कोटा. मेडिकल और इंजीनियरिंग एंट्रेंस एग्जाम क्रैक करने और तैयारी लिए कोटा शिक्षा की काशी बन गया है. यहां पर देशभर से बच्चे आते हैं. ऐसे में इसे 'लघु भारत' भी कहा जाता है. बात सेलेक्शन की हो तो यहां पढ़ने वाला हर तीसरा बच्चा मेडिकल और इंजीनियरिंग की सीट (Kota medical and engineering coaching) पर कब्जा जमाता है. देशभर में अन्य जगह पढ़ने वाले बच्चों से यह प्रतिशत काफी ज्यादा है.
देश में टॉप पर होने के चलते ही यहां पर विद्यार्थियों की संख्या (students increasing in kota coachings) लगातार बढ़ रही है. लेकिन यह आंकड़ा भी काफी बड़ा है. कोटा का (student selection rate of kota coachings) सक्सेज रेट करीब 30 फ़ीसदी है. जबकि पूरे भारत में परीक्षा देने वाले बच्चों की बात की जाए, तो वहां यह आंकड़ा 4 फ़ीसदी ही रह पाता है. मेडिकल प्रवेश परीक्षा के जरिए करीब 30000 विद्यार्थी सरकारी और निजी कॉलेजों में सीट प्राप्त कर लेते हैं. इसी तरह से जेईई एडवांस्ड के जरिए आईआईटी में भी यहां से 6000 विद्यार्थी सेलेक्ट हो जाते हैं. जबकि जेईई मेन के जरिए एनआईटी प्लस सिस्टम की 9000 सीटों पर कोटा के जरिए ही विद्यार्थी कब्जा जमाते हैं.
कोटा की तरह ही कई बड़े शहरों में भी कोचिंग संस्थान खुले हैं. लेकिन इस तरह की सुविधा विद्यार्थियों को नहीं मिलती है. एलन कोचिंग के निदेशक डॉ. बृजेश माहेश्वरी का मानना है कि कोटा का एक पूरा इकोसिस्टम है, जिसमें एकेडमिक के अलावा बच्चे को हर जरूरत उपलब्ध हो रही है. उसे एक डेडीकेशन के साथ पढ़ने के लिए मौका मिलता है. देशभर के टैलेंटेड बच्चे यहां पर आते हैं जिनमें आपस में ही कंपटीशन होता है. इससे खुद की पढ़ाई में काफी निखार आता है. उन्होंने कहा कि यह कोचिंग सिटी ही नहीं, केयर सिटी भी है. यहां हॉस्टल और पेइंग गेस्ट मालिक बच्चों की सुविधाओं का ध्यान रखते हैं. फैकल्टी मेंटर की भूमिका निभाते हैं. बच्चों को हॉस्टल के पास ही जरूरत का हर सामान मिल जाता है, ताकि उनका समय खराब न हो. माउथ पब्लिसिटी के कारण कोटा में हर साल कोचिंग के लिए आने वाले बच्चों की तादाद बढ़ रही है.
कोटा का सफलता प्रतिशत 30, शेष भारत का सिर्फ चार प्रतिशत: कोटा व शेष भारत के स्टूडेंट्स के सलेक्शन की बात की जाए तो कोटा से 30 फीसदी मेडिकल परीक्षा में सफल होते हैं. जबकि शेष भारत का यह आंकड़ा 3 से 4 फीसदी के आसपास है. कोटा से एक लाख बच्चे मेडिकल प्रवेश परीक्षा नीट यूजी की तैयारी करते हैं. इनमें से 80 हजार से ज्यादा बच्चे काउंसलिंग के लिए एलिजिबल हो जाते हैं. जबकि इनमें से करीब 30 हजार बच्चे सरकारी या निजी मेडिकल सीट प्राप्त कर लेते हैं. जबकि शेष भारत से करीब 16 लाख बच्चों में महज 67 हजार सीटों पर प्रवेश ले पाते हैं. इसीलिए लगातार कोटा में देश के हर कोने से बच्चे आते हैं. जिनमें राजस्थान के अलावा, बिहार, यूपी, मध्य प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, गुजरात, छत्तीसगढ़, झारखंड, महाराष्ट्र, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और जम्मू कश्मीर से भी बड़ी संख्या में बच्चे यहां आते हैं. नॉर्थ ईस्ट और साउथ के भी हजारों बच्चे यहां पर पढ़ रहे हैं.
