रदान करता. इस परियोजना में दो टर्मिनल, 600-मीटर कार्गो टर्मिनल और 640-मीटर कंटेनर टर्मिनल शामिल थे. इसके अलावा 628 किलोमीटर लंबी रेलवे लाइन का निर्माण होना था, जो चाबहार को अफगानिस्तान सीमावर्ती शहर जाहेदान से जोड़ती. जानकारों का मानना है कि भारत ने चीन के चाबहार के जवाब में ग्वादर प्रोजेक्ट में निवेश किया था. अब तालिबान के राज में इसके पूरा होने पर संशय है.

पढ़ें- वाणिज्यिक ही नहीं, मानवता के लिहाज से भी महत्वपूर्ण है चाबहार पोर्ट : विदेश मंत्री

1.4 बिलियन डॉलर का द्विपक्षीय व्यापार
भारत-अफगानिस्तान लंबे समय से भागीदार रहे हैं. एक रिपोर्ट के मुताबिक 2020-21 में दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार 1.4 बिलियन अमरीकी डालर था. 2019-20 में व्यापार की बात की जाए तो ये करीब 1.52 बिलियन अमरीकी डालर था. भारत से निर्यात 826 मिलियन अमरीकी डालर था और आयात 2020-21 में 510 मिलियन अमरीकी डालर था.

अफगानिस्तान-भारत के बीच इनका आयात-निर्यात
अफगान भारत को सूखे किशमिश, अखरोट, बादाम, अंजीर, पाइन नट, पिस्ता, सूखे खुबानी, चेरी, तरबूज और औषधीय जड़ी-बूटियों निर्यात करता है जबकि भारत उसे चाय, कॉफी, काली मिर्च और कपास आदि निर्यात करता है.

निर्यातकों का मानना व्यापार होगा प्रभावित
निर्यातकों ने कहा है कि तालिबान के काबुल पर कब्जा करने के साथ इस अनिश्चित समय में अफगानिस्तान और भारत के बीच द्विपक्षीय व्यापार पर काफी असर पड़ेगा. फेडरेशन ऑफ इंडियन एक्सपोर्ट ऑर्गनाइजेशन (फियो) के महानिदेशक अजय सहाय ने कहा कि घरेलू निर्यातकों को अफगानिस्तान में राजनीतिक घटनाक्रम को देखते हुए, विशेष रूप से भुगतान को लेकर सावधानी बरतनी चाहिए, जिसके लिए उनके द्वारा पर्याप्त ऋण बीमा का लाभ उठाया जा सकता है. उन्होंने कहा, 'व्यापार प्रभावित होगा. अफगानिस्तान में बढ़ती अनिश्चितता के कारण इसमें कमी आएगी.'

पढ़ें-Afghan-Taliban Crisis : केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी बोले, हिंदुओं और सिखों को निकालने का इंतजाम करेंगे

फियो के पूर्व अध्यक्ष और देश के प्रमुख निर्यातक एस के सराफ ने भी कहा कि द्विपक्षीय व्यापार में काफी कमी आएगी. सराफ ने कहा, 'हो सकता है कि हम सब कुछ न खोएं क्योंकि उन्हें हमारे उत्पादों की जरूरत है.' फियो के उपाध्यक्ष खालिद खान ने कहा कि व्यापार कुछ समय पूरी तरह से ठप हो सकता है क्योंकि अफगानिस्तान में स्थिति नियंत्रण से बाहर है. अनिश्चितता में कमी होने पर ही व्यापार बहाल होगा.

जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय (जेएनयू) में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर बिस्वजीत धर ने कहा कि अफगानिस्तान को भारत की मदद से वहां घरेलू उत्पादों के बाजार का निर्माण हो रहा था लेकिन मौजूदा स्थिति से 'यह सब रुक जाएगा.'

तालिबान का काबिज होना सिर्फ भारत की चिंता नहीं
अफगानिस्तान में तालिबान की वापसी से चिंतित होने वाला भारत अकेला देश नहीं है. पाकिस्तान, जिसे पाकिस्तान सेना की इंटर-स्टेट इंटेलिजेंस (आईएसआई) के माध्यम से अफगानिस्तान में तालिबान के मामलों में गहराई से शामिल माना जाता है के लिए भी तालिबान आने वाले समय में खतरा बनेगा. जहां तक चीन की बात है तो ड्रैगन अपने अशांत शिनजियांग प्रांत के माध्यम से अफगानिस्तान के साथ छोटी सीमा रेखा साझा करता है. ऐसी खबरें आई हैं कि तालिबान चीनी कम्युनिस्ट शासन का विरोध करने वाले उइगर मुस्लिम समूहों के प्रति सहानुभूति रखता है. ऐसे में चीन को डर है कि तालिबान पूर्वी तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट (ETIM) की मदद कर सकता है.

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Last Updated : Aug 16, 2021, 7:41 PM IST
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