नई दिल्ली: कांग्रेस पार्टी की नेता डॉ जया ठाकुर ने सर्वोच्च न्यायालय में एक और रिट याचिका दायर की है, जिसमें अडाणी समूह द्वारा अपने शेयरों की कीमतों में हेरफेर करने के लिए उसके खिलाफ जारी की गई हिडेनबर्ग रिपोर्ट के मद्देनजर जांच की मांग की गई है. याचिका में शीर्ष अदालत की निगरानी में विभिन्न जांच एजेंसियों यानी सीबीआई, ईडी, सेबी, आरबीआई आदि द्वारा सार्वजनिक धन और सरकारी खजाने के धन की ठगी के लिए अडाणी समूह के खिलाफ जांच की मांग की गई है.
इस याचिका में 3,200 रुपये प्रति शेयर की दर से अडाणी उद्यमों के एफपीओ में निवेश करने के लिए एलआईसी और एसबीआई की भूमिका की जांच करने के लिए जांच एजेंसियों को निर्देश देने की भी मांग की गई है, जबकि द्वितीयक बाजार में शेयरों की मौजूदा बाजार दर 1,800 रुपये प्रति शेयर थी. याचिकाकर्ता ने तर्क दिया है कि एलआईसी और एसबीआई अडाणी समूह में निवेश करके आम लोगों और निवेशकों के प्रति अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने में विफल रहे हैं.
अडाणी के खिलाफ मामले की जांच की मांग को लेकर शीर्ष अदालत में दो जनहित याचिकाएं (पीआईएल) लंबित हैं. मामले की पहली सुनवाई के दौरान, भारत के मुख्य न्यायाधीश, डी वाई चंद्रचूड़, के नेतृत्व वाली पीठ ने भारतीय निवेशकों के लाखों और करोड़ों रुपये खोने पर चिंता व्यक्त की थी और ऐसे मामलों से निपटने के लिए नियमों के मौजूदा ढांचे के बारे में पूछताछ की थी.
मुख्य न्यायाधीश ने कहा था कि सेबी, सरकार और यदि आवश्यक हो तो वित्त मंत्रालय से परामर्श किया जाना चाहिए और अदालत को सूचित किया जाना चाहिए कि भारतीय निवेशकों की सुरक्षा के लिए भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए क्या किया जा सकता है. अदालत ने नियामक ढांचे की समीक्षा के लिए एक पूर्व न्यायाधीश की देखरेख में वित्त विशेषज्ञों की एक समिति के गठन का भी सुझाव दिया था.
अदालत ने कहा था कि वह पॉलिसी डोमेन में प्रवेश नहीं करना चाहती है या सेबी पर कोई संदेह नहीं कर रही है, लेकिन यह सुनिश्चित करना चाहती है कि इस तरह के मामलों से निपटने के लिए एक व्यवस्था हो ताकि भविष्य में कुछ भी न हो. पिछली सुनवाई के दौरान भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट को सूचित किया था कि सरकार ने एक समिति गठित करने में कोई आपत्ति नहीं थी, लेकिन समिति के दायरे को परिभाषित करना चाहेगी ताकि अंतरराष्ट्रीय निवेशकों या घरेलू निवेशकों को यह महसूस न हो कि मौजूदा नियामक ढांचे में कोई कमी है.
उन्होंने कहा था कि सरकार समिति के सदस्यों के नाम सीलबंद लिफाफे में सौंपना चाहेगी. अदालत ने तब एसजी मेहता को 15 फरवरी तक समिति के रेमिट के संबंध में एक नोट जमा करने के लिए कहा था और मामले को 17 फरवरी को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया था.