देश की हर तीसरी मेडिकल सीट पर कोटा का कब्जाः डॉ. माहेश्वरी के अनुसार भारत में मेडिकल एजुकेशन में 97 हजार सीट डीम्ड यूनिवर्सिटी, निजी व सरकारी मेडिकल कॉलेजों में है. इनके लिए काउंसलिंग ऑल इंडिया कोटा की 11 अक्टूबर से शुरू होने वाली है. बीते सालों के आंकड़े के अनुसार करीब 30 फ़ीसदी यानी 30000 सीटों पर कोटा के स्टूडेंट्स एडमिशन ले लेते हैं. हालांकि स्टूडेंट्स में सरकारी सीट का क्रेज रहता है. ऐसे में सरकारी क्षेत्र की 48000 सीटों में करीब 18000 पर कोटा से पढ़ रहे बच्चे होते हैं. जबकि अन्य 30,000 सीटों पर शेष भारत से विद्यार्थी प्रवेश लेते हैं. ऐसे में साफ कहा जा सकता है कि हर तीसरी सीट पर कोटा का विद्यार्थी रहता है. जबकि देशभर के अन्य विद्यार्थियों के पास करीब सरकारी और निजी मिलाकर 67000 सीटों पर वह प्रवेश लेते हैं. जबकि साल 2006 में मेडिकल सलेक्शन की बात करें तो प्री और मेंस मिलाकर कोटा ने करीब 4647 बच्चों का चयन कराया था, वहीं साल 2021 में यह 30 हजार पहुंच गया है.
आईआईटी में कोटा से 6000 सिलेक्शन सालानाः इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा की बात की जाए तो जेईई मेन परीक्षा में जहां पर 9 लाख 50 हजार बच्चे एग्जाम देते हैं. जिनमें से ढाई लाख एडवांस्ड एग्जाम के लिए क्वालीफाई कर जाते हैं. कोटा से परीक्षा देने वाले 40000 बच्चों में से करीब 25000 एडवांस्ड की परीक्षा में क्वालीफाई होते हैं. इनमें से भी आईआईटी की प्रवेश परीक्षा में 18000 पास कर जाते हैं. जिनमें से काउंसलिंग में देश की 23 आईआईटी में कोटा के करीब 6000 बच्चे सीट प्राप्त कर लेते हैं. बृजेश माहेश्वरी का कहना है कि शेष भारत के बच्चों को 10000 सीटों पर प्रवेश मिलता है. यहां पर एक तिहाई कोटा के बच्चे सलेक्ट होते हैं.
दूसरी तरफ देश में 32 एनआईटी, 26 ट्रिपल आईटी व 33 जीएफटीआई की 38 हजार सीटों पर जेईई मेन परीक्षा से प्रवेश मिलता है. ऐसे में कोटा से करीब 9000 बच्चों का चयन होता है. जबकि शेष भारत से 9 लाख में से 4 फीसदी यानी करीब 32 हजार विद्यार्थियों का चयन होता है. हालांकि 2006 में इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा में कोटा के 200 बच्चे सफल हुए थे, लेकिन 2021 में सफल होने वाले स्टूडेंट्स का आंकड़ा 6 हजार के ऊपर है.
दिल्ली एम्स और टॉप आईआईटी में हर चौथा बच्चा कोटा सेः बृजेश माहेश्वरी ने बताया कि टॉप रैंकर्स की बात की जाए तो कोटा का मेडिकल और इंजीनियरिंग दोनों प्रवेश परीक्षाओं में करीब 30 फ़ीसदी हिस्सा रहता है. मेडिकल प्रवेश परीक्षा में हर टॉपर दिल्ली एम्स को लेना चाहता है. ऐसे में कोटा से कोचिंग कर रहे करीब हर चौथा विद्यार्थी दिल्ली एम्स में प्रवेश लेता है. साथ ही देश के टॉप आईआईटी की भी कंप्यूटर साइंस ब्रांच की बात की जाए तो कोटा से कोचिंग करने वाला हर चौथा बच्चा इनमें प्रवेश लेता है. जिनमें आईआईटी मुंबई, दिल्ली, कानपुर और मद्रास शामिल है.
