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ग्रामीण इलाकों में 37 प्रतिशत, शहरी इलाकों में 19 प्रतिशत बच्चे बिल्कुल नहीं पढ़ रहे : सर्वेक्षण - survey on students

एक सर्वेक्षण में दावा किया गया है कि 37 प्रतिशत ग्रामीण विद्यार्थी बिल्कुल पढ़ाई नहीं कर रहे हैं और 48 फीसदी बच्चों को पढ़ाई के नाम पर कुछ शब्दों के अलावा कुछ नहीं आता है. यह सर्वेक्षण 15 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के वंचित परिवारों से आने वाले करीब 1400 स्कूली बच्चों पर अगस्त महीने के दौरान किया गया. विस्तार से पढ़ें पूरी खबर..

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Published : Sep 8, 2021, 2:15 AM IST

नई दिल्ली : कोविड-19 की वजह से लंबे समय तक स्कूलों को बंद रखने का 'विनाशकारी प्रभाव' पड़ा है. एक हालिया सर्वेक्षण में दावा किया गया है कि 37 प्रतिशत ग्रामीण विद्यार्थी बिल्कुल पढ़ाई नहीं कर रहे हैं और 48 फीसदी बच्चों को पढ़ाई के नाम पर कुछ शब्दों के अलावा कुछ नहीं आता है.

दि स्कूल चिल्ड्रेन्स ऑनलाइन एंड ऑफलाइन लर्निंग' (एससीएचओओएल) सर्वे ने 'लॉक्ड आउट: इमरजेंसी रिपोर्ट ऑन स्कूल एजुकेशन' शीर्षक से सर्वेक्षण के नतीजों को जारी किया है. यह सर्वेक्षण 15 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के वंचित परिवारों से आने वाले करीब 1400 स्कूली बच्चों पर अगस्त महीने के दौरान किया गया.

इसमें कहा गया है, 'इस सर्वेक्षण से जो तस्वीर सामने आई है वह घोर निराशाजनक है. सर्वेक्षण के समय ग्रामीण इलाकों में केवल 28 प्रतिशत बच्चे ही नियमित तौर पर पढ़ाई कर रहे थे जबकि 37 प्रतिशत बच्चे बिल्कुल पढ़ नहीं रहे हैं. सामान्य पढ़ाई की क्षमता को लेकर सर्वेक्षण के नतीजे आगाह करने वाले है क्योंकि इसमें शामिल करीब आधे बच्चे कुछ शब्दों के अलावा कुछ भी नहीं पढ़ पा रहे थे.'

सर्वेक्षण में दावा किया गया है कि शहरी इलाकों में नियमित तौर पर पढ़ाई करने वाले, बिल्कुल पढ़ाई नहीं करने वाले और कुछ शब्दों से अधिक न पढ़ पाने वाले बच्चों का प्रतिशत क्रमश: 47 प्रतिशत, 19 प्रतिशत और 42 प्रतिशत है.एससीएचओओएल ने बताया कि उसका सर्वेक्षण वंचित बस्तियों पर केंद्रित था जहां पर रहने वाले बच्चे आम तौर पर सरकारी स्कूलों में पढ़ने जाते हैं.

सर्वेक्षण के मुताबिक नियमित रूप से ऑनलाइन कक्षा में भाग लेने वाले विद्यार्थियों का अनुपात शहरी और ग्रामीण इलाकों में क्रमश: 24 और आठ प्रतिशत है. सर्वेक्षण में रेखांकित किया गया कि पैसे की कमी, खराब कनेक्टिविटी या स्मार्टफोन की अनुलब्धता विद्यार्थियों तक ऑनलाइन शिक्षा की सीमित पहुंच के कुछ कारण रहे.

