हरिद्वार: राजनीतिक मंचों से भले ही हिंदू-मुस्लिम के नाम पर एक दूसरे के खिलाफ कट्टरता फैलाई जाती हो, लेकिन भारत की असली पहचान अनेकता में एकता से ही है. यहां हर धर्म का व्यक्ति दूसरे धर्म का सम्मान करता है और उनके पर्वों-त्योहारों पर साथ खड़ा रहता है. ऐसी ही कुछ इनदिनों धर्मनगरी हरिद्वार में हो रहा है.
सावन आते ही भगवान भोलेनाथ के प्रिय भक्तों का कांवड़ मेला शुरू हो जाता है. देशभर से आए कांवडिए शिव जयकारों के साथ मां गंगा के आंचल से जल भरकर अपने कांवड़ों पर लेकर जाते हैं. ऊं नम: शिवाय जाप के साथ पूरी देवनगरी को भोलेमय बनाने वाले ये कांवडिए अपने कंधों पर जिन कांवड़ को धारण करते हैं, उनको बनाने का काम यहां हरिद्वार में मुस्लिम समुदाय के लोग कर रहे हैं.
हिंदुओं की सबसे बड़ी कांवड़ यात्रा के लिए भले ही कांवड़िए सावन शुरू होने से कुछ दिन पहले तैयारी करते हों, लेकिन मुस्लिम समाज के ये लोग इस यात्रा के लिए महीनों पहले से तैयारी करने लगते हैं. मुस्लिम समाज के द्वारा बनाई गई कांवड़ को ही लेकर कांवड़िए गंगा जल भरते हैं और बम भोले के जयघोष के साथ रवाना होते हैं.
हरिद्वार में आगामी 14 जुलाई से विश्व प्रसिद्ध कांवड़ मेला शुरू होने जा रहा है. कांवड़ का यह मेला देश ही नहीं बल्कि दुनिया को हिंदू-मुस्लिम एकता भाईचारे और सौहार्द का भी संदेश देता है. मेले के दौरान शिवभक्त कांवडियों की कांवड़ को मेले से पहले भारी संख्या में मुस्लिम समाज तैयार कर रहा है. यहां मुस्लिम परिवार के बच्चों को कांवड़ बनाने का हुनर विरासत में मिलता है. कांवड़ बनाने के काम में परिवार के बुजुर्ग से लेकर महिलाएं और बच्चे भी महीनों पहले से दिन रात काम करते हैं. कांवड़ियों के कंधों पर आप जिस कांवड़ को देखते हैं, उनको बड़ी संख्या में मुस्लिम समाज के लोग बनाकर बेचते हैं. पिछले कई दशकों से ये मुस्लिम परिवार ही हरिद्वार में कांवड़ बना रहे हैं.
बीस साल से बनाते आ रहे कांवड़: बीते 20 सालों से कांवड़ बनाने का काम कर रहे फरमान का कहना है कि, हरिद्वार में सबसे ज्यादा कांवड़ उत्तर प्रदेश की तरफ से आती हैं. जब वहां के मुख्यमंत्री योगी का बयान आया कि इस बार कांवड़ यात्रा चलेगी तो उन्हें काफी राहत महसूस हुई, जिसके बाद वो अपने परिवार के साथ कांवड़ बनाने में जुट गए. कांवड़ बनाने वाले लोगों का मानना है कि इस बार 4 महीने देर से कांवड़ शुरू होने का पता चला, जिसके चलते अब उनको दिन रात मेहनत कर कांवड़ बनानी पड़ रही है.
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बच्चों से लेकर बुजुर्ग तक बना रहे कांवड़: कांवड़ बनाने वाले इन परिवारों में बच्चा बड़ा होते ही किसी न किसी रूप में कांवड़ बनाने से जुड़ जाता है. यही कारण है कि जब वह बड़ा होता है, तो वह एक अच्छा कांवड़ निर्माता बन चुका होता है.
इस बार कांवड़ की डिमांड अच्छी: दो साल से कोरोना की मार का असर अन्य व्यवसायों के साथ कांवड़ व्यवसाय पर भी काफी गहरा पड़ा है, लेकिन इस बार इस धंधे से जुड़े मुस्लिम समाज के लोगों को न केवल इस विश्व प्रसिद्ध मेले से बड़ी आस है, बल्कि वह मानते हैं कि इस बार कांवड़ की डिमांड भी बीते सालों की तुलना में काफी अधिक बढ़ी है.
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महंगी हो गई लागत: 3 साल पहले हरिद्वार में बिकी कांवड़ के दामों में अब लगभग ढाई गुना की बढ़ोतरी हो गई है. जो कांवड़ 3 साल पहले ₹500 की मिलती थी, वह अब बढ़कर ₹1250 पहुंच गई है. कांवड़ की बढ़ी कीमत का इसी बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि कांवड़ बनाने में उपयोग होने वाला जो कपड़ा ₹2 का आया करता था वह भी अब बढ़कर ₹5 हो गया है. इसी तरह बांस, खिलौने एवं माला आदि सामान की कीमत भी ढाई गुना तक बढ़ गई है.
करीब साढ़े चार सौ परिवार बनाते हैं कांवड़: वैसे तो कांवड़ उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, दिल्ली सहित कई राज्यों में तैयार होती है और बिकने के लिए हरिद्वार आती है. लेकिन हरिद्वार में ज्वालापुर क्षेत्र में करीब साढ़े चार सौ ऐसे मुस्लिम परिवार हैं, जो कांवड़ के कारोबार से जुड़े हुए हैं. इन परिवारों के बच्चों से लेकर बुजुर्ग तक लगभग पूरे साल ही कांवड़ तैयार करने का काम करते हैं.
सराहते हैं आम लोग: हरिद्वार में कांवड़ मेले के माध्यम से मिल रही गंगा-जमुनी तहजीब की मिसाल की आम जनता भी सराहना करती है. ज्वालापुर के रहने वाले रंजन पालीवाल का कहना है कि ये लोग न केवल हिंदुओं की कांवड़ महीनों की मेहनत से तैयार करते हैं, बल्कि कांवड़ियों की यात्रा के दौरान उनके लिए खाने पीने की भी पूरी लगन से व्यवस्था करते हैं. हरिद्वार का यह मुस्लिम परिवार पूरे देश को हिंदू-मुस्लिम एकता का संदेश देता है और इनसे सभी को सीखने की जरूरत है.