परफेक्ट स्कोर लाने का रिकॉर्ड भी कोटा के नामः इस साल भी नीट यूजी 2022 के परिणाम में कोटा से कोचिंग कर रही हरियाणा गर्ल तनिष्का कुमारी ऑल इंडिया रैंक वन लेकर आई थी. यहां परफेक्ट स्कोर यानी पूरे में से पूरे अंक लाने का रिकॉर्ड भी कोटा के नाम रहा है. मेडिकल परीक्षा के इतिहास में पहली बार साल 2020 में कोटा से कोचिंग कर रहे बिहार के शोएब आफताब ने 720 में से 720 अंक लेकर ऑल इंडिया रैंक वन लेकर आए थे. हालांकि इससे पहले कई बार जेईई एडवांस्ड और नीट यूजी में ऑल इंडिया रैंक वन आ चुकी है. साल 2019 में नलिन खंडेलवाल भी AIR-1 लेकर इसमें शामिल हुए थे. वहीं एम्स में प्रवेश के लिए पहले अलग परीक्षा आयोजित होती थी, ऐसे में वर्ष 2017 के एम्स एंट्रेंस एग्जाम में कोटा कोचिंग का परचम लहराया था. जिसमें की टॉप 10 रैंक कोटा से ही आई थी. इसमें टॉपर ऑल इंडिया रैंक 1 पर निशिता पुरोहित रही थी.
कोटा के बदौलत ही राजस्थान और दिल्ली अव्वलः नेशनल टेस्टिंग एजेंसी की ओर से आयोजित की गई जेईईमेन और नीट यूजी परीक्षाओं में राजस्थान अव्वल रहता है. इसका कारण कोटा ही है, क्योंकि कोटा से पढ़ने वाले बच्चे दूसरे स्टेट के जरूर होते हैं, लेकिन बोर्ड परीक्षाओं में उनका एडमिशन कोटा के स्कूलों और बड़े एंट्रेंस एग्जाम में कोटा से ही वे फॉर्म भरते हैं. ऐसे में उन्हें कोटा का ही माना जाता है. उनके सलेक्शन के चलते ही राजस्थान अव्वल रहता है. साल 2021 में आयोजित हुई जेईई एडवांस्ड परीक्षा की जारी हुई ज्वाइंट इंप्लीमेंटेशन कमेटी की रिपोर्ट के अनुसार टॉप 500 विद्यार्थियों के आंकड़े के मामले में आईआईटी जोन दिल्ली सबसे आगे है. यहां से 133 विद्यार्थी टॉप 500 में शामिल हुए हैं. दिल्ली जोन के अव्वल रहने में कोटा का बड़ा हाथ है. क्योंकि यहां पर पढ़ रहे बड़ी संख्या में विद्यार्थी टॉप 500 रैंक लाते हैं. यह कोटा के अलग-अलग कोचिंग संस्थानों में पढ़ रहे थे.
विश्वास बढ़ने के साथ आंकड़ा भी दो लाख के पारः कोटा हॉस्टल एसोसिएशन के अध्यक्ष नवीन मित्तल का कहना है कि साल 2019 में करीब 180000 से ज्यादा बच्चे यहां पर आए थे. यह बच्चे हॉस्टल, पीजी व मल्टी स्टोरी बिल्डिंग के फ्लैट में रह रहे थे. साल 2020 की शुरुआत में नया सेशन शुरू होने के पहले ही पहले से ही कोचिंग कर रहे बच्चों को कोविड-19 के चलते वापस लौटना पड़ा. कोविड-19 के 2 साल में कोटा में बच्चे काफी कम संख्या में आए थे, लेकिन बीते साल जैसे ही कोचिंग संस्थान खुले बच्चों का आने का क्रम सितंबर अक्टूबर में जारी हो गया था. इस बार भी आंकड़ा 2 लाख से पार चला गया है. वर्तमान में बड़ी मुश्किल से बच्चों को हॉस्टल्स में रूम उपलब्ध करा पा रहे हैं. नवीन मित्तल का मानना है कि यहां से हो रहे सलेक्शन के चलते ही स्टूडेंट्स की संख्या बढ़ रही है. यहां पढ़कर जाने वाले बच्चे की माउथ पब्लिक सिटी कोटा की करते हैं.
कोटा में इसलिए बढ़ रहे स्टूडेंट
कोटा के एक्सपर्ट का मानना है कि यहां कोचिंग संस्थानों में बच्चों ही नहीं फैकल्टी के बीच भी कंपटीशन होता है. बच्चे हॉस्टल में एक साथ रहते हैं. वहां वे अपनी कमजोरी को दोस्तों से शेयर कर उसे सुधार लेते हैं. कोटा में बच्चों का कोर्स के साथ डाउट काउंटर चलते हैं. इन पर स्टूडेंट कभी भी अपने सवालों के बारे में समझ सकता है. उनका उत्तर हासिल कर सकता है. कोटा कोचिंग में वीकली एग्जाम का पैटर्न है. जिसके जरिए बच्चे को परफॉर्मेंस को सुधारने का मौका मिलता है. कोचिंग संस्थान बच्चों के लिए लाखों क्वेश्चंस का एक पूरा बैंक तैयार कर चुके हैं. इससे जेईई और नीट जैसे एग्जाम में बच्चों को मदद मिलती है.