यह भी पढ़ें- वैश्विक समुदाय को सुनिश्चित करना चाहिए कि दुनिया के सभी देशों में वैक्सीन पहुंचे : लोक सभा अध्यक्ष

एससीएचओओएल सर्वे ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि इसके लिए एक कारण अध्ययन में शामिल परिवारों (ग्रामीण इलाकों में आधे) के पास स्मार्टफोन की अनुपलब्धता है. लेकिन यह महज पहली बाधा है क्योंकि जिन परिवारों के पास स्मार्टफोन है उनमें भी नियमित रूप से ऑनलाइन अध्ययन करने वाले विद्यार्थियों का अनुपात कम है. शहरी इलाकों में यह अनुपात 31 प्रतिशत और ग्रामीण इलाकों में यह 15 प्रतिशत रहा. स्मार्टफोन का अक्सर इस्तेमाल परिवार में काम करने वाला वयस्क करता है और यह बच्चों के लिए उपलब्ध नहीं हो पाता, खासतौर पर दो या उससे अधिक बच्चे होने पर परिवार के छोटे सदस्य को.

सर्वेक्षण के मुताबिक वंचित परिवारों में भी दलित और आदिवासी परिवारों की स्थिति अधिक खराब है. उदाहरण के लिए ग्रामीण इलाकों में अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के परिवारों के केवल चार प्रतिशत बच्चे ही नियमित तौर पर ऑनलाइन पढ़ाई करते हैं जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में अन्य विद्यार्थियों की संख्या 15 प्रतिशत है. इनमें से करीब आधे बच्चे कुछ शब्दों के अलावा कुछ भी नहीं पढ़ सकते.

सर्वेक्षण के मुताबिक, अधिकतर अभिभावकों का मानना है कि उनके बच्चे की पढ़ने और लिखने की क्षमता लॉकडाउन के दौरान कम हुई है. यहां तक कि 65 प्रतिशत शहरी अभिभावक भी ऐसा मानते हैं. इसके उलट केवल चार प्रतिशत अभिभावक मानते हैं कि उनके बच्चों की क्षमता सुधरी है.

ग्रामीण इलाकों में रहने वाले अजा/अजजा अभिभावकों में से 98 प्रतिशत चाहते हैं कि स्कूलों को यथाशीघ्र खोला जाना चाहिए.

गौरतलब है कि जिन राज्य के परिवारों को सर्वेक्षण में शामिल किया गया उनमें असम, बिहार, दिल्ली, हरियाणा, झारखंड, महाराष्ट्र, पंजाब, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल शामिल हैं. करीब 100 स्वयंसेवकों ने सर्वेक्षण का कार्य किया और रिपोर्ट समन्वय समिति ने तैयार की जिसमें अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज और निराली बाखला जैसी हस्तियां शामिल थीं.

(पीटीआई भाषा)

नई दिल्ली : कोविड-19 की वजह से लंबे समय तक स्कूलों को बंद रखने का 'विनाशकारी प्रभाव' पड़ा है. एक हालिया सर्वेक्षण में दावा किया गया है कि 37 प्रतिशत ग्रामीण विद्यार्थी बिल्कुल पढ़ाई नहीं कर रहे हैं और 48 फीसदी बच्चों को पढ़ाई के नाम पर कुछ शब्दों के अलावा कुछ नहीं आता है.

दि स्कूल चिल्ड्रेन्स ऑनलाइन एंड ऑफलाइन लर्निंग' (एससीएचओओएल) सर्वे ने 'लॉक्ड आउट: इमरजेंसी रिपोर्ट ऑन स्कूल एजुकेशन' शीर्षक से सर्वेक्षण के नतीजों को जारी किया है. यह सर्वेक्षण 15 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के वंचित परिवारों से आने वाले करीब 1400 स्कूली बच्चों पर अगस्त महीने के दौरान किया गया.

इसमें कहा गया है, 'इस सर्वेक्षण से जो तस्वीर सामने आई है वह घोर निराशाजनक है. सर्वेक्षण के समय ग्रामीण इलाकों में केवल 28 प्रतिशत बच्चे ही नियमित तौर पर पढ़ाई कर रहे थे जबकि 37 प्रतिशत बच्चे बिल्कुल पढ़ नहीं रहे हैं. सामान्य पढ़ाई की क्षमता को लेकर सर्वेक्षण के नतीजे आगाह करने वाले है क्योंकि इसमें शामिल करीब आधे बच्चे कुछ शब्दों के अलावा कुछ भी नहीं पढ़ पा रहे थे.'

सर्वेक्षण में दावा किया गया है कि शहरी इलाकों में नियमित तौर पर पढ़ाई करने वाले, बिल्कुल पढ़ाई नहीं करने वाले और कुछ शब्दों से अधिक न पढ़ पाने वाले बच्चों का प्रतिशत क्रमश: 47 प्रतिशत, 19 प्रतिशत और 42 प्रतिशत है.एससीएचओओएल ने बताया कि उसका सर्वेक्षण वंचित बस्तियों पर केंद्रित था जहां पर रहने वाले बच्चे आम तौर पर सरकारी स्कूलों में पढ़ने जाते हैं.

सर्वेक्षण के मुताबिक नियमित रूप से ऑनलाइन कक्षा में भाग लेने वाले विद्यार्थियों का अनुपात शहरी और ग्रामीण इलाकों में क्रमश: 24 और आठ प्रतिशत है. सर्वेक्षण में रेखांकित किया गया कि पैसे की कमी, खराब कनेक्टिविटी या स्मार्टफोन की अनुलब्धता विद्यार्थियों तक ऑनलाइन शिक्षा की सीमित पहुंच के कुछ कारण रहे.

यह भी पढ़ें- वैश्विक समुदाय को सुनिश्चित करना चाहिए कि दुनिया के सभी देशों में वैक्सीन पहुंचे : लोक सभा अध्यक्ष

एससीएचओओएल सर्वे ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि इसके लिए एक कारण अध्ययन में शामिल परिवारों (ग्रामीण इलाकों में आधे) के पास स्मार्टफोन की अनुपलब्धता है. लेकिन यह महज पहली बाधा है क्योंकि जिन परिवारों के पास स्मार्टफोन है उनमें भी नियमित रूप से ऑनलाइन अध्ययन करने वाले विद्यार्थियों का अनुपात कम है. शहरी इलाकों में यह अनुपात 31 प्रतिशत और ग्रामीण इलाकों में यह 15 प्रतिशत रहा. स्मार्टफोन का अक्सर इस्तेमाल परिवार में काम करने वाला वयस्क करता है और यह बच्चों के लिए उपलब्ध नहीं हो पाता, खासतौर पर दो या उससे अधिक बच्चे होने पर परिवार के छोटे सदस्य को.

सर्वेक्षण के मुताबिक वंचित परिवारों में भी दलित और आदिवासी परिवारों की स्थिति अधिक खराब है. उदाहरण के लिए ग्रामीण इलाकों में अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के परिवारों के केवल चार प्रतिशत बच्चे ही नियमित तौर पर ऑनलाइन पढ़ाई करते हैं जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में अन्य विद्यार्थियों की संख्या 15 प्रतिशत है. इनमें से करीब आधे बच्चे कुछ शब्दों के अलावा कुछ भी नहीं पढ़ सकते.

सर्वेक्षण के मुताबिक, अधिकतर अभिभावकों का मानना है कि उनके बच्चे की पढ़ने और लिखने की क्षमता लॉकडाउन के दौरान कम हुई है. यहां तक कि 65 प्रतिशत शहरी अभिभावक भी ऐसा मानते हैं. इसके उलट केवल चार प्रतिशत अभिभावक मानते हैं कि उनके बच्चों की क्षमता सुधरी है.

ग्रामीण इलाकों में रहने वाले अजा/अजजा अभिभावकों में से 98 प्रतिशत चाहते हैं कि स्कूलों को यथाशीघ्र खोला जाना चाहिए.

गौरतलब है कि जिन राज्य के परिवारों को सर्वेक्षण में शामिल किया गया उनमें असम, बिहार, दिल्ली, हरियाणा, झारखंड, महाराष्ट्र, पंजाब, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल शामिल हैं. करीब 100 स्वयंसेवकों ने सर्वेक्षण का कार्य किया और रिपोर्ट समन्वय समिति ने तैयार की जिसमें अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज और निराली बाखला जैसी हस्तियां शामिल थीं.

(पीटीआई भाषा